"दुखद से दुखद सत्य भी, सुखद से सुखद असत्य से बेहतर है।" — ओशो

भूमिका: सत्य का मार्ग कांटों भरा है, लेकिन यही मार्ग मुक्ति है

मनुष्य का स्वभाव अजीब है।

वह सत्य को जानना नहीं चाहता, बल्कि वह सुख को पाना चाहता है।

वह सत्य को छोड़कर भी झूठी खुशियों में जीने के लिए तैयार है।

वह अपने भीतर की असली पीड़ा को दबाकर, नकली मुस्कान ओढ़ लेता है।

लेकिन ओशो कहते हैं—

"दुखद से दुखद सत्य भी, सुखद से सुखद असत्य से बेहतर है।"

क्यों?

क्योंकि सत्य, चाहे जितना भी कड़वा हो, अंततः मुक्ति देता है।

जबकि असत्य, चाहे जितना भी सुखद लगे, अंततः बंधन बन जाता है।

सत्य कांटों भरा रास्ता है, लेकिन यही रास्ता जीवन की सच्ची स्वतंत्रता है।

तो आइए, इसे गहराई से समझते हैं।

1. मनुष्य को असत्य क्यों पसंद आता है?

हमने देखा है—

- झूठे सपनों में जीना आसान है।

- मिथ्या आशाओं में रहना सुखद लगता है।

- कल्पनाओं की दुनिया हमें वास्तविकता से बचाने का काम करती है।

लेकिन यह सब अस्थायी है।

कोई व्यक्ति कहता है,

"मुझे सत्य नहीं चाहिए, मुझे सुख चाहिए!"

लेकिन यह संभव नहीं है।

अगर तुम असत्य में जी रहे हो,

तो सुख कभी स्थायी नहीं हो सकता।

असत्य का आनंद केवल एक भ्रम है।

इसलिए ओशो कहते हैं—

"असत्य की दीवारें चाहे सोने की बनी हों,  

लेकिन वे अंततः एक जेल ही हैं।"

2. दुखद सत्य क्यों बेहतर है?

मान लो, कोई व्यक्ति बीमार है।

लेकिन वह खुद को यह विश्वास दिला ले कि वह पूरी तरह स्वस्थ है।

वह दवा लेने से इनकार करता है, क्योंकि वह बीमारी के सत्य को स्वीकार ही नहीं करना चाहता।

अब सोचो, क्या होगा?

- क्या उसका यह झूठ उसे बचा सकेगा?

- क्या उसका यह असत्य उसे स्वस्थ कर सकेगा?

नहीं!

ओशो कहते हैं—

"चाहे सत्य कड़वा हो, लेकिन वह अंततः उपचार लाता है।"

अगर वह व्यक्ति सत्य को स्वीकार कर ले, तो वह इलाज के लिए तैयार हो जाएगा।

फिर वह स्वस्थ हो सकता है।

यही हमारे जीवन के हर पहलू में सच है।

कड़वा सत्य स्वीकारने के बाद ही,

वास्तविक बदलाव की शुरुआत होती है।

3. सत्य से भागना दुख को बढ़ाता है

लोग सत्य से भागते हैं, क्योंकि वे उससे डरते हैं।

लेकिन यह पलायन अस्थायी है।

- कोई व्यक्ति अपनी असफलता को छिपाने के लिए झूठ बोलता है।

- कोई प्रेमी अपने रिश्ते की सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहता।

- कोई व्यक्ति अपनी असली भावनाओं को ढंककर जीता है।

लेकिन क्या इससे सत्य बदल जाता है?

नहीं!

सत्य वहीं रहता है—

छिपा हुआ, दबा हुआ, इंतजार करता हुआ।

और जब वह फूटता है,

तो वह पहले से भी अधिक पीड़ा लेकर आता है।

यही कारण है कि

"सत्य को जितनी जल्दी स्वीकार कर लिया जाए, उतना ही अच्छा है।"

4. सत्य ही मुक्ति का द्वार है

ओशो कहते हैं—

"तुम असत्य में जितना जीते हो, उतना ही तुम बंधन में होते हो।"

लेकिन सत्य?

सत्य तुम्हें मुक्त कर देता है।

एक साधारण उदाहरण—

अगर तुम किसी से प्रेम करते हो,

लेकिन यह प्रेम केवल दिखावा है,

केवल एक सामाजिक मजबूरी है,

तो यह तुम्हारे लिए सुखद लग सकता है,

लेकिन यह भीतर से तुम्हें खाली कर देगा।

लेकिन अगर तुम सत्य को स्वीकार लो—

"यह प्रेम समाप्त हो चुका है।"

तो पहले तो यह स्वीकारना कठिन होगा।

यह दुखद होगा।

लेकिन यह वास्तविक होगा।

और जब तुम इस सत्य को पूरी तरह स्वीकार लोगे,

तो तुम्हारे पास नया जीवन, नई संभावना, नई ऊर्जा जन्म लेगी।

सत्य हमेशा अंत में स्वतंत्रता लाता है।

5. आज के समाज में सत्य का स्थान

आज के समाज को देखो—

- हर जगह मिथ्या सुख बेचा जा रहा है।

- नकली हँसी, नकली रिश्ते, नकली प्रेम, नकली सफलता।

लोग बाहर से सुखी दिखते हैं,

लेकिन भीतर से खाली हैं।

सोशल मीडिया पर देखो—

- लोग संपन्न दिखते हैं, लेकिन भीतर से खोखले हैं।

- लोग मुस्कुराते हैं, लेकिन भीतर रो रहे होते हैं।

- लोग खुशहाल जीवन का दिखावा कर रहे हैं, लेकिन अकेलेपन से जूझ रहे हैं।

यह सब क्या है?

असत्य का जाल!

लोग अपने भीतर के सत्य से भाग रहे हैं।

लेकिन ओशो कहते हैं—

"सत्य से भागना अंततः तुम्हें और पीड़ा में डाल देगा।"

इसलिए सत्य को स्वीकारने की हिम्मत रखो।

6. सत्य का सामना कैसे करें?

अब सवाल उठता है—

"अगर सत्य दुखद है, तो हम उसे कैसे स्वीकारें?"

ओशो कहते हैं—

"सत्य को स्वीकारने के लिए ध्यान आवश्यक है।"

ध्यान करो—

- तुम्हारे भीतर जो कुछ भी हो रहा है, उसे देखो।

- उस पर कोई निर्णय मत दो।

- बस साक्षी बनो।

जब तुम सत्य को देखना शुरू करोगे,

तो वह धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर सहज हो जाएगा।

फिर वह पीड़ा नहीं देगा,

बल्कि वह आनंद का द्वार बन जाएगा।

7. निष्कर्ष: क्या तुम सत्य को अपनाने के लिए तैयार हो?

तो सार क्या है?

1. असत्य सुखद हो सकता है, लेकिन वह झूठा है।

2. सत्य कठिन हो सकता है, लेकिन वह मुक्ति देता है।

3. सत्य को जितना जल्दी स्वीकारोगे, उतनी जल्दी तुम पीड़ा से मुक्त हो जाओगे।

4. ध्यान सत्य को देखने की क्षमता देता है।

अब सवाल यह है—

क्या तुम सत्य को अपनाने के लिए तैयार हो?

या फिर तुम असत्य के झूठे सुख में ही जीते रहना चाहते हो?

चुनाव तुम्हारा है।

सत्य तुम्हें आज़ादी देगा।

लेकिन साहस तुम्हें दिखाना होगा।

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