जीवन में कुछ भी समाप्त नहीं होता – हर अंत एक नई शुरुआत है- ओशो प्रवचन
प्रेम से कहो, जीवन में कुछ भी समाप्त नहीं होता!
समाप्ति केवल एक मानसिक धारणा है, एक भ्रम है। अस्तित्व में कुछ भी वास्तव में समाप्त नहीं होता—केवल रूप बदलता है। लेकिन हमारा मन—जो अतीत के अनुभवों, दुखों और अपेक्षाओं से भरा रहता है—हमसे यह सत्य छुपा लेता है। हम सोचते हैं कि जब कोई रिश्ता टूट जाता है, जब कोई प्रियजन हमें छोड़कर चला जाता है, जब कोई अवसर हाथ से फिसल जाता है, तो सब कुछ समाप्त हो गया।
लेकिन जीवन कभी भी किसी भी मोड़ पर समाप्त नहीं होता, वह हमेशा आगे बढ़ता है। जो इसे समझ लेता है, वह मुक्त हो जाता है। जो इसे नहीं समझ पाता, वह दुख में पड़ा रहता है।
समाप्ति और आरंभ का खेल
रात को देखो, कितनी गहरी होती है। अंधकार चारों ओर फैल जाता है, और ऐसा लगता है कि अब कभी भी सूरज नहीं निकलेगा। लेकिन क्या सूरज सच में अस्त होता है? नहीं, वह कहीं और चमक रहा होता है। जब एक पत्ता सूखकर गिर जाता है, तो वह मिट्टी बन जाता है और उसी मिट्टी से नया बीज अंकुरित होता है। जीवन भी ऐसा ही है—निरंतर प्रवाहमान, सतत परिवर्तनशील।
समाप्ति और आरंभ केवल शब्द हैं। अस्तित्व में कुछ भी समाप्त नहीं होता—केवल रूप बदलता है।
भय क्यों?
हम मृत्यु से क्यों डरते हैं? क्योंकि हमें यह विश्वास दिलाया गया है कि मृत्यु अंत है। लेकिन जो इसे समझ जाता है, वह जानता है कि मृत्यु केवल एक परिवर्तन है। यह एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने जैसा है।
रामकृष्ण परमहंस का दृष्टांत
रामकृष्ण परमहंस के पास एक व्यक्ति आया और बोला,"गुरुदेव, मेरा सब कुछ खत्म हो गया! मेरा व्यापार नष्ट हो गया, मेरे अपने मुझे छोड़ गए, मैं अब क्या करूं?"
रामकृष्ण मुस्कराए और बोले, "यह सोचो कि अब तुम्हारे जीवन में नया क्या जन्म ले सकता है? पुराना खत्म हुआ, अच्छा हुआ! अब नया आने दो। पानी को ठहरा रहने दो, तो वह सड़ जाता है। बहने दो, तो वह निर्मल रहता है।"
नई शुरुआत की संभावना
हर रात के बाद सुबह होती है, हर पतझड़ के बाद वसंत आता है। जो यह समझ जाता है कि जीवन निरंतर बदलता रहता है, वही मुक्त हो जाता है।
बुद्ध और उनके शिष्य की कहानी
गौतम बुद्ध के पास एक शिष्य आया, जो बहुत दुखी था। उसने कहा, "भगवान! मेरा परिवार बिखर गया, मेरी सारी संपत्ति चली गई, अब मेरे जीवन का क्या अर्थ है?"
बुद्ध मुस्कुराए और बोले, "क्या तुमने नदी को देखा है?"
शिष्य ने कहा, "हाँ, भगवन!"
बुद्ध ने कहा, "नदी की एक ही धारा होती है, लेकिन वह कभी एक जैसी नहीं रहती। हर क्षण नया पानी उसमें प्रवाहित होता है। क्या तुमने कभी नदी को रुकते हुए देखा?"
शिष्य ने कहा, "नहीं, भगवन! वह हमेशा बहती रहती है।"
बुद्ध बोले, "तो फिर तुम क्यों रुके हुए हो? बहो, प्रवाहित हो जाओ! जो समाप्त हुआ है, उसे जाने दो, जो नया आ रहा है, उसका स्वागत करो।"
स्वीकृति और समर्पण
जो व्यक्ति जीवन के इस नियम को स्वीकार कर लेता है, उसके लिए कोई भय नहीं बचता। फिर कोई भी परिस्थिति आए, वह उसे एक अवसर की तरह देखता है।
ध्यान: हर अंत में छुपी शुरुआत को देखो
यदि तुम जीवन में इस सत्य को देख सको कि कुछ भी समाप्त नहीं होता, तो तुम मुक्त हो जाओगे। फिर कोई भी परिस्थिति तुम्हें हिला नहीं सकती।
एक छोटी ध्यान विधि:
1. शांत बैठो।
2. आँखें बंद करो।
3. अपने विचारों को आते-जाते देखो।
4. देखो कि एक विचार आता है और चला जाता है। फिर दूसरा आता है और चला जाता है।
5. समझो कि जैसे विचार बदलते रहते हैं, वैसे ही जीवन की हर परिस्थिति बदलती रहती है।
यह विधि तुम्हें गहराई से यह अनुभव कराएगी कि जीवन स्थायी नहीं है—यह निरंतर प्रवाहित हो रहा है।
समाप्ति नहीं, एक उत्सव!
जब कुछ समाप्त होता है, तो दुखी मत होओ—जश्न मनाओ! क्योंकि कुछ नया तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे रहा है।
गीता में श्रीकृष्ण का संदेश
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:
"न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।"
(आत्मा कभी जन्म नहीं लेती, न कभी मरती है, न कभी इसका अस्तित्व समाप्त होता है।)
अगर आत्मा अनंत है, तो फिर क्या समाप्त हो सकता है? केवल शरीर, केवल घटनाएँ, केवल रूप बदलता है।
वास्तविक जीवन में इस सत्य को कैसे उतारें?
1. जब भी कोई कठिन परिस्थिति आए, खुद से पूछो – क्या यह स्थायी है?
2. हर दिन स्वयं को याद दिलाओ कि परिवर्तन ही जीवन का नियम है।
3. नकारात्मकता को पकड़कर मत बैठो – बहने दो।
4. हर दिन नया है, हर क्षण नया है – इसे अनुभव करो।
5. ध्यान का अभ्यास करो – जिससे तुम भीतर से शांति को महसूस कर सको।
निष्कर्ष: जीवन का रहस्य समझो!
बुद्ध ने कहा था,"सब कुछ परिवर्तनशील है। यही जीवन का सबसे बड़ा नियम है। जो इसे समझ गया, वह मुक्त हो गया।"
इसलिए जब कुछ समाप्त होता दिखे, तो दुखी मत होओ—जश्न मनाओ! क्योंकि कुछ नया तुम्हारा इंतजार कर रहा है।
तो आज से रोओ मत, उदास मत होओ। जब कुछ समाप्त हो, तब प्रसन्नता से स्वागत करो—क्योंकि कुछ नया तुम्हारे जीवन में प्रवेश कर रहा है!
बस इतना ही! अब बहुत हुआ प्रवचन, अब जीवन में उतारो! जियो, प्रेम करो, बहो—क्योंकि जीवन वही है जो बदलता रहता है।
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