मनुष्य: एक बीज, एक संभावना

मनुष्य जब जन्म लेता है, तो वह पूर्णता के साथ नहीं आता —वह एक संभावना के रूप में आता है। यह बात साधारण लग सकती है, लेकिन यही उसकी सबसे विशेष और दिव्य प्रकृति है।

सिंह, शेर, कुत्ते, चिड़िया — सभी प्राणी निर्धारित प्रवृत्ति के साथ जन्मते हैं। एक कुत्ता जन्म से मृत्यु तक कुत्ता ही रहता है। लेकिन मनुष्य? वह क्या बन जाएगा, यह तय नहीं है।

मनुष्य जन्म से ही अपूरणीय होता है — उसे स्वयं को बनाना होता है। यह आशीर्वाद भी है और चुनौती भी। क्योंकि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो अपना भविष्य गढ़ सकता है, अपने भीतर के बीज को वृक्ष में रूपांतरित कर सकता है... या फिर यूं ही ज़मीन में पड़ा रह सकता है, बिना अंकुरित हुए।

शिक्षा: संभावना से वास्तविकता तक का पुल

मनुष्य जो कुछ बन सकता है और जो वह बनता है—इन दोनों के बीच एक सेतु है: शिक्षा

शिक्षा का अर्थ केवल डिग्री, नौकरी, धन कमाना नहीं है। यह तो महज जीविका है, जीवन नहीं।

सच्ची शिक्षा का उद्देश्य है— तुम्हारे भीतर जो बीज है, उसे पहचानने में मदद करना, उसे पोषित करना, उसे सूर्य के प्रकाश की ओर ले जाना।

आज की शिक्षा: एक खोखला निर्माण

आज जो कुछ विद्यालयों, विश्वविद्यालयों में हो रहा है, वह शिक्षा नहीं, व्यवस्था है

यह शिक्षा तुम्हें एक नौकरी के लायक बनाती है, लेकिन जीवन जीने की कला नहीं सिखाती

यह तुम्हें सूचनाओं से भर देती है, लेकिन बुद्धिमत्ता से वंचित छोड़ देती है

यह तुम्हें प्रतियोगी बनाती है, पर करुणा से रिक्त कर देती है

इसका मूल भय में है—“अगर पढ़े नहीं, तो भूखे मर जाओगे।”

इसका आधार है हिंसा—“दूसरे को पीछे छोड़ो, खुद आगे निकलो।”

यह एक ऐसी दौड़ है जहां सब एक-दूसरे को शत्रु मान बैठे हैं

प्रेमहीन शिक्षा: कैसा समाज रचेगी?

जहां शिक्षा का मूल ही प्रतियोगिता हो, वहां प्रेम, करुणा, सौंदर्य के लिए स्थान कैसे हो सकता है?

जहां हर बच्चा दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है, वहां सहयोग की भावना कैसे जन्मेगी?

सत्य यह है: ऐसी शिक्षा समाज नहीं बनाती, सिस्टम बनाती है—जहां इंसान मशीन बन जाता है, जहां आत्मा खो जाती है।

शिक्षा का उद्देश्य: जीवन को उत्सव बनाना

मेरे लिए शिक्षा का अर्थ है—

संघर्ष नहीं, उत्सव

प्रतियोगिता नहीं, सह-जीवन

सूचना नहीं, अंतर्दृष्टि

शिक्षा वह हो जो तुम्हें प्रकृति से जोड़े—

 गायन की लय से,

 नृत्य की थिरकन से,

 कविता की भावधारा से,

 चित्रकला की रंगों से,

 पंछियों के गीतों से,

 वृक्षों की मौन उपस्थिति से

शिक्षा तुम्हें यह सिखाए कि तुम कौन हो, न कि यह कि “दूसरे जैसे कैसे बनना है।”

आज की शिक्षा तुलना सिखाती है, सच्ची शिक्षा स्वीकृति सिखाती है

तुम अद्वितीय हो: इस सत्य को जानो

दुनिया में कोई और तुम्हारे जैसा नहीं है, न कभी था, न कभी होगा।

तुम ईश्वर की एक अप्रतिम कृति हो

लेकिन आज की शिक्षा तुम्हें कार्बन कॉपी बनाने पर तुली है। वह तुम्हारा मूल चेहरा छीन लेती है

सच्ची शिक्षा तुम्हें तुम्हारे भीतर के खजाने तक पहुंचाती है। जो परमात्मा ने तुम्हारे भीतर बीज रूप में रखा है, उसे प्रकट करना ही शिक्षा का कार्य है।

शिक्षा का गहन अर्थ: तमसो मा ज्योतिर्गमय

‘शिक्षा’ शब्द स्वयं ही दो सुंदर अर्थों को समेटे हुए है:

1. “Educare” – जिसका अर्थ है: भीतर जो छिपा है, उसे बाहर लाना।

2. “Tamso Ma Jyotirgamaya” – अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा।

उपनिषदों की यह प्रार्थना शिक्षा का सार है:

 असतो मा सद्गमय – असत्य से सत्य की ओर

 तमसो मा ज्योतिर्गमय – अंधकार से प्रकाश की ओर

 मृत्योर्मा अमृतं गमय – मृत्यु से अमरता की ओर

शिक्षा वही है जो तुम्हें भीतर के अंधकार से बाहर लाए, तुम्हें स्वयं की रोशनी से परिचित कराए।

अंतिम बात: बीज को वृक्ष बनना है

मनुष्य बीज है। लेकिन वृक्ष बनना उसकी अपनी यात्रा है।

शिक्षा वह वर्षा है जो इस बीज को अंकुरित कर सकती है।

लेकिन बारिश अगर केवल आंकड़ों की हो, डर की हो, होड़ की हो—तो बीज सड़ भी सकता है।

इसलिए, हमें ऐसी शिक्षा की ज़रूरत है जो तुम्हें तुम्हारा वास्तविक स्वरूप दिखाए, जो कहे—

 “तू जैसा है, वैसा ही अनमोल है। अब बस खिल।”

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