दिमाग को खूब पढ़ाना, लेकिन दिल को हमेशा अनपढ़ ही रखना – ओशो प्रवचन

मनुष्य का जीवन दो ध्रुवों के बीच झूलता है—दिमाग और दिल।

दिमाग गणना करता है, तर्क करता है, विश्लेषण करता है। दिल बस महसूस करता है, प्रेम करता है, बह जाता है।

अगर तुम जीवन को पूरी तरह जीना चाहते हो, तो एक संतुलन बनाना होगा—बुद्धि का विकास करो, लेकिन दिल को अनपढ़ ही रहने दो। ताकि वह भावनाओं को महसूस कर सके, बिना किसी गणना और तर्क के।

आज मैं तुम्हें इस गूढ़ सत्य को समझाने आया हूँ कि जीवन में तर्क कितना ज़रूरी है, और भावनाएँ उससे भी ज़्यादा। अगर तुम केवल तर्क से चलते हो, तो जीवन सूखा रहेगा। और अगर केवल भावनाओं में बह जाते हो, तो भ्रमित हो जाओगे। संतुलन ही जीवन की कुंजी है।

1. तर्क की दुनिया बनाम प्रेम की दुनिया

मनुष्य जन्म से ही तर्क से नहीं जीता, वह दिल से जीता है। बच्चा माँ की गोद में होता है, उसे गणित नहीं आता, विज्ञान नहीं आता। उसे यह भी नहीं पता कि यह स्त्री कौन है जिसने उसे जन्म दिया। लेकिन वह माँ को पहचानता है—कैसे?

भावना से।

उसके पास कोई तर्क नहीं, कोई प्रमाण नहीं। लेकिन फिर भी उसे माँ की गोद सबसे सुरक्षित लगती है।

आधुनिक उदाहरण:

आज की शिक्षा प्रणाली देखो। हर बच्चा बड़ा होते-होते गणित सीखता है, विज्ञान सीखता है, कंप्यूटर चलाना सीखता है। लेकिन क्या उसे प्रेम करना सिखाया जाता है? क्या उसे भावनाएँ समझने की शिक्षा दी जाती है?

नहीं।  

इसीलिए समाज भावनाशून्य होता जा रहा है। लोग कामयाब तो हो रहे हैं, लेकिन खुश नहीं हैं।

एलबर्ट आइंस्टीन का एक उदाहरण:

आइंस्टीन बहुत बड़े वैज्ञानिक थे, लेकिन एक दिन उन्होंने कहा—"अगर मुझे फिर से जन्म लेने का मौका मिले, तो मैं वैज्ञानिक नहीं, बल्कि संगीतकार बनना पसंद करूंगा।"

क्यों? क्योंकि विज्ञान तर्क दे सकता है, लेकिन आनंद नहीं। संगीत में, कला में, प्रेम में—कोई तर्क नहीं होता, फिर भी वहाँ जीवन का असली रस होता है।

2. दिल का गणित मत करना, प्रेम तर्क से परे है

दिमाग हमेशा पूछता है—"इसका फायदा क्या है?"  

दिल कभी यह सवाल नहीं पूछता।

अगर माँ अपने बच्चे को प्यार करती है, तो वह यह नहीं सोचती कि इस प्यार से मुझे क्या मिलेगा।

अगर कोई कलाकार अपनी पेंटिंग बना रहा है, तो वह यह नहीं सोचता कि इसे कितने में बेच सकता हूँ।

लेकिन आज की दुनिया में सबकुछ गणना के आधार पर हो रहा है।

आधुनिक उदाहरण:

आजकल लोग रिश्तों में भी गणना करने लगे हैं। अगर कोई दोस्त मदद करता है, तो मन में यह गणना होती है कि उसने कितनी बार मदद की और कितनी बार हमने। प्रेम, दोस्ती, करुणा—इनका गणना से कोई संबंध नहीं।

अगर तुम दिल को गणित सिखाओगे, तो जीवन नीरस हो जाएगा। तुम हर चीज़ का हिसाब लगाने लगोगे। और जहाँ हिसाब-किताब शुरू हुआ, वहाँ प्रेम मर जाता है।

3. तर्क तुम्हें सफलता देगा, लेकिन प्रेम तुम्हें आनंद देगा

तुम केवल दिमाग से जीओगे, तो हो सकता है कि तुम बहुत अमीर बन जाओ, बहुत प्रसिद्ध हो जाओ। लेकिन तुम्हारा जीवन एक मशीन जैसा होगा—कोई आनंद नहीं, कोई प्रेम नहीं।

रतन टाटा का उदाहरण:

रतन टाटा बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं, लेकिन उन्होंने एक बार कहा—"मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ कमाया, लेकिन अगर कोई मुझसे पूछे कि सबसे बड़ा निवेश क्या था, तो मैं कहूँगा—प्रेम और मानवता।"

वह व्यापार को समझते हैं, लेकिन उन्होंने दिल को अनपढ़ रखा है। उन्होंने अपने कर्मचारियों के साथ हमेशा एक भावनात्मक रिश्ता रखा, इसीलिए वे सिर्फ एक व्यापारी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा भी बने।

4. दिल को अनपढ़ क्यों रखना ज़रूरी है?

अगर दिल को पढ़ा-लिखा बना दिया, तो वह भी तर्क करने लगेगा।

अगर दिल भी गणना करने लगे, तो तुम अपने माँ-बाप से भी पूछोगे—"उन्होंने मेरे लिए क्या किया?"  

अगर दिल भी तर्क करने लगे, तो तुम अपनी पत्नी से भी पूछोगे—"इस रिश्ते में मुझे क्या मिला?"

यह गणना प्रेम को मार देती है।

इसलिए दिल को अनपढ़ ही रहने दो। ताकि वह हर चीज़ को मासूमियत से देख सके, हर चीज़ को प्रेम से महसूस कर सके।  

मीरा का उदाहरण:

मीरा कृष्ण की भक्त थी। लोग कहते थे, "तू एक राजा की बेटी है, तुझे राजमहल में रहना चाहिए। कृष्ण तो बस एक मूर्ति है, वह तुझे कुछ नहीं देगा।"

लेकिन मीरा ने कहा, "मुझे तर्क नहीं चाहिए, मुझे कृष्ण से प्रेम है।"

वह सबकुछ छोड़कर निकल गई। उसके पास कुछ नहीं था, लेकिन उसके भीतर अपार प्रेम था।

5. समाज क्या कहेगा?

समाज कहता है—"बुद्धिमान बनो, प्रैक्टिकल बनो, दिल से मत सोचो।"

लेकिन याद रखना, अगर तुम सिर्फ प्रैक्टिकल बन जाओगे, तो जीवन में रस नहीं रहेगा।

लोग अमीर तो बन रहे हैं, लेकिन खुश नहीं हैं।

लोग सफल तो हो रहे हैं, लेकिन शांति नहीं है।

क्यों?

क्योंकि उन्होंने दिल को मार दिया है।  

स्टीव जॉब्स का उदाहरण:

स्टीव जॉब्स ने कहा था—"मैंने करोड़ों डॉलर कमाए, लेकिन अगर मैंने दिल की नहीं सुनी होती, तो मैं एप्पल नहीं बना पाता।"

उनकी सफलता इसीलिए थी क्योंकि उन्होंने तर्क को सीखा, लेकिन दिल को अनपढ़ रखा।

6. दिल और दिमाग का संतुलन

तो क्या हमें दिमाग का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए?

नहीं, दिमाग बहुत जरूरी है।

लेकिन दिमाग तुम्हारा नौकर होना चाहिए, मालिक नहीं।

गौतम बुद्ध का दृष्टांत:

एक व्यक्ति बुद्ध के पास आया और बोला—"मैं बहुत दुखी हूँ। मुझे जीवन में कुछ समझ नहीं आ रहा।"

बुद्ध ने कहा, "तूने अपने दिमाग को ही सबकुछ मान लिया है, लेकिन अपने दिल को नहीं सुना।"

उस व्यक्ति ने ध्यान करना शुरू किया, और धीरे-धीरे उसे शांति मिलने लगी।

यही तरीका है—दिमाग को काम करने दो, लेकिन दिल को मासूम बने रहने दो।

7. जीवन का सार

1. दिमाग गणना करता है, दिल प्रेम करता है।

2. जीवन में सफलता के लिए दिमाग चाहिए, लेकिन आनंद के लिए दिल।

3. अगर तुम दिल को गणना सिखा दोगे, तो प्रेम खत्म हो जाएगा।

4. समाज तुम्हें तर्क सिखाएगा, लेकिन तुम्हें यह तय करना है कि तुम्हें जीवन में प्रेम चाहिए या सिर्फ गणना।

5. सच्चा आनंद दिल से आता है, दिमाग से नहीं।

इसलिए, दिमाग को खूब पढ़ाना, लेकिन दिल को हमेशा अनपढ़ ही रखना। ताकि जब कोई तुम्हें प्रेम दे, तो तुम यह न सोचो कि बदले में क्या मिलेगा। ताकि जब तुम किसी की मदद करो, तो यह न सोचो कि उसका हिसाब कैसे होगा।

अगर तुमने यह समझ लिया, तो जीवन आनंद से भर जाएगा।  

ध्यान देना, जागरूक बनो, और दिल को मासूम रहने दो। यही मुक्ति का मार्ग है।

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