“तुम्हारा समाज सदा से केवल गंभीर धर्म और उदास आदमी को ही सम्मान देता है!
प्रेमी और गीत गाते हुए आदमी को, हमेशा से रुलाता आया है।”
— प्रेम-ध्यान, ओशो

🌹 समाज की गंभीरता और प्रेमी का विद्रोह

कभी तुमने देखा है, इस संसार में हँसने वाले को कितना कठिन जीवन मिलता है? जो प्रेम में डूब जाता है, उसे समाज जल्दी ही “पागल” कह देता है। और जो उदास रहता है, उसे समाज “महान” मान लेता है।

क्योंकि समाज को प्रेम से डर लगता है। प्रेमी के भीतर आग होती है — वह नियम नहीं मानता, वह केवल जीवन की धड़कन मानता है। वह किताबों से नहीं जीता, वह उस लय से जीता है जो अस्तित्व से बहती है।

गंभीरता — समाज की सबसे बड़ी बीमारी

समाज चाहता है कि तुम गंभीर बनो, क्योंकि गंभीर व्यक्ति नियंत्रित किया जा सकता है। उसका चेहरा कठोर होता है, उसके भीतर भय होता है, और वही भय समाज की सत्ता को बचाए रखता है।

गंभीर व्यक्ति “हाँ” कहता है वहाँ भी जहाँ उसे “न” कहना चाहिए। वह झुक जाता है, क्योंकि उसे सिखाया गया है — “धार्मिक वही जो उदास है, जो मुस्कुराता है, वह हल्का है।” यह झूठ है। धर्म गंभीर नहीं होता, धर्म तो खिलना है।

जब फूल खिलता है, वह गंभीर नहीं होता। जब पक्षी गाता है, वह कोई धर्मग्रंथ नहीं पढ़ता। वह बस गाता है क्योंकि उसके भीतर गीत है। और वही तो सच्चा धर्म है — जब जीवन अपने आप से बहता है।

प्रेमी क्यों रुलाया गया?

क्योंकि प्रेमी समाज के साँचे में नहीं फिट बैठता। वह चलता नहीं, उड़ता है। वह सोचता नहीं, महसूस करता है। और समाज को ऐसे लोगों से डर लगता है जो सोचने से ज़्यादा महसूस करते हैं।

प्रेमी किसी नियम का नहीं होता। वह किसी संप्रदाय का नहीं होता। वह कहता है — “मेरा धर्म है प्रेम।”

ऐसे व्यक्ति को तुम्हारा समाज क्या करेगा? वह उसे भगाएगा, अपमानित करेगा, क्योंकि उसका अस्तित्व ही समाज की दीवारों में दरार डाल देता है।

याद करो —
कृष्ण हँसे, नाचे, बाँसुरी बजाई — धर्म के ठेकेदारों ने कहा, “यह भगवान नहीं, भोगी है।” मीरा नाची, प्रेम में पागल हुई —लोगों ने कहा, “यह कुलटा है।” ईसा ने प्रेम का उपदेश दिया — तो उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। क्योंकि प्रेमी स्वतंत्र होता है।और समाज को स्वतंत्रता से भय है।

गंभीर आदमी — मृत आदमी

गंभीर आदमी जीवित नहीं होता। उसकी आँखों में न चमक होती है, न जीवन का रस। वह चलता है जैसे बोझ उठा रहा हो। वह पूजा करता है, पर आनंद से नहीं — कर्तव्य से। वह दान करता है, पर प्रेम से नहीं — भय से। समाज उसे सम्मान देता है, क्योंकि वह खतरनाक नहीं है। वह प्रश्न नहीं पूछता, वह सोचता नहीं, वह बस अनुसरण करता है। और इसीलिए समाज ने हँसने वालों को दंडित किया, प्रेम करने वालों को जला दिया, नाचने वालों को मठों से निकाला। क्योंकि हँसी स्वतंत्रता का संकेत है। और जहाँ स्वतंत्रता होती है, वहाँ सत्ता कांपती है।

धर्म का असली स्वर — गीत

ओशो कहते हैं,
“धर्म कोई बोझ नहीं, एक नृत्य है।” धर्म का अर्थ है — जीवन के साथ एकाकार हो जाना। जब हवा बहती है, तो तुम उसके साथ झूमो। जब बारिश होती है, तो उसे गले लगाओ। पर समाज ने कहा, “यह सब बालपन है। ध्यान गंभीर होना चाहिए, साधना कठोर होनी चाहिए।” नहीं। ध्यान तब गहराई में उतरता है जब तुम आनंद में होते हो। क्योंकि आनंद ही मौन का द्वार है।

आनंद और उदासी — दो दिशाएँ

उदासी भीतर की ऊर्जा को रोक देती है। आनंद उसे बहने देता है। उदासी मृत्यु की ओर ले जाती है, आनंद जीवन की ओर।

जब तुम हँसते हो, तो ब्रह्मांड तुम्हारे साथ नाचता है। जब तुम प्रेम करते हो, तो अस्तित्व तुम्हें आशीर्वाद देता है। और जब तुम गाते हो, तो परमात्मा मुस्कुराता है। पर गंभीर लोग यह सब नहीं समझ पाते। वे मंदिर जाते हैं और वहाँ भी रोते हैं। उन्होंने परमात्मा को भी दुख का प्रतीक बना दिया है।

ओशो कहते हैं — “परमात्मा आनंद है। वह तुम्हारे आँसुओं में नहीं, तुम्हारी हँसी में मिलता है।”

समाज का डर — स्वतंत्र आत्मा

समाज चाहता है कि हर व्यक्ति एक जैसा सोचें, क्योंकि तभी व्यवस्था टिकती है। प्रेमी उस एकरूपता को तोड़ देता है। वह अपने हृदय से चलता है, किसी नियम-पुस्तक से नहीं। और यही स्वतंत्रता समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसलिए हर संस्कृति में प्रेमी को रुलाया गया है। उसे अकेला किया गया, बहिष्कृत किया गया, पर उसने हार नहीं मानी। क्योंकि प्रेमी जानता है — “भले ही दुनिया मुझे अस्वीकार करे, मैं जीवन को अस्वीकार नहीं कर सकता।”

ओशो का धर्म — हँसता हुआ ध्यान

ओशो कहते हैं, “मेरे मंदिरों में अगर तुम हँसो, अगर तुम गाओ, तो वही सच्ची पूजा है।” वे चाहते हैं कि धर्म फिर से जीवित हो, फिर से खिलखिलाए, फिर से झूमे। क्योंकि जब कोई मनुष्य प्रेम में, गीत में, और नृत्य में खो जाता है, तो वही ध्यान की चरम अवस्था है। ध्यान का अर्थ मौन बैठना नहीं, बल्कि जीवन के साथ एकाकार होना है। जब भीतर और बाहर का भेद मिट जाता है, वही ध्यान है। वही प्रेम है। वही धर्म है।

अब समाज को बदलने की आवश्यकता है

अब समय है कि हम उस संस्कृति को त्यागें जो केवल रोने वालों को पूजती है। अब समय है — कि हम फिर से प्रेम को अपनाएँ, फिर से हँसी को पवित्र मानें, फिर से जीवन को “हाँ” कहें। क्योंकि वही मनुष्य धार्मिक है जो जीवन को उत्सव की तरह जीता है। जो हर साँस में कृतज्ञ है, हर क्षण में प्रेम है। ओशो कहते हैं — “गंभीरता मौत है। आनंद जीवन है।”

अंततः — प्रेमी को अब रोने मत दो

प्रेमी को सम्मान दो। गीत गाने वालों के लिए जगह बनाओ। क्योंकि वही जीवन की धड़कन हैं। जो हँस सकते हैं, वे ही रोशनी फैला सकते हैं। और याद रखना — जो धर्म तुम्हें मुस्कुराने से रोक दे, वह धर्म नहीं, कारागार है। धर्म वहीं है जहाँ मुक्ति है, जहाँ नृत्य है, जहाँ प्रेम है।

🕊️ “मैं गंभीर धर्म नहीं चाहता,
मैं जीवित धर्म चाहता हूँ।
जहाँ फूल खिलें,
जहाँ बच्चे हँसें,
जहाँ प्रेमी गाएँ।
क्योंकि वहीं परमात्मा हँसता है।”

— ओशो (प्रेम-ध्यान प्रवचन)

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