प्रिय साथियों,

आज हम एक ऐसे रहस्य पर विचार करेंगे, जो हमारे अस्तित्व की गहराइयों में छिपा है – स्वयं से मिलन, स्वयं की खोज, और अंततः स्वयं में उजाला जगाना। जैसा कि ओशो ने कहा, "जो व्यक्ति अपने साथ रहना सीख गया, उसकी ज्योति जग गई।" यह कथन हमें बताता है कि असली स्वतंत्रता वही है, जब हम खुद के साथ एकांत में भी पूरी तरह संतुष्ट हो जाते हैं।

जब हम अपने मन, आत्मा और शरीर को समझते हैं, तो हम किसी बाहरी व्यक्ति या किसी सामाजिक मान्यता पर निर्भर नहीं रहते। हम अपने अंदर के अनंत स्रोत को पहचानते हैं। यह आत्मा की आवाज है, जो शोर-शराबे से परे एक सुकूनभरी मधुरता में गूंजती है। अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हम अपने अंदर ही पूर्णता की झलक छुपाए हुए हैं। हमारा मन दूसरों के साथ संबंध बनाने में इतना व्यस्त हो जाता है कि वह खुद से दूर हो जाता है। लेकिन असली ज्योति तब प्रकट होती है, जब हम अपने आप को पहचान लेते हैं और अपने साथ रहना सीख जाते हैं।

आज, इस प्रवचन में मैं आपसे यह कहने की कोशिश करूंगा कि अकेलेपन में भी अनंतता है, और जब हम अपने आप को समझते हैं, तो बाहरी संसार की कोई आवश्यकता नहीं रहती। हम स्वयं में संपूर्ण हो जाते हैं। यह स्थिति किसी सामाजिक बंदिश से ऊपर उठ कर जीने का नाम है। जब आप अपने आप में संतोष पा लेते हैं, तो आप न तो किसी की तलाश में रहते हैं, न ही किसी की अनुपस्थिति से दुखी होते हैं। आप किसी भी परिस्थिति में आनंद का अनुभव करते हैं – चाहे आप अकेले हों या भीड़ में।  

स्वयं से मिलन का महत्व

कई बार हम अपने जीवन में इस भ्रम में जीते हैं कि खुशी कहीं बाहर, किसी और व्यक्ति, किसी और परिस्थिति में निहित है। हम दूसरों में अपनी अपूर्णताओं को पूरा करने की उम्मीद करते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में हम खुद को खो देते हैं। वास्तविकता यह है कि खुशी हमारे अंदर ही निहित है। जब हम अपने आप को स्वीकार कर लेते हैं, अपने संदेहों और कमजोरियों को भी, तभी हम सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं।

इस दुनिया में हर व्यक्ति अपने अंदर एक अनंत अज्ञानता और असीम संभावनाओं का भंडार लिए होता है। यदि हम अपने आप को समझने का साहस करें, तो हम उस गहरे ज्ञान और शांति को पा सकते हैं जो कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही विद्यमान है। जब आप अकेले होते हैं, तो आप अपने भीतर के उस अनंत प्रकाश को देख सकते हैं, जो कभी बुझता नहीं। यही प्रकाश आपको सच्ची खुशहाली की ओर ले जाता है।  

अकेलेपन का आनंद

अक्सर लोग अकेलेपन को नकारात्मक समझते हैं। वे कहते हैं, "अकेले रहना उदासी है," "कोई साथ नहीं तो जीवन बेरंग हो जाता है।" परंतु, असली समझ यही है कि अकेलापन एक ऐसी स्थिति है जहाँ आप अपने आप से संवाद कर सकते हैं। जब आप अकेले होते हैं, तो आप अपनी अंतरात्मा से मिलते हैं। आप अपनी गहराइयों में जाकर उन विचारों और भावनाओं का अनुभव करते हैं, जिन्हें आप शायद रोजमर्रा की हलचल में महसूस नहीं कर पाते।

एक बार मैंने देखा कि जब कोई व्यक्ति अपने आप से जुड़ जाता है, तो वह अपने भीतर एक अजीब सी शांति का अनुभव करता है। उसे बाहरी दुनिया की छोटी-छोटी बातों में उलझने की आवश्यकता नहीं रहती। वह जानता है कि उसके अंदर एक असीम शक्ति है, एक प्रकाश है जो कभी मुरझाता नहीं। यही कारण है कि जब कोई अकेला होता है, तो वह उतना ही आनंदित रहता है जितना कि वह किसी भी भीड़ में रहकर हो सकता है।

अपने आप से प्यार करना

स्वयं से प्रेम करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जब हम अपने आप को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं – अपनी खूबियों और कमियों के साथ – तभी हम वास्तव में स्वतंत्र होते हैं। अपने आप से प्रेम करने का अर्थ है कि आप अपने आप को बिना किसी शर्त के स्वीकारते हैं। आप समझते हैं कि आप पूरी तरह से संपूर्ण हैं। जब आप अपने आप को स्वीकार करते हैं, तो आप बाहरी संबंधों में भी संतुलित रहते हैं, क्योंकि आपकी खुशी का स्रोत बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि आपके अपने अंदर से आता है।

यह प्रेम हमें बाहरी संबंधों में भी संतुलन प्रदान करता है। जब हम स्वयं से प्रेम करते हैं, तो हम किसी भी रिश्ते में आत्मनिर्भर होते हैं। हम किसी के आने-जाने से प्रभावित नहीं होते। हम जानते हैं कि हमारी खुशी हमारे अपने हाथ में है। यह आत्मनिर्भरता ही हमें एक अद्भुत स्वतंत्रता प्रदान करती है।  

जीवन की अनित्यता और स्थायित्व

हम अक्सर जीवन को दो हिस्सों में बाँटते हैं – बाहरी और भीतरी। बाहरी दुनिया में हम परिवर्तन देखते हैं – चीजें आती हैं, जाती हैं, लोग बदलते हैं। लेकिन हमारी आत्मा हमेशा एक समान रहती है, अटल और अविनाशी। जब हम अपने आप में रहते हैं, तो हम उस स्थायित्व का अनुभव करते हैं जो बदलती दुनिया में कहीं खो जाता है।

यह स्थायित्व हमें याद दिलाता है कि हमारे अस्तित्व का मूल आधार कोई बाहरी वस्तु नहीं है, बल्कि हमारी अंतरात्मा है। जब हम इस अंतरात्मा से जुड़ते हैं, तो हम समझते हैं कि संसार का वास्तविक स्वरूप ही परिवर्तनशील है, और हमारे अंदर की शांति ही अटल है। यही कारण है कि जब हम अकेले होते हैं, तो भी हमें आनंद मिलता है – क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा असली घर हमारे अंदर ही है।  

ध्यान और स्वानुभूति

ध्यान की शक्ति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ध्यान, या मेडिटेशन, हमें हमारे भीतर की गहराईयों तक ले जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ हम अपने मन के सभी शोर को शांत करते हैं और अपने सच्चे स्वरूप से मिलते हैं। जब आप ध्यान करते हैं, तो आप अपने आप में प्रवाहित होते हैं। आप महसूस करते हैं कि आपका अस्तित्व कहीं बाहर नहीं, बल्कि आपके अंदर ही विद्यमान है।

ध्यान का अभ्यास आपको सिखाता है कि कैसे अपने विचारों और भावनाओं को बिना किसी निर्णय के स्वीकार किया जाए। यह आपको उस क्षण में जीने का अनुभव कराता है, जहाँ आप पूरी तरह से वर्तमान में होते हैं। ध्यान के माध्यम से, आप अपने अंदर के उस प्रकाश को जगाते हैं, जो आपको किसी भी बाहरी स्थिति से ऊपर उठकर देखने में सहायता करता है।  

सामाजिक बंधनों से मुक्ति

समाज ने हमें इस तरह से तैयार किया है कि हम हमेशा बाहरी मान्यता की तलाश में रहते हैं। हमें लगता है कि हमारी पहचान दूसरों के दृष्टिकोण में है। लेकिन जब आप अपने आप में ही संपूर्णता ढूँढ़ लेते हैं, तो आप इन सामाजिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। आप समझते हैं कि असली स्वतंत्रता वह है जो आपके अपने भीतर से आती है, न कि किसी बाहरी पुष्टि से।

समाज हमें यह सिखाता है कि हमें दूसरों की आवश्यकता है – परंतु क्या कभी सोचा है कि यदि हम स्वयं में ही पूर्ण होते हैं, तो हमें दूसरों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? एक बार जब आप यह समझ जाते हैं कि आप अपने आप में संपूर्ण हैं, तो आप किसी भी बाहरी चीज़ पर निर्भर नहीं रहते। आप किसी भी संबंध में स्वयं की स्वतंत्रता और स्वाभिमान बनाए रखते हैं।  

भीड़ में भी एकांत की अनुभूति

यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि भीड़ में रहना और अकेले रहना – दोनों में अलग-अलग प्रकार का आनंद होता है। जब आप अकेले होते हैं, तो आप अपने अंदर के उस शांति को अनुभव करते हैं जो भीड़ में खो जाती है। भीड़ में हम अक्सर अपने आप को खो देते हैं, क्योंकि हर किसी की राय, हर किसी का अपेक्षाएँ हमें अपनी ओर खींचती हैं। लेकिन अकेलेपन में, आप अपने आप को सुनते हैं। आप महसूस करते हैं कि आपका अस्तित्व किसी भी बाहरी परिस्थिति से ऊपर है।

यह भीड़ में होने के बावजूद भी, आपका अंदरूनी संसार शांत और स्थिर रहता है। यही कारण है कि जब कोई अकेला होता है, तो वह किसी भी बाहरी परिदृश्य में भी आनंदित रहता है। वह जानता है कि असली खुशी उसकी अपनी आत्मा में छुपी हुई है।  

स्वाभाविकता और सहजता

एक बार जब हम अपने आप से मिल जाते हैं, तो हम स्वाभाविक हो जाते हैं। हम बिना किसी बनावटीपन के, बिना किसी नकाब के, बस अपने असली स्वरूप में जीते हैं। यह वह अवस्था है जहाँ हम अपने आप को किसी भी प्रकार की सामाजिक बनावट से परे देख सकते हैं। हमारे विचार, हमारी भावनाएँ, हमारा अस्तित्व – सब कुछ स्पष्ट और सजीव हो जाता है।

जब आप अपने आप को जान लेते हैं, तो आप उस सहजता का अनुभव करते हैं जो आपको दूसरों से अलग करती है। आप जानते हैं कि आपकी सच्ची पहचान आपके अंदर ही है, और यही पहचान आपको दुनिया में अनूठा बनाती है। आप बिना किसी डर के अपने आप को प्रकट करते हैं, क्योंकि आपको यह मालूम होता है कि आपका अस्तित्व ही काफी है।

प्रेम और करुणा का सागर

जब हम स्वयं में स्थिर हो जाते हैं, तो हमारे अंदर एक असीम प्रेम और करुणा का सागर उभर आता है। यह प्रेम किसी भी बाहरी संबंध में बांधा नहीं जाता, बल्कि यह एक अंतर्निहित गुण है जो हमारे भीतर से स्वतः निकलता है। जब आप अपने आप से प्रेम करते हैं, तो आप पूरी दुनिया से प्रेम कर सकते हैं। आपका हृदय इतना विशाल हो जाता है कि किसी भी दर्द, किसी भी दुःख को सहने में सक्षम हो जाता है।

यह प्रेम आपको उस स्थिति में ले जाता है जहाँ आप किसी भी प्रकार की बाहरी अस्थिरता से अप्रभावित रहते हैं। आप जानते हैं कि आपके अंदर का प्रेम अनंत है, और यही प्रेम आपको सच्चे आनंद की ओर ले जाता है। यह प्रेम किसी भी बाहरी स्थिति में नहीं बदलता, क्योंकि यह आपकी आत्मा का एक अमिट हिस्सा है।

आत्म-अनुशासन की शक्ति

अपने आप से मिलना और अपने अंदर के प्रकाश को जगाना एक कठिन प्रक्रिया है। इसके लिए आत्म-अनुशासन की आवश्यकता होती है। अक्सर हम अपने आप को इस व्यस्त दुनिया में खो देते हैं, जहाँ हर पल कुछ नया करने की चाह होती है। परंतु, जब आप अपने आप के साथ समय बिताते हैं, तो आप उस आत्म-अनुशासन का अभ्यास करते हैं जो आपको अपने वास्तविक स्वरूप से जोड़ता है।

यह अनुशासन आपको सिखाता है कि कैसे अपने विचारों, अपनी भावनाओं और अपने कार्यों को नियंत्रित किया जाए। यह आपको उस मार्ग पर ले जाता है जहाँ आप बिना किसी बाधा के, बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के, अपने आप से संवाद कर सकते हैं। आत्म-अनुशासन का अर्थ है – अपने आप को समझना, अपने आप को सुधारना, और अंततः अपने आप में पूर्णता को पहचानना।

वर्तमान में जीना

हमारा मन अक्सर भविष्य की चिंताओं में या अतीत के पछतावे में उलझा रहता है। लेकिन जब हम अपने आप में स्थिर हो जाते हैं, तो हम वर्तमान में जीने का अनुभव करते हैं। वर्तमान में जीने का मतलब है कि आप हर पल को पूर्ण रूप से महसूस करते हैं। आप उस क्षण में जीते हैं जहाँ आप अपने आप से मिलते हैं, जहाँ आप अपने अंदर की गहराइयों में उतरते हैं।

यह वर्तमान का अनुभव आपको उस अनंत शांति की ओर ले जाता है जो कभी भी बहार से नहीं मिल सकती। वर्तमान में जीने का मतलब है कि आप अपने आप को हर परिस्थिति में स्वीकारते हैं, और यही स्वीकृति आपको उस अनंत सुख का अनुभव कराती है जो कहीं और नहीं मिलता।

भीतरी स्वतंत्रता की अनुभूति

जब हम अपने आप को जानते हैं, तो हमें बाहरी संसार की अपेक्षाओं से मुक्ति मिल जाती है। आप जानते हैं कि आपकी असली शक्ति आपके अपने अंदर है, और यह शक्ति आपको किसी भी बाहरी बाधा से ऊपर उठकर देखने में सक्षम बनाती है। इस भीतरी स्वतंत्रता की अनुभूति से आप न तो किसी की तलाश में रहते हैं, न ही किसी के आने-जाने से प्रभावित होते हैं।

आप अपने आप में इतने सक्षम हो जाते हैं कि आपकी खुशी और संतोष का स्रोत आपके अपने अंदर ही विद्यमान रहता है। यह स्थिति आपको एक असीम ऊर्जा प्रदान करती है, जो आपको हर परिस्थिति में स्थिर और प्रसन्नचित्त बनाये रखती है। आप जानते हैं कि आप अपने आप में संपूर्ण हैं, और यही ज्ञान आपको एक अद्वितीय स्वतंत्रता का अनुभव कराता है।

अंतर्मुखी जीवन का महत्व

बहुत से लोग सोचते हैं कि अंतर्मुखी जीवन जीने का अर्थ उदासी है, परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। अंतर्मुखी जीवन का अर्थ है – अपने अंदर की दुनिया का अन्वेषण करना, अपने भीतर के रहस्यों को जानना। यह वह यात्रा है जहाँ आप अपने असली स्वरूप से मिलते हैं, जहाँ आप अपनी आत्मा की गहराइयों में उतरते हैं।

जब आप अंतर्मुखी होते हैं, तो आप अपने आप से संवाद करते हैं। आप उस अनंत ऊर्जा का अनुभव करते हैं जो आपके अंदर छिपी हुई है। यह ऊर्जा आपको न केवल शांति देती है, बल्कि आपको उस अद्वितीय आनंद का अनुभव कराती है जो किसी बाहरी स्रोत से संभव नहीं। अंतर्मुखी जीवन जीना आपको आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है, और यही ज्ञान आपको सच्ची मुक्ति प्रदान करता है।

अनंत प्रश्नों का उत्तर

हर व्यक्ति के मन में अनगिनत प्रश्न उठते हैं – मैं कौन हूँ? मेरा उद्देश्य क्या है? मेरी असली पहचान क्या है? जब हम अपने आप से मिलते हैं, तो इन प्रश्नों के उत्तर अपने आप मिलते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ आप अपने भीतर की अनंतता को पहचानते हैं।

आप देखेंगे कि जब आप अपने आप से जुड़ते हैं, तो आपको उन उत्तरों की तलाश नहीं करनी पड़ती जो बाहर से मिलें। आपके अंदर पहले से ही वे उत्तर विद्यमान होते हैं। यह वह अद्भुत सत्य है जो ओशो ने भी बार-बार बताया है – असली ज्ञान आपके अंदर ही है। जब आप अपने आप में उतर जाते हैं, तो आपको उस ज्ञान की झलक मिल जाती है जो कहीं बाहर नहीं, बल्कि आपके अपने हृदय में बसी होती है।

प्रेम, करुणा और सद्भावना

जब आप अपने आप से मिलते हैं, तो आप देखेंगे कि आपके अंदर प्रेम, करुणा और सद्भावना की असीम धारा बहने लगती है। यह प्रेम किसी भी बाहरी स्थिति से प्रभावित नहीं होता, क्योंकि यह आपके अपने अस्तित्व का हिस्सा होता है। आप समझते हैं कि आपका अस्तित्व कितनी महानता से जुड़ा हुआ है, और यही समझ आपको हर किसी के प्रति सहानुभूति और करुणा से भर देती है।

इस प्रेम से आप देखेंगे कि हर व्यक्ति में एक अद्वितीय चमक होती है। हर व्यक्ति अपने आप में संपूर्ण होता है, और यही संपूर्णता हमें एक दूसरे से जोड़ती है। जब आप अपने आप को समझते हैं, तो आप दूसरों में भी अपने आप को देखते हैं। यह दार्शनिक दृष्टिकोण आपको बताता है कि आप और मैं, दोनों में एक ही दिव्यता है।  

आत्मज्ञान का मार्ग

अंत में, हमें यह समझना होगा कि आत्मज्ञान का मार्ग एक ऐसी यात्रा है जो कभी समाप्त नहीं होती। यह एक सतत प्रक्रिया है जहाँ आप हर दिन अपने आप से कुछ नया सीखते हैं। हर अनुभव, हर क्षण आपको उस असीम ज्ञान की ओर ले जाता है जो आपके अंदर विद्यमान है।

इस यात्रा में, आपको अपने आप से प्रेम करना होगा, अपने आप को स्वीकार करना होगा और हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना होगा। यह एक निरंतर अभ्यास है, एक ऐसी कला है जिसे हम जीवन भर निखारते रहते हैं। जब आप इस कला को समझ जाते हैं, तो आप जान जाते हैं कि आपकी खुशी, आपकी संतुष्टि कहीं बाहर नहीं, बल्कि आपके अपने अंदर ही है।

समापन विचार

प्रिय साथियों, आज हमने इस प्रवचन में जाना कि असली स्वतंत्रता और सच्चा आनंद वहीं है, जब आप अपने आप से मिल जाते हैं। जब आप अपने भीतर के प्रकाश को पहचान लेते हैं, तो आप किसी भी बाहरी स्थिति से निर्भर नहीं रहते। आप जानते हैं कि आपका अस्तित्व, आपकी खुशी, आपकी संतुष्टि आपके अपने अंदर ही छुपी हुई है।  

ओशो के इन शब्दों में छिपा हुआ ज्ञान हमें यह सिखाता है कि अकेलेपन में भी अनंतता है। चाहे आप अकेले हों या भीड़ में, आपकी खुशी का स्रोत आपके अपने अंदर ही है। यह अनुभव, यह ज्ञान आपको उस असीम शांति की ओर ले जाता है जो किसी भी बाहरी बंधन से ऊपर उठकर आपको मुक्त कर देता है।

जब आप अपने आप में उतर जाते हैं, तो आप एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ आपके विचार, आपकी भावनाएँ और आपका अस्तित्व एक साथ मिलकर एक अद्वितीय संगीत रचते हैं। यह संगीत, यह ऊर्जा आपको उस अनंत प्रकाश तक ले जाती है जो कभी मंद नहीं पड़ता। आप समझते हैं कि आपकी आत्मा में ही वह सम्पूर्णता है, वह असीम ज्ञान है जो आपको सदा आनंदित रखता है।

इसलिए, मित्रों, आज से ही यह संकल्प लें कि आप अपने आप से मिलने का समय निकालेंगे। अपने भीतर की यात्रा पर निकलेंगे। यह यात्रा आसान नहीं होगी – इसमें कई चुनौतियाँ आएंगी, कई सवाल उठेंगे, लेकिन याद रखिए, यही चुनौतियाँ आपको सच्चे ज्ञान तक ले जाती हैं। हर अनुभव, हर पल आपको उस अनंत सत्य की ओर ले जाता है जो आपके भीतर छुपा हुआ है।

अपने आप को जानने का अर्थ है – अपने संदेहों को, अपने डर को, अपनी कमजोरियों को स्वीकार करना और फिर उनसे ऊपर उठना। यह एक ऐसा अभ्यास है, जहाँ आप हर दिन अपने आप को निखारते हैं। जब आप इस यात्रा पर निकल पड़ते हैं, तो आप पाते हैं कि आपकी आत्मा में वह शक्ति है जो किसी भी बाहरी बाधा को पार कर सकती है। आप स्वयं में इतने सशक्त हो जाते हैं कि आपको किसी भी बाहरी पुष्टि की आवश्यकता नहीं रहती।

यह वह अवस्था है जहाँ आप अपने आप में पूर्ण होते हैं। आप किसी और के आने-जाने से प्रभावित नहीं होते। आपकी खुशी, आपकी संतुष्टि का स्रोत आपके अपने अंदर ही होता है। यह वही ज्योति है जो कभी बुझती नहीं, जो हमेशा आपके साथ रहती है। और यही ज्योति, यही ज्ञान आपको एक असीम जीवन की ओर ले जाता है, जहाँ हर क्षण आनंद का होता है।

आज इस प्रवचन के अंत में, मैं आपसे यही कहना चाहूंगा कि जीवन की इस यात्रा में अपने आप से मिलने का साहस करें। अपने आप को समझें, अपने भीतर के उस प्रकाश को जगाएँ, और देखिए कि कैसे आपकी दुनिया बदल जाती है। आप पाएंगे कि आपकी असली शक्ति आपके अपने अंदर है, और वही शक्ति आपको हर परिस्थिति में स्थिर, सशक्त और आनंदित बनाये रखती है।

इस ज्ञान के साथ, आइए हम अपने आप से एक वादा करें – कि हम अपने भीतर की यात्रा को जारी रखेंगे, अपने आप को समझने का प्रयास करेंगे, और इस अनंत प्रकाश को हमेशा जगाये रखेंगे। क्योंकि, जब आप अपने साथ रहना सीख जाते हैं, तब आपकी ज्योति जग जाती है। और यही ज्योति, यही अनंत ज्ञान आपको उस सच्ची मुक्ति की ओर ले जाता है, जो किसी भी बाहरी संसार में नहीं, बल्कि आपके अपने अंतरतम में छुपी हुई है।

प्रिय साथियों, आज के इस प्रवचन में हमने जाना कि अकेलेपन में भी अपार आनंद होता है। यह आनंद किसी बाहरी व्यक्ति या सामाजिक मान्यता पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह आपके अपने भीतर के उस अनंत प्रकाश का प्रतिबिंब है। जब आप अपने आप में सच्चे प्रेम और स्वीकृति को स्थान देते हैं, तब आप उस अनंत शांति का अनुभव करते हैं, जो हर स्थिति में आपके साथ रहती है।

आपके अंदर का वह प्रकाश, वह ज्योति, आपको बताती है कि आप किसे हैं – आप वह दिव्यता हैं जो कभी मुरझाती नहीं, वह आत्मा है जो अनंत है। और जब आप इस सत्य को समझ लेते हैं, तो आप जान जाते हैं कि आपकी सच्ची खुशी कहीं बाहर नहीं, बल्कि आपके अपने अंदर ही निहित है।

आइए, इस क्षण से ही अपने आप को वह सम्मान दें, जो आप वास्तव में अपने आप के हकदार हैं। अपने आप को स्वीकार करें, अपने आप से प्रेम करें, और इस अनंत प्रकाश को हमेशा अपने हृदय में जगाये रखें। क्योंकि यही प्रकाश, यही ज्ञान आपको उस अद्भुत जीवन की ओर ले जाता है, जहाँ आप सच्चे आनंद और शांति का अनुभव करते हैं।

इस यात्रा में, हर अनुभव, हर पल एक उपहार है, जो आपको अपने आप से और भी गहराई से मिलने का अवसर देता है। इस अवसर को गले लगाएं, अपने आप में डूब जाएं, और देखें कि कैसे आपका अस्तित्व एक अनंत संगीत में बदल जाता है। यह संगीत, यह ऊर्जा आपको उस सच्चे आनंद की ओर ले जाती है, जहाँ आप न तो किसी की तलाश में रहते हैं, न ही किसी की अनुपस्थिति से दुखी होते हैं। आप स्वयं में इतने समृद्ध हो जाते हैं कि बाहरी दुनिया की कोई भी हलचल आपके भीतर की शांति को हिला नहीं सकती।

और अंत में, याद रखें – जीवन का असली मर्म यही है कि आप अपने आप में पूर्ण हों। आप अपने आप को समझें, अपने आप से प्रेम करें, और इस अनंत यात्रा पर चलें। क्योंकि जब आप अपने साथ रहना सीख जाते हैं, तो आपकी ज्योति जग जाती है, और फिर आपको किसी भी बाहरी स्रोत की आवश्यकता नहीं रहती।

इस अनंत प्रकाश और ज्ञान के साथ, मैं आपसे विदा लेता हूँ। अपने आप में खो जाने का साहस रखें, अपने भीतर के उस अद्भुत प्रकाश को पहचानें, और हर दिन अपने आप को और भी करीब से जानें। यही असली स्वतंत्रता है, यही असली आनंद है, और यही वह राह है जो आपको सच्ची मुक्ति की ओर ले जाती है।

धन्यवाद।

(यह प्रवचन आपको यह संदेश देने का प्रयास है कि आपका असली साथी आपका स्वयं का अस्तित्व है। जब आप अपने आप से जुड़ जाते हैं, तो आपकी आत्मा की ज्योति जग उठती है, और आप जीवन के हर पल में आनंद का अनुभव करने लगते हैं। याद रखें, जीवन में सच्ची खुशी का स्रोत बाहर नहीं, बल्कि आपके अंदर ही निहित है।)

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