"मैंने गीता, कुरआन और बाइबिल, जो पढ़ते हैं उन्हें कभी लड़ते नहीं देखा और जो इनके लिए लड़ते हैं, उन्हें कभी पढ़ते नहीं देखा।"  – ओशो

इस प्रवचन में हम उस गहरे रहस्य की खोज करेंगे जो धर्म और धार्मिक ग्रंथों के भीतर निहित है, और समझने का प्रयास करेंगे कि असली आध्यात्मिकता कहाँ से जन्म लेती है। आज का यह प्रवचन आपके दिल, दिमाग और आत्मा तक पहुँचने का प्रयास करेगा, ताकि आप यह अनुभव करें कि धर्म का असली अर्थ शब्दों से परे, हमारे अंदर ही छिपे उस दिव्य स्पंदन में निहित है।

 1. आंतरिक यात्रा – बाहरी ग्रंथों से परे

प्रिय मित्रों, जब हम अपने जीवन की व्यस्तताओं में उलझे रहते हैं तो हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि हम कौन हैं, और हमारी असली प्रकृति क्या है। हम अक्सर अपनी पहचान, अपने मूल्यों और अपने विश्वासों को समाज, परिवार या परंपरागत धर्म से जोड़ लेते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे भीतर की दुनिया कितनी विशाल और गहरी है? क्या हमने कभी ध्यान से अपने अंतर्मन की ओर देखा है? ओशो का यह महान कथन हमें यही सिखाता है कि जो वास्तव में पढ़ते हैं – जो अपने अंदर की खोज करते हैं – वे कभी भी बाहरी झगड़ों में उलझ नहीं जाते।

धर्म के ग्रंथ – गीता, कुरआन, बाइबिल – ये शब्दों के संग्रह मात्र नहीं हैं, बल्कि ये जीवन के रहस्य और चेतना के संकेत हैं। इनका असली मकसद हमें उस उच्चतम सत्य की ओर ले जाना है, जो हमारे भीतर मौजूद है। अगर आप इन्हें केवल बाहरी नियम, अनुष्ठान और सामाजिक आदेश मानते हैं, तो आप उस अद्भुत गहराई से वंचित रह जाते हैं जो आपके भीतर छुपी है।

कल्पना कीजिए कि आपके पास एक विशाल सागर है, जिसकी गहराई अनंत है, और आप केवल उसकी सतह देख रहे हैं। क्या आपको लगता है कि आपने उस सागर की पूरी सुंदरता, उसकी गहराई और उसमें छिपे रहस्य का अनुभव किया है? बिल्कुल नहीं! इसी प्रकार, जब हम धार्मिक ग्रंथों को केवल एक दस्तावेज़ के रूप में देखते हैं, तो हम उस दिव्यता से कट जाते हैं जो हमारे भीतर विद्यमान है।

2. धर्म और अध्यात्म – एक भ्रम और एक वास्तविकता

अक्सर हम धर्म और अध्यात्म को एक ही समझ लेते हैं, लेकिन इन दोनों में बहुत गहरा अंतर है। धर्म बाहरी व्यवस्था है – नियम, परंपराएं, अनुष्ठान और समाज द्वारा निर्धारित कर्तव्य। यह एक प्रकार का सामाजिक अनुबंध है, जो व्यक्ति को एक समूह से जोड़ता है, जिससे एक तरह का सामूहिक पहचान मिलती है। लेकिन अध्यात्म वह यात्रा है जो हमें हमारे अंदर की ओर ले जाती है, जहाँ हम अपने सच्चे स्वरूप, अपने अस्तित्व के मूल कारण और अपने भीतर विद्यमान प्रेम, शांति और आनंद को पहचानते हैं।

जब हम धर्म की कठोर सीमाओं में बाँध जाते हैं, तो हम अक्सर एक निश्चित दृष्‍टिकोण, एक निर्धारित रास्ता, और कभी-कभी तो कट्टरता में फंस जाते हैं। आप देखेंगे कि जिन लोगों ने केवल ग्रंथों का पाठ किया है, उन्हें किसी भी बाहरी विवाद में शामिल नहीं देखा गया। उनका ध्यान अपने अंदर की आवाज सुनने में लगा रहता है, उनके मन में उस शांति और प्रेम का संचार होता है, जो उन्हें ऊँचाइयों तक ले जाता है। 

वहीं दूसरी ओर, जो लोग इन ग्रंथों के नाम पर लड़ते हैं – वे अक्सर उन सिद्धांतों से दूर हो जाते हैं, जिनकी असली झलक हमें ग्रंथों के पन्नों में मिलती है। वे ग्रंथों की सतही व्याख्या में उलझ जाते हैं और खुद को एक ऐसे ढांचे में पाते हैं जहाँ दूसरों से अलगाव, कट्टरता और हिंसा को बढ़ावा मिलता है। इन सब में कोई सच्ची आध्यात्मिकता नहीं है, बल्कि केवल एक भ्रम है, जो बाहरी दिखावे में उलझा रहता है।

3. ग्रंथों की आंतरिक गहराई – प्रेम, दया और सहानुभूति का संदेश

जब हम गीता, कुरआन और बाइबिल के पन्नों को खोलते हैं, तो हमें एक ऐसा संदेश मिलता है जो हमारे मन, दिल और आत्मा को स्पंदित कर देता है। ये ग्रंथ हमें यह बताते हैं कि जीवन केवल सांसारिक सुख-दुख का मेल नहीं है, बल्कि यह एक महान यात्रा है – आत्मा की खोज की यात्रा।

गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, "कर्मण्येवाधिकारस्ते" – अर्थात् कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल की चिंता मत करो। इसका अर्थ है कि हमें अपने कर्मों को निष्काम भाव से, बिना किसी आसक्ति के करना चाहिए। यही संदेश हमें बताता है कि हमें अपने अंदर की ऊर्जा को जगाने और उसे एक सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करने की आवश्यकता है।

कुरआन में भी एक ऐसा संदेश मिलता है, जो कहता है कि इंसान को सदा सत्य की खोज करनी चाहिए, और उसमें सबका सम्मान किया जाना चाहिए। इसमें हमें यह सिखाया जाता है कि दुनिया में कोई भी चीज़ स्थायी नहीं है, और हमें हमेशा अपने अंदर की आवाज सुननी चाहिए, न कि बाहरी झगड़ों में उलझकर।

बाइबिल में प्रेम का संदेश सर्वोपरि है – "अपने पड़ोसी से ऐसा व्यवहार करो जैसा तुम स्वयं से करते हो।" यह संदेश हमें बताता है कि अगर हम प्रेम, दया और सहानुभूति के साथ जीवन जीते हैं, तो हम एक दूसरे के साथ शांति से रह सकते हैं, और उस दिव्य प्रेम का अनुभव कर सकते हैं जो हमें एक दूसरे से जोड़ता है।

इन तीनों ग्रंथों का मूल संदेश यही है – प्रेम, सहानुभूति, दया, और आत्मा की गहराई में स्थित वह अद्भुत शक्ति जो हमें हमारे वास्तविक स्व से जोड़ती है। जब हम इन संदेशों को अपने जीवन में आत्मसात कर लेते हैं, तो हमारे भीतर एक ऐसी शांति और संतुलन उत्पन्न हो जाता है, जो किसी भी बाहरी विवाद या संघर्ष को मात दे सकती है।

4. लड़ाई का भ्रम और असली संघर्ष – भीतर की लड़ाई

आज के समय में हम अक्सर देखते हैं कि धर्म के नाम पर लड़ाइयाँ छिड़ जाती हैं। यह देखकर मन में सवाल उठता है – क्या धर्म ही हिंसा का कारण है? नहीं, ऐसा नहीं है। असली लड़ाई हमारे भीतर होती है – वह लड़ाई जो हमारे अहंकार, द्वंद्व और माया के बीच होती है।

जब हम अपने भीतर की लड़ाई को पहचानते हैं, तब हमें समझ आता है कि बाहरी लड़ाइयाँ सिर्फ उस आंतरिक संघर्ष का प्रतिबिम्ब हैं, जहाँ हम अपने मन की अस्थिरता, अनिश्चितता और भय से लड़ रहे होते हैं। उन लोगों ने कभी भी आत्मिक गहराई से विचार नहीं किया, और इसलिए वे बाहरी मामलों में उलझकर अपना असली अस्तित्व खो देते हैं।

सोचिए, यदि आप अपने अंदर की शांति, अपने मन की स्थिरता को प्राप्त कर लेते हैं, तो क्या बाहरी दुनिया की छोटी-छोटी लड़ाइयाँ आपकी ऊर्जा चुरा सकती हैं? निश्चित ही नहीं! यही कारण है कि जो लोग नियमित ध्यान, साधना और आत्म-खोज में लीन होते हैं, वे कभी भी बाहरी झगड़ों में शामिल नहीं होते। वे जानते हैं कि असली लड़ाई तो भीतर होती है – उस लड़ाई से, जिसमें हमें अपने अज्ञान, डर और अहंकार को मात देनी होती है।

अंदर की इस लड़ाई में जीत प्राप्त करना ही असली सफलता है। यही कारण है कि ओशो कहते हैं – जो ग्रंथों के लिए लड़ते हैं, उन्हें कभी पढ़ते नहीं देखा। क्योंकि जब आप केवल बाहरी विवादों में उलझ जाते हैं, तो आप अपनी असली पहचान, अपने भीतर के उस उजाले को भुला देते हैं जो आपको जीवन के हर क्षण में मार्गदर्शन करता है।

5. अध्यात्मिकता की खोज – स्वयं के साथ सच्चा संवाद

सच्ची आध्यात्मिकता का अर्थ है स्वयं के साथ एक गहरा संवाद करना। यह संवाद न केवल आपके मन से होता है, बल्कि आपके दिल और आत्मा से भी होता है। जब आप स्वयं के साथ इस संवाद में लीन होते हैं, तो आप पाते हैं कि आपके अंदर कितनी शक्तियाँ छिपी हैं – वो शक्तियाँ जो आपको हर संघर्ष में, हर विपत्ति में, हर अंधकार में भी उजाला दिखाती हैं।

इस संवाद की शुरुआत होती है – ध्यान से, मौन से और उस अनंत प्रेम से जो आपके भीतर विद्यमान है। यह ध्यान, यह मौन, आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाता है जहाँ न कोई द्वंद्व होता है, न कोई विभाजन। यहाँ केवल एकता होती है – आपके भीतर, आपके आसपास, और सम्पूर्ण ब्रह्मांड में।

जब हम अपने अंदर की इस यात्रा पर निकलते हैं, तो हमें यह समझ आता है कि धर्म के ग्रंथ केवल एक प्रतीक हैं। वे हमें उस सत्य की याद दिलाते हैं जो हम पहले से जानते हैं – सत्य जो हमारे भीतर छिपा है। आप यह भी कह सकते हैं कि ये ग्रंथ एक प्रकार का मार्गदर्शन हैं, जो हमें उस अज्ञात क्षेत्र में ले जाते हैं जहाँ हमारे असली स्वरूप का अनुभव होता है।

सोचिए, अगर आप हर दिन कुछ मिनट के लिए भी अपने अंदर झाँकने का प्रयास करें, तो क्या आपको अपने भीतर की वह शांति, वह प्रेम का अहसास नहीं होगा जो आपको बाहरी दुनिया की हलचल से ऊपर उठा ले जाएगा? यही कारण है कि जो लोग नियमित साधना करते हैं, वे कभी भी हिंसा या द्वंद्व में उलझते नहीं हैं। वे जानते हैं कि असली लड़ाई तो भीतर होती है, और इसे जीतना ही सबसे महत्वपूर्ण है।

6. प्रेम, दया और सहानुभूति – आध्यात्मिकता के सच्चे आयाम

धर्म का असली उद्देश्य है – प्रेम, दया और सहानुभूति का संदेश फैलाना। जब आप अपने हृदय को खोलते हैं और इस प्रेम को अपने जीवन में आत्मसात कर लेते हैं, तो आपको एक अनूठा अनुभव होता है – वह अनुभव जो किसी भी बाहरी संघर्ष, किसी भी कट्टरता से परे होता है।

गीता में, कृष्ण ने कहा है कि आत्मा अजर-अमर है। इसका मतलब है कि हमारा असली स्वरूप अनंत, अचल और अजर है। जब आप इस सत्य को समझ जाते हैं, तो आप किसी भी बाहरी चीज़ के प्रति असक्ति नहीं रखते। आप जानते हैं कि सब कुछ क्षणभंगुर है, परंतु आत्मा सदैव स्थिर रहती है। यही ज्ञान आपको बाहरी संघर्षों से ऊपर उठाता है और आपको एक ऐसा दृष्टिकोण देता है, जिससे आप पूरे जीवन में शांति, संतुलन और आनंद का अनुभव करते हैं।

कुरआन और बाइबिल में भी यही संदेश है – एक दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें, एक दूसरे की सहायता करें, और उस दिव्य शक्ति का सम्मान करें जो सबके भीतर विद्यमान है। जब आप यह समझ लेते हैं कि हर प्राणी में वही दिव्यता वास करती है, तो आपके दिल में दूसरों के प्रति सहानुभूति और दया का संचार स्वाभाविक रूप से होने लगता है।

इस प्रेम के भाव में डूब जाने से आप पाते हैं कि किसी भी प्रकार का बाहरी विवाद या कट्टरता आपके जीवन को प्रभावित नहीं कर सकती। आपके अंदर की इस दिव्यता के सामने, सभी भौतिक मतभेद, सभी सामाजिक विभाजन फीके पड़ जाते हैं। आप स्वयं को उस अनंत प्रेम से जोड़ लेते हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।

7. ज्ञान का मौन – पढ़ने की प्रक्रिया और सच्ची समझ

अक्सर देखा गया है कि जो लोग धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन करते हैं, वे शांति, प्रेम और सहिष्णुता के उदाहरण बन जाते हैं। उनके मन में जो ज्ञान होता है, वह किसी भी बाहरी विवाद या संघर्ष के लिए जगह नहीं छोड़ता। यह ज्ञान एक मौन की तरह होता है – एक ऐसा मौन, जो सभी कलह और विवाद को शांत कर देता है।

पढ़ना केवल शब्दों का ज्ञान प्राप्त करना नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार का ध्यान है। जब आप किसी ग्रंथ को पढ़ते हैं, तो आप उसे केवल एक अकादमिक विषय की तरह नहीं देखते, बल्कि उसे एक जीवंत अनुभव के रूप में ग्रहण करते हैं। आप उसके प्रत्येक शब्द, प्रत्येक श्लोक में एक गूढ़ अर्थ ढूंढते हैं, जो आपको अपने अंदर की यात्रा पर ले जाता है।

इस पढ़ने की प्रक्रिया में, आपका मन शांति को प्राप्त करता है। आप देखते हैं कि कैसे शब्द, कैसे वाक्य, आपको उस अद्भुत सत्य की ओर ले जाते हैं जो हमारे जीवन के मूल में निहित है। आप समझ जाते हैं कि धर्म केवल बाहरी अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आपके भीतर की उस अनंत ऊर्जा को जगाने का एक माध्यम है, जो आपको हर स्थिति में शांति और संतुलन प्रदान करती है।

जो लोग केवल बाहरी लड़ाई में लगे रहते हैं, वे कभी भी इस ज्ञान के मौन को नहीं समझ पाते। उनके मन में हमेशा बाहरी विवादों, कट्टरता और अहंकार के शोर होते हैं, जिनकी वजह से वे उस गहन शांति और संतुलन से दूर रहते हैं, जो ग्रंथों का असली संदेश है। यही कारण है कि ओशो ने यह कहा – जो इन ग्रंथों के लिए लड़ते हैं, उन्हें कभी पढ़ते नहीं देखा।

8. बाहरी मतभेद और आंतरिक एकता – एक दृष्टिकोण

आज के इस समय में जहाँ विभिन्न मतभेद, विभिन्नता के नाम पर संघर्ष झगड़े हो रहे हैं, यह अति आवश्यक हो जाता है कि हम एक बार फिर से अपने भीतर की एकता को पहचानें। हर इंसान के भीतर वही दिव्यता होती है, वही अद्भुत ऊर्जा होती है, जो उसे जीवंत बनाती है। चाहे वह गीता के भक्त हों, कुरआन के अनुयायी हों या बाइबिल के पाठक हों – अंतर्मन की गहराई में वे सभी एक ही स्रोत से उत्पन्न होते हैं।

इस एकता को समझने के लिए हमें बाहरी मतभेदों को एक ओर रखकर, अपने अंदर की आवाज़ को सुनना सीखना होगा। जब आप अपने भीतर की इस आवाज़ को सुनते हैं, तो आपको वह अनुभव होता है जो किसी भी बाहरी विवाद से परे होता है – वह अनुभव होता है एक अनंत प्रेम का, जो आपको संपूर्ण अस्तित्व से जोड़ देता है।

इस प्रकार, जो लोग इस आंतरिक एकता को समझते हैं, वे कभी भी बाहरी लड़ाइयों में उलझ नहीं जाते। वे जानते हैं कि असली लड़ाई तो हमारे भीतर होती है – उस लड़ाई से, जिसमें हमें अपने अहंकार, द्वंद्व और भय को त्यागना होता है। यही कारण है कि जो लोग सच में ग्रंथों को समझते हैं, वे कभी भी बाहरी विवाद में उलझते नहीं हैं, क्योंकि उनका ध्यान हमेशा उस दिव्य सत्य पर रहता है, जो उन्हें उनके असली स्व से जोड़ता है।

9. जीवन की अनंतता – माया से परे का अनुभव

जीवन को समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि यह केवल सांसारिक सुख-दुख का संगम नहीं है, बल्कि यह एक अनंत यात्रा है, जहाँ हम अपने अंदर की अनंतता का अनुभव कर सकते हैं। हमारे चारों ओर जो भौतिक संसार है, वह क्षणभंगुर है, लेकिन हमारी आत्मा, हमारा अस्तित्व – वह अनंत है।

जब आप गहरी साधना में लीन होते हैं, तो आप यह अनुभव करते हैं कि आप केवल एक शरीर में बंद नहीं हैं, बल्कि आप उस अनंत चेतना का हिस्सा हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। इस अनुभव में, माया – वह भौतिक मोह-माया, वह भ्रम – सब कुछ धुंधला हो जाता है, और आपके सामने एक ऐसी सच्चाई प्रकट होती है जो केवल प्रेम, शांति और आनंद में ही निहित है।

यह वही अनुभव है जो हमें उन ग्रंथों में मिलता है, जहाँ प्रत्येक शब्द, प्रत्येक श्लोक एक गहन ज्ञान का संकेत होते हैं। जब आप उस ज्ञान को अपने दिल से महसूस करते हैं, तो आपको पता चलता है कि आपकी असली पहचान कहीं बाहरी मतभेदों में नहीं, बल्कि आपके भीतर की असीमित ऊर्जा में है। यही कारण है कि जो लोग इस अनुभव में लीन होते हैं, वे कभी भी बाहरी संघर्ष में उलझते नहीं हैं।

10. ध्यान और साधना – आंतरिक शांति का स्रोत

यदि हम वास्तव में अपने अंदर की शांति, अपने मन की स्थिरता प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें ध्यान और साधना का सहारा लेना होगा। ध्यान केवल एक तकनीक नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली है – एक ऐसी जीवनशैली, जहाँ आप अपने भीतर की गहराईयों में उतरकर उस अनंत प्रेम और शांति का अनुभव करते हैं जो आपके अस्तित्व का मूल है।

जब आप नियमित रूप से ध्यान करते हैं, तो आपके मन में एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहाँ सभी बाहरी आवाज़ें मद्धम हो जाती हैं। यह वह मौन है, जहाँ आप अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। इसी मौन में, आपको वह गहरा ज्ञान मिलता है, जो आपको जीवन के हर पहलू को नए दृष्टिकोण से देखने में सक्षम बनाता है।

ध्यान की इस साधना में आप सीखते हैं कि असली लड़ाई तो बाहरी नहीं होती, बल्कि यह भीतर होती है – उस भीतर की लड़ाई से, जिसमें आपको अपने भय, अपने संदेह और अपने अहंकार को मात देनी होती है। यही वह लड़ाई है, जिसे जीतने के बाद ही आप असली शांति और आनंद का अनुभव कर पाते हैं।

आपको यह समझना होगा कि ध्यान के पन्नों में छुपा हुआ हर शब्द, हर अनुभूति एक संदेश है – एक संदेश जो आपको बताता है कि असली युद्ध तो आपके अंदर चलता है, और इसे जीतना ही आपके जीवन का असली उद्देश्य है। इसलिए, जो लोग वास्तव में ग्रंथों को समझते हैं, वे नियमित ध्यान और साधना में लीन होते हैं, जिससे उनके भीतर की ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है और वे कभी भी बाहरी द्वंद्व में उलझते नहीं हैं।

11. अहंकार का पतन – सच्चे ज्ञान की प्राप्ति

अहंकार, वह अंधकारमय शक्ति है जो हमारे भीतर के प्रकाश को छिपा लेती है। जब हम अपने अहंकार को अपने जीवन पर हावी होने देते हैं, तो हम उस दिव्यता से दूर हो जाते हैं जो हमें वास्तविक रूप से जीवंत बनाती है। अहंकार के कारण हम अक्सर अपने मन में एक आभास बना लेते हैं कि हम दूसरों से श्रेष्ठ हैं, कि हमारे विचार, हमारे विश्वास, हमारी परंपराएं दूसरों से अलग और ऊपर हैं।

लेकिन सच्चाई यह है कि जब आप अपने अहंकार को त्याग देते हैं, तो आप एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ आपके अंदर का प्रकाश असीमित हो जाता है। यही वह अवस्था है जहाँ आप देख पाते हैं कि सभी धर्म, सभी ग्रंथ, सभी परंपराएं केवल उस प्रेम का एक रूप हैं, जो आपके भीतर विद्यमान है।

ओशो की शिक्षाएँ हमें यही समझाती हैं कि जो लोग केवल अहंकार में उलझ जाते हैं, वे कभी भी उस सच्चे ज्ञान तक नहीं पहुँच पाते, जो उन्हें बाहरी झगड़ों से ऊपर उठाकर अपने अंदर की शांति तक ले जाता है। जब आप अपने अहंकार को छोड़ देते हैं, तो आप एक ऐसी स्थिति में आ जाते हैं जहाँ हर बात, हर अनुभव आपके लिए एक साधना बन जाता है – साधना जो आपको उस अनंत ज्ञान और प्रेम की ओर ले जाती है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।

आपका अहंकार तभी तक आपका साथी रह सकता है जब तक वह आपको अपने भीतर की उस गहराई से दूर रखता है, जहाँ सच्चा ज्ञान वास करता है। इसलिए, जब आप अपने अहंकार को शांत कर लेते हैं, तो आप पाते हैं कि वास्तव में जो कुछ भी है, वह आपके भीतर ही विद्यमान है – वही आपके जीवन का मूल है, वही आपकी आत्मा की सच्ची पहचान है।

12. शिक्षा और अनुभव – ज्ञान का सही अर्थ

आज के इस आधुनिक युग में, जहाँ सूचना का भंडार हमारे हाथों में है, बहुत से लोग यह सोचते हैं कि ज्ञान केवल पढ़ाई, शोध या अकादमिक सिद्धांतों तक सीमित है। लेकिन सच्चा ज्ञान वह है, जो आपके जीवन के प्रत्येक क्षण में प्रकट होता है, जो आपके अनुभवों, आपके भावनाओं और आपके अंदर की आवाज़ में गूंजता है।

जब आप किसी धार्मिक ग्रंथ को पढ़ते हैं, तो आपको यह समझना होता है कि वह केवल शब्दों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह उन अनुभवों का प्रतिबिम्ब है, जिन्होंने अनगिनत आत्माओं को उस दिव्यता का अहसास कराया है, जो हमारे भीतर छुपी है। अगर आप इन शब्दों को केवल सतही अर्थों में लेते हैं, तो आप उस गहरे ज्ञान से दूर हो जाते हैं, जो आपके लिए सच्ची शांति, आनंद और प्रेम का मार्ग प्रशस्त करता है।

वास्तविक शिक्षा वह है, जो आपको अपने भीतर की गहराईयों में ले जाती है। यह शिक्षा आपको बताती है कि जीवन का असली उद्देश्य केवल बाहरी सफलता या सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं है, बल्कि यह आपके अंदर की उस अनंत ऊर्जा और प्रेम को पहचानना है, जो आपको हर परिस्थिति में स्थिरता प्रदान करता है। यही कारण है कि जो लोग वास्तव में ग्रंथों को पढ़ते हैं, वे कभी भी बाहरी लड़ाइयों में उलझते नहीं हैं, क्योंकि उनका ध्यान हमेशा उस अनंत ज्ञान पर रहता है जो उनके भीतर है।

13. सामाजिक बंधन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता

समाज में हम अक्सर देखा करते हैं कि धर्म के नाम पर लोगों को एक निश्चित ढांचे में बाँध दिया जाता है। हमें यह सिखाया जाता है कि हमें एक निश्चित तरीके से जीना है, एक निश्चित रीतिरिवाज का पालन करना है, और अपने विचारों को उसी दिशा में मोड़ना है, जैसा समाज ने निर्धारित किया है। लेकिन क्या यह सही है? क्या वास्तविक स्वतंत्रता वही नहीं है जो आपके अंदर से उत्पन्न होती है?

जब आप अपने भीतर की स्वतंत्रता को पहचान लेते हैं, तो आप देखते हैं कि बाहरी समाज, बाहरी नियम और परंपराएं केवल उन ढांचों का एक हिस्सा हैं, जिन्हें आपने स्वयं चुना है। असली स्वतंत्रता वह है, जो आपको आपके अंदर की उस अनंत ऊर्जा से जोड़ती है, जो हर प्रकार के बाहरी बंधनों से परे है।

इस स्वतंत्रता की प्राप्ति तभी संभव है, जब आप अपने अंदर की सच्चाई को समझें। आप जानते हैं कि आपकी असली पहचान किसी बाहरी ढांचे में नहीं, बल्कि आपके भीतर की उस दिव्यता में है। यही कारण है कि जो लोग सच्ची शिक्षा, सच्चे ज्ञान और सच्ची साधना में लीन होते हैं, वे कभी भी बाहरी मतभेदों में उलझते नहीं हैं। उनके लिए बाहरी मतभेद केवल उस भ्रम का हिस्सा होते हैं, जो उनके मन को अस्थिर करता है।

आपको यह समझना होगा कि समाज के निर्धारित नियम और परंपराएं केवल बाहरी सांचे हैं, लेकिन आपकी आत्मा, आपका अस्तित्व – यह अनंत है। जब आप इस अनंतता को महसूस करते हैं, तो आप किसी भी प्रकार के सामाजिक बंधन या विभाजन से ऊपर उठ जाते हैं, और आपकी सोच उस सार्वभौमिक प्रेम और शांति की ओर प्रवाहित होती है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।

14. आंतरिक परिवर्तन – व्यक्तिगत जागरण का महत्व

सच्चे जागरण का अर्थ है – अपने अंदर की उस अनंत चेतना को पहचानना, जो हमें हमारे वास्तविक स्व से जोड़ती है। यह जागरण बाहरी लड़ाइयों या संघर्षों से नहीं, बल्कि आपके भीतर की उस परिवर्तनकारी ऊर्जा से होता है।

जब आप अपने अंदर की यात्रा पर निकलते हैं, तो आप पाते हैं कि असली परिवर्तन बाहरी नहीं होता, बल्कि यह आपके मन, आपके विचारों और आपके दिल के परिवर्तन में होता है। यह परिवर्तन धीरे-धीरे, सावधानी से होता है, जब आप अपने भीतर के संदेहों, भय और द्वंद्वों को एक-एक करके दूर करते हैं।

इस आंतरिक परिवर्तन में आप पाते हैं कि हर अनुभव, हर चुनौती आपके लिए एक अवसर है – एक अवसर, जिससे आप अपने आप को बेहतर बना सकते हैं, अपने अंदर की उस दिव्यता को जागृत कर सकते हैं, जो हमेशा से आपके भीतर निहित थी। यह जागरण आपके जीवन के हर पहलू में प्रकट होता है – चाहे वह आपके व्यक्तिगत संबंध हों, आपका पेशा हो या आपकी सामाजिक जिम्मेदारियाँ।

जिस व्यक्ति ने सच्चाई की खोज में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी है, वह किसी भी बाहरी विवाद, किसी भी कट्टरता से बच जाता है, क्योंकि उसके मन में उस सच्चे ज्ञान की ज्योति जल रही होती है, जो उसे हर परिस्थिति में शांति और संतुलन प्रदान करती है। यही कारण है कि ओशो ने कहा – जो ग्रंथों के लिए लड़ते हैं, उन्हें कभी पढ़ते नहीं देखा। क्योंकि असली लड़ाई तो आपके भीतर होती है, और जब आप उस लड़ाई को जीत लेते हैं, तो आप पाते हैं कि असली शांति केवल बाहरी संघर्षों में नहीं, बल्कि आपके अपने अंदर ही निहित है।

15. आधुनिकता और परंपरा – सामंजस्य का संदेश

आज के इस आधुनिक युग में, जहाँ तकनीक, विज्ञान और प्रगति ने हमारी दुनिया को नए आयाम दिए हैं, वहाँ भी हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारी आत्मा की गहराई कोई मशीन, कोई प्रोग्राम नहीं है। आपकी आत्मा अनंत है, और इसे केवल वही ज्ञान संतुष्ट कर सकता है जो परंपरा, ध्यान और साधना के माध्यम से प्राप्त होता है।

अक्सर देखा जाता है कि आधुनिकता के शोर में हम अपने आप को उस परंपरा से दूर कर देते हैं, जो हमारे पूर्वजों ने सदा निभाई है। लेकिन असली ज्ञान वहीं छिपा है – उन प्राचीन ग्रंथों में, जिनमें न केवल शब्द, बल्कि जीवन का गूढ़ रहस्य निहित है। जब आप इन ग्रंथों को समझने का प्रयास करते हैं, तो आप पाते हैं कि उनके संदेश केवल बाहरी दुनिया के लिए नहीं, बल्कि आपके भीतर के लिए हैं।

यह समझना अति आवश्यक है कि परंपरा और आधुनिकता दोनों एक ही धारा के दो पहलू हैं। दोनों में संतुलन बनाना ही असली कुंजी है। अगर आप आधुनिकता के साथ अपने भीतर की परंपरा को भी आत्मसात करते हैं, तो आप पाते हैं कि आपका जीवन एक अद्भुत सामंजस्य में बदल जाता है – जहाँ हर नवीन विचार, हर तकनीकी प्रगति भी उस आत्मिक ज्ञान की ओर संकेत करती है, जो आपके भीतर सदैव विद्यमान है।

इस सामंजस्य से, आप न केवल बाहरी दुनिया में संतुलन पाते हैं, बल्कि अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा को भी महसूस करते हैं, जो आपको हर स्थिति में स्थिरता, शांति और आनंद प्रदान करती है। यही वह संतुलन है जो आपको जीवन के हर संघर्ष से ऊपर उठाता है, और यही कारण है कि जो लोग इस संतुलन में लीन होते हैं, वे कभी भी बाहरी झगड़ों में उलझते नहीं हैं।

16. आस्था और संदेह – एक दोधारी तलवार

जब हम धर्म और आध्यात्मिकता की बात करते हैं, तो अक्सर आस्था और संदेह दो ऐसे पहलू बनकर सामने आते हैं, जिनका संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। आस्था हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, हमें विश्वास कराती है कि जीवन में कुछ ऐसा है, जो हमारे समझ से परे है – वह दिव्यता, वह ऊर्जा, वह प्रेम। वहीं, संदेह हमें सतर्क भी रखता है, हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तव में उस सत्य को समझ पा रहे हैं, या हम केवल बाहरी शब्दों में उलझे हुए हैं।

असली आध्यात्मिकता का अर्थ है – इन दोनों के बीच संतुलन बनाना। जब आप अपने मन में निश्चल आस्था के साथ-साथ स्वस्थ संदेह भी रखते हैं, तो आप पाते हैं कि आपका आत्मिक विकास एक निरंतर प्रक्रिया है, जहाँ आप हर दिन, हर क्षण अपने अंदर की गहराईयों में उतरते हैं और उस अनंत ज्ञान का अनुभव करते हैं जो आपको सच्ची शांति प्रदान करता है।

यह समझना आवश्यक है कि संदेह तब तक आपका साथी है जब तक वह आपको ज्ञान की ओर अग्रसरित करता है, न कि आपको भ्रम के जाल में फंसाता है। जब आप इस संतुलन को समझ जाते हैं, तो आप देखते हैं कि आपकी आस्था और संदेह दोनों मिलकर आपको एक ऐसी स्थिति में ले जाते हैं जहाँ आपके भीतर का प्रकाश, आपकी आत्मा की ज्योति, कभी मंद नहीं पड़ती। यही वह द्वंद्व है, जिसे जब आप पार कर लेते हैं, तो आप पाते हैं कि बाहरी लड़ाइयाँ और झगड़े आपके जीवन में कोई स्थान नहीं रखते।

17. प्रकृति का संदेश – हरित प्रेम का अनुभव

प्रकृति – वह अद्भुत चक्र जिसमें जीवन का हर रंग, हर स्वरूप समाहित है – भी हमें एक गहरा संदेश देती है। जब आप एक शांत नदी, एक विशाल वन या एक खुला आकाश देखते हैं, तो आपको उस अनंत प्रेम का अनुभव होता है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। प्रकृति में किसी भी प्रकार का संघर्ष या द्वंद्व नहीं होता, बल्कि वहाँ केवल सामंजस्य, संतुलन और प्रेम का ही संदेश होता है।

सोचिए, जब आप एक झरने के पास बैठते हैं, तो आप सुनते हैं उसके शांत प्रवाह को, उसके मधुर संगीत को – यह सब आपको याद दिलाता है कि जीवन में असली शक्ति बाहरी शोर में नहीं, बल्कि उस सुकून में निहित है जो प्रकृति हमें प्रदान करती है। यही वह अनुभव है, जिसे आप तभी प्राप्त कर सकते हैं जब आप अपने अंदर की उस शांति और प्रेम को पहचानते हैं, जो किसी भी बाहरी विवाद या लड़ाई से परे है।

प्रकृति का यह संदेश हमें बताता है कि जो लोग वास्तव में पढ़ते हैं, वे कभी भी बाहरी झगड़ों में उलझ नहीं जाते। वे जानते हैं कि जीवन का असली सौंदर्य उस शांति में है, जो प्रकृति में स्पष्ट रूप से प्रकट होता है, और यह शांति आपके अंदर भी मौजूद है। यही कारण है कि जो लोग नियमित ध्यान, प्रकृति से जुड़ाव और आंतरिक साधना में लीन होते हैं, वे कभी भी बाहरी मतभेदों में उलझ नहीं जाते, क्योंकि उनका दिल उस अनंत प्रेम से भर जाता है जो सम्पूर्ण जगत में फैला हुआ है।

18. समग्रता में एकता – आत्मा की सार्वभौमिकता

हम सभी में वह अनंत ऊर्जा और चेतना विद्यमान है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। चाहे आप किसी भी धर्म, किसी भी पंथ के अनुयायी हों – अंतर्मन की उस गहराई में कोई भेदभाव नहीं होता। यहाँ केवल एकता है – एक ऐसा बंधन, जो सभी प्राणियों को एक दूसरे से जोड़ता है।

जब आप इस एकता को समझते हैं, तो आपको यह अहसास होता है कि बाहरी मतभेद, सामाजिक विभाजन, और धार्मिक कट्टरता केवल भ्रम हैं। असली सत्य वही है – वह अनंत प्रेम, वह शांति, और वह दया जो हर इंसान के अंदर मौजूद है। यह सत्य आपको तब प्रकट होता है जब आप अपने अंदर की आवाज़ सुनते हैं, जब आप अपने भीतर की उस दिव्यता को पहचानते हैं जो किसी भी बाहरी विरोधाभास से ऊपर उठकर, एक सार्वभौमिक चेतना में विलीन हो जाती है।

यही वह एकता है, जो ओशो की शिक्षाओं में हमेशा प्रमुख रही है। उन्होंने हमें यह बताया कि जो लोग सच में ग्रंथों को समझते हैं, वे कभी भी बाहरी लड़ाइयों में उलझते नहीं हैं, क्योंकि उनकी समझ में केवल एकता है – वह एकता जो उनके दिल को प्रेम से भर देती है और उन्हें हर परिस्थिति में स्थिरता प्रदान करती है।

19. अनुभव की महत्ता – शब्दों से परे की सच्चाई

शब्द केवल संकेत हैं, प्रतीक हैं, जो किसी गहन अनुभव का संकेत देते हैं। जब आप गहरी साधना और ध्यान के माध्यम से अपने अंदर उतरते हैं, तो आप पाते हैं कि शब्दों से परे एक ऐसी सच्चाई होती है, जो केवल अनुभव के माध्यम से ही समझी जा सकती है। यह सच्चाई वह है – जो आपके जीवन के हर पहलू में प्रकट होती है, वह उस असीम प्रेम और शांति का अनुभव है जो आपके अंदर निहित है।

यह अनुभव आपको तब प्राप्त होता है जब आप अपने मन की हलचल को शांत करते हैं, अपने अंदर की गूंज को सुनते हैं। जब आप यह समझ लेते हैं कि आपकी आत्मा की गहराई में छुपा हुआ ज्ञान सभी बाहरी मतभेदों से ऊपर है, तो आप पाते हैं कि बाहरी संघर्ष और लड़ाइयाँ केवल भ्रम हैं। वे केवल उस अज्ञान का प्रतीक हैं, जिसे आप अपने अंदर से दूर कर सकते हैं।

इस अनुभव में, शब्द अपना महत्व खो देते हैं, और आपके लिए केवल एक मौन का संदेश बचता है – वह संदेश कि असली ज्ञान, असली शांति, और असली प्रेम आपके भीतर ही विद्यमान है। यही वह अनुभव है जो आपको उन ग्रंथों के सच्चे अर्थ तक ले जाता है, और यही वह अनुभव है जो आपको हर बाहरी लड़ाई से ऊपर उठाकर, आपके अंदर की दिव्यता को प्रकट करता है।

20. आंतरिक शांति – अंतिम लक्ष्य और सार

प्रिय मित्रों, जीवन का असली उद्देश्य बाहरी विवाद, बाहरी लड़ाइयाँ नहीं, बल्कि आंतरिक शांति है। जब आप अपने अंदर की उस अनंत शांति को प्राप्त कर लेते हैं, तो आप देखते हैं कि सभी बाहरी मतभेद, सभी सामाजिक संघर्ष अपने आप फीके पड़ जाते हैं।

यह शांति केवल बाहरी साधनों से नहीं, बल्कि आपके अंदर की गहराई से उत्पन्न होती है। यह शांति तब आती है जब आप अपने मन को शांत करते हैं, अपने दिल को खोलते हैं और उस दिव्यता को पहचानते हैं, जो हमेशा से आपके भीतर थी। आप पाते हैं कि आपका असली अस्तित्व उन बाहरी मतभेदों में नहीं, बल्कि उस शांति, प्रेम और आनंद में है जो आपके अंदर विद्यमान है।

यह शांति आपको बताती है कि असली लड़ाई बाहरी नहीं होती, बल्कि यह आपके भीतर की उस द्वंद्व से होती है – उस द्वंद्व से, जिसमें आपको अपने अहंकार, संदेह और भय को त्यागना होता है। जब आप इस लड़ाई को जीत लेते हैं, तो आप पाते हैं कि आपका जीवन एक नए अर्थ, एक नए उजाले में परिवर्तित हो जाता है।

यही वह संदेश है जो ओशो हमें देते हैं – कि जो वास्तव में पढ़ते हैं, वे कभी भी लड़ाई नहीं करते, क्योंकि उनकी लड़ाई उनके भीतर होती है, और जब वह लड़ाई शांत हो जाती है, तो उनका जीवन स्वयं में एक सुंदर प्रवाह बन जाता है, एक ऐसा प्रवाह, जो आपको हर क्षण, हर पल जीवन के गहरे अर्थ से जोड़ता है।

21. निष्कर्ष – स्वयं में विसर्जन का संदेश

जब आप इस प्रवचन के अंत तक पहुँचते हैं, तो मैं आपसे एक बात कहना चाहता हूँ – कि बाहरी शब्दों, बाहरी ग्रंथों और परंपराओं से परे जाकर, अपने अंदर की सच्चाई को जानने का प्रयास करें। उन ग्रंथों में जो संदेश छिपे हुए हैं, वे केवल बाहरी आदेश नहीं हैं, बल्कि वे आपको उस दिव्यता की ओर इंगित करते हैं, जो आपके भीतर सदैव से निहित थी।

सोचिए, अगर आप एक पल के लिए भी अपने अंदर झाँकें, तो क्या आपको वह आवाज़ सुनाई नहीं देगी, जो आपको कह रही है – "प्रेम करो, दया करो, सहानुभूति दिखाओ, और स्वयं के अंदर की शांति को पहचानो"? यही वह संदेश है जो आपको अपने भीतर से मिलेगा, और यही वह संदेश है जो आपको बाहरी लड़ाइयों से ऊपर उठाकर, एक पूर्ण, संतुलित और आनंदमय जीवन की ओर ले जाएगा।

अंत में, मैं यही कहना चाहूँगा कि असली आध्यात्मिकता, असली ज्ञान और असली शांति बाहरी विवादों में नहीं, बल्कि आपके अंदर के उस असीम प्रेम में है, जिसे आपने अभी तक खोजा नहीं। ओशो के शब्द हमें यही सिखाते हैं कि जो लोग सच में ग्रंथों का अध्ययन करते हैं, वे कभी भी बाहरी लड़ाइयों में उलझते नहीं, क्योंकि उनके मन में वह शांति, वह ज्ञान और वह प्रेम विद्यमान होता है जो उन्हें जीवन के हर संघर्ष से ऊपर उठाता है।

इसलिए, अपने आप से यह प्रश्न पूछें – क्या मैं वास्तव में अपने अंदर की उस अनंत शांति, उस दिव्यता से जुड़ा हुआ हूँ? क्या मैं अपने अंदर के ज्ञान की सुन रहा हूँ, या मैं केवल बाहरी शब्दों, बाहरी मतभेदों में उलझा हुआ हूँ? जब आप इस सवाल का उत्तर दिल से देते हैं, तो आप पाते हैं कि असली परिवर्तन वही है – वह परिवर्तन जो आपके भीतर से शुरू होता है, और जो आपको बाहरी दुनिया के संघर्षों से परे, एक सच्ची, स्थायी और अनंत शांति तक ले जाता है।

22. आपके भीतर की यात्रा – एक आह्वान

प्रिय मित्रों, मैं आज आपको यह निमंत्रण देता हूँ कि आप अपने जीवन में एक नई दिशा अपनाएं। बाहरी शब्दों, बाहरी मतभेदों से परे जाकर, अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा, उस दिव्यता को पहचानें जो आपके अस्तित्व का मूल है। हर दिन कुछ समय निकालें – चाहे वह ध्यान में बिताया हुआ एक क्षण हो या मौन में डूबा हुआ समय – अपने अंदर की उस गहराई से जुड़ने के लिए, जहाँ से आपको सच्चा ज्ञान और शांति प्राप्त होती है।

अपने आप से यह कहें – "मैं नहीं हूँ केवल मेरा शरीर, मेरा मन या मेरे विचार; मैं हूँ वह अनंत ऊर्जा, वह शांति जो मेरे भीतर सदैव से मौजूद है।" इस सत्य को अपनाते ही, आप पाते हैं कि हर संघर्ष, हर विवाद केवल उस भ्रम का हिस्सा है जिसे आप अपने भीतर से दूर कर सकते हैं।

इस यात्रा में, आप पाएंगे कि जो लोग वास्तव में अपने अंदर की गहराई में उतरते हैं, वे कभी भी बाहरी लड़ाइयों में उलझते नहीं। उनके जीवन में प्रेम, दया, सहानुभूति और शांति का अद्भुत संगम होता है, जो उन्हें हर परिस्थिति में स्थिरता प्रदान करता है। यही वह सच्चा संदेश है, जो ओशो के शब्दों में प्रकट होता है, और यही वह संदेश है जो आपके जीवन को भी परिवर्तित कर सकता है।

तो, उठिए, जागिए और उस अनंत प्रेम की खोज में निकल पड़ीए जो आपके भीतर छिपा है। बाहरी विवादों से ऊपर उठकर, उस शांति को अपनाइए, जो आपके जीवन को एक नई दिशा, एक नए उजाले और अनंत आनंद से भर देगी।

23. समापन विचार – आत्मा की आवाज़

जब आप इस प्रवचन के अंतिम शब्दों को पढ़ते हैं, तो मैं आपसे यही कहना चाहता हूँ – कि आपके अंदर एक अनंत संसार है, एक ऐसा संसार जहाँ केवल प्रेम, शांति और सौंदर्य का वास है। बाहरी मतभेद, सामाजिक संघर्ष, और धर्म के नाम पर चलाए जाने वाले लड़ाइयाँ केवल उस भ्रम का हिस्सा हैं, जिसे आप अपने भीतर की सच्चाई से दूर कर देते हैं।

आपका असली स्वरूप वही है – वह दिव्यता, वह अनंत प्रेम, और वह शांति जो आपको हर परिस्थिति में स्थिरता प्रदान करती है। जब आप इस सच्चाई को अपनाते हैं, तो आप पाते हैं कि कोई भी बाहरी विवाद आपकी आत्मा के प्रकाश को मंद नहीं कर सकता। आप स्वयं में इतना मजबूत हो जाते हैं कि बाहरी मतभेद, कट्टरता और द्वंद्व अपने आप फीके पड़ जाते हैं।

इसलिए, मैं आपसे आग्रह करता हूँ – पढ़ें, ध्यान करें, और अपने अंदर की उस दिव्यता की खोज करें, जो आपके जीवन का असली सार है। बाहरी विवादों के शोर में खो जाने के बजाय, अपने अंदर की शांत नदी को पहचानें, जो आपको सदा चलती हुई, निरंतर प्रवाहित शांति का अनुभव कराती है।

याद रखें, धर्म के ग्रंथों को पढ़ना केवल शब्दों का ज्ञान नहीं है, बल्कि यह उस अनंत चेतना का अनुभव है, जो आपको अपने वास्तविक स्व से जोड़ता है। और यही वह ज्ञान है, जो आपको जीवन के हर संघर्ष से ऊपर उठाकर, एक पूर्ण, सच्चा और आनंदमय जीवन की ओर ले जाता है।

24. आह्वान – एक नई शुरुआत की ओर

इस प्रवचन के समापन पर, मैं आप सभी से एक अंतिम आह्वान करना चाहता हूँ – कि आप अपने जीवन में एक नई शुरुआत करें। उन बाहरी मतभेदों को त्याग दें, जो आपके मन में अंधकार भरते हैं, और अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा को पहचानें, जो आपके जीवन का असली प्रकाश है।

अपनी साधना में, अपने ध्यान में, और अपने आत्मिक संवाद में उस सच्चे ज्ञान को खोजें, जो आपको बताता है कि असली लड़ाई तो आपके भीतर होती है – वह लड़ाई जिसे जीतकर ही आप सच्चे शांति, प्रेम और आनंद का अनुभव कर सकते हैं।

आज, इस क्षण में, जब आप इन शब्दों को पढ़ रहे हैं, तो एक नई शुरुआत का संकल्प लें – कि आप अपने अंदर की आवाज़ को सुनेंगे, अपने मन के द्वंद्व को शांत करेंगे, और उस दिव्यता को अपनाएंगे, जो आपको सम्पूर्ण ब्रह्मांड से जोड़ती है।

इस नई शुरुआत के साथ, आप पाएंगे कि आपके जीवन में बाहरी झगड़ों, विवादों और मतभेदों का कोई स्थान नहीं रहेगा, क्योंकि आपके अंदर का प्रेम, शांति और ज्ञान उन सभी से ऊपर उठकर, आपको एक सच्चे, समृद्ध और आनंदमय जीवन का अनुभव कराएगा।

25. अंतिम शब्द – सच्चे ज्ञान का प्रकाश

अंत में, प्रिय मित्रों, मैं आपसे यही कहना चाहूँगा – कि बाहरी लड़ाइयाँ और विवाद केवल एक भ्रम हैं, जो हमारे अंदर की असली शक्ति को छिपाते हैं। असली शक्ति वही है, जो हमारे भीतर की गहराईयों में निहित है – वह अनंत प्रेम, वह शांति, वह ज्ञान, जिसे आप तभी प्राप्त कर सकते हैं जब आप अपने अंदर की उस दिव्यता को पहचानते हैं, जो आपके अस्तित्व का मूल है।

ओशो के शब्द हमें यह याद दिलाते हैं कि जो लोग सच में ग्रंथों को पढ़ते हैं, वे कभी भी लड़ाई में उलझते नहीं, क्योंकि उनका ध्यान हमेशा उस गहरे ज्ञान, उस मौन, और उस अनंत प्रेम पर रहता है, जो उन्हें वास्तविक शांति की ओर ले जाता है।

तो आज से ही, अपने आप से यह प्रण लें – कि आप बाहरी मतभेदों, कट्टरता और झगड़ों से ऊपर उठकर, अपने अंदर की शांति, अपने अंदर की दिव्यता को अपनाएंगे। आप इस सत्य को न केवल शब्दों में, बल्कि अपने जीवन के हर पल में जीएंगे, क्योंकि यही वह सच्चा ज्ञान है, जो आपको जीवन के हर संघर्ष से मुक्त कर सकता है।

26. समग्र संदेश – प्रेम में विलीनता

यह प्रवचन आपको एक ऐसी दिशा में ले जाने का प्रयास है, जहाँ आप समझें कि असली आध्यात्मिकता वह है जो आपके अंदर से आती है, न कि बाहरी संघर्षों से। जब आप अपने भीतर की गहराईयों में उतरते हैं, तो आपको वह अनंत प्रेम, वह असीम शांति, और वह दया मिलती है जो सभी धर्मों, सभी मतभेदों से परे है।

आपका जीवन तब एक ऐसी अनंत यात्रा बन जाता है, जहाँ हर अनुभव, हर पल आपको उस दिव्यता से जोड़ता है, जो आपके अस्तित्व का असली सार है। यह यात्रा केवल शब्दों, ग्रंथों या बाहरी परंपराओं में नहीं, बल्कि आपके अपने अंदर की खोज में निहित है।

जब आप इस प्रेम में विलीन हो जाते हैं, तो आप पाते हैं कि दुनिया की हर चीज़ – चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक – एक ही ऊर्जा से उत्पन्न हुई है। और यही वह ऊर्जा है, जो आपको बाहरी लड़ाइयों से ऊपर उठाकर, एक सच्चे, पूर्ण और आनंदमय जीवन की ओर ले जाती है।

27. उपसंहार – आत्मा का आह्वान

मैं आपको यह संदेश देना चाहता हूँ कि आप अपने जीवन के हर क्षण को ऐसे जियें, जैसे कि वह एक अनंत साधना हो, एक अनंत प्रेम की खोज हो। जब आप अपने अंदर की उस दिव्यता को अपनाते हैं, तो आप पाते हैं कि बाहरी मतभेद, बाहरी विवाद – ये सभी केवल आपके मन के भ्रम हैं।

आपका असली अस्तित्व वह है, जो आपके भीतर निहित है – वह अनंत प्रकाश, वह शांति और वह प्रेम, जो किसी भी बाहरी झगड़े से परे है। यही वह सत्य है, जिसे समझने के बाद, आप कभी भी बाहरी लड़ाइयों में उलझेंगे नहीं, क्योंकि आपके मन में पहले से ही वह सच्चा ज्ञान प्रबल हो चुका होगा।

तो, मेरे प्रिय मित्रों, इस प्रवचन के अंत में मैं आपसे यही कहूँगा – उठिए, जागिए और अपने भीतर की उस दिव्यता को पहचानिए, क्योंकि वहीं से ही आपके जीवन की असली शक्ति, असली शांति और असली आनंद का स्रोत निकलता है। आप स्वयं उस प्रकाश को महसूस करें, उस मौन को सुनें, और उस अनंत प्रेम में विलीन हो जाएँ, जो आपके अस्तित्व का मूल है।

28. निष्कर्ष एवं आशीर्वाद

इस प्रवचन के माध्यम से मैंने आपसे केवल यह कहना चाहा है कि असली आध्यात्मिकता बाहरी लड़ाइयों, कट्टर मतभेदों या धार्मिक झगड़ों में नहीं, बल्कि आपके अंदर की गहराई, आपके अपने अनुभव में छिपी हुई है। जो लोग सच में पढ़ते हैं, वे जानते हैं कि ग्रंथों के पन्नों में छिपा ज्ञान केवल बाहरी नियमों का संग्रह नहीं, बल्कि एक जीवंत, प्रेरणादायक सत्य है, जो आपको उस अनंत प्रेम, दया और शांति से जोड़ता है जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।

मैं आप सभी को आशीर्वाद देता हूँ कि आप इस ज्ञान को अपने दिल में जगह दें, अपने अंदर की यात्रा पर ध्यान केंद्रित करें, और उस सच्चे प्रेम एवं शांति को अपनाएं जो आपको बाहरी विवादों से ऊपर उठाकर, आपके जीवन को एक नई दिशा, एक नए उजाले में बदल दे।

आइए, हम सभी मिलकर इस संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करें – प्रेम में विलीनता, दया में समर्पण, और आत्मा की उस अनंत गहराई में प्रवेश करें, जहाँ हर संघर्ष, हर द्वंद्व केवल एक भ्रम है, और असली सत्य केवल प्रेम, शांति और एकता है।

प्रिय मित्रों,

इस प्रवचन के हर शब्द में, हर पंक्ति में, एक ऐसा संदेश छिपा है, जो आपको बताता है कि असली लड़ाई बाहरी नहीं, बल्कि आपके अपने भीतर की लड़ाई है – वह लड़ाई, जिसमें आपको अपने अहंकार, संदेह और भय को त्यागकर, अपने अंदर के अनंत प्रेम और शांति को जगाना है। जब आप इस लड़ाई को जीत लेते हैं, तो आप पाते हैं कि आपका जीवन बाहरी झगड़ों, मतभेदों और विवादों से ऊपर उठकर, एक सच्चे, संतुलित और आनंदमय अस्तित्व में परिवर्तित हो जाता है।

यही वह सच्चाई है, जो हमें यह समझने में मदद करती है कि हमारे धार्मिक ग्रंथों का असली उद्देश्य केवल बाहरी आदेश देना नहीं, बल्कि हमें हमारे अंदर की उस दिव्यता से परिचित कराना है, जो हमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड से जोड़ती है। और यही कारण है कि मैंने ओशो के शब्दों को उद्धृत किया – क्योंकि उनके शब्द हमें याद दिलाते हैं कि जो वास्तव में इस ज्ञान को आत्मसात करते हैं, वे कभी भी बाहरी लड़ाइयों में उलझते नहीं, क्योंकि उनके लिए असली संघर्ष तो अपने अंदर का संघर्ष है।

तो, आज से ही, आप यह संकल्प लें कि आप बाहरी मतभेदों को पीछे छोड़ देंगे, और अपने अंदर की उस अनंत शक्ति, उस प्रेम और उस शांति को पहचानेंगे, जो आपके असली अस्तित्व का मूल है। यही वह पथ है, जो आपको एक सच्चे, मुक्त और आनंदमय जीवन की ओर ले जाएगा।

आप सभी को मेरा हार्दिक आशीर्वाद, प्रेम और शांति।🙏

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