प्रेम और नफ़रत – एक ही सिक्के के दो पहलू
प्रिय साथियो,
आज हम एक ऐसे रहस्य की बात करेंगे, जिसे समझना जितना कठिन है उतना ही मजेदार भी – प्रेम और नफ़रत। कहते हैं, "मुझसे नफ़रत करनी है तो होश में करना, जरा भी चुके तो मोहब्बत हो जाएगी!!" इस ओशोवाणी में निहित गहराई को समझना हमारे लिए आवश्यक है। यहाँ नफ़रत और प्रेम दो विपरीत ध्रुव नहीं, बल्कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो भाव हम किसी के प्रति रखते हैं, वह हमारे मन में लगातार उसकी उपस्थिति को बनाये रखता है। और यही उपस्थिति, चाहे नफ़रत के रूप में हो या प्रेम के, अंततः मन की भीतरी प्रक्रिया के तहत एक-दूसरे में बदल सकती है।
1. अंदर झाँकिए – मन की मौलिक प्रकृति
हमारे मन की गहराई में छिपे भावनाओं का समुंदर है, जहां प्रेम और नफ़रत दोनों ही एक साथ विद्यमान होते हैं। जब हम किसी के प्रति नफ़रत की भावना रखते हैं, तो वास्तव में हम उस व्यक्ति को अपने मन से दूर नहीं कर पाते। बल्कि, उसकी छवि हमारे मन में बार-बार प्रकट होती है। यह एक तरह का अदृश्य सम्मोहन है, जो कहता है – "देखो, मैं तुम्हें भूल नहीं सकता।" यही कारण है कि नफ़रत के साथ भी एक प्रकार की लगाव होती है। समय के साथ, यदि हम अपने भीतर के इस नकारात्मक भाव को बिना सोचे समझे दबाने लगते हैं, तो वह भाव धीरे-धीरे परिवर्तनशील होकर प्रेम में परिवर्तित हो सकता है।
यह विचार हमें यह समझाने पर मजबूर करता है कि हमारे भीतर की ऊर्जा, चाहे वह कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हो, उसी ऊर्जा के रूप में सामने आती है जिसे हम प्रेम के नाम से भी जान सकते हैं। वास्तव में, प्रेम और नफ़रत के बीच की रेखा अत्यंत सूक्ष्म है। अगर हम थोड़ा सा ध्यान से देखें तो पाएंगे कि दोनों भाव एक ही ऊर्जा के दो रूप हैं। इस ऊर्जा का निरंतर प्रवाह हमारे अस्तित्व का हिस्सा है।
2. एक पड़ोसी की कहानी – नफ़रत से प्रेम तक का सफ़र
अब मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ, जो इस विचार का जीवंत उदाहरण है। कल्पना कीजिए एक छोटे से मोहल्ले में एक व्यक्ति रहता था – रामु। रामु अपने पड़ोसी, श्याम, से अत्यधिक नफ़रत करता था। श्याम की बातों, उसके चलन-चलन, यहाँ तक कि उसकी हँसी भी रामु के कानों में बुरी लगती थी। हर सुबह रामु की नींद श्याम की आवाज़ से खुलती, और हर शाम उसकी खिड़की से श्याम की अजीब हरकतें उसे उत्तेजित कर देती थीं।
एक दिन रामु ने सोचा, “इतनी नफ़रत में क्यों जी रहा हूँ? क्या यह मेरे जीवन का मकसद है?” लेकिन नफ़रत इतनी गहरी थी कि उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि असल में उसके अंदर छुपा हुआ एक और भाव भी है – वह छुपा हुआ प्रेम। रामु के मन में एक सवाल उठने लगा – "क्या श्याम में कुछ ऐसा है जिसे मैं वास्तव में चाहता हूँ?"
दिन बीतते गए और रामु की नफ़रत के साथ-साथ श्याम की उपस्थिति भी बढ़ती गई। वह श्याम की हर बात पर ध्यान देने लगा – उसकी मुस्कान, उसकी हल्की-हल्की बातें, और यहाँ तक कि उसके द्वारा की जाने वाली छोटी-छोटी मददें। एक दिन रामु की नजरें अचानक श्याम पर पड़ीं जब वह बूढ़े एक पड़ोसी की मदद कर रहा था। उस क्षण रामु के मन में कुछ ठंडा, कुछ नरम सा महसूस हुआ। उसने महसूस किया कि श्याम की वह छोटी सी कृपा भरी हरकत वास्तव में मानवता और प्रेम का परिचायक थी।
धीरे-धीरे रामु को अहसास हुआ कि उसकी नफ़रत सिर्फ एक आवरण थी – एक ऐसी परत जो उसके भीतर छुपे प्रेम को छुपाये हुए थी। उसने ध्यान करना शुरू किया, आत्म-जागरूकता की ओर कदम बढ़ाया और देखा कि उसके मन में जो नकारात्मक भाव था, वह वास्तव में एक तरह की गहरी जिज्ञासा और लगाव का प्रतिबिम्ब था। रामु ने पाया कि अगर वह अपने नफ़रत के भाव को स्वीकार कर लेता, तो वह आसानी से उस छुपे हुए प्रेम को समझ सकता था। इस समझ ने धीरे-धीरे उसकी नफ़रत को प्रेम में बदल दिया।
3. व्यंग्य और हास्य में छुपा ज्ञान
ओशो कहते हैं, "जीवन एक खेल है, इसे खेल की भावना से जियो।" इस खेल में नफ़रत और प्रेम दोनों ही खिलाड़ी हैं। कभी-कभी हमें लगता है कि हम इस खेल को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं, लेकिन असल में, यह एक मजेदार खेल है, जिसमें हमारे अंदर छुपे भावों के रंगों का उत्सव होता है। सोचिए, अगर हम अपने अंदर की नफ़रत को भी वैसे ही खेल समझें, तो उसमें भी एक तरह का हास्य आ जाता है।
एक बार एक साधु ने अपने शिष्य से कहा, "जब तुम किसी से नफ़रत करते हो, तो असल में तुम उस व्यक्ति को बहुत पसंद करते हो।" शिष्य ने हँसते हुए पूछा, "कैसे भाई, नफ़रत और प्यार का क्या मेल है?" साधु ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "दोनों एक ही पोटली में हैं, बस नाम अलग हैं।" इस तरह के व्यंग्य हमें यह सिखाते हैं कि अगर हम अपने अंदर के विरोधी भावों को सही नजरिये से देखें, तो उनमें भी एक प्रकार का हास्य और ज्ञान छिपा होता है।
4. ध्यान और आत्म-जागरूकता – परिवर्तन की कुंजी
अब हम उस बात पर आते हैं कि कैसे ध्यान और आत्म-जागरूकता इन भावनाओं के रूपांतरण में मदद करती हैं। जब हम अपने भीतर झाँकते हैं, अपने भावों को बिना किसी भय के स्वीकारते हैं, तो हम देख पाते हैं कि नफ़रत और प्रेम के बीच का फर्क केवल हमारी मानसिक प्रक्रियाओं का एक छोटा सा अंतर है। ध्यान से हम अपने मन की तरंगों को समझ सकते हैं और देख सकते हैं कि हमारे अंदर की नकारात्मक ऊर्जा भी, अगर सही ढंग से प्रवाहित की जाए, सकारात्मक ऊर्जा में बदल सकती है।
ओशो कहते हैं, "स्वयं की खोज ही सच्चा ज्ञान है।" जब हम इस खोज में निकल पड़ते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे अंदर की हर भावना, चाहे वह नफ़रत हो या प्रेम, एक अनंत स्रोत का हिस्सा है। ध्यान हमें इस स्रोत से जोड़ता है और हमारी आत्मा को शांति प्रदान करता है। एक बार एक साधक ने ध्यान के दौरान देखा कि उसकी नफ़रत एक गहरे सागर की तरह थी, जिसे उसने धीरे-धीरे प्रेम के मीठे पानी में बदलते देखा। यही परिवर्तन हमें यह बताता है कि जब हम अपने अंदर की नकारात्मक भावनाओं को जागरूकता से देखते हैं, तो वे अपने आप में एक सकारात्मक परिवर्तन की ओर अग्रसर हो जाती हैं।
5. रूपकों के माध्यम से सीख – जीवन के रंगमंच पर भावनाओं की नाटकीयता
कल्पना कीजिए कि आपका मन एक विशाल रंगमंच है, जहाँ हर भाव, हर भावना, एक अभिनेता की तरह अभिनय कर रही होती है। नफ़रत उस अभिनेता की तरह है जो अपने मंच पर जोरदार एंट्री मारता है, लेकिन उसके अंदर छुपा हुआ प्रेम भी एक शांत, समझदार अभिनेता की तरह रहता है। जब हम इस रंगमंच को ध्यान से देखते हैं, तो हमें एहसास होता है कि नफ़रत की आड़ के पीछे छुपा हुआ प्रेम भी उसी मंच पर मौज़ूद है।
एक और कहानी के माध्यम से इसे समझते हैं। एक बार एक गांव में दो दोस्त थे – एक का नाम मोहन और दूसरे का नाम सोहन। मोहन को सोहन से गहरी नफ़रत थी। हर बात पर वे एक-दूसरे के खिलाफ टिप्पणी करते रहते थे। लेकिन एक दिन गांव में एक बड़ी आपदा आई। तब मोहन ने देखा कि सोहन ने बिना किसी स्वार्थ के सबकी मदद की। उस दिन मोहन के मन में एक अनजाना भाव उत्पन्न हुआ, जिसने उसकी नफ़रत की दीवारों को धीरे-धीरे तोड़ दिया। उसने समझा कि सोहन की उस नि:स्वार्थता में ही तो प्रेम की झलक थी, जो उसने अब तक नज़रअंदाज़ कर दी थी।
यह रूपक हमें यह सिखाता है कि जीवन में हर भाव एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अगर हम केवल एक ही भाव को घेर लेते हैं, तो बाकी भाव हमारे सामने छिपे रहते हैं। प्रेम और नफ़रत दोनों मिलकर ही हमारे जीवन के रंगों को परिभाषित करते हैं।
6. आत्म-जागरूकता का अभ्यास – एक आंतरिक यात्रा
किसी भी व्यक्ति का असली ज्ञान उसके अपने अंदर छिपा होता है। जब हम अपने आप से सच्चाई से मिलते हैं, तब हम पाते हैं कि हमारे अंदर जो भी भाव हैं, वे केवल हमारी अपनी रचनाएँ हैं। ध्यान के माध्यम से हम इन भावों को समझते हैं, स्वीकारते हैं और उन्हें उसी ऊर्जा में बदल देते हैं, जिससे हमारा जीवन सम्पूर्ण हो उठता है।
ध्यान का अभ्यास हमें यह सिखाता है कि हमारे अंदर की नकारात्मकता भी एक तरह की चेतना है, जिसे समझ कर हम उसे प्रेम में परिवर्तित कर सकते हैं। ओशो के अनुसार, "जीवन एक खेल है, इसे खेल की भावना से जियो।" जब हम इस खेल को गंभीरता से लेने के बजाय एक हल्के-फुल्के दिल से निभाते हैं, तब हमारे अंदर की हर ऊर्जा, चाहे वह कितनी भी विकृत क्यों न हो, सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है। यह बदलाब तभी संभव है जब हम अपने अंदर की गहराई में जाकर आत्म-जागरूकता का अभ्यास करें।
7. नफ़रत के पीछे का प्रेम – एक दार्शनिक विश्लेषण
सोचिए, जब हम किसी से नफ़रत करते हैं, तो क्या हम वास्तव में उसे नकारते हैं या बस उस व्यक्ति को बार-बार अपने मन में बुलाते हैं? हर बार जब हम नफ़रत की अनुभूति करते हैं, तो हमारा मन उस व्यक्ति के बारे में सोचता है। यह सोच एक तरह की आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया है, जो हमें यह संकेत देती है कि उस व्यक्ति के प्रति हमारी भावनाओं में कुछ तो है – शायद एक अधूरा प्रेम, एक छुपी हुई चाहत।
यह दार्शनिक विरोधाभास हमें यह समझाने के लिए प्रेरित करता है कि नफ़रत और प्रेम केवल बाहरी भावनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये हमारी आंतरिक ऊर्जा के दो पहलू हैं। नफ़रत के उस तीखे स्वाद के पीछे एक मधुरता भी होती है, जो हमारे मन की गहराईयों में छुपी होती है। अगर हम उस मधुरता को पहचान लें, तो हम पाएंगे कि हमारी आत्मा में प्रेम की रोशनी पहले से ही प्रबल है, जो किसी भी नकारात्मकता को पार कर सकती है।
8. हास्य की भाषा में सच्चाई – एक नई दृष्टि
अब एक बार फिर व्यंग्य और हास्य की ओर आते हैं। ओशो ने अक्सर कहा है कि "अगर तुम जीवन को गंभीरता से लोगे, तो तुम कभी भी मज़ा नहीं ले पाओगे।" इसीलिए, जब हम प्रेम और नफ़रत के खेल को समझने की कोशिश करते हैं, तो हमें एक हल्के-फुल्के अंदाज में, हास्य की भाषा में भी देखना चाहिए। सोचिए, एक व्यक्ति अगर इतना नफ़रत करता है कि उसकी आंखों में आग सी जलती है, तो एक दिन उसे पता चलेगा कि उस आग के पीछे एक छोटी सी, मीठी चिंगारी भी छुपी हुई थी।
हास्य हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में हर भावना एक दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई है। यदि हम अपनी नफ़रत की तीव्रता को हल्के-फुल्के अंदाज में लेते हैं, तो हम पाएंगे कि उस में छुपा हुआ प्रेम भी उसी चमक के साथ प्रकट होता है। हास्य हमें यह सिखाता है कि जीवन के सभी रंग – चाहे वे कितने भी विपरीत क्यों न हों – एक साथ मिलकर एक सुंदर पेंटिंग बनाते हैं।
9. जीवन के खेल में सहभागिता – ओशो की सीख
ओशो कहते हैं, "जीवन एक खेल है, इसे खेल की भावना से जियो।" यह कहावत हमें याद दिलाती है कि हमें जीवन को गंभीरता से लेने की बजाय एक खिलंदड़ की तरह, खेल के मजे के साथ जीना चाहिए। इस खेल में प्रेम और नफ़रत दोनों ही हमारे साथी हैं। अगर हम इन भावनाओं को समझकर स्वीकार कर लेते हैं, तो हम देखेंगे कि दोनों में ही एक अनंत गहराई है, एक अनमोल अनुभव है।
खेल की तरह, हमारे मन में भी हमेशा एक ऊर्जा का प्रवाह रहता है। जब हम ध्यान से इस ऊर्जा को समझते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे अंदर की हर नकारात्मकता में एक सकारात्मक पहलू निहित है। यही वह रहस्य है, जो हमें बताता है कि नफ़रत के पीछे छुपा हुआ प्रेम भी उसी ऊर्जा का एक रूप है। इस ऊर्जा को समझने का अर्थ है अपने आप से जुड़ना, अपने अंदर की आवाज़ सुनना और उस अनंत ऊर्जा का आनंद लेना।
10. स्वयं की खोज – सच्चा ज्ञान और मुक्ति का मार्ग
अंत में, मैं यह कहूँगा कि स्वयं की खोज ही सच्चा ज्ञान है। जब हम अपने आप में उतरते हैं, तो हमें समझ आता है कि हमारी बाहरी नफ़रत या प्रेम असल में हमारे अंदर के भावों की अभिव्यक्ति है। आत्म-जागरूकता हमें यह सिखाती है कि हमारे भीतर जो भी चल रहा है, वह केवल हमारे अपने विचारों का प्रतिबिम्ब है।
जब हम इस खोज में जुट जाते हैं, तो हमें न केवल अपने आप का, बल्कि उन सभी भावों का भी बोध होता है जो हमारी आत्मा में विद्यमान हैं। यह समझ हमें सिखाती है कि हमारे अंदर छुपा हुआ प्रेम और नफ़रत दोनों ही एक ही स्रोत से उत्पन्न हुए हैं। और यदि हम अपनी आत्मा की गहराई में उतरकर इन भावों को समझते हैं, तो हम पाएंगे कि असल में हम सभी एक ही ऊर्जा के अंश हैं, जो इस अनंत खेल का हिस्सा हैं।
11. आंतरिक परिवर्तन – प्रेम का उदय
जब हम अपने अंदर की नकारात्मक भावनाओं को ध्यान से देखते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि वे केवल एक छवि हैं, एक प्रतिबिंब हैं। जैसे-जैसे हम स्वयं की खोज करते हैं, वैसे-वैसे हम अपने भीतर के उस अंधेरे को भी उजागर करते हैं, जिसमें प्रेम की एक झलक छिपी होती है। यह परिवर्तन धीरे-धीरे होता है – नफ़रत की तीव्रता कम होती जाती है, और उसकी जगह एक मधुरता सी छा जाती है।
यह परिवर्तन हमें यह बताता है कि प्रेम और नफ़रत के बीच का अंतर केवल हमारे मानसिक परिदृश्य का एक आभासी खेल है। जब हम अपने अंदर की भावनाओं को समझते हैं, तो हम पाते हैं कि दोनों भाव एक-दूसरे के पूरक हैं। हमें यह समझना होगा कि हमारी आत्मा में विद्यमान इस अनंत ऊर्जा में, दोनों भाव एक ही नदी के दो प्रवाह हैं, जो अंततः एक ही महासागर में मिल जाते हैं।
12. निष्कर्ष – एक सुंदर खेल की समाप्ति और नई शुरुआत
प्रिय साथियो, इस प्रवचन के माध्यम से मैंने आपको यह समझाने की कोशिश की है कि प्रेम और नफ़रत वास्तव में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब हम किसी से नफ़रत करते हैं, तो असल में हम उसे अपने मन से हटाने की कोशिश नहीं करते, बल्कि उसकी उपस्थिति को निरंतर महसूस करते हैं। यही कारण है कि नफ़रत धीरे-धीरे प्रेम में परिवर्तित हो जाती है, यदि हम उसे समझने का प्रयास करें।
जीवन के इस खेल में, हमें अपने अंदर की ऊर्जा के साथ खेलना सीखना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि चाहे हमारी भावनाएँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों, वे सभी हमारे स्वयं के अनुभव का हिस्सा हैं। ध्यान और आत्म-जागरूकता के माध्यम से हम इन भावनाओं का सही अर्थ समझ सकते हैं और उन्हें सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं।
ओशो की शिक्षाएँ हमें यही बताती हैं कि "जीवन एक खेल है, इसे खेल की भावना से जियो"। इस खेल में हर भाव, हर अनुभव एक सीख है। और "स्वयं की खोज ही सच्चा ज्ञान है" – जब हम अपने अंदर उतरते हैं, तो हमें पता चलता है कि हमारे भीतर का प्रेम ही असली शक्ति है, जो नफ़रत जैसी किसी भी नकारात्मकता को पार कर सकती है।
तो आइए, हम सभी इस जीवन के रंगमंच पर अपने-अपने किरदारों को निभाएं, लेकिन एक बात याद रखें – नफ़रत के उस तेजस्वी रंग के पीछे छुपा हुआ प्यार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। हमें अपने मन के उस अंधेरे को स्वीकारना होगा, उसे समझना होगा, और फिर उसे प्रेम की मधुरता में बदलना होगा। यही जीवन का सच्चा सार है, यही आत्मा की पुकार है।
अंतिम विचार:
इस प्रवचन के माध्यम से हम यह सीखते हैं कि जीवन में नफ़रत और प्रेम दो विपरीत ध्रुव नहीं हैं, बल्कि एक ही ऊर्जा के दो विभिन्न अभिव्यक्ति रूप हैं। जब हम अपने मन की गहराई में उतरते हैं और अपने अंदर की भावनाओं को बिना किसी डर के स्वीकारते हैं, तो हम पाते हैं कि नफ़रत भी एक छुपा हुआ प्रेम है, जो हमें अपनी आत्मा की गहराईयों से जोड़ता है।
हर किसी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब हमें लगता है कि हम किसी के प्रति नफ़रत से भर गए हैं, लेकिन उसी नफ़रत के बीच एक अनजानी सी मीठी याद, एक छुपा हुआ आकर्षण भी मौजूद होता है। यह समझ हमें बताती है कि हमारे मन में चल रहे संघर्ष केवल बाहरी दुनिया के प्रति नहीं, बल्कि हमारी अपनी आंतरिक यात्रा का हिस्सा हैं।
ध्यान की नियमित प्रैक्टिस से हम इन भावों की गहराईयों में उतर सकते हैं और उनके बीच के सूक्ष्म अंतर को पहचान सकते हैं। जब हम अपने अंदर के इन विरोधाभासी भावों को एक ही ऊर्जा के रूप में देखते हैं, तो हमें समझ में आता है कि असल में हम कितने अकेले नहीं हैं – हमारी आत्मा में हमेशा प्रेम की एक अनंत धारा बहती रहती है, जो किसी भी नकारात्मकता को पार कर सकती है।
तो प्रिय साथियो, अगली बार जब आप किसी के प्रति गहरी नफ़रत महसूस करें, तो एक पल रुक कर पूछें – "क्या यह नफ़रत मेरे भीतर के उस प्रेम का प्रतिबिंब तो नहीं?" इस सवाल के जवाब में आपको अपनी आत्मा की गहराईयों से एक मधुर संगीत सुनाई देगा। यह वही संगीत है जो हमें जीवन के खेल में आनंद लेने का कारण देता है।
आखिर में, ओशो की इन शिक्षाओं को याद रखें – जीवन को गंभीरता से लेने के बजाय उसे एक खेल की तरह खेलें, और स्वयं की खोज में डूब जाएँ। क्योंकि जब आप अपने आप को खोजेंगे, तो पाएंगे कि आपकी आत्मा में नफ़रत और प्रेम दोनों ही उसी प्रकाश के दो रूप हैं, जो अंततः एक ही स्रोत से निकलते हैं।
समापन:
इस प्रवचन में हमने प्रेम और नफ़रत की जटिलताओं को समझने की कोशिश की। हमने देखा कि कैसे एक व्यक्ति, जो पहले अपने पड़ोसी से गहरी नफ़रत करता था, धीरे-धीरे यह समझ गया कि उसकी नफ़रत में ही छुपा हुआ प्रेम था। हमने ध्यान और आत्म-जागरूकता के महत्व पर भी जोर दिया, जो हमें हमारे अंदर की भावनाओं का सही अर्थ समझने में मदद करते हैं।
यह प्रवचन हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में हर अनुभव, चाहे वह कितना भी विपरीत क्यों न हो, एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। नफ़रत भी उसी ऊर्जा का एक रूप है, जिसे समझ कर हम प्रेम में बदल सकते हैं। यही वह रहस्य है जिसे समझकर हम अपने जीवन को और भी गहराई से जी सकते हैं।
तो चलिए, हम सभी इस अद्भुत खेल में भाग लेते हैं, जहां हर भावना, हर अनुभव एक सीख है। अपने अंदर झाँकिए, अपने आप को समझिए, और फिर देखिए कि कैसे आपकी आत्मा की रोशनी नफ़रत की अंधेरी परतों को चीरकर प्रेम के उजाले में बदल देती है। यही सच्चा ज्ञान है, यही ओशो की शिक्षा है – कि जीवन वास्तव में एक खेल है, और हमें इसे खुलकर, प्रेम और जागरूकता के साथ खेलना है।
जय हो उस असीम प्रेम की, जो हमारे हर सांस में विद्यमान है, और जय हो उस जागरूकता की, जो हमें अपने आप से जोड़ती है। यही है हमारा सच्चा पथ, यही है हमारी असली मुक्ति।
अंतिम संदेश:
मेरे प्रिय मित्रों, इस प्रवचन के माध्यम से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रेम और नफ़रत दो विपरीत ध्रुव नहीं, बल्कि हमारी आत्मा की अनंत ऊर्जा के दो चेहरे हैं। अगर हम इस ऊर्जा को समझें, तो हम पाएंगे कि नफ़रत में भी प्रेम की झलक छिपी हुई है, और जब हम उस झलक को पहचानते हैं, तो हमारी आत्मा में प्रेम का उदय हो जाता है। यही जीवन का सार है, यही ओशो की शिक्षा है – कि स्वयं की खोज ही सच्चा ज्ञान है और जीवन को खेल की भावना से जीना ही सच्ची मुक्ति है।
इसलिए, अगली बार जब भी आप अपने मन में किसी के प्रति नफ़रत की अनुभूति करें, तो उसे बिना किसी दवाब के स्वीकारें। ध्यान करें, आत्मा की गहराई में उतरें, और उस नफ़रत के पीछे छुपे हुए उस प्रेम को पहचानें। क्योंकि अंततः, यही आपके जीवन का वास्तविक सार है – प्रेम, जागरूकता और स्वयं की खोज का अनंत खेल।
इस विस्तृत प्रवचन के साथ, मैं यही कहना चाहूँगा कि जीवन में हर एक अनुभव, हर एक भावना हमें कुछ नया सिखाने आती है। नफ़रत और प्रेम के बीच का यह सूक्ष्म अंतर हमें यह याद दिलाता है कि हम अपने आप में कितने विशाल और गहरे हैं। तो चलिए, हम सभी इस खेल को अपने दिल खोलकर खेलें, और अपने आप में छुपी हुई उस अनंत ऊर्जा का अनुभव करें, जो हमें हर पल प्रेम की ओर अग्रसर करती है।
जय हो उस प्रेम की, जय हो उस जागरूकता की, और जय हो उस जीवन के खेल की, जिसे हम खुलकर जी रहे हैं।
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