अकेले आना, अकेले जाना – ओशो प्रवचन

ध्यान रखना, अकेले आना है, अकेले जाना है। यह जीवन एकांत की यात्रा है। लेकिन बीच के ये थोड़े से दिन, जब तुम संसार में हो, जब तुम भीड़ के बीच हो, जब तुम्हारे चारों ओर रिश्ते-नाते, दोस्त, समाज और दुनिया का कोलाहल है—तब तुम भूल जाते हो कि तुम अकेले आए थे और अकेले जाओगे।

तुम्हारा जन्म हुआ तो क्या कोई साथ आया? जब तुम मरोगे तो क्या कोई तुम्हारे साथ जाएगा? लेकिन जीवन के इन बीच के दिनों में तुम भीड़ से इतनी गहराई से जुड़ जाते हो कि तुम अपना असली स्वरूप ही भूल जाते हो। यही अज्ञान है। यही मोह है। और यही दुख का मूल कारण है।

आज मैं तुम्हें इस सत्य की गहराई से पहचान कराऊँगा—अकेलेपन का अर्थ, संसार का स्वभाव, और वह स्वतंत्रता जो इसे समझने से आती है।

1. अकेलापन बनाम एकांत

सबसे पहले समझो कि अकेलापन और एकांत में फर्क है। अकेलापन एक कमी है, एक दर्द है। एकांत एक सौंदर्य है, एक आशीर्वाद है। भीड़ में रहकर भी जो एकांत में जी सकता है, वही ध्यानस्थ हो सकता है, वही आनंदित हो सकता है।

आधुनिक उदाहरण:

आज के युग में देखो, लोग अकेलेपन से भाग रहे हैं। हर कोई सोशल मीडिया, व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम में डूबा हुआ है। जैसे ही थोड़ी शांति मिलती है, वे फोन निकाल लेते हैं, स्क्रीन पर स्क्रॉल करने लगते हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें अकेलापन खलता है। वे बाहर से जुड़े रहना चाहते हैं ताकि भीतर का खालीपन सामने न आ जाए। लेकिन यह कोई समाधान नहीं है।

अगर अकेले रहने का डर है, तो समझ लो कि तुम्हारी आत्मा से तुम्हारा संबंध नहीं बना। क्योंकि जो खुद से जुड़ा है, वह कभी अकेला महसूस नहीं करता।  

महात्मा बुद्ध का उदाहरण:

महात्मा बुद्ध को देखो। वे राजमहल छोड़कर अकेले चले गए। जंगल में, निर्जन स्थानों पर ध्यान किया। लेकिन क्या वे अकेले थे? नहीं, वे परमात्मा से जुड़े थे, अपनी आत्मा से जुड़े थे। इसलिए उनका अकेलापन एकांत में बदल गया। जब वे वापस लौटे, तो संपूर्ण संसार उनके चरणों में था।

2. भीड़ का भ्रम और समाज की माया

मनुष्य इस भ्रम में जीता है कि दुनिया उसके बिना नहीं चलेगी। जैसे ही वह थोड़ा महत्व पाता है, थोड़ा पैसा कमा लेता है, थोड़ा नाम कमा लेता है, उसे लगता है कि वह बहुत जरूरी है।

लेकिन क्या सच में ऐसा है?

आधुनिक उदाहरण:

कोई बहुत बड़ा बिजनेसमैन है, करोड़ों रुपये कमा चुका है। लेकिन जैसे ही उसकी मृत्यु होती है, दो दिन बाद लोग उसे भूल जाते हैं। उसकी जगह कोई और आ जाता है। उसकी कंपनी चलती रहती है। दुनिया रुकी नहीं।

यह समाज एक महासागर की तरह है। एक लहर आती है, चली जाती है, दूसरी आ जाती है। लेकिन महासागर वैसा ही रहता है। तुम लहर हो, महासागर नहीं। भीड़ तुम्हें भूल जाएगी। यह याद रखना तुम्हें भीड़ की पकड़ से मुक्त कर देगा।

एक छोटी सी कहानी:

एक समय की बात है, एक बहुत प्रसिद्ध राजा था। उसने पूरी दुनिया पर राज किया। लेकिन जब मृत्यु का समय आया, तो वह रोने लगा। उसके मंत्रियों ने पूछा, "महाराज, आप इतने शक्तिशाली थे, फिर यह दुख क्यों?"

राजा ने कहा, "मैंने सारा जीवन दूसरों को जीतने में लगा दिया, लेकिन खुद को नहीं पहचान सका। अब मुझे जाना है, और मैं खाली हाथ जा रहा हूँ।"

यही सत्य है। अंत में हमें अकेले ही जाना है। भीड़, पैसा, प्रतिष्ठा, सत्ता—कुछ भी साथ नहीं जाएगा।

3. सच्चे जीवन की ओर यात्रा

तो फिर क्या किया जाए? अगर भीड़ से बचना है, लेकिन अकेलापन भी नहीं चाहिए, तो रास्ता क्या है?

रास्ता है—ध्यान। स्वयं को जानना। भीतर की यात्रा।

आज का यथार्थ:

आज का मनुष्य बाहर दौड़ रहा है—करियर के पीछे, रिश्तों के पीछे, सुख-सुविधाओं के पीछे। लेकिन भीतर जाने का समय नहीं निकालता। ध्यान नहीं करता। इसीलिए हर कोई तनाव में है, चिंता में है।

अगर तुम सच में आनंदित होना चाहते हो, तो ध्यान को अपनी प्राथमिकता बनाओ। हर दिन कुछ समय अकेले बैठो। बिना मोबाइल, बिना शोर-शराबे के। सिर्फ अपने भीतर झाँको। धीरे-धीरे तुम्हें भीड़ बेकार लगने लगेगी।

भगवान महावीर का उदाहरण:

भगवान महावीर ने 12 साल तक मौन साधना की। जंगलों में रहे, ध्यान किया, अपने भीतर डूबे। जब वे लौटे, तो संपूर्ण ब्रह्मांड की रहस्य उनके सामने खुल गए। उन्होंने पाया कि जो सुख बाहर खोज रहे हो, वह भीतर ही है।

4. रिश्तों का सच और मोह से मुक्ति

तुम कहते हो, "परिवार के बिना कैसे रहूँ?"

तुम कहते हो, "रिश्तों के बिना जीवन अधूरा लगेगा।"

लेकिन देखो, ये रिश्ते क्या सच में तुम्हारे अपने हैं?

आधुनिक दृष्टिकोण:

तुमने देखा होगा, जब किसी की मृत्यु होती है, तो उसके अपने ही थोड़े दिनों में उसे भूल जाते हैं। जिन रिश्तों के लिए तुम मरने को तैयार थे, वे तुम्हारे बिना भी हँसते-खेलते रहते हैं।

तो फिर इतना मोह क्यों? प्रेम करो, लेकिन मोह मत रखो।

रामकृष्ण परमहंस का दृष्टांत:

रामकृष्ण परमहंस की पत्नी ने एक बार उनसे पूछा, "आप मुझे कितना प्रेम करते हैं?"

उन्होंने कहा, "मैं प्रेम करता हूँ, लेकिन तुम पर निर्भर नहीं हूँ। अगर तुम नहीं भी रहोगी, तो भी मैं पूर्ण हूँ।"

यही समझ है। अगर कोई है, तो आनंद है। अगर नहीं है, तब भी आनंद में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।

5. सच्ची स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता

अगर तुम सच में मुक्त होना चाहते हो, तो आत्मनिर्भर बनो। भावनात्मक रूप से भी और मानसिक रूप से भी।

भीड़ के बिना भी तुम्हारा जीवन पूर्ण हो सकता है। लेकिन उसके लिए ध्यान चाहिए, जागरूकता चाहिए।

अल्बर्ट आइंस्टीन का उदाहरण:

आइंस्टीन को विज्ञान में खोज करना पसंद था। लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे अपनी ही दुनिया में मस्त थे। इसी कारण वे महान खोज कर पाए।

तुम्हें भी अपनी आंतरिक यात्रा पर ध्यान देना होगा।

निष्कर्ष

अकेले आना है, अकेले जाना है।

बीच के ये कुछ दिन भीड़ में मत गँवाओ।

- ध्यान करो।

- अपने भीतर जाओ।

- मोह मत रखो, प्रेम करो।

- आत्मनिर्भर बनो।

- जीवन को समझो और जागो।

जो इस सत्य को पहचान लेता है, वह मुक्त हो जाता है। और जिसने इसे नहीं पहचाना, वह अंत तक भीड़ में ही खोया रहेगा।

तुम्हें तय करना है—भीड़ का हिस्सा बनना है, या स्वयं का साक्षात्कार करना है।

ध्यान देना, जागरूक बनो, और अपने भीतर झाँको। यही मुक्ति का मार्ग है।

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