ओशो के विचार और उनकी शिक्षा हमें गहरी आध्यात्मिकता, आत्मचिंतन और जीवन के मूलभूत सत्य की ओर ले जाती है। उनका यह कथन "पढ़ो आकाश को क्योंकि वही शास्त्र है। सुनो शून्य को क्योंकि वही मंत्र है। जियो मृत्यु को क्योंकि वही अमृत है।" अद्वैत और ध्यान की अवधारणा को स्पष्ट करता है। यह कथन तीन प्रमुख तत्वों - आकाश, शून्य, और मृत्यु - के माध्यम से मानव जीवन की गहरी समझ प्रदान करता है। इसे समझने के लिए, हम इसे तीन भागों में विभाजित करेंगे और प्रत्येक का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


1. पढ़ो आकाश को क्योंकि वही शास्त्र है

यह वाक्य हमें बाहरी और भीतरी अनंतता को समझने की प्रेरणा देता है। यहाँ "आकाश" केवल भौतिक आकाश का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय चेतना और अनंतता का प्रतीक है। ओशो कहते हैं कि आकाश को पढ़ने का मतलब है इसे आत्मसात करना, इसके असीम और अनंत आयामों को महसूस करना।

आकाश का शास्त्र के रूप में अर्थ

  • आकाश और ब्रह्मांडीय ज्ञान:
    ओशो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि सच्चा ज्ञान किताबों या ग्रंथों में नहीं, बल्कि प्रकृति और ब्रह्मांड में है।

    • आकाश में असीमता का अनुभव होता है।
    • यह हमें यह सिखाता है कि जीवन अनंत है और सीमाओं से परे है।
  • भीतर का आकाश:
    "आकाश" बाहरी दुनिया का प्रतिनिधित्व करने के साथ-साथ हमारे भीतर की चेतना का भी प्रतीक है।

    • भीतरी आकाश वह स्थान है जहाँ हमारी आत्मा निवास करती है।
    • इसे पढ़ने का मतलब है ध्यान के माध्यम से अपनी आत्मा के सत्य को समझना।

शास्त्र का पारंपरिक अर्थ

शास्त्र ज्ञान का स्रोत होते हैं। ओशो कहते हैं कि पारंपरिक शास्त्र हमें बाहरी सत्य के बारे में बताते हैं, लेकिन असली शास्त्र आकाश है।

  • यह हर पल हमें कुछ सिखा रहा है।
  • इसकी विशालता हमें विनम्रता और सहनशीलता का पाठ पढ़ाती है।

आकाश को पढ़ने का तरीका

  • ध्यान:
    ध्यान के माध्यम से हम अपने भीतर के आकाश का अनुभव कर सकते हैं।
  • प्रकृति का अवलोकन:
    हर दिन आकाश को देखना और उसके विस्तार को महसूस करना आत्मज्ञान की ओर पहला कदम हो सकता है।

उदाहरण:

सूर्य का उदय और अस्त, चंद्रमा के चरण, तारे, और बदलते मौसम - ये सब आकाश के शास्त्र का हिस्सा हैं। यदि हम इन्हें ध्यानपूर्वक देखें, तो हमें जीवन के गहरे सत्य समझ में आएंगे, जैसे कि परिवर्तनशीलता, क्षणभंगुरता, और अनंतता।


2. सुनो शून्य को क्योंकि वही मंत्र है

'शून्य' ओशो के लिए खालीपन का प्रतीक नहीं है, बल्कि पूर्णता का स्रोत है। यह मौन और ध्यान का प्रतीक है। ओशो कहते हैं कि शून्यता में सब कुछ समाहित है, और इसे सुनना जीवन के सबसे गहरे रहस्यों को समझने का मार्ग है।

शून्य का अर्थ और महत्व

  • शून्यता की शक्ति:
    शून्य का मतलब खाली होना नहीं है, बल्कि हर चीज़ की संभावना से भरा होना है।

    • शून्यता में ही सृजन की शक्ति छिपी है।
    • जब आप शून्य को सुनते हैं, तो आप ब्रह्मांड के साथ एक हो जाते हैं।
  • मंत्र का अर्थ:
    पारंपरिक रूप से मंत्र वह है जो मन को शांत करता है और चेतना को जागृत करता है। ओशो के अनुसार, असली मंत्र कोई शब्द नहीं, बल्कि शून्य का मौन है।

    • मौन ही असली मंत्र है।
    • जब आप शून्यता को सुनते हैं, तो आप विचारों के शोर से मुक्त हो जाते हैं।

शून्य को सुनने का तरीका

  • मौन में रहना:
    ओशो कहते हैं कि मौन में ही आप शून्य को अनुभव कर सकते हैं।
  • ध्यान करना:
    ध्यान के माध्यम से अपने विचारों को शांत करें और भीतर के शून्य को सुनें।

उदाहरण:

मान लीजिए, आप किसी शांत स्थान पर बैठते हैं और ध्यान करते हैं। धीरे-धीरे आपके विचार शांत होते हैं, और आप शून्य का अनुभव करने लगते हैं। यही अनुभव आपको जीवन के वास्तविक स्वरूप के करीब ले जाता है।


3. जियो मृत्यु को क्योंकि वही अमृत है

यह कथन सबसे गूढ़ है। ओशो मृत्यु को जीवन का अंत नहीं मानते, बल्कि इसे एक नए आरंभ का द्वार मानते हैं। उनके अनुसार, मृत्यु को समझने और स्वीकार करने से ही हम अमरता का अनुभव कर सकते हैं।

मृत्यु को जीने का अर्थ

  • मृत्यु का डर:
    अधिकतर लोग मृत्यु से डरते हैं, क्योंकि वे इसे अंत मानते हैं। ओशो कहते हैं कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है।
  • मृत्यु को स्वीकारना:
    जो व्यक्ति मृत्यु को जीता है, वह जीवन की गहराई को समझ सकता है।
    • मृत्यु को जीने का अर्थ है इसे स्वाभाविक रूप से स्वीकार करना।
    • यह समझना कि मृत्यु एक यात्रा का अंत नहीं, बल्कि दूसरी यात्रा की शुरुआत है।

मृत्यु और अमृत

  • अमृत का अर्थ:
    अमृत का मतलब अमरता है। ओशो कहते हैं कि मृत्यु को समझने से हम अमरता का अनुभव कर सकते हैं।
    • जब आप मृत्यु को स्वीकार करते हैं, तो आप जीवन के हर क्षण को पूरी तरह से जीना सीख जाते हैं।
    • मृत्यु का अनुभव करना आत्मा की असीमता को पहचानने का माध्यम है।

उदाहरण:

गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था कि मृत्यु को ध्यान से देखो। जब उन्होंने इसे ध्यान से देखा, तो उन्हें एहसास हुआ कि मृत्यु केवल भौतिक शरीर का अंत है, आत्मा अजर-अमर है। यही मृत्यु को जीने का अर्थ है।


ओशो के इस कथन का आधुनिक संदर्भ

आधुनिक जीवन की समस्या:

आज के समाज में लोग बाहरी चीजों और उपभोग में खोए हुए हैं।

  • वे आकाश को पढ़ने की जगह टीवी और मोबाइल स्क्रीन को पढ़ते हैं।
  • शून्य को सुनने के बजाय वे शोर में फंसे रहते हैं।
  • मृत्यु के बारे में सोचने से बचते हैं और इसे टालने की कोशिश करते हैं।

ओशो का संदेश:

  • पढ़ो आकाश को: बाहरी और भीतरी अनंतता को समझो।
  • सुनो शून्य को: मौन में जाकर जीवन के सत्य को जानो।
  • जियो मृत्यु को: इसे जीवन का हिस्सा मानो और हर पल को पूरी तरह जियो।

निष्कर्ष

ओशो का यह कथन हमें तीन गहरी शिक्षाएँ देता है:

  1. पढ़ो आकाश को: जीवन और ब्रह्मांड से सीखो।
  2. सुनो शून्य को: मौन और ध्यान से अपने भीतर झाँको।
  3. जियो मृत्यु को: इसे जीवन का स्वाभाविक हिस्सा मानकर आत्मज्ञान की ओर बढ़ो।

ओशो हमें अपने भीतर की यात्रा करने का आह्वान करते हैं, क्योंकि असली ज्ञान, शांति और दिव्यता हमारे भीतर ही छिपी है। उनका यह कथन हमें प्रेरित करता है कि हम अपने अस्तित्व को समझें और जीवन को उसकी पूर्णता में जियें।

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