सुख का अर्थ है—जो मिल रहा है, उसका आनंद लेना। दुख का अर्थ है—मुझे और चाहिए! - ओशो
भूमिका: सुख और दुख की असली जड़ कहाँ है?
मनुष्य का जीवन दो छोरों पर झूलता है—
सुख और दुख।
हर कोई सुखी होना चाहता है,
लेकिन वह दुखी ही रहता है।
कभी सोचा है क्यों?
क्या तुम्हारे पास पर्याप्त चीजें नहीं हैं?
क्या तुम्हारे पास प्रेम नहीं है?
क्या तुम्हारे पास साधन नहीं हैं?
फिर भी, तुम दुखी क्यों हो?
ओशो कहते हैं—
"सुख का अर्थ है जो मिल रहा है, उसका आनंद लेना। दुख का अर्थ है कि मुझे और चाहिए!"
यही फर्क है।
अगर तुमने जो है उसे स्वीकार लिया, उसे जिया, उसे पूरी तरह अनुभव किया—तो तुम सुखी हो।
लेकिन अगर तुमने और पाने की लालसा रखी, और की अपेक्षा की, और के पीछे भागे—तो तुम दुखी हो।
तो आओ, इसे गहराई से समझते हैं।
1. सुख और दुख की असली जड़: "और चाहिए"
मनुष्य की हालत क्या है?
उसका स्वभाव ही मांगने का है।
- अगर उसे धन मिल जाए, तो वह और धन चाहता है।
- अगर उसे प्रेम मिल जाए, तो वह और गहरा प्रेम चाहता है।
- अगर उसे प्रसिद्धि मिल जाए, तो वह और ऊँचाई चाहता है।
उसकी प्यास कभी नहीं बुझती।
"और चाहिए" का कोई अंत नहीं है।
ओशो कहते हैं—
"मनुष्य की मांग असीम है, लेकिन उसका जीवन सीमित है।"
और यही उसका दुख बन जाता है।
जो है, वह पर्याप्त नहीं लगता।
जो नहीं है, उसे पाने की बेचैनी बनी रहती है।
ध्यान दो! यह दुख का बीज है।
2. सुख: जीवन में जो है, उसे स्वीकार लेना
अब सवाल उठता है—सुख कैसे आता है?
ओशो कहते हैं—
"सुख का रास्ता बहुत सरल है। जो है, उसे पूरी तरह से जियो।"
कोई व्यक्ति सोचता है,
"मेरे पास इतना ही क्यों है? मेरे पास और क्यों नहीं?"
और यहीं से पीड़ा शुरू होती है।
लेकिन अगर तुम सोचो—
"मेरे पास जो है, मैं उसी में आनंद लूँ!"
तो सुख का द्वार खुल जाता है।
यही संतोष का रहस्य है।
- खाना साधारण है, लेकिन आनंद लेकर खाया, तो सुख है।
- घर छोटा है, लेकिन प्रेम से भरा है, तो सुख है।
- रिश्ता गहरा नहीं, लेकिन सच्चा है, तो सुख है।
सुख बाहर नहीं, तुम्हारी दृष्टि में है।
3. असली समस्या: तुलना और इच्छाएँ
तुम्हारा दुख वहाँ से शुरू होता है जहाँ तुम तुलना शुरू करते हो।
- तुम्हारे पास कार है, लेकिन पड़ोसी के पास बड़ी कार है।
- तुम्हारे पास घर है, लेकिन दोस्त का घर आलीशान है।
- तुम्हारे पास प्रेम है, लेकिन किसी और का प्रेम तुम्हें अधिक रोमांटिक लगता है।
"अधिक पाने की लालसा ही असली दुख है।"
ओशो कहते हैं—
"जो तुम्हारे पास नहीं है, अगर उसकी तरफ देखोगे, तो दुखी होगे।
लेकिन जो तुम्हारे पास है, अगर उसकी तरफ देखोगे, तो आनंदित हो जाओगे।"
4. ध्यान: वर्तमान में जीने की कुंजी
अब सवाल उठता है—
"हम हमेशा और क्यों चाहते हैं?"
क्योंकि हमारा मन वर्तमान में नहीं रहता।
- मन भूतकाल में जाता है, जहाँ दुख है।
- मन भविष्य में दौड़ता है, जहाँ इच्छाएँ हैं।
लेकिन मन वर्तमान में नहीं रहता—जहाँ आनंद है।
ओशो कहते हैं—"ध्यान ही सुख की कुंजी है।"
अगर तुम पूरी तरह वर्तमान में उतर आओ,
तो सुख तुम्हारा ही है।
जब तुम खाते हो, तो बस खाने में डूब जाओ।
जब तुम चलते हो, तो बस चलने में डूब जाओ।
जब तुम प्रेम करो, तो बस प्रेम में डूब जाओ।
"जो है, उसमें ही पूरी तरह समा जाना—यही ध्यान है, यही आनंद है!"
5. संसार में दुख क्यों ज्यादा है?
अगर सुख इतना सरल है,
तो फिर संसार में दुख ही दुख क्यों है?
उत्तर सरल है—लोग सुख को गलत जगह खोज रहे हैं।
लोग सोचते हैं—
- सुख धन में है—लेकिन अमीर भी दुखी हैं।
- सुख सफलता में है—लेकिन सफल लोग भी व्यथित हैं।
- सुख संसार के आनंद में है—लेकिन संसार बार-बार खाली कर देता है।
ओशो कहते हैं—"सुख बाहर नहीं, भीतर है।"
लेकिन लोग बाहर खोजते हैं, इसलिए वे दुखी हैं।
6. वास्तविक संतोष: संत ही क्यों सुखी होते हैं?
तुमने कभी किसी संत को देखा है?
उनके पास कुछ नहीं होता, लेकिन वे सबसे अधिक सुखी होते हैं।
क्यों?
क्योंकि वे बाहर की चीज़ों से सुख नहीं खोजते।
वे भीतर देखते हैं।
ओशो कहते हैं—
"संत वही है, जिसने "और चाहिए" से मुक्त हो जाना सीख लिया।"
जब तुम "और चाहिए" छोड़ देते हो,
तो जो है, वही आनंद का स्रोत बन जाता है।
7. प्रेम और सुख
ओशो कहते हैं—
"सच्चा प्रेम वहीं खिलता है, जहाँ 'और चाहिए' की भूख नहीं होती।"
अगर तुम प्रेम में हो, और तुम कुछ पाने की इच्छा रख रहे हो, तो यह व्यापार है।
लेकिन अगर तुम सिर्फ प्रेम कर रहे हो, बिना कुछ माँगे, तो यह आनंद है।
"सच्चा प्रेम मांगता नहीं, बस बहता है।"
अगर तुम प्रेम को व्यापार बना लोगे,
तो दुख निश्चित है।
लेकिन अगर तुम प्रेम को बहने दो,
तो यह आनंद ही आनंद है।
8. ध्यान ही एकमात्र समाधान है
अब सवाल उठता है—"तो फिर रास्ता क्या है?"
ओशो कहते हैं—
"ध्यान ही एकमात्र उपाय है।"
ध्यान क्या करता है?
- यह मन की इच्छाओं को शांत करता है।
- यह तुम्हें वर्तमान में लाता है।
- यह तुम्हें सिखाता है कि जो है, उसमें जीना सीखो।
अगर तुम प्रतिदिन ध्यान करने लगो,
तो धीरे-धीरे "और चाहिए" का जहर खत्म हो जाएगा।
फिर जो है, वही सबसे सुंदर लगेगा।
9. निष्कर्ष: अब तुम्हें क्या करना है?
अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं—
1. तुम "और चाहिए" के पीछे भाग सकते हो।
- यह दुख देगा।
- यह तुम्हें जीवनभर बेचैन रखेगा।
- यह तुम्हें कभी चैन नहीं लेने देगा।
2. तुम "जो है, उसमें ही आनंद लेना" सीख सकते हो।
- यह सुख देगा।
- यह तुम्हें मुक्त कर देगा।
- यह तुम्हें ध्यान में ले जाएगा।
अब चुनाव तुम्हारा है।
तुम सुखी होना चाहते हो, या दुखी रहना चाहते हो?
ओशो कहते हैं—
"जो है, उसे पूरी तरह जी लो। और जो नहीं है, उसे भूल जाओ। यही वास्तविक आनंद है!"
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