नीचे प्रस्तुत है एक प्रवचन, जिसमें यह दर्शाया गया है कि मनुष्य अपने वास्तविक मार्ग से तभी भटकता है जब वह बाहरी उपलब्धियों और खोजों को आत्म-खोज से अधिक महत्व देने लगता है।

प्रारंभिक उद्घोषणा

"मनुष्य का मार्ग उसी दिन खो गया, जिस दिन उसने स्वयं को खोजने से भी ज्यादा मूल्यवान किन्हीं और खोजों को मान लिया।"

— ओशो

मेरे प्रिय साथी, आज हम एक ऐसे सत्य की ओर ध्यान देने जा रहे हैं जो हमारे अस्तित्व की गहराइयों में छिपा है। एक सत्य जो कहता है कि जब हम बाहरी चमक-दमक और उपलब्धियों के भ्रम में इतने खो जाते हैं कि हम अपनी आत्मा की आवाज़ सुनना भूल जाते हैं, तब हमारा मार्ग भटक जाता है। हम अपने भीतर की खोज को उपेक्षित कर देते हैं और एक भ्रमित यात्रा पर निकल पड़ते हैं।

बाहरी खोज और आंतरिक सत्य

आज के आधुनिक युग में, जहाँ तकनीक, विज्ञान और भौतिक उपलब्धियों का जश्न मनाया जाता है, वहाँ एक अनदेखा खंडन हो रहा है। हम सब ऐसे उपकरणों और उपलब्धियों में उलझ जाते हैं, जो हमारे आत्मिक विकास की अपेक्षा कहीं अधिक चमकीले और आकर्षक लगते हैं। लेकिन क्या ये बाहरी उपलब्धियाँ वास्तव में हमारी आत्मा की गहराइयों को संतुष्ट कर सकती हैं? ओशो कहते हैं कि जब हम अपने भीतर की आवाज़ को सुनना छोड़ देते हैं और केवल बाहरी मान्यता के पीछे भागते हैं, तब हमारा अस्तित्व आधा रह जाता है।

इस बात को समझने के लिए हमें एक छोटी सी कहानी याद करनी चाहिए – एक कहानी उस मोती की, जिसे ढूंढने में हम अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर देते हैं। एक बार एक किसान था जिसने अपने खेत में सबसे कीमती मोती छुपा हुआ था। लेकिन उसकी आंखें दूर-दराज की चमकती चीज़ों में लगी रहीं, उसे यह पता ही नहीं चला कि उसके पास सबसे कीमती वस्तु उसके खेत में ही है। इसी प्रकार, जब हम बाहरी खोजों में इतने डूब जाते हैं कि हम अपनी आत्मा की खोज करना भूल जाते हैं, तब हम अपने वास्तविक मार्ग से भटक जाते हैं।

व्यंग्य और हास्य की छाया

सोचिए, अगर हम अपनी आत्मा की खोज को एक पार्टी के रूप में देखें, जहाँ हर कोई बाहरी शोरगुल में मस्त है, तो उस पार्टी में वह व्यक्ति कौन होगा जो अकेले कमरे के कोने में चुपचाप बैठा होगा – वह जो अपनी आत्मा की मधुर धुन सुन रहा हो। क्या वह भी उस पार्टी का आनंद ले रहा है? नहीं, वह उस पार्टी से बाहर, एक शांत बगिया में बैठा है, जहाँ उसके दिल की आवाज़ गूंजती है। ओशो अक्सर कहते थे, "बाहर की दुनिया आपको उलझन में डाल देती है, पर जब आप खुद को जान लेते हैं, तो हर चीज़ एक गीत की तरह लगती है।"

हास्य में भी एक गहरी सच्चाई होती है। हम अक्सर अपने आप को दूसरों के मानकों से नापते हैं और अपने आत्मिक विकास को पीछे छोड़ देते हैं। यह व्यंग्य तब उत्पन्न होता है जब हम समझते हैं कि हम अपने भीतर की अनंतता को नापने की कोशिश में, उसी अनंतता के अंश को खो देते हैं।

वैज्ञानिक तथ्य और रूपकों की दास्तां

आधुनिक विज्ञान भी हमें यही संदेश देता है। भौतिकी के अनुसार, ब्रह्मांड एक अनंत ऊर्जा का स्रोत है – एक ऐसी ऊर्जा जो अनंत संभावनाओं से भरी हुई है। परंतु जब हम उस ऊर्जा को केवल उर्जा स्रोत या अणुओं के रूप में देखने लगते हैं, तो हम उसके रहस्य और उसकी आत्मा को देखना भूल जाते हैं। जैसे कि क्वांटम सिद्धांत ने बताया कि कण भी ऊर्जा के रूप में विद्यमान हैं, वैसे ही हम भी आत्मा की अदृश्य ऊर्जा हैं जो हमारे भीतर बह रही है।

एक उदाहरण लेते हैं – एक सितारा। सितारे की चमक हमें आकाशगंगा की विशालता का आभास कराती है। लेकिन क्या हम कभी उस सितारे की आत्मा, उसकी उत्पत्ति और उसकी अंतिम कहानी के बारे में सोचते हैं? नहीं। हम केवल उसकी चमक पर मोहित हो जाते हैं। इसी प्रकार, हम अपनी उपलब्धियों की चमक में इतने खो जाते हैं कि हमारी आत्मा की गहराईयों तक पहुंचने का प्रयास ही नहीं कर पाते।

रूपक: दो नदी का मिलन

एक समय की बात है, दो नदियाँ थीं – एक तीव्र बहती हुई नदी, जो निरंतर अपने किनारों को बदल देती थी, और दूसरी शांत, धीमी बहती हुई नदी, जो अपने स्थिर प्रवाह में गहरी बातें कहती थी। तीव्र नदी ने अपनी तेज़ धारा में यह मान लिया कि उसका हर बूंद महत्व रखती है, जबकि शांत नदी ने अपनी धीरे-धीरे बहती बूंदों में अपनी आत्मा की अनुभूति की। एक दिन तीव्र नदी और शांत नदी के संगम पर, तीव्र नदी ने कहा, "देखो, मैं कितनी तेज़ हूँ, मेरे पास तो दुनिया भर की जानकारियाँ हैं!" शांत नदी मुस्कुराई और बोली, "हो सकता है कि तुम्हारे पास जानकारियाँ हों, पर मेरी बूंदें जीवन की गहराईयों से भरी हैं।" यह रूपक हमें बताता है कि बाहरी तेज़ी और उपलब्धियाँ सिर्फ एक झिलमिलाहट हैं, जबकि आंतरिक शांति और आत्मा की अनुभूति जीवन का सार है।

बाहरी उपलब्धियाँ: एक छलावा

मेरे प्रिय साधक, आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ सोशल मीडिया, प्रतिस्पर्धा, और भौतिक उपलब्धियाँ हमारे जीवन का आधार बन चुकी हैं। हम अपने जीवन को मापने के लिए उन लाइकों, लाइक्स, और फॉलोअर्स में उलझ जाते हैं। पर क्या यह मापदंड हमारे वास्तविक अस्तित्व को समझने में हमारी मदद करते हैं? ओशो कहते थे, "जब तक आप अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनेंगे नहीं, तब तक आप उस भ्रम में फंसते रहेंगे कि सफलता का अर्थ केवल बाहरी उपलब्धियाँ हैं।"

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे एक फूल जो सूरज की रोशनी में खिलता है, पर उसकी खुशबू कभी भी महकती नहीं। बाहरी उपलब्धियाँ केवल हमें एक अस्थायी संतुष्टि देती हैं, लेकिन आत्म-खोज हमें उस अनंत खुशबू से परिचित कराती है जो जीवन को वास्तव में महकदार बनाती है। विज्ञान भी यही कहता है – जब हम बाहरी संसाधनों में अपने आप को मस्तिष्क के तर्कों से बांध लेते हैं, तो हम उस बायोलॉजिकल रिदम को भूल जाते हैं जो हमारे हृदय की धड़कन से जुड़ा है।

ओशो की शैली में व्याख्या

ओशो की वाणी में हमेशा एक अलग ही चमक होती है। वे न केवल आध्यात्मिकता का उपदेश देते हैं, बल्कि अपने शब्दों में एक व्यंग्य और हास्य की चाशनी भी घोल देते हैं। उनके शब्दों में एक ऐसी सरलता होती है, जिससे हम समझते हैं कि जीवन की गहराई तक पहुँचने का रास्ता कितना सरल है – बस अपने अंदर झाँकने की आवश्यकता है। ओशो कहते थे, "बाहर की दुनिया एक तमाशा है, जहां हर कोई अभिनेता है। पर असली नाटक तो आपके अंदर ही हो रहा है, जहां आप स्वयं अपने निर्माता और रचनाकार हैं।"

सोचिए, अगर हम एक मूवी देखें जिसमें हर पात्र एक नकाब पहनकर चल रहा हो, तो असली कहानी तो पर्दे के पीछे छिपी होती है। इसी तरह, हमारी आत्मा भी एक अनदेखी कहानी है, जिसे हमें स्वयं खोज निकालना है। बाहरी उपलब्धियाँ एक रंगमंच का दृश्य हैं, लेकिन वास्तविक आनंद तब मिलता है जब हम पर्दे के पीछे जाकर स्वयं के अस्तित्व को समझते हैं।

ध्यान और आत्म-जागरूकता का महत्व

अंततः, मेरे प्यारे साथी, हमें यह समझना होगा कि आत्म-जागरूकता ही वह दीपक है जो हमें अंधकार से बाहर निकालता है। ध्यान के अभ्यास से हम अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा से जुड़ते हैं, जो हमें जीवन की सच्चाई का अनुभव कराती है। ध्यान केवल एक तकनीक नहीं है, यह एक जीवन शैली है। जब हम ध्यान करते हैं, तो हम अपने विचारों, भावनाओं और अस्तित्व के प्रति जागरूक होते हैं।

ध्यान का अभ्यास हमें यह सिखाता है कि हम अपने अंदर कितनी गहराई से जुड़े हुए हैं। जब हम बाहरी दुनिया की चमक-दमक से दूरी बना लेते हैं, तब हम अपने अंदर की अनंत सच्चाई से मिलते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से भी यह साबित होता है कि ध्यान करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। जैसे कि मस्तिष्क में न्यूरोप्लास्टिसिटी बढ़ती है, हार्मोनल संतुलन सुधरता है, और तनाव कम होता है – ये सभी संकेत हैं कि ध्यान हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

एक कहानी: खोया हुआ यात्री

एक बार एक यात्री था जो अपने जीवन की खोज में दूर-दूर की यात्राओं पर निकल पड़ा। उसने पहाड़ों की ऊँचाइयों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक की यात्राएं की, लेकिन फिर भी उसे वह सच्चाई नहीं मिली जिसकी उसे तलाश थी। उसने सोचा, "शायद किसी और देश में, किसी और संस्कृति में मुझे मेरी आत्मा की झलक मिलेगी।" लेकिन एक दिन, जब वह थक कर एक छोटे से गाँव में पहुंचा, वहाँ के एक वृद्ध साधु ने उसे एक सरल पाठ पढ़ाया – "अपनी आँखें बंद करो और अपने भीतर झाँको।" उस साधु की बातों में एक अनोखी गहराई थी। यात्री ने उस दिन से यह समझ लिया कि असली खोज बाहर नहीं, बल्कि अपने अंदर है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हम जितनी बार बाहरी उपलब्धियों में खोए रहते हैं, हमारी आत्मा की वह अद्भुत यात्रा उसी क्षण रुक जाती है।

व्यंग्य की उपमा: बाहरी संसार की माया

आज के समय में जब हम समाज के मानदंडों और परम्पराओं की बात करते हैं, तो यह एक व्यंग्यात्मक नाटक से कम नहीं लगता। हम ऐसे जाल में फंस गए हैं जहाँ बाहरी मान्यताएं और उपलब्धियाँ ही हमारी पहचान बन गई हैं। सोचिए, एक व्यक्ति जो महंगे ब्रांड्स, तेज़ गाड़ियाँ और बड़ी-बड़ी इमारतों के पीछे भागता है, लेकिन उसकी आत्मा एक खाली कमरे की तरह होती है। ओशो इस बात को बड़े ही व्यंग्यपूर्ण अंदाज़ में कहते हैं कि "बाहरी चीज़ें आपको केवल एक भ्रम का अहसास दिलाती हैं, जबकि आपकी आत्मा में वह अनंत शांति है जिसे आप खोज ही नहीं पाते।"

यह व्यंग्य हमें यह याद दिलाता है कि हमारे अस्तित्व की असली खुशी बाहरी संसार की सामग्री में नहीं, बल्कि हमारे अंदर की अनंतता में छिपी हुई है। जब हम अपने आप को केवल बाहरी चीज़ों में मापते हैं, तो हम उस अनंत स्रोत से कट जाते हैं जहाँ से असली खुशी की उत्पत्ति होती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ध्यान

आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान ने भी ध्यान के अभ्यास के महत्व को प्रमाणित किया है। न्यूरोसाइंस के शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि नियमित ध्यान से मस्तिष्क के उस हिस्से की सक्रियता बढ़ जाती है, जो सहानुभूति, सृजनात्मकता और आंतरिक संतुलन से जुड़ा है। इसका मतलब है कि जब हम ध्यान में डूब जाते हैं, तो हम अपने दिमाग के उन हिस्सों को जगाते हैं जो हमें जीवन की गहराईयों को समझने में सहायता करते हैं।

इसके अलावा, वैज्ञानिक अध्ययनों ने यह भी दिखाया है कि ध्यान करने से तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल का स्तर कम होता है, जिससे न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार आता है। यह तथ्य हमें यह सिखाता है कि बाहरी उपलब्धियों और भौतिक सफलताओं की चमक-दमक कितनी क्षणभंगुर है, जबकि ध्यान हमारे जीवन में स्थायी संतुलन और शांति का संचार करता है।

रूपकों का समावेश: आत्मा की आवाज़

कल्पना कीजिए कि आप एक विशाल जंगल में हैं, जहाँ हर पेड़, हर पत्थर और हर हवा का झोंका आपको कुछ न कुछ कहता है। उस जंगल में, अगर आप सिर्फ बाहरी आवाज़ों में खो जाएंगे, तो आप उस अद्भुत मधुर संगीत को सुनने से चूक जाएंगे जो प्रकृति स्वयं रच रही है। इसी प्रकार, जब हम अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनने में विफल रहते हैं, तो हम अपने अस्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण संगीत सुनने से चूक जाते हैं।

यह रूपक हमें यह याद दिलाता है कि बाहरी आवृत्तियों में उलझकर हम उस अनंत सिम्फनी से दूर हो जाते हैं जो हमारे अंदर ही बसी होती है। यह सिम्फनी हमें हमारे अस्तित्व की गहराईयों से जोड़ती है, हमें हमारे अस्तित्व का असली अर्थ समझाती है।

आध्यात्मिक साधकों के लिए संदेश

मेरे प्रिय आध्यात्मिक साधकों, हमें यह समझना चाहिए कि बाहरी उपलब्धियाँ केवल एक भ्रम हैं, एक क्षणभंगुर चमक है जो हमारी आत्मा की सच्चाई को छिपा लेती है। जब हम अपने जीवन के उद्देश्य को केवल भौतिक सफलता में नापते हैं, तो हम उस महान सागर की ओर कदम नहीं बढ़ाते, जिसमें हमारी आत्मा की अनंत गहराई छिपी है।

हमारा असली उद्देश्य है – स्वयं के अंदर की खोज करना। जब हम अपने भीतर झाँकते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे अंदर वह शक्ति, वह आनंद, और वह शांति विद्यमान है, जिसे कोई बाहरी उपलब्धि कभी नहीं दे सकती। यह शांति हमें एक ऐसी स्थिति में ले जाती है जहाँ हम जीवन के हर पल का अनुभव करते हैं – चाहे वह खुशी हो या दुःख। हर अनुभव हमें हमारे वास्तविक स्व के और करीब ले आता है।

व्यंग्यात्मक प्रश्नोत्तरी

अब एक सवाल उठता है – क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों हम इतने उत्सुकता से बाहरी उपलब्धियाँ अर्जित करने की ओर भागते हैं? क्या हम वास्तव में समझते हैं कि ये उपलब्धियाँ क्या हैं? एक बार ओशो ने कहा था, "जब तक आप अपनी आत्मा के साथ संवाद नहीं करेंगे, तब तक आप किसी और से संवाद करने में व्यस्त रहेंगे।" यह एक व्यंग्यात्मक सच है, क्योंकि हम अपने दिल की आवाज़ को अनसुना करते हुए, समाज की आवाज़ को सुनते हैं।

यह सोचकर हँसी आती है कि कैसे हम अपने आप को इतना उलझा लेते हैं कि अंततः हम भूल जाते हैं कि हमारी असली पहचान क्या है। हम उन नकाबों के पीछे छिप जाते हैं जो हमने अपनी उपलब्धियों से पहन रखे होते हैं, और उसी नकाब में हम स्वयं को पहचान ही नहीं पाते। इस व्यंग्य से हमें यह सीख मिलती है कि आत्म-खोज की ओर कदम बढ़ाना ही हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।

ध्यान का अभ्यास: एक संक्षिप्त निर्देश

अब, मेरे प्यारे साथी, जब हमने बाहरी दुनिया की चमक-दमक और उसके भ्रम को समझ लिया है, तो आइए हम अपनी आत्मा की आवाज़ सुनने का एक सरल अभ्यास करें। यह ध्यान का अभ्यास आपके अंदर की अनंत ऊर्जा को जगाने में मदद करेगा:

आरामदायक स्थिति में बैठें: एक शांत स्थान चुनें जहाँ आपको कोई बाधा महसूस न हो। आपकी पीठ सीधी हो और आप आराम से बैठें।

न्यूनतम विचलन: अपने आस-पास के सभी बाहरी शोर-गुल को भूल जाएँ। अपनी आंखें बंद कर लें और गहरी सांस लें।

सांस पर ध्यान: अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें। महसूस करें कि कैसे हर सांस आपके शरीर में प्रवेश करती है और फिर धीरे-धीरे बाहर निकलती है।

विचारों को आने दें: यदि कोई विचार आएं, तो उन्हें बिना जज किए जाने दें। बस उन्हें महसूस करें और फिर जाने दें, जैसे पत्ते पानी पर तैरते हैं।

आंतरिक आवाज़ सुनें: कुछ क्षण के लिए, सिर्फ अपने दिल की धड़कन सुनें। महसूस करें कि वह कैसे आपके अस्तित्व का संगीत बुन रही है।

समापन: ध्यान समाप्त करते समय धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलें, और इस अनुभूति को अपने दिनचर्या में लाने का संकल्प लें।

इस संक्षिप्त ध्यान अभ्यास के माध्यम से आप स्वयं की खोज की शुरुआत कर सकते हैं। यह अभ्यास न केवल आपके मन को शांत करता है, बल्कि आपकी आत्मा को भी उस अनंत शांति से जोड़ता है जिसे आप हमेशा खोजते हैं।

समापन

आज के इस प्रवचन में हमने देखा कि कैसे बाहरी उपलब्धियाँ और समाज की माया हमें उस सच्चे मार्ग से भटका देती हैं जो हमारे भीतर छिपा हुआ है। जब हम अपने अंदर की अनंत ऊर्जा को न पहचानें, तो हम एक भ्रम में जीते हैं जहाँ हम अपने असली स्व से कट जाते हैं। ओशो की यह शिक्षा हमें याद दिलाती है कि असली सफलता वही है जो हमारे आत्मा की गहराईयों से आती है, न कि बाहरी उपलब्धियों की चमक से।

मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि जब भी जीवन की दौड़ में आप खो जाएँ, तो एक पल के लिए रुकें, गहरी सांस लें और अपने भीतर की आवाज़ सुनें। याद रखें, बाहरी दुनिया का तमाशा केवल एक क्षणभंगुर खेल है, पर आपकी आत्मा का संगीत अनंत है।

इस प्रवचन में हमने व्यंग्य के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि बाहरी उपलब्धियाँ कितनी क्षणिक हैं, और आत्म-खोज की महत्ता को समझने के लिए वैज्ञानिक तथ्यों और रूपकों का सहारा लिया। ओशो की शैली में बोले तो, "जब तक आप अपने भीतर के उस विशाल सागर की गहराईयों में उतरेंगे नहीं, तब तक आप केवल समुद्र की सतही लहरों के साथ खेलते रहेंगे।"

आखिरकार, मेरी प्रिय आत्मिक साधकों, आपकी यात्रा उसी समय पूर्ण होती है जब आप बाहरी दुनिया के भ्रम से मुक्त होकर अपने स्वयं के अस्तित्व को समझते हैं। यह यात्रा सरल नहीं है, परंतु इसके हर कदम पर आपको वह सच्ची शांति मिलेगी जिसे आपने हमेशा चाहा है।

याद रखिए, बाहरी उपलब्धियाँ एक झिलमिलाती हुई छाया मात्र हैं, जबकि आपकी आत्मा की रोशनी अनंत और अद्वितीय है। इस सत्य को आत्मसात करें और अपने जीवन में ध्यान और आत्म-जागरूकता को अपना लें।

एक अंतिम विचार

आज जब आप अपने दैनिक जीवन में लौटें, तो यह सोचें कि आप कहाँ से आए हैं और कहाँ जाना है। बाहरी दुनिया के भ्रम में मत खो जाइए, बल्कि अपने अंदर की सच्चाई को खोजिए। अपनी आत्मा के उस असीम महासागर में डूब जाइए जहाँ हर लहर, हर बूंद आपको जीवन का नया अर्थ दे।

ओशो ने हमें यह संदेश दिया कि "मनुष्य का मार्ग उसी दिन खो गया, जिस दिन उसने स्वयं को खोजने से भी ज्यादा मूल्यवान किन्हीं और खोजों को मान लिया।" तो आइए, इस संदेश को अपने दिल में जगह दें, और बाहरी चमक-दमक की झिलमिलाहट को छोड़कर अपनी आत्मा की अनंत यात्रा पर निकल पड़ें।

ध्यान की ओर एक आमंत्रण

अब, जब आपने इस प्रवचन को सुना है, तो मैं आपको एक छोटे से ध्यान अभ्यास के लिए आमंत्रित करता हूँ। यह अभ्यास आपके भीतर की शांति और जागरूकता को बढ़ाने में मदद करेगा:

सुखदायक शरण: सबसे पहले एक शांत और एकांत स्थान पर बैठें। अपनी पीठ को सीधा रखें और आराम से बैठ जाएँ।

गहरी सांस: अपनी आँखें बंद करें और कुछ गहरी सांस लें। हर सांस के साथ अपने आप को अधिक शांत महसूस करें।

अंतर्मुखी होना: अब अपने मन की सभी गतिविधियों को शांत होने दें। सोचें कि आप एक शांत झील के किनारे हैं, जहाँ पानी की सतह पर केवल आपकी ही परछाई दिख रही है।

स्वयं से संवाद: अपने आप से कहें, "मैं यहाँ हूँ, मैं आत्मा की आवाज़ सुन रहा हूँ।" इस मंत्र को कुछ बार दोहराएं।

ध्यान का समापन: कुछ मिनटों तक इस स्थिति में रहें, फिर धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलें और अपने दिन की शुरुआत करें।

इस सरल ध्यान अभ्यास को अपने दैनिक जीवन में शामिल करें और देखिए कैसे आपकी आत्मा की गहराईयों से एक नई ऊर्जा का संचार होता है।

निष्कर्ष

इस प्रवचन के माध्यम से हमने समझा कि बाहरी उपलब्धियाँ केवल एक झूठे भ्रम की तरह हैं, जो हमें असली, गहरी आत्म-खोज से दूर ले जाती हैं। जब हम बाहरी दुनिया की चमक-दमक में उलझकर अपने भीतर की सच्चाई से अनजान हो जाते हैं, तो हम एक अनंत अंधकार में खो जाते हैं। ओशो की शिक्षा हमें यही बताती है कि असली मार्ग वही है जो आत्म-जागरूकता और ध्यान के माध्यम से खुलता है।

मेरे प्रिय साथी, यह समय है कि हम बाहरी मानदंडों और उपलब्धियों के भ्रम से ऊपर उठें और अपने अंदर की अनंतता को जानें। अपनी आत्मा के उस दीप को जलाएँ, और वह उजाला अपने पूरे अस्तित्व में फैलाएँ। याद रखिए, बाहरी दुनिया का तमाशा हमेशा क्षणभंगुर रहेगा, पर आपकी आत्मा की अमर ज्योति सदैव आपके साथ रहेगी।

इस प्रवचन के अंत में, मैं आपको एक बार फिर याद दिलाता हूँ – अपनी आत्मा की खोज करें, ध्यान की ओर अग्रसर हों, और बाहरी उपलब्धियों के भ्रम से मुक्त होकर असली जीवन का आनंद उठाएँ।

जय हो आत्म-जागरूकता की, जय हो शांति की, और जय हो उस अनंत स्रोत की, जो हम सब के भीतर बसा हुआ है।




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