जीवन एक वर्तुल है

प्रिय मित्रों,

आज हम एक ऐसी बात पर विचार करेंगे, जो सुनने में तो बहुत साधारण लगती है, लेकिन इसके भीतर एक गहरी सच्चाई छुपी है। ओशो कहते हैं, "बच्चा श्वास लेता पैदा नहीं होता, पैदा होने के बाद श्वास लेता है। कोई आदमीं श्वास लेता हुआ नहीं मरता, श्वास छोड़ कर मरता है। जिस बिन्दु से जन्म शुरू होता है, जीवन की यात्रा शुरू होती है, वहीं मृत्यु उपलब्ध होती है। जीवन एक वर्तुल है।"क्या तुमने कभी सोचा कि यह छोटा-सा वाक्य कितना बड़ा रहस्य अपने भीतर समेटे हुए है? चलो, थोड़ा ठहरते हैं, थोड़ा सोचते हैं, और इसकी गहराई में उतरते हैं।

श्वास: जीवन का पहला और आखिरी संगीत

जरा सोचो, जब एक बच्चा इस दुनिया में आता है, तो क्या होता है? वह चुपचाप पैदा नहीं होता। वह रोता है। और उस रोने में पहली श्वास छुपी होती है। वह श्वास लेता है, और उसी पल से जीवन शुरू होता है। विज्ञान भी कहता है—जो आधुनिक मनोविज्ञान और चिकित्सा हमें बताती है—कि पहली श्वास के बिना जीवन संभव नहीं। ऑक्सीजन फेफड़ों में जाती है, खून में दौड़ती है, और कोशिकाओं को जिंदा रखती है। लेकिन ओशो इसे सिर्फ विज्ञान तक नहीं छोड़ते। वे कहते हैं, "यह श्वास सिर्फ ऑक्सीजन नहीं है, यह तुम्हारा प्राण है, तुम्हारी चेतना का पहला स्पंदन है।"

और मृत्यु? मृत्यु का दृश्य देखो। कोई श्वास लेते-लेते नहीं मरता। आखिरी श्वास हमेशा बाहर जाती है। जैसे कोई दीया बुझने से पहले एक आखिरी झिलमिलाहट देता है, वैसे ही श्वास छूटती है, और सब शांत हो जाता है। क्या यह संयोग है? नहीं, मित्रों। यह जीवन का नियम है। श्वास अंदर आती है, जीवन शुरू होता है। श्वास बाहर जाती है, जीवन समाप्त होता है। और फिर? फिर वही मौन। वह मौन जो जन्म से पहले था, और मृत्यु के बाद है। क्या तुमने कभी इस मौन को सुना?

जीवन एक वर्तुल है: चक्र का रहस्य

अब इस बात को थोड़ा और खोलते हैं। ओशो कहते हैं, "जिस बिंदु से जन्म शुरू होता है, वहीं मृत्यु उपलब्ध होती है। जीवन एक वर्तुल है।" यह वर्तुल क्या है? यह चक्र क्या है?जरा एक बीज को देखो। बीज मिट्टी में पड़ता है, अंकुर बनता है, पौधा उगता है, फूल खिलता है, फिर फल देता है, और उस फल में फिर वही बीज छुपा होता है। शुरू कहां से हुआ, अंत कहां पर हुआ? पता ही नहीं चलता। वृत्त में कोई शुरुआत नहीं, कोई अंत नहीं।जीवन भी ऐसा ही है। हम जन्म लेते हैं, जीते हैं, मरते हैं, और फिर? फिर वही चक्र। कोई कहता है, "मैं मरने के बाद स्वर्ग जाऊंगा।" कोई कहता है, "मैं नर्क में जाऊंगा।" ओशो हंसते हैं। वे कहते हैं, "अरे, स्वर्ग-नर्क की बात छोड़ो। पहले यह तो देखो कि तुम अभी कहां हो। अभी तुम जीवित हो, या सिर्फ सांस लेने की मशीन बन गए हो?" यह उनका व्यंग्य है, यह उनका चुटीलापन है। लेकिन इसमें सच्चाई है।

जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जैसे दिन और रात, जैसे सूरज का उगना और डूबना। तुम दिन को पकड़ नहीं सकते, रात को रोक नहीं सकते। फिर जन्म को क्यों पकड़ना चाहते हो? मृत्यु से क्यों डरते हो? यह तो एक चक्र है। और इस चक्र को समझने के लिए तुम्हें अपने भीतर जाना होगा।

ध्यान: श्वास का रहस्य खोलने की चाबी

अब एक गूढ़ कहानी सुनो। एक बार एक शिष्य अपने गुरु के पास गया और बोला, "मुझे जीवन का रहस्य बताओ।" गुरु मुस्कुराए और बोले, "अपनी श्वास को देख।" शिष्य हैरान हुआ। उसने कहा, "श्वास? इसमें क्या रहस्य है? यह तो मैं हर पल ले रहा हूं।" गुरु बोले, "ले रहे हो, पर देख नहीं रहे। जा, और इसे देख।"शिष्य गया। उसने ध्यान करना शुरू किया। हर श्वास को देखा। अंदर जाती श्वास, बाहर आती श्वास। और धीरे-धीरे उसे एहसास हुआ कि श्वास सिर्फ हवा नहीं है। यह एक लय है। यह एक संगीत है। यह उसकी चेतना का नृत्य है।

ओशो कहते हैं, "ध्यान करो। अपनी श्वास को देखो। यह तुम्हारा पहला गुरु है।" श्वास तुम्हें सिखाती है कि जीवन क्षणभंगुर है। हर श्वास के साथ तुम जन्म लेते हो, हर श्वास के साथ तुम मरते हो। और बीच में जो है, वही तुम्हारा असली स्वरूप है।आधुनिक मनोविज्ञान भी कहता है कि श्वास और मन का गहरा संबंध है। जब तुम गुस्से में होते हो, श्वास तेज हो जाती है। जब तुम शांत होते हो, श्वास धीमी हो जाती है। तो क्या श्वास को देखकर तुम अपने मन को नहीं बदल सकते? ध्यान इसी का विज्ञान है। श्वास तुम्हारा सेतु है—शरीर से मन तक, मन से चेतना तक।

बाह्य उपदेश और सेवा: एक खोखला खेल

अब एक सवाल पूछता हूं। तुम कितने लोगों को उपदेश देते हो? "ऐसा करो, वैसा मत करो।" कितने लोगों की सेवा करते हो? गरीबों को खाना बांटते हो, मंदिर में दान देते हो। अच्छी बात है। लेकिन ओशो कहते हैं, "जब तक तुम स्वयं को नहीं जानते, तुम्हारा सारा उपदेश और सारी सेवा एक खोखला खेल है।"क्यों? क्योंकि तुम अंधे हो। एक अंधा दूसरे अंधे को रास्ता दिखाएगा, तो क्या होगा? दोनों खाई में गिरेंगे। हंसी आती है न? पर यही सच है।एक बार एक आदमी था। वह हर दिन मंदिर जाता था। घंटियां बजाता था, भगवान को भोग लगाता था। एक दिन ओशो से मिला। ओशो ने पूछा, "क्यों जाता है मंदिर?" उसने कहा, "भगवान की सेवा के लिए।" ओशो हंसे और बोले, "भगवान को तेरी सेवा की जरूरत नहीं। पहले खुद को तो जान ले।"यह व्यंग्य नहीं, यह सच है। जब तक तुम्हें पता नहीं कि तुम कौन हो, तुम्हारी सेवा किस काम की? तुम्हारा उपदेश किस काम का?

मौन: वह जो शब्दों से परे है

अब थोड़ा रुकते हैं। थोड़ा मौन में डूबते हैं। ओशो कहते हैं, "शब्द बहुत बोलते हैं, लेकिन सच मौन में है।" अभी मैं तुमसे बोल रहा हूं, लेकिन असली बात तो तब होगी जब यह शब्द रुकेंगे। जब तुम अपनी श्वास को देखोगे, और उस देखने में शब्द गायब हो जाएंगे।वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारा दिमाग हर सेकंड हजारों विचार पैदा करता है। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा कि इन विचारों के बीच में जो खालीपन है, वह क्या है? वह मौन है। और उस मौन में तुम्हारा असली घर है।ध्यान करो। श्वास को देखो। और जब श्वास के बीच का अंतराल तुम्हें दिखने लगे, तो समझो कि तुम जीवन के वर्तुल को समझ गए।

निष्कर्ष: भीतर की यात्रा शुरू करो

तो मित्रों, ओशो की यह उक्ति हमें क्या सिखाती है? कि जीवन और मृत्यु एक ही चक्र हैं। श्वास इसका प्रमाण है। श्वास के साथ जन्म, श्वास के साथ मृत्यु। और बीच में जो है, उसे जानने के लिए ध्यान करो।बाहर की दुनिया में बहुत कुछ है—शोर, भीड़, उपदेश, सेवा। लेकिन जब तक तुम अपने भीतर नहीं गए, यह सब बेकार है। एक बीज को बाहर से पानी दे सकते हो, लेकिन अगर वह भीतर से नहीं फूटता, तो क्या होगा? कुछ नहीं।इसलिए, अभी उठो। अभी शुरू करो। अपनी श्वास को देखो। अपने भीतर उतरो। और जब तुम स्वयं को जान लोगे, तो यह जीवन एक उत्सव बन जाएगा। जन्म भी, मृत्यु भी। क्योंकि जीवन एक वर्तुल है।मौन रहो। जागो। और जी लो।

धन्यवाद।

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