नानक की विधि: परमात्मा की मर्जी - ओशो
प्रिय आत्मन,
नानक एक अद्भुत व्यक्तित्व हैं। उनका जीवन और उनका संदेश सरल, लेकिन गहराई से भरा हुआ है। वह कहते हैं, "एक ही विधि है, और वह है परमात्मा की मर्जी।" यह साधारण शब्दों में एक अद्वितीय सत्य है। नानक के इस कथन में वह सबकुछ है, जो जीवन को समझने और जीने के लिए चाहिए।
जब नानक कहते हैं, "परमात्मा की मर्जी," तो इसका अर्थ है कि हम जीवन को वैसा ही स्वीकार करें, जैसा यह है। यह जीवन का गहनतम दर्शन है। यह न केवल अहंकार का विसर्जन है, बल्कि यह अहंकार के साथ होने वाले हर संघर्ष, हर द्वंद्व, और हर पीड़ा का अंत है।
परमात्मा की मर्जी: अहंकार का अंत
हमारे जीवन में हर समस्या की जड़ अहंकार है। जब तक हम यह सोचते रहते हैं कि हम सबकुछ अपने अनुसार करेंगे, हम संघर्ष में फंसे रहते हैं। यह अहंकार है जो हमें वास्तविकता से अलग करता है। नानक का यह संदेश है कि परमात्मा की मर्जी को स्वीकार करना, अपने अहंकार को छोड़ने के समान है।
समर्पण का अर्थ है, "मैं कुछ नहीं हूं। जो कुछ है, वह परमात्मा है।" नानक का यह संदेश हमें जीवन में हर स्थिति को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है।
विरोध से स्वीकृति तक का सफर
हमारे भीतर जो पीड़ा है, वह इसलिए है क्योंकि हम हर चीज का विरोध करते हैं। हमें जो मिलता है, हम उससे असंतुष्ट रहते हैं। हम इसे बदलने की कोशिश करते हैं। लेकिन नानक कहते हैं कि यह सब व्यर्थ है। जीवन को जैसा है, वैसा ही स्वीकार करो।
यह विरोध से स्वीकृति तक का सफर है। जब तुम यह समझ लेते हो कि जो कुछ हो रहा है, वह परमात्मा की मर्जी से हो रहा है, तब तुम हर परिस्थिति को गहराई से स्वीकार कर लेते हो।
नानक की इस समझ का एक बड़ा अर्थ यह है कि जब तुम स्वीकार करते हो, तो तुम अपने भीतर शांति का अनुभव करते हो। यह शांति न केवल तुम्हारे लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है, जो तुम्हारे संपर्क में आता है।
परमात्मा की मर्जी का विज्ञान
आधुनिक मनुष्य अक्सर इस बात को समझने में कठिनाई महसूस करता है। वह तर्क करता है, "परमात्मा की मर्जी का अर्थ क्या है? क्या इसका मतलब यह है कि मैं कुछ भी न करूं?"
यह नानक का संदेश नहीं है। नानक यह नहीं कह रहे कि तुम निष्क्रिय हो जाओ। वह कह रहे हैं कि तुम्हारी सक्रियता अहंकार से नहीं, समर्पण से हो। यह एक बड़ा अंतर है।
जब तुम्हारी सक्रियता अहंकार से होती है, तो वह तुम्हें थका देती है। वह तुम्हें उलझनों में डाल देती है। लेकिन जब तुम परमात्मा की मर्जी को स्वीकार करते हुए सक्रिय होते हो, तो वह तुम्हारे लिए उत्सव बन जाती है।
परमात्मा की मर्जी और कुदरत का खेल
नानक ने कुदरत को बड़े गहरे ढंग से देखा है। वह कहते हैं कि यह सारा संसार परमात्मा की लीला है। हर पेड़, हर पक्षी, हर नदी, हर पहाड़—सब उसी की मर्जी से हो रहे हैं।
जब तुम इस समझ तक पहुंचते हो, तो तुम्हारा जीवन बदल जाता है। अब तुम्हें किसी चीज़ से डर नहीं लगता। अब तुम्हें किसी चीज़ से घृणा नहीं होती। अब तुम्हारे जीवन में केवल प्रेम और आनंद रह जाता है।
नानक का समर्पण: एक उदाहरण
नानक के जीवन में एक प्रसंग है। एक बार एक अमीर व्यक्ति ने नानक को आमंत्रित किया। उसने नानक के लिए भोज का आयोजन किया। उसी समय एक गरीब किसान भी नानक को अपने घर ले जाना चाहता था।
नानक ने गरीब किसान का निमंत्रण स्वीकार किया। लोगों ने पूछा, "आपने अमीर व्यक्ति का निमंत्रण क्यों ठुकरा दिया?" नानक मुस्कुराए और बोले, "यह मेरी मर्जी नहीं थी। यह परमात्मा की मर्जी थी। मैं तो केवल उसकी मर्जी का साधन हूं।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि नानक के लिए कोई बड़ा या छोटा नहीं था। उनके लिए हर व्यक्ति, हर परिस्थिति, एक जैसा था।
समर्पण और प्रेम का संबंध
जब तुम परमात्मा की मर्जी को स्वीकार करते हो, तब तुम प्रेम के मार्ग पर चल पड़ते हो। समर्पण और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब तुम अपने जीवन में जो कुछ है, उसे स्वीकार करते हो, तो तुम्हारे भीतर प्रेम का उदय होता है।
यह प्रेम केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं होता। यह प्रेम हर चीज के लिए होता है। यह प्रेम तुम्हें प्रकृति से जोड़ता है। यह प्रेम तुम्हें उस अनंत से जोड़ता है, जिसे हम परमात्मा कहते हैं।
नानक का संदेश: आज के लिए प्रासंगिक
आज का मनुष्य इस सत्य को भूल गया है। वह अपनी मर्जी से सबकुछ बदलने की कोशिश करता है। वह अपनी सीमित बुद्धि से इस असीम ब्रह्मांड को समझने की कोशिश करता है। लेकिन परिणाम क्या है? केवल उलझन, संघर्ष और असंतोष।
नानक का यह संदेश, "परमात्मा की मर्जी," आज भी उतना ही प्रासंगिक है। यह संदेश हमें याद दिलाता है कि जीवन को वैसा ही स्वीकार करें, जैसा यह है।
परमात्मा की मर्जी को कैसे अपनाएं?
1. ध्यान:
ध्यान से तुम अपने भीतर शांति और संतुलन ला सकते हो। जब तुम ध्यान में होते हो, तब तुम परमात्मा की मर्जी को समझने के लिए तैयार होते हो।
2. स्वीकृति:
जो कुछ हो रहा है, उसे स्वीकार करो। इसे बदलने की कोशिश मत करो।
3. धैर्य:
सबकुछ अपने समय पर होता है। धैर्य रखो।
4. प्रेम:
जीवन को प्रेम से देखो। हर परिस्थिति को प्रेम के साथ स्वीकार करो।
निष्कर्ष
नानक का संदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन एक उत्सव है। यह परमात्मा की लीला है। इसे वैसा ही स्वीकार करो, जैसा यह है। अपनी मर्जी को छोड़ो और उसकी मर्जी को अपनाओ। यही समर्पण है। यही शांति है। यही आनंद है।
प्रिय आत्मन, नानक का यह संदेश केवल शब्द नहीं है। यह एक दिशा है। यह जीवन जीने की विधि है। इसे अपने जीवन में अपनाओ और देखो कि तुम्हारा जीवन कैसे बदलता है।
ध्यान से सुनो, जीवन को समझो और उसकी मर्जी को अपनाओ। यही नानक का मार्ग है। यही जीवन का सत्य है।
कोई टिप्पणी नहीं: