🌿 “धार्मिक कट्टरता हमेशा समाज को ले डूबती है — मुल्ला हो या पंडित, इनके कहने पर न चलो; इंसान बनो, और मानवता की रक्षा करो।”

प्रिय साधकों,

आज का विषय बड़ा नाजुक है — और बड़ा जरूरी भी।

कट्टरता।
धार्मिक कट्टरता।

यह एक ऐसा ज़हर है जो प्रेम के नाम पर नफरत फैलाता है,
ईश्वर के नाम पर युद्ध करवाता है,
और सत्य के नाम पर झूठ को पूजता है।

और मज़ा यह है कि
जो सबसे अधर्मपूर्ण है, वही धर्म का झंडा लेकर खड़ा हो जाता है।
जो सबसे अधिक अशांत है, वही ध्यान और समाधि का प्रवचन देने लगता है।
जो कभी प्रेम को छू तक नहीं पाया, वही ‘प्रेम के इमाम’ बन बैठता है।

🔥 कट्टरता का बीज कहाँ होता है?

ध्यान से सुनो।

धार्मिक कट्टरता पैदा होती है डर से।
आदमी डरता है —
मृत्यु से,
अकेलेपन से,
अर्थहीनता से।
और उस डर को ढँकने के लिए वह धर्म की चादर ओढ़ लेता है।

पर यह धर्म नहीं — यह ढोंग है।

धार्मिकता वह है जो प्रेम में पनपे।
धार्मिकता वह है जो स्वतंत्रता दे।
धार्मिकता वह है जो कहे —
"सोचो, देखो, खोजो — और खुद जानो!"

पर जो धर्म तुम्हें कहता है —
"यह मानो, वह मत मानो।
यह करो, वह मत करो।
यह ग्रंथ अंतिम है, यह गुरु अंतिम है..."
तो समझ लेना —
वह धर्म नहीं — वह गुलामी है।

🌪️ मुल्ला हो या पंडित — समस्या “व्यक्ति” नहीं है, समस्या “संस्था” है।

ध्यान दो —
मुल्ला हो या पंडित —
वह स्वयं भी एक पीड़ित है।
उससे भी बचपन से कहा गया —
“ईश्वर को डराओ, पाप मत करो, सवाल मत उठाओ।”

वह भी भयभीत है —
और अब वह तुम्हें भी भयभीत कर रहा है।

कट्टरता का बीज घर में बोया जाता है,
मंदिर-मस्जिद में सींचा जाता है,
और फिर वह व्यक्ति बम बन जाता है —
वह अपने विचारों से मारता है, शब्दों से काटता है,
या कभी-कभी हथियार से भी।

⚖️ क्यों धर्म “मानवता” से टकराता है?

क्योंकि धर्म ने खुद को संकीर्ण पहचान में बाँध लिया है।
अब ईश्वर भी सिर्फ "हमारा" हो गया है —
तुम्हारा ईश्वर झूठा, हमारा ईश्वर सच्चा!
तुम्हारी पूजा पाप, हमारी पूजा पुण्य!
तुम्हारी भाषा अपवित्र, हमारी भाषा पवित्र!

यह कैसा ईश्वर है जो सीमाओं में बंधा हुआ है?

एक ईश्वर अरब में जन्म लेता है, दूसरा अयोध्या में!
एक को मांस पसंद है, दूसरे को फलाहार!
क्या ईश्वर भी जाति और भाषा में बँट गया है?

नहीं —
यह ईश्वर नहीं —
यह मनुष्य का प्रतिबिंब है।
उसका भय, उसकी असुरक्षा, उसका मोह।

🕊️ सत्य को किसी पैग़म्बर, किसी गुरु, किसी वेद में बाँधा नहीं जा सकता।

ध्यान से सुनो —
सत्य कोई किताब नहीं है।
सत्य कोई पंक्ति नहीं है।
सत्य कोई नाम नहीं है।

सत्य एक अनुभव है — और वह हर पल नया होता है।

जो कहता है कि “हमारी किताब अंतिम है” —
वह खुद को ही सत्य के रास्ते से काट रहा है।
क्योंकि जो अंतिम होता है, वह मर जाता है।
और सत्य तो जीवन है — वह प्रतिपल जन्म लेता है।

📿 कट्टरता का चेहरा बदलता है — पर उसकी जड़ें वही रहती हैं।

कभी वह पगड़ी में आता है, कभी तिलक में।
कभी कुरान लिए, कभी गीता लिए।

पर उसका स्वरूप एक ही होता है —
"मेरी बात सही है, तेरी बात गलत है।
या तो तू मेरी बात माने, या तू नाश हो जाए!"

यह क्या धर्म है?

जहाँ प्रेम नहीं, वहां धर्म नहीं।
जहाँ स्वतंत्रता नहीं, वहां परमात्मा नहीं।
जहाँ प्रश्न पूछने की अनुमति नहीं — वहां जीवन नहीं।

🌼 असली धर्म क्या है?

ध्यान देना।

धर्म वह नहीं जो किसी और ने कहा —
धर्म वह है जो तुम्हारे भीतर से फूटता है

जब तुम किसी भूखे को रोटी देते हो —
वह धर्म है।
जब तुम एक रोते हुए को गले लगाते हो —
वह धर्म है।
जब तुम किसी पेड़ को पानी देते हो,
किसी पशु को बचा लेते हो,
किसी बच्चे को मुस्कान देते हो —
वह धर्म है।

💠 ओशो कहते थे — “मैं किसी धर्म का नहीं, मैं सिर्फ चेतना का हूँ।”

क्योंकि धर्म कोई संगठन नहीं हो सकता।
धर्म कोई राष्ट्र नहीं हो सकता।
धर्म कोई पार्टी नहीं हो सकता।

धर्म तो एक भीतर की क्रांति है —
जहाँ तुम पहली बार स्वयं से मिलते हो।
जहाँ तुम पाते हो कि
तुम हिन्दू, मुसलमान, ईसाई नहीं हो —
तुम बस हो

एक शुद्ध चेतना —
एक ज्योति जो किसी भी नाम से परे है।

🕯️ तो इंसान बनो — मुल्ला या पंडित नहीं।

मुल्ला और पंडित तुम्हें बांटते हैं —
इंसान बनना तुम्हें जोड़ता है।

जो इंसान बनता है —
वह कभी किसी धर्म की लड़ाई नहीं करता।
वह देखता है कि सब दुखी हैं —
और प्रेम ही वह पुल है जो सबको जोड़ सकता है।

आज इस दुनिया को, इस भारत को,
कुरान या वेद की नहीं,
करुणा और विवेक की जरूरत है।

⚙️ आज की आधुनिकता का यथार्थ:

देखो ज़रा चारों ओर।
गगनचुंबी इमारतें हैं, स्मार्टफोन हैं, चाँद तक पहुँच चुके हैं —
पर आदमी भीतर से कितना खोखला है!

क्यों?

क्योंकि उसने विज्ञान तो अपनाया,
पर विवेक नहीं अपनाया।
उसने टेक्नोलॉजी तो ली,
पर प्रेम को फेंक दिया।
उसने जीपीएस तो लगाया,
पर जीवन का दिशा-बोध खो दिया।

और इसी खोखलेपन में कट्टरता फलती-फूलती है —
क्योंकि कट्टरता तुम्हें एक नकली पहचान देती है।
वह कहती है — “तू विशेष है, क्योंकि तू हमारे धर्म का है।”

पर असली विशेषता तब है जब तुम कुछ भी नहीं हो —
और तभी तुम सब कुछ हो।

🧘 ध्यान करो — और देखो कि तुम कौन हो।

ध्यान तुम्हें बाहर के पंडित और मुल्ला से नहीं,
अपने भीतर के मौलवी, भीतर के पुरोहित से बचाता है।

तुम्हारे भीतर बैठा है एक 'धार्मिक दमन' —
जो कहता है कि यह अच्छा है, यह बुरा है,
यह उचित है, यह अनुचित है।

ध्यान वह तलवार है जो इस आंतरिक शोषक को काट देता है।

🌺 मानवता सबसे बड़ा धर्म है।

राम को मानो या रहीम को —
कोई फर्क नहीं पड़ता।
पर अगर तुम्हारे पास करुणा नहीं है,
अगर तुम नफरत करते हो,
अगर तुम मारते हो, बाँटते हो,
तो न राम मिलेंगे, न रहीम।

जो प्रेम करता है — वही मंदिर है।
जो क्षमा करता है — वही मस्जिद है।
जो मौन में उतरता है — वही गीता है, वही कुरान है।

🔚 अंतिम सूत्र:

“ईश्वर न मंदिर में है, न मस्जिद में।
ईश्वर है वहाँ, जहाँ आदमी आदमी को गले लगाता है —
बिना धर्म पूछे, बिना नाम पूछे, बिना जात पूछे।”

ओम् मानवाय नमः।

ओम् करुणाय नमः।
ओम् चैतन्याय नमः।

❓ FAQs – धार्मिक कट्टरता और मानवता का महत्व

Q1. धार्मिक कट्टरता क्या होती है और यह समाज को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर: धार्मिक कट्टरता तब होती है जब कोई व्यक्ति या समूह अपने धर्म को ही सर्वोच्च मानकर दूसरों को नीचा दिखाता है या नुकसान पहुँचाता है। इससे समाज में हिंसा, विघटन और असहिष्णुता बढ़ती है।

Q2. "मुल्ला हो या पंडित, इनके कहने पर न चलो" – इसका क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका आशय यह है कि अंधभक्ति या बिना सोच-विचार के धार्मिक नेताओं के पीछे चलना खतरनाक हो सकता है। हर इंसान को अपने विवेक से सही और गलत में फर्क करना चाहिए।

Q3. क्या धर्म को पूरी तरह नकार देना चाहिए?
उत्तर: नहीं, धर्म का उद्देश्य मूलतः शांति, प्रेम और नैतिकता सिखाना है। समस्या धर्म में नहीं, बल्कि जब उसे सत्ता, राजनीति या कट्टरता का रूप दे दिया जाता है।

Q4. इंसानियत धर्म से ऊपर क्यों मानी जाती है?
उत्तर: इंसानियत हर धर्म का मूल है। अगर कोई धर्म मानवता की रक्षा नहीं करता, बल्कि लोगों को बाँटता है, तो उसका पालन व्यर्थ है। पहले इंसान बनना ज़रूरी है, फिर धार्मिक।

Q5. क्या धार्मिक कट्टरता को रोका जा सकता है?
उत्तर: हाँ, शिक्षा, संवाद, सहिष्णुता और आपसी समझ के ज़रिए कट्टरता को रोका जा सकता है। जब लोग सवाल करना सीखते हैं और सोच-समझ कर निर्णय लेते हैं, तब समाज में संतुलन आता है।

Q6. मानवता की रक्षा कैसे की जा सकती है?
उत्तर: मानवता की रक्षा तभी संभव है जब हम एक-दूसरे को धर्म, जाति, भाषा से ऊपर उठकर देखें। छोटे-छोटे कार्य जैसे मदद करना, भेदभाव से बचना और प्रेम फैलाना इस दिशा में बड़े कदम हैं।

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