"जाया ना कर अपने अल्फाज हर किसी के लिए, बस खामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है?"

यह वाक्य एक साधारण अभिव्यक्ति नहीं है। इसमें जीवन की गहरी सच्चाइयाँ छिपी हुई हैं। इसे समझने के लिए हमें ध्यान, मौन, और आत्मा की गहराइयों में उतरना होगा। ओशो के विचारों के अनुसार, यह कथन हमारे जीवन के कई आयामों को छूता है। आइए इसे अलग-अलग पहलुओं में समझने की कोशिश करें।  

1. शब्दों का स्वभाव और उनकी सीमाएँ

ओशो कहते हैं कि शब्दों का स्वभाव सतही होता है। वे केवल संकेत होते हैं, और उनकी पहुँच सत्य तक नहीं होती। जब हम शब्दों के माध्यम से कुछ व्यक्त करने का प्रयास करते हैं, तो वह केवल हमारी आंतरिक अनुभूति का छोटा हिस्सा ही प्रकट कर पाता है।  

उदाहरण के लिए, यदि तुम किसी को "प्यार" शब्द से संबोधित करते हो, तो यह मात्र एक संकेत है। प्यार का असली अनुभव शब्दों से परे है। यह महसूस करने की चीज है। इसी तरह, जब हम हर किसी के लिए अपने शब्द जाया करते हैं, तो हम अपनी ऊर्जा को व्यर्थ करते हैं।  

शब्द केवल उन लोगों के लिए मूल्यवान होते हैं, जो उनके पीछे छिपे सत्य को समझने की क्षमता रखते हैं। ओशो कहते हैं, "शब्द पंख हैं, पर उड़ान मौन से होती है।"  

2. मौन: आत्मा का सच्चा संगीत

मौन को ओशो एक अद्वितीय शक्ति मानते हैं। यह सिर्फ चुप्पी नहीं है, यह एक उपस्थिति है। जब तुम खामोश रहते हो, तो तुम्हारे चारों ओर एक ऊर्जा का क्षेत्र बनता है। यह ऊर्जा तुम्हारी आत्मा का संगीत है।  

ओशो कहते हैं कि यह मौन तुम्हें संसार के कोलाहल से मुक्त करता है। मौन में तुम अपने भीतर के सत्य को देख सकते हो। यह सत्य शब्दों से व्यक्त नहीं हो सकता। इसलिए, खामोशी में जीना तुम्हारे जीवन को एक नई दिशा देता है।  

कहानी:

एक बार एक व्यक्ति ओशो के पास आया और पूछा, "गुरुजी, आप हमेशा मौन की बात करते हैं। लेकिन अगर मैं खामोश रहूँ, तो लोग मुझे मूर्ख समझ सकते हैं।"  

ओशो मुस्कुराए और बोले, "लोग तुम्हें तभी समझेंगे, जब तुम मौन में होगे। मूर्खता बोलने से प्रकट होती है, खामोशी से नहीं। जो तुम्हारे मौन को समझ सके, वही तुम्हारे सत्य को जान सकता है। बाकी केवल तुम्हारी परछाई देखेंगे।"  

3. ऊर्जा का संरक्षण

ओशो हमें सिखाते हैं कि हमारी ऊर्जा एक अनमोल संसाधन है। जब हम हर किसी से बात करते हैं, हर किसी को अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का प्रयास करते हैं, तो हम अपनी ऊर्जा को बिखेर देते हैं।

यदि हम हर किसी के लिए अपने अल्फाज़ जाया करेंगे, तो हमारी ऊर्जा का संरक्षण कैसे होगा? ओशो कहते हैं, "अपनी ऊर्जा को सहेजना सीखो। उसे ध्यान, मौन और सृजनशीलता में लगाओ। तभी तुम अपनी आत्मा की गहराई में जा सकोगे।"  

जब तुम खामोश रहते हो, तो तुम अपनी ऊर्जा को भीतर की ओर मोड़ते हो। यह ऊर्जा तुम्हें ध्यान की ऊँचाइयों तक ले जाती है।  

4. योग्य और अयोग्य का भेद

ओशो का यह संदेश है कि हर किसी को समझाने की कोशिश करना व्यर्थ है। हर कोई तुम्हारी ऊर्जा और शब्दों के योग्य नहीं है। जो तुम्हें समझने की योग्यता रखते हैं, वे तुम्हारे मौन को भी समझ सकते हैं।  

यह एक गहरी सच्चाई है। जब तुम हर किसी के लिए बोलते हो, तो तुम्हारे शब्दों का मूल्य कम हो जाता है। लेकिन जब तुम केवल उन्हीं से बोलते हो, जो समझने के योग्य हैं, तो तुम्हारे शब्द एक अमृत की तरह होते हैं।  

ओशो कहते हैं, "संसार में योग्य और अयोग्य का भेद जानना ही बुद्धिमत्ता है।"  

5. खामोशी का आत्म-परीक्षण

खामोशी केवल बाहरी चुप्पी नहीं है। यह भीतर का एक गहन अनुभव है। जब तुम खामोश रहते हो, तो तुम अपने भीतर की ओर देखना शुरू करते हो। तुम अपने विचारों, भावनाओं और स्वभाव का निरीक्षण करते हो।  

ओशो हमें ध्यान की कई तकनीकें सिखाते हैं, जिनके माध्यम से हम खामोशी में प्रवेश कर सकते हैं। उदाहरण के लिए:  

- सांस पर ध्यान:

केवल अपनी सांसों को देखो। इसे गहरा करो। यह तुम्हें मौन की ओर ले जाएगा।  

- ध्यान का साक्षी भाव:

अपने विचारों को देखो, लेकिन उनसे जुड़ो मत। यह प्रक्रिया तुम्हारे भीतर मौन को प्रकट करेगी।  

6. मौन का संबंध ध्यान से

ओशो के अनुसार, ध्यान और मौन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब तुम ध्यान करते हो, तो तुम स्वाभाविक रूप से मौन में प्रवेश कर जाते हो। और जब तुम मौन में होते हो, तो ध्यान अपने आप घटित होता है।  

ओशो कहते हैं, "ध्यान का अर्थ है अपने मौन में स्थिर होना। यह मौन ही तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा सत्य है।"  

7. जो समझता है, वही सच्चा साथी है

ओशो इस बात पर जोर देते हैं कि जो तुम्हारे मौन को समझ सकता है, वही तुम्हारे जीवन में सच्चा साथी हो सकता है। यह साथी केवल प्रेमी, मित्र, या गुरु ही नहीं हो सकता; यह कोई भी हो सकता है जो तुम्हारे मौन की गहराई में उतर सके।  

ओशो कहते हैं, "जीवन में ऐसे लोगों को खोजो, जो तुम्हें शब्दों से नहीं, मौन से समझें।"  

8. मौन और संबंध

ओशो के अनुसार, सबसे गहरे संबंध मौन में बनते हैं। जब दो लोग खामोश होकर एक-दूसरे के साथ होते हैं, तो उनकी आत्माएँ एक-दूसरे से बात करती हैं।  

कई बार, शब्द केवल भ्रम पैदा करते हैं। लेकिन मौन में, सब कुछ स्पष्ट हो जाता है।

9. खामोशी का डर और उसकी स्वीकृति

अक्सर लोग खामोशी से डरते हैं। वे इसे अकेलापन समझते हैं। लेकिन ओशो कहते हैं, "खामोशी में तुम्हारा सच्चा साथी तुम्हारी आत्मा होती है। इसे अपनाओ। इसे गले लगाओ। यही तुम्हारी मुक्ति है।"

10. जीवन का उद्देश्य

अंत में, ओशो हमें याद दिलाते हैं कि जीवन का उद्देश्य केवल दूसरों को समझाना या प्रभावित करना नहीं है। जीवन का उद्देश्य है खुद को जानना।

ओशो कहते हैं, "जब तुम अपने मौन को जान जाते हो, तो तुम्हें किसी बाहरी पहचान की आवश्यकता नहीं रहती। तुम अपने आप में पूर्ण हो जाते हो।"

निष्कर्ष

"जाया ना कर अपने अल्फाज हर किसी के लिए, बस खामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है?"  

यह कथन हमें शब्दों की सीमाएँ और मौन की गहराई समझाता है। ओशो के अनुसार, खामोशी ही आत्मा की सबसे बड़ी शक्ति है। जब तुम मौन में प्रवेश करते हो, तो तुम अपने भीतर के सत्य को जान सकते हो।

इसलिए, अपनी ऊर्जा को बचाओ, खामोश रहो, और ध्यान करो। जो तुम्हें समझेगा, वह तुम्हारी आत्मा का साथी होगा।

"मौन ही सच्चा प्रवचन है। जो इसे समझता है, वही सत्य को जानता है।"

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