प्रिय मित्रों,
आज मैं तुमसे एक ऐसी बात करने जा रहा हूँ, जो तुम्हारे दिल को छू जाएगी, तुम्हारे मन को झकझोर देगी, और शायद तुम्हें हँसा भी देगी। बात है उदारता की। लेकिन उदारता कोई साधारण चीज़ नहीं है, जैसा कि लोग समझते हैं। मैंने कहा है, "असली उदारता वही है जिसमें लौटकर पाने की चाह न हो।" अब इसे समझने के लिए, चलो, थोड़ा मज़े के साथ, थोड़ी गहराई में उतरते हैं।
एक फूल की कहानी
जंगल में एक फूल था। बहुत सुंदर, बहुत खुशबूदार। हर दिन वह खिलता, अपनी खुशबू चारों ओर फैलाता। राहगीर आते, उसकी तारीफ करते, उसकी खुशबू का मज़ा लेते, और चले जाते। एक दिन एक आदमी ने उस फूल से पूछा, "तुम इतनी खुशबू क्यों बाँटते हो? बदले में तुम्हें क्या मिलता है?" फूल हँसा और बोला, "मुझे कुछ नहीं मिलता। मैं बस अपनी खुशबू बाँटता हूँ, क्योंकि यही मेरा स्वभाव है। मुझे देने में ही आनंद है।"
अब बताओ, क्या तुमने कभी ऐसा फूल देखा जो अपनी खुशबू के बदले कुछ माँगता हो? नहीं न? लेकिन हम इंसान? अरे, हम तो हर चीज़ में हिसाब लगाते हैं। देंगे तो सोचेंगे, "इससे क्या मिलेगा?" और यही वह जगह है जहाँ हम असली उदारता को खो देते हैं। यह फूल हमें कुछ सिखाता है, मित्रों। वह यह कि असली उदारता कोई हिसाब-किताब नहीं रखती। वह बस देती है, और देने में ही उसकी पूर्णता है।
उदारता या व्यापार?
देखो, लोग उदारता को बड़े गर्व से दिखाते हैं। कोई गरीब को दान देता है, तो सोचता है, "अच्छा कर्म कर रहा हूँ, स्वर्ग में जगह मिलेगी।" कोई किसी की मदद करता है, तो मन में यह होता है, "कल को यह भी मेरी मदद करेगा।" अरे, यह उदारता नहीं, यह तो व्यापार है! तुम दे रहे हो, लेकिन दिल में एक दुकानदार बैठा है, जो हिसाब रख रहा है कि कितना दिया, कितना वापस आएगा।
मैं कहता हूँ, अगर तुम उदारता में भी व्यापार ढूंढते हो, तो तुमने कभी असली उदारता को जाना ही नहीं। यह एक उत्तेजक बात है, है न? सोचो ज़रा। तुम दान देते हो, लेकिन मन में यह चल रहा है कि इससे तुम्हारा नाम होगा, लोग तारीफ करेंगे, या शायद भगवान तुम्हें कुछ इनाम देगा। यह तो एक सौदा है, मित्रों। असली उदारता तो वह है, जो बिना किसी अपेक्षा के की जाती है। जिसमें तुम देते हो, और भूल जाते हो। जैसे सूरज अपनी रोशनी बाँटता है, बिना यह सोचे कि कौन उसकी रोशनी ले रहा है, कौन नहीं। क्या सूरज कभी कहता है, "तुमने मेरी रोशनी ली, अब मुझे कुछ दो"? नहीं। वह बस देता है, क्योंकि देना उसका स्वभाव है।
एक और कहानी
चलो, एक और कहानी सुनाता हूँ। एक गाँव में दो पड़ोसी रहते थे। एक बहुत अमीर, दूसरा बहुत गरीब। अमीर आदमी ने एक दिन गरीब को बुलाया और कहा, "तुम्हें जो चाहिए, ले लो। मैं तुम्हें दान देना चाहता हूँ।" गरीब ने कहा, "मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं खुश हूँ।" अमीर हैरान हो गया। उसने सोचा, "यह तो बड़ा अजीब आदमी है। दान लेने से मना कर रहा है।" फिर उसने ज़ोर दिया, "नहीं, नहीं, तुम्हें लेना ही होगा।" गरीब मुस्कुराया और बोला, "अगर तुम सच में दान देना चाहते हो, तो ऐसे दो कि मुझे पता भी न चले। वरना यह दान नहीं, तुम्हारा अहंकार है।"
यहाँ असली उदारता कहाँ है? अमीर आदमी दान देना चाहता था, लेकिन उसके मन में यह था कि लोग देखें, तारीफ करें। वह अपनी पीठ थपथपाना चाहता था। लेकिन गरीब ने उसे आईना दिखा दिया। असली उदारता में अहंकार नहीं होता, मित्रों। वह शुद्ध होती है, जैसे माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है, बिना किसी अपेक्षा के। क्या माँ कभी सोचती है कि बच्चा बड़ा होकर उसे कुछ लौटाएगा? नहीं। वह बस देती है, क्योंकि उसका प्यार उसकी उदारता में झलकता है।
प्यार में भी उदारता
अब थोड़ा प्यार की बात करते हैं। प्यार में भी लोग उदारता दिखाते हैं, लेकिन क्या वह असली होती है? तुम किसी से कहते हो, "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ," लेकिन मन में यह होता है, "तुम भी मुझसे प्यार करो।" अरे, यह प्यार नहीं, यह तो सौदा है! असली प्यार तो वह है, जिसमें तुम देते हो, और बदले में कुछ नहीं माँगते। जैसे बादल बरसते हैं, बिना यह सोचे कि धरती उन्हें क्या देगी।
मैं कहता हूँ, अगर तुम्हारा प्यार भी एक सौदा है, तो तुमने प्यार को जाना ही नहीं। प्यार तो उदारता का सबसे ऊँचा रूप है। वहाँ तुम खुद को ही दे देते हो, बिना किसी शर्त के। और जब तुम ऐसा करते हो, तब तुम्हें एक अजीब सा आनंद मिलता है, जो किसी व्यापार में नहीं मिल सकता। क्या तुमने कभी किसी से इतना प्यार किया कि तुम खुद को भूल गए? अगर हाँ, तो तुमने असली उदारता को छू लिया। अगर नहीं, तो अभी बहुत कुछ बाकी है, मित्रों।
थोड़ा मज़ाक
अब ज़रा हँसो मेरे साथ। आपने देखा होगा, लोग दान देते हैं, और फिर फोटो खिंचवाते हैं। सोशल मीडिया पर डालते हैं, "आज मैंने इतना दान दिया।" अरे, यह दान है या विज्ञापन? मैं कहता हूँ, अगर तुम दान देते हो और फिर उसका ढिंढोरा पीटते हो, तो तुमने दान नहीं, अपना प्रचार किया है। असली उदारता तो चुपचाप होती है, जैसे रात में तारे चमकते हैं, बिना किसी शोर के।
एक बार एक आदमी ने मुझसे कहा, "ओशो, मैं बहुत उदार हूँ। मैंने बहुत दान दिया है।" मैंने पूछा, "कितने लोगों को बताया?" वह बोला, "सबको।" मैं हँसा और कहा, "तो तुमने दान नहीं, अपना नाम कमाया है। असली उदारता तो वह है, जो बाएँ हाथ को भी पता न चले कि दायाँ हाथ क्या कर रहा है।" यह सुनकर वह थोड़ा शरमाया, और मुझे लगा, शायद अब वह सोचेगा।
आध्यात्मिकता में उदारता
अब थोड़ा गहराई में जाते हैं। आध्यात्मिकता में उदारता का क्या मतलब है? मैं कहता हूँ, असली उदारता तब है, जब तुम अपने आप को ही दे दो। अपने विचारों को, अपने अहंकार को, अपनी इच्छाओं को—सबको छोड़ दो। जब तुम खाली हो जाते हो, तब तुम असली मायने में उदार होते हो। क्योंकि तब तुम ब्रह्मांड को अपने भीतर जगह देते हो। तुम कहते हो, "आओ, मुझमें समा जाओ।" और यही वह उदारता है, जिसमें लौटकर कुछ पाने की चाह नहीं होती। तुम खुद ही सब कुछ हो जाते हो।
यह थोड़ा मुश्किल लगता है, लेकिन सोचो। जब तुम किसी को प्यार करते हो, और खुद को भूल जाते हो, तब क्या होता है? तुम उसमें समा जाते हो, और वह तुममें। वहाँ कोई "मैं" नहीं रहता, कोई "तू" नहीं रहता। बस प्यार रहता है। यही असली उदारता है—जहाँ तुम खुद को ही दे देते हो, बिना किसी अपेक्षा के। और जब ऐसा होता है, तब तुम्हें एक ऐसी शांति मिलती है, जो दुनिया की सारी दौलत से नहीं खरीदी जा सकती।
एक बच्चे की कहानी
चलो, एक आखिरी कहानी। एक छोटा बच्चा था। उसके पास उसकी पसंदीदा खिलौना थी। एक दिन वह पार्क में खेल रहा था, और उसने देखा कि एक दूसरा बच्चा उदास बैठा है। उसने पूछा, "क्या हुआ?" वह बोला, "मेरे पास कोई खिलौना नहीं है।" बिना एक पल सोचे, उस बच्चे ने अपनी खिलौना उसे दे दी। और क्या जानते हो? वह खुद भी खुश हो गया। उसने कुछ पाने की चाह नहीं की, बस देने में ही उसका आनंद था।
यही असली उदारता है, मित्रों। वह मासूमियत, वह सहजता, जिसमें कोई हिसाब-किताब नहीं। हम बड़े होकर यह सब भूल जाते हैं। हम सोचते हैं, "अगर मैं दूँगा, तो मुझे कम हो जाएगा।" लेकिन मैं कहता हूँ, नहीं। जब तुम बिना अपेक्षा के देते हो, तब तुम्हारे भीतर एक खाली जगह बनती है, और उस खाली जगह में ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा आकर भर जाती है। तुम और भी समृद्ध हो जाते हो।
अंत में
तो, प्रियतम, असली उदारता वह नहीं है, जो तुम्हारे हाथ से जाती है। वह है, जो तुम्हारे दिल से निकलती है, बिना किसी शर्त के, बिना किसी अपेक्षा के। जब तुम ऐसा करते हो, तब तुम सच में उदार होते हो। और यही वह उदारता है, जो तुम्हें मुक्त करती है, जो तुम्हें आनंद देती है।
इसलिए, अगली बार जब तुम कुछ दो, तो यह मत सोचो कि बदले में क्या मिलेगा। बस दो, और भूल जाओ। और देखो, जीवन कितना सुंदर हो जाएगा।
धन्यवाद।
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