साहसी लोग ही मुझे सुनने को तैयार होंगे, क्योंकि मुझे सुनना जोखिम से भरा होगा। - ओशो

भूमिका: सत्य सुनने का साहस चाहिए

सत्य को सुनने के लिए साहस चाहिए,  

क्योंकि सत्य सुखद नहीं होता।

सत्य तुम्हारे भीतर बैठे हुए अहंकार को जलाता है।

सत्य तुम्हारी मूल धारणाओं को तोड़ता है।

सत्य तुम्हारी झूठी पहचान को नष्ट कर देता है।

और लोग सत्य से डरते हैं।

वे सुनना नहीं चाहते,  

क्योंकि सत्य उन्हें नंगा कर देता है।

इसलिए ओशो कहते हैं—  

"साहसी लोग ही मुझे सुनने को तैयार होंगे, क्योंकि मुझे सुनना जोखिम से भरा होगा।"

अब सवाल उठता है,  

"ओशो को सुनने में जोखिम क्या है?"

"क्यों लोग भागते थे?"

"सत्य से डर क्यों लगता है?"

आओ, इसे गहराई से समझें।

1. लोग ओशो को सुनने से क्यों डरते थे?

जब कोई साधारण प्रवचन करता है,  

तो वह तुम्हारे मन को सांत्वना देता है।  

वह तुम्हें मीठी बातें सुनाता है।

लेकिन ओशो ऐसे नहीं थे।

उन्होंने कभी किसी को सांत्वना नहीं दी, झूठा दिलासा नहीं दिया।  

वे कहते हैं—  

"मैं तुम्हें तुम्हारा असली चेहरा दिखाने आया हूँ, और यह कड़वा होगा!"

ओशो से डरने के तीन कारण

1. वे तुम्हारी मान्यताओं को तोड़ते थे

   - समाज कहता है कि विवाह पवित्र है,  

     ओशो कहते हैं—"विवाह एक बंधन है!"

   - समाज कहता है कि ईश्वर एक बाहरी शक्ति है,  

     ओशो कहते हैं—"ईश्वर तुम्हारे भीतर है!"

2. वे तुम्हारी झूठी आत्मा को मारते थे

   - तुम सोचते हो कि तुम बहुत ज्ञानी हो,  

     ओशो तुम्हें बताते हैं कि तुम्हारा ज्ञान उधार लिया हुआ है।  

   - तुम सोचते हो कि तुम स्वतंत्र हो,  

     ओशो कहते हैं—"तुम गुलाम हो, तुम्हें इसका एहसास भी नहीं!"

3. वे तुम्हें अपने ही खिलाफ कर देते थे

   - तुम सोचते हो कि तुम सही हो,  

     ओशो कहते हैं—"तुम्हारा पूरा जीवन गलतफहमी पर टिका है!"

   - तुम सोचते हो कि तुम्हारे पास सबकुछ है,

     ओशो कहते हैं—"तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है!"

इसलिए लोग डरते थे!

ओशो को सुनना आत्महत्या करने जैसा था—  

लेकिन यह अहंकार की आत्महत्या थी, झूठी पहचान की मृत्यु थी।

जो भी उन्हें सुनने आया, वह बदल कर गया।  

और बदलाव से लोग डरते हैं।

2. सत्य से डर क्यों लगता है?

सत्य हमेशा अनिश्चितता लाता है।

सत्य तुम्हें तुम्हारी बनाई हुई दुनिया से बाहर निकालता है।

तुम्हारा पूरा जीवन क्या है?

झूठ की नींव पर खड़ा एक महल।

और सत्य क्या करता है?

यह उस महल को गिरा देता है।

इसलिए लोग सत्य से भागते हैं।  

वे झूठ में जीने को तैयार हैं,  

लेकिन सत्य को स्वीकारने को नहीं।

एक छोटी कहानी

एक आदमी था।  

वह हर दिन नदी में बैठकर ध्यान करता था।  

एक साधु ने उससे पूछा—  

"तुम ध्यान क्यों करते हो?"

उसने कहा—  

"मैं मोक्ष चाहता हूँ, मैं सत्य चाहता हूँ!"

साधु ने उसे पानी में डुबो दिया।  

वह छटपटाने लगा, सांस लेने के लिए संघर्ष करने लगा।  

फिर साधु ने उसे बाहर निकाला और कहा—  

"जब सत्य की प्यास तुम्हारी सांस की प्यास जितनी तीव्र हो जाएगी, तब ही तुम सत्य को जान पाओगे!"

तुम्हें भी इतनी ही तीव्र प्यास चाहिए।

3. साहसी लोग ही मुझे सुन सकते हैं

अब सवाल उठता है—  

"साहस की जरूरत क्यों है?"

क्योंकि सत्य सुनने के बाद तुम पहले जैसे नहीं रहोगे।

सत्य तुम्हें बदलने के लिए मजबूर करेगा।

और बदलाव हमेशा दर्द देता है।

ओशो कहते हैं—  

"पुराना अगर टूटे बिना नया जन्म न ले, तो तुम ठहरे रह जाओगे।"

तुम एक अंडे की तरह हो।

अगर तुम खुद से नहीं टूटे,  

तो जीवन तुम्हें तोड़ेगा।

लेकिन अगर तुम स्वयं टूट गए,  

तो तुम एक पक्षी बनकर उड़ोगे!

यह जोखिम है।

4. जो डरेगा, वह छूट जाएगा!

- अगर तुम अपने धर्म से चिपके रहोगे,  

  तो ओशो तुम्हें पसंद नहीं आएंगे।  

- अगर तुम अपने संस्कारों को ही सत्य मानोगे,  

  तो ओशो तुम्हें अजीब लगेंगे।  

- अगर तुम परिवर्तन से डरते हो,  

  तो ओशो तुम्हारे लिए नहीं हैं।

जो ओशो को सुनने आया, उसने सब कुछ खो दिया—और सब कुछ पा लिया!

5. ध्यान: साहसी लोगों का मार्ग

अब सवाल यह उठता है—  

"तो फिर रास्ता क्या है?"

उत्तर सिर्फ एक है—ध्यान।

ध्यान तुम्हें सत्य के लिए तैयार करता है।

ध्यान तुम्हें अहंकार से मुक्त करता है।

ओशो कहते हैं—  

"ध्यान ही एकमात्र उपाय है।"

- अगर तुम ध्यान करोगे,  

  तो तुम्हारी असली आँखें खुलेंगी।  

- अगर तुम ध्यान करोगे,  

  तो तुम्हें झूठ और सच का फर्क समझ आएगा।  

- अगर तुम ध्यान करोगे,  

  तो तुममें साहस आएगा—सत्य को देखने का, उसे स्वीकारने का।

6. निष्कर्ष: अब क्या करोगे?

अब सवाल तुम्हारा है।

तुम्हारे पास दो रास्ते हैं—

1. डर कर भाग सकते हो।

- फिर तुम्हारा जीवन वैसे ही रहेगा।  

- तुम फिर से उन्हीं झूठी बातों में जीते रहोगे।  

- तुम फिर से बेहोशी में रहोगे।

2. साहस से स्वीकार सकते हो।

- फिर तुम बदल जाओगे।  

- तुम्हारा झूठा अहंकार समाप्त होगा।  

- तुम्हें पहली बार सच का स्वाद मिलेगा।  

अब चुनना तुम्हें है।

ओशो कहते हैं—  

"अगर तुम सच में जीवित होना चाहते हो, तो सत्य को सुनने का साहस रखो!"

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