"जिसे चाहो, उससे कुछ मत चाहो!" - ओशो

यह कथन ओशो की शिक्षाओं का वह सार है, जो प्रेम, संबंध, और आत्मा की स्वतंत्रता की गहराई को छूता है। इस साधारण-से वाक्य में जीवन के सबसे बड़े सत्य छिपे हुए हैं। इसे समझने के लिए हमें प्रेम, चाहत, और अपेक्षाओं के बंधनों से परे जाकर देखना होगा। ओशो के अनुसार, प्रेम तब तक पूर्ण नहीं होता, जब तक वह अपेक्षाओं से मुक्त न हो। आइए इस पर गहराई से विचार करें और इसे ओशो की शैली में समझने की कोशिश करें।

1. प्रेम: स्वतंत्रता का नाम है

ओशो कहते हैं, "प्रेम बंधन नहीं है, प्रेम स्वतंत्रता है।"  

लेकिन जब तुम प्रेम के साथ कुछ चाहने लगते हो, तो वह प्रेम नहीं रहता। वह एक सौदा बन जाता है। और जहाँ सौदा होता है, वहाँ स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है।

सच्चा प्रेम बिना किसी शर्त के होता है। यह देने की कला है, न कि लेने की। लेकिन मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि वह जिसे प्रेम करता है, उससे अपेक्षाएँ करना शुरू कर देता है। यही प्रेम को दूषित कर देता है।

ओशो का संदेश: 

"जिसे तुम प्रेम करते हो, उसे उसकी संपूर्णता में स्वीकार करो। उससे कुछ माँगने की आवश्यकता नहीं है। प्रेम केवल बहने दो।"

2. अपेक्षाएँ: प्रेम का सबसे बड़ा शत्रु

ओशो कहते हैं, "प्रेम और अपेक्षाएँ एक साथ नहीं चल सकतीं।"  

जब तुम किसी से प्रेम करते हो और उससे कुछ चाहते हो, तो वह प्रेम नहीं, बल्कि एक व्यापार बन जाता है।

उदाहरण के लिए, यदि तुम अपने साथी से चाहते हो कि वह तुम्हारे अनुसार व्यवहार करे, तो तुम उसे स्वतंत्रता से वंचित कर रहे हो। यह प्रेम नहीं, बल्कि स्वामित्व की भावना है।

कहानी:

एक बार एक व्यक्ति ओशो के पास आया और कहा, "मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ, लेकिन वह मेरी इच्छाओं को पूरा नहीं करती।"  

ओशो ने हँसते हुए कहा, "तुम प्रेम करते हो या सौदा करते हो? यदि तुम्हारा प्रेम सच्चा है, तो उसमें कोई शर्त नहीं होनी चाहिए।"

3. प्रेम का अर्थ: देना, न कि लेना

ओशो के अनुसार, प्रेम का वास्तविक अर्थ है देना। जब तुम प्रेम करते हो, तो तुम्हारा आनंद केवल देने में होता है। लेने की इच्छा समाप्त हो जाती है।

ओशो कहते हैं, "जब तुम किसी से प्रेम करते हो, तो उसे अपनी स्वतंत्रता में जीने दो। उसे अपनी शर्तों पर मत बाँधो। यही सच्चा प्रेम है।"

उदाहरण:

सूरज सभी को अपनी रोशनी देता है, लेकिन वह किसी से कुछ नहीं माँगता। नदी अपनी धारा सबके साथ बाँटती है, लेकिन वह बदले में कुछ नहीं चाहती। यही सच्चे प्रेम का स्वरूप है।

4. अपेक्षा से दुःख उत्पन्न होता है

ओशो कहते हैं, "दुःख का मूल कारण हमारी अपेक्षाएँ हैं।"  

जब तुम किसी से कुछ चाहते हो और वह तुम्हारी इच्छाओं को पूरा नहीं करता, तो तुम्हें दुःख होता है। लेकिन सच्चे प्रेम में दुःख का कोई स्थान नहीं है।

यदि तुम अपने साथी, मित्र, या परिवार से कुछ भी अपेक्षा नहीं रखते, तो तुम सदा प्रसन्न रह सकते हो।

ओशो का संदेश:

"अपेक्षाओं को छोड़ दो। प्रेम को शुद्ध और निर्दोष रहने दो।"

5. प्रेम और स्वामित्व

ओशो इस बात पर जोर देते हैं कि प्रेम और स्वामित्व दो विरोधी चीजें हैं।  

जब तुम किसी से प्रेम करते हो और उसे अपना बनाना चाहते हो, तो तुम उसे एक वस्तु में बदल देते हो। लेकिन प्रेम वस्तुओं का लेन-देन नहीं है। यह आत्मा से आत्मा का संबंध है।

ओशो का दृष्टिकोण:

"जिसे तुम प्रेम करते हो, उसे स्वतंत्र रहने दो। उसे उसकी स्वतंत्रता में खिलने दो। यही सच्चा प्रेम है।"

6. प्रेम में स्वीकृति का महत्व

ओशो कहते हैं, "सच्चा प्रेम वह है, जो व्यक्ति को उसकी पूर्णता में स्वीकार करता है।"  

अगर तुम किसी से प्रेम करते हो, तो उसे बदलने की कोशिश मत करो। उसे वैसा ही स्वीकार करो, जैसा वह है।

उदाहरण:

यदि एक पेड़ से प्रेम करते हो, तो उसे वैसे ही स्वीकार करो। तुम यह अपेक्षा नहीं करते कि वह तुम्हारी पसंद के अनुसार बढ़े। इसी तरह, जब तुम किसी व्यक्ति से प्रेम करते हो, तो उसे उसकी प्रकृति के साथ अपनाओ।

7. सच्चे प्रेम का अनुभव कैसे करें?

(a) ध्यान और प्रेम:

ओशो के अनुसार, ध्यान तुम्हें प्रेम के शुद्ध रूप का अनुभव कराता है। ध्यान का अर्थ है, अपने भीतर के मौन में प्रवेश करना। जब तुम ध्यान में होते हो, तो तुम्हारे भीतर प्रेम स्वाभाविक रूप से बहता है।

(b) स्वीकृति और प्रेम:

जब तुम खुद को स्वीकार करते हो, तभी तुम दूसरों को स्वीकार कर सकते हो। सच्चा प्रेम आत्म-स्वीकृति से शुरू होता है।

8. प्रेम में स्वतंत्रता का महत्व

ओशो कहते हैं, "प्रेम और स्वतंत्रता एक सिक्के के दो पहलू हैं।"  

अगर प्रेम में स्वतंत्रता नहीं है, तो वह प्रेम नहीं, बल्कि बंधन है। जब तुम किसी से प्रेम करते हो, तो उसे उसकी स्वतंत्रता के साथ रहने दो।

कहानी:

एक बार एक पक्षी ने एक फूल से कहा, "मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, इसलिए तुम्हें अपनी कली में बंद कर लूँगा।"  

फूल ने कहा, "अगर तुम मुझे बंद करोगे, तो मैं मर जाऊँगा।"  

ओशो कहते हैं, "यह प्रेम का सबसे बड़ा सत्य है। प्रेम स्वतंत्रता में ही फलता-फूलता है।"

9. "जिसे चाहो, उससे कुछ मत चाहो" का आध्यात्मिक अर्थ

यह कथन केवल संबंधों के लिए नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू के लिए है। ओशो कहते हैं कि यह मनुष्य की आदत है कि वह हमेशा कुछ चाहता है।

चाहत के बिना जीना ध्यान की अवस्था है। यह तुम्हें वर्तमान क्षण में लेकर आता है। जब तुम किसी से कुछ नहीं चाहते, तो तुम केवल उसके अस्तित्व का आनंद ले सकते हो।

ओशो का संदेश:

"चाहत को छोड़ो। जब तुम कुछ नहीं चाहते, तभी तुम्हें सब कुछ प्राप्त होता है।"

10. निष्कर्ष: प्रेम को शुद्ध होने दो

"जिसे चाहो, उससे कुछ मत चाहो!" यह ओशो का एक सरल लेकिन गहन संदेश है। यह हमें सिखाता है कि प्रेम को शुद्ध और निर्दोष कैसे रखा जाए।

जब तुम प्रेम को अपेक्षाओं और चाहतों से मुक्त कर देते हो, तो यह तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा आनंद बन जाता है। यह एक ऐसी अवस्था है, जहाँ तुम स्वयं को और दूसरों को पूरी तरह स्वीकार करते हो।  

ओशो कहते हैं:

"प्रेम तब सच्चा होता है, जब उसमें कुछ चाहने की भावना न हो। केवल प्रेम करो, और बाकी सब अपने आप घटित होगा।"

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