"जो हो! जैसे हो, उसमें ही मगन हो जाओ!" - ओशो

यह वाक्य ओशो की शिक्षाओं का सार है। ओशो हमें सिखाते हैं कि जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि खुद को स्वीकार करना है। इस कथन में गहरी आध्यात्मिकता और व्यावहारिकता छिपी है। इसे समझने के लिए हमें अपने भीतर की यात्रा करनी होगी और जीवन के सत्य को खोजना होगा। इस प्रवचन को ओशो की शैली में विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।  

1. स्वीकृति: खुद को स्वीकार करना ही आनंद है

ओशो कहते हैं, "सबसे बड़ा दुःख तब होता है, जब हम खुद को अस्वीकार करते हैं।"  

हमेशा हम खुद को बदलने, बेहतर बनने, और समाज के मानकों के अनुसार ढालने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आप जैसे हैं, वैसे ही पूर्ण हो सकते हैं?

जब आप खुद को स्वीकार करते हैं, तो आप जीवन के साथ बहने लगते हैं। संघर्ष समाप्त हो जाता है, और आनंद अपने आप प्रकट होता है।  

उदाहरण:

अगर एक नदी सोचने लगे कि उसे समुद्र की तरह विशाल बनना है, तो वह कभी खुश नहीं हो सकती। लेकिन जब वह अपनी स्थिति को स्वीकार कर लेती है और महसूस करती है कि वह अपने आप में परिपूर्ण है, तब वह खुशी से बहने लगती है।

ओशो कहते हैं, "स्वीकृति का अर्थ है, जो तुम हो, उसे पूरी तरह से गले लगाना।"

2. तुलना: दुख का सबसे बड़ा कारण

तुलना इंसान के दुख का मूल कारण है। हम हमेशा दूसरों से तुलना करके अपने आप को कमतर महसूस करते हैं। किसी की सफलता, सुंदरता, या क्षमता देखकर अपने भीतर हीनता उत्पन्न करते हैं।

लेकिन ओशो कहते हैं, "हर इंसान अनोखा है। तुलना तब होती है, जब तुम अपनी अनोखी खूबसूरती को भूल जाते हो।"

यदि गुलाब के फूल से बांस का पेड़ तुलना करे, तो वह हमेशा दुखी रहेगा। लेकिन बांस अपनी शक्ति और लंबाई को समझे, तो वह भी खुश रहेगा। इसी तरह, जब हम अपनी विशिष्टता को पहचानते हैं, तो तुलना समाप्त हो जाती है।  

ओशो का संदेश:

"तुम जैसे हो, वैसे ही अनोखे हो। खुद को किसी और के साथ तुलना करना अपनी अनोखी प्रतिभा का अपमान करना है।"

3. मगन होना: आनंद की कुंजी

मगन होना एक ऐसी अवस्था है, जिसमें व्यक्ति जीवन के हर पल का आनंद लेता है। मगन होने का अर्थ है, अपने अस्तित्व के हर पहलू को स्वीकार करना और उसमें डूब जाना।

ओशो कहते हैं:

"मगन होना ध्यान का ही एक रूप है। जब तुम हर स्थिति में खुश रहते हो, तब तुम जीवन के साथ गहरे संबंध में हो।"

जब आप किसी कार्य में मगन होते हैं, तो वह कार्य बोझ नहीं रहता। वह एक उत्सव बन जाता है।

कहानी:

एक बार एक आदमी ने ओशो से पूछा, "गुरुजी, मैं हमेशा असंतुष्ट रहता हूँ। क्या करूँ?"  

ओशो ने कहा, "तुम्हें कुछ नहीं करना है। बस जो तुम हो, उसमें मगन हो जाओ।"  

आदमी ने पूछा, "यह कैसे संभव है?"  

ओशो ने मुस्कुराते हुए कहा, "जब तक तुम खुद को स्वीकार नहीं करोगे, तब तक तुम्हारा असंतोष बना रहेगा।"

4. जो तुम हो, वही सत्य है

ओशो हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि जो हम हैं, वह पर्याप्त है। यह समझने के लिए हमें समाज के नकली मानकों से मुक्त होना होगा।

समाज की भूमिका:

समाज हमें बताता है कि हमें कैसे होना चाहिए। हमें अमीर, सुंदर, और सफल होना चाहिए। लेकिन ओशो कहते हैं, "यह सब भ्रम है। तुम्हें कुछ बनना नहीं है। तुम्हें केवल अपने होने का आनंद लेना है।"

जब आप समाज की अपेक्षाओं से ऊपर उठते हैं, तो आप अपने भीतर शांति पाते हैं।

5. ध्यान: मगन होने का माध्यम

ओशो के अनुसार, ध्यान वह प्रक्रिया है, जो हमें अपने भीतर मगन होने में मदद करती है। ध्यान का अर्थ है अपने विचारों, भावनाओं, और अस्तित्व को देखना और उसे स्वीकार करना।

ध्यान की तकनीक:

1. श्वास ध्यान:

   अपनी सांसों पर ध्यान दो। इसे महसूस करो। जब तुम श्वास के प्रवाह में मगन हो जाते हो, तो तुम्हारे भीतर शांति उत्पन्न होती है।

2. साक्षी ध्यान:

   अपने विचारों को देखो। उनसे जुड़ो मत। उन्हें जैसे हैं, वैसे ही स्वीकार करो। यह तुम्हें खुद से जोड़ता है।

ओशो कहते हैं, "ध्यान तुम्हें सिखाता है कि जो तुम हो, उसमें पूर्ण आनंद कैसे पाओ।"

6. जो जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करो

ओशो केवल खुद को स्वीकार करने की बात नहीं करते, बल्कि दूसरों और परिस्थितियों को भी स्वीकार करने की बात करते हैं। जब आप दूसरों को उनके स्वभाव में स्वीकार करते हैं, तो आपके संबंधों में गहराई आ जाती है।

उदाहरण:

यदि कोई व्यक्ति गुस्से वाला है, तो आप उसे बदलने की कोशिश मत करो। उसे वैसे ही स्वीकार करो। यह स्वीकार्यता ही प्रेम का सबसे गहरा रूप है।

ओशो कहते हैं, "स्वीकार्यता प्रेम का दूसरा नाम है। जब तुम हर चीज को जैसे है, वैसे ही स्वीकार करते हो, तो तुम्हारा जीवन एक उत्सव बन जाता है।"

7. मगन होने में रुकावटे

अहंकार

अहंकार हमें खुद को स्वीकार करने से रोकता है। यह हमेशा हमें बताता है कि हम अपूर्ण हैं।  

ओशो कहते हैं, "अहंकार तुम्हें तुम्हारे सच्चे स्वरूप से दूर करता है। इसे छोड़ दो।"

भय 

डर भी मगन होने में एक बड़ी बाधा है। हम सोचते हैं, "अगर मैं खुद को स्वीकार कर लूँ, तो क्या लोग मुझे अस्वीकार करेंगे?"  

ओशो कहते हैं, "डर केवल एक भ्रम है। इसे देखो और इसे पार करो।"

8. मगन होने का अर्थ: हर पल में आनंद

मगन होना केवल आत्मा की स्थिति नहीं है, यह जीवन के हर पहलू में प्रकट हो सकता है।

- जब आप खाना खा रहे हों, तो केवल खाने में मगन हो।

- जब आप चल रहे हों, तो केवल चलने में मगन हो।

ओशो कहते हैं, "जो भी करो, उसमें डूब जाओ। यही मगन होना है।"

9. मगन होना और संतोष

मगन होने का अर्थ है, अपने जीवन में संतोष को खोजना। यह संतोष किसी बाहरी चीज़ से नहीं आता। यह भीतर से आता है।

ओशो कहते हैं:

"संतोष तुम्हें तुम्हारी आत्मा से जोड़ता है। जब तुम संतुष्ट होते हो, तो जीवन एक अनंत उत्सव बन जाता है।"

10. निष्कर्ष: "जो हो, जैसे हो, उसमें मगन हो जाओ!"

ओशो का यह वाक्य हमें यह सिखाता है कि जीवन की सबसे बड़ी कला है, खुद को स्वीकार करना और हर पल में मगन होना।  

जब आप अपनी अनोखी पहचान को गले लगाते हैं, तब आप समाज की अपेक्षाओं से मुक्त हो जाते हैं। ध्यान, स्वीकृति, और प्रेम के माध्यम से, आप खुद को जान सकते हैं और अपने अस्तित्व में आनंद पा सकते हैं।

ओशो कहते हैं, "जीवन कोई समस्या नहीं है। यह एक सुंदर अनुभव है। इसे पूरी तरह से जियो। जो तुम हो, उसे पूरी तरह स्वीकार करो। यही ध्यान है, यही आनंद है, यही मुक्ति है।"

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.