🔶 उद्धरण:
"सामान्यत: स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में जो हो रहा है वह शिक्षा नहीं है। वह तुम्हें केवल अच्छी नौकरी के लिए शिक्षित करती है, अच्छा कमाने के लिए। यह वास्तविक शिक्षा नहीं है। यह तुम्हें जीवन नहीं देती।" — ओशो
🕉️ "शिक्षा जो जीवन छू न सके, वह अज्ञान से अधिक खतरनाक है" — एक प्रवचन
प्रेम...
आज जो तुम्हें शिक्षा के नाम पर परोसा जा रहा है, वह दरअसल एक बहुत सुनियोजित गुलामी की प्रक्रिया है।
विद्यालय एक प्रयोगशाला बन गए हैं, जहां इंसानों को इंसान नहीं, बल्कि उत्पाद में बदला जाता है—डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर, सी.ए., मैनेजर।
इंसान नहीं, लेबल; आत्मा नहीं, डिग्री।
और तुमने कभी देखा है?
एक बच्चा स्कूल जाता है, हँसता हुआ, खिलखिलाता हुआ।
और कुछ ही सालों में उसकी आँखें बुझ जाती हैं।
चेहरा गंभीर हो जाता है, हँसी खो जाती है, मौलिकता मुरझा जाती है।
क्या यही शिक्षा है?
🎭 डिग्रियों के कब्रिस्तान
शिक्षा का उद्देश्य जीवन को खोजना था, लेकिन अब वह सिर्फ जीविका कमाने की मशीन बन गई है।
और इस मशीन में तुम्हें ढाला जा रहा है, बहुत सलीके से, बहुत चतुराई से।
माँ-बाप कहते हैं, “बेटा, पढ़ लो, नहीं तो कुछ कर नहीं पाओगे।”
गुरु कहते हैं, “ये सब्जेक्ट ज़रूरी है, इससे करियर बनेगा।”
समाज कहता है, “इस कोर्स में जाओ, वही 'फ्यूचर' है।”
लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि —
“तुम कौन हो?”
“तुम्हारा स्वभाव क्या है?”
“तुम्हारा झुकाव किस ओर है?”
क्योंकि तुम्हें अपने हिसाब से नहीं, बाजार के हिसाब से गढ़ा जा रहा है।
📚 एक कहानी — मूर्ख को विद्वान बनाने की शिक्षा
एक राजा ने अपने राज्य के सबसे मूर्ख आदमी को राजगुरु से शिक्षा दिलवाने का आदेश दिया।
गुरु ने उसे संस्कृत, वेद, उपनिषद सिखाए।
वह पढ़ने लगा, रटने लगा, बोलने लगा।
कुछ वर्षों बाद जब वह लौटकर आया, तो उसके मुँह से शब्द निकलते थे — “ब्रह्म सत्यं, जगत मिथ्या।”
पर जब राजा ने पूछा — “तू कौन है?”
वह चुप हो गया।
राजा हँसा और बोला — “ज्ञान वह नहीं जो तुम बोलते हो, ज्ञान वह है जो तुम हो। तू तो अभी भी वही है — अज्ञानी। बस लिपि बदल गई है।”
🔎 आधुनिक शिक्षा — रट्टा, रैंक, रेस
आज की शिक्षा तुम्हें सिखाती है कि तुम्हें पहले नंबर पर आना है।
लेकिन कोई यह नहीं सिखाता कि अगर तुम जीवन में पिछड़ भी जाओ, तो भीतर से शांत कैसे रहना है।
तुम्हें बताया जाता है — "अच्छे अंक लाओ, तब जीवन सफल है।"
पर कोई यह नहीं बताता — “असफलता आए तो उसे कैसे अपनाओ, उससे क्या सीखो?”
यह शिक्षा नहीं है — यह मानसिक युद्ध का प्रशिक्षण है।
ओशो कहते हैं —
“असली शिक्षा तुम्हें अपने भीतर झाँकना सिखाती है।
यह शिक्षा बाहर की तरफ नहीं, भीतर की यात्रा है।”
🧘 शिक्षा जो ध्यान न सिखाए, अधूरी है
ध्यान का एक पल, सौ किताबों से अधिक गहन हो सकता है।
लेकिन क्या तुम्हें स्कूल में ध्यान सिखाया गया?
तुम्हारे कॉलेज में कभी मौन का मूल्य बताया गया?
नहीं।
क्योंकि मौन खतरनाक है।
मौन में आदमी सोचता है, प्रश्न करता है।
और शिक्षा व्यवस्था चाहती ही नहीं कि तुम प्रश्न करो।
वह चाहती है कि तुम स्वीकार कर लो — जैसा है, वैसा ही सही है।
🪔 ओशो की शिक्षा: जहाँ बच्चा स्वयं से मिले
ओशो ने एक बार कहा था —
“मेरी शिक्षा व्यवस्था में कोई परीक्षा नहीं होगी, कोई तुलना नहीं होगी।
हर बच्चा अपने स्वरूप में विशिष्ट है — तुलनीय नहीं।”
कल्पना करो —
ऐसा स्कूल जहाँ बच्चों से पूछा जाए — "तुम किसमें आनंदित होते हो?"
ना कि — "तुम्हें कितने अंक चाहिए?"
ऐसा विश्वविद्यालय जहाँ जीवन जीने की कला पढ़ाई जाए — प्रेम, मौन, ध्यान, करुणा, मृत्यु, सपने, अस्तित्व।
जहाँ बुद्ध, कबीर, नानक, और मीरा भी पाठ्यक्रम हों — और तुम्हारा मन भी।
🎨 मौलिकता मर जाती है, जब शिक्षा केवल ‘सही उत्तर’ सिखाती है
ओशो कहते हैं —
“तुम्हारे स्कूल तुम्हें सोचने नहीं देते। वे तुम्हें रटाते हैं।
और रटना मौलिकता की मृत्यु है।”
हर बच्चा प्रश्न पूछता है —
“ईश्वर क्या है?”
“मृत्यु क्या है?”
“मैं कौन हूँ?”
लेकिन स्कूल कहता है — “यह पाठ्यक्रम में नहीं है।”
और धीरे-धीरे बच्चा प्रश्न पूछना छोड़ देता है।
प्रश्न न पूछने वाला जीवित नहीं रहता — बस जीवित दिखता है।
🔥 डिग्री से जीवन नहीं आता — जीवन से डिग्री भी फालतू हो जाती है
तुम एक दिन बहुत पैसे कमा लोगे, लेकिन भीतर सूना होगा।
तुम डॉक्टर बन जाओगे, पर अपना ही मन बीमार रहेगा।
तुम इंजीनियर बन जाओगे, लेकिन आत्मा की नींव डोल रही होगी।
ओशो कहते हैं —
“तुम्हें जीने की कला कोई स्कूल नहीं सिखाता।
वे तुम्हें केवल जीने के साधन देते हैं, जीवन नहीं।”
🌱 तो फिर क्या है असली शिक्षा?
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जो तुम्हें खुद से मिलवाए।
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जो मौन और ध्यान की ओर ले जाए।
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जो प्रेम, करुणा, और आत्मा के रहस्य खोल दे।
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जो तुम्हें किसी और जैसा नहीं, बस ‘तुम’ जैसा बना दे।
💡 समापन: शिक्षा वह है जो तुम्हारे भीतर दीप जलाए — बाहर नहीं
अगर शिक्षा से तुम्हारे भीतर कोई रोशनी नहीं हुई,
अगर तुम और भी उलझ गए,
अगर तुम केवल नौकरी के काबिल हुए — जीवन के नहीं,
तो जान लो — तुम्हें धोखा दिया गया है।
और यह धोखा सबसे सुंदर पैकेजिंग में होता है — ‘शिक्षा’ के नाम पर।
ओशो की बात को याद रखो —
“सच में शिक्षित वह है जो जीना जानता है — गहराई से, मौन से, और पूर्णता से।”
Q: ओशो इस कथन में शिक्षा व्यवस्था के बारे में क्या कह रहे हैं?
A: ओशो का मानना है कि वर्तमान स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में जो कुछ सिखाया जा रहा है, वह केवल अच्छी नौकरी और पैसे कमाने तक सीमित है। यह वास्तविक शिक्षा नहीं है क्योंकि यह जीवन में गहराई या आत्मिक विकास नहीं लाती।
Q: “यह तुम्हें जीवन नहीं देती” से उनका क्या आशय है?
A: इसका अर्थ है कि ऐसी शिक्षा केवल भौतिक या व्यावसायिक सफलता तक सीमित है, जबकि सच्ची शिक्षा वह होती है जो जीवन के अर्थ, अनुभव और जागरूकता को विकसित करे।
Q: क्या यह विचार शिक्षा प्रणाली की आलोचना है?
A: हाँ, यह विचार पारंपरिक शिक्षा प्रणाली की आलोचना है, जो केवल नौकरी योग्य बनाने पर केंद्रित है, न कि एक सम्पूर्ण, जागरूक और आत्मनिर्भर व्यक्ति बनाने पर।
Q: ओशो किस प्रकार की शिक्षा को “वास्तविक” मानते हैं?
A: ओशो उस शिक्षा को वास्तविक मानते हैं जो व्यक्ति को भीतर से विकसित करे, जीवन को समझने और अनुभव करने की क्षमता दे, और आत्मज्ञान की ओर ले जाए।
Quote (Paraphrased):
"What happens in the schools, colleges, and universities is not education. She just educates you for good job, for good money. This is not education. It does not infuse life in you." — Osho
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