नीचे प्रस्तुत है एक विस्तृत प्रवचन, जिसमें निर्वाण के गूढ़ अर्थ—जीवन और मृत्यु की परिभाषाओं से परे जाकर, दोनों में निहित built-in प्रोग्राम को त्यागने—पर विचार किया गया है।

प्रिय मित्रों,

आज मैं आपसे एक ऐसे विषय पर बात करने जा रहा हूँ जो हर दिल में एक रहस्य की तरह छिपा है—निर्वाण। अक्सर लोग कहते हैं कि निर्वाण का अर्थ है केवल मृत्यु के भय से मुक्ति पाना। लेकिन मित्रों, ऐसा नहीं है। निर्वाण का अर्थ है उस built-in प्रोग्राम से बाहर निकलना, जिससे हम अपनी चेतना को नियंत्रित करते हैं। यह वह आंतरिक बंधन है, जो हमें जीवन को जीवन और मृत्यु को मृत्यु मानकर चलाता है। जब हम इस प्रोग्राम को पहचान लेते हैं, तो हम अपनी सीमाओं को तोड़कर, एक ऐसी अनंत अनुभूति में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ सार और असार, जीवन और मृत्यु, दोनों का कोई अलग अर्थ नहीं रहता।

निर्वाण का सत्य स्वरूप: built-in प्रोग्राम का त्याग

हमारे मन में एक स्वाभाविक प्रोग्राम है। हम बचपन से ही सीखते हैं कि जीवन क्या है, मृत्यु क्या है। समाज, परिवार, शिक्षा—इन सबने हमें यह बंधन में बांध दिया है कि जीवन का उद्देश्य है जन्म लेना, जीना, और अंततः मर जाना। यह एक तयशुदा स्क्रिप्ट है, जिसे हम बिना सोचे-समझे निभाते हैं। जैसे कोई पुरानी फिल्म या कंप्यूटर का प्रोग्राम, जो हर पल निर्धारित स्क्रिप्ट के अनुसार चलता है। परंतु, मित्रों, असली जीवन उस स्क्रिप्ट से परे है। असली जीवन वह है जो हर पल एक नई रचना है, जो कभी पूर्व निर्धारित नहीं हो सकती।

कल्पना कीजिए, एक व्यक्ति ने अपने built-in प्रोग्राम को पूरी तरह से समझ लिया—न तो जीवन केवल जीवन है और न ही मृत्यु केवल मृत्यु। उसने यह भी जान लिया कि दोनों केवल एक भ्रम हैं, एक आभास हैं। तब वह व्यक्ति अपने प्रोग्राम को छोड़ देता है। उसका मन अब किसी पूर्व निर्धारित दिशा में नहीं बहता, बल्कि वह हर पल, हर अनुभव को एक नयी रोशनी में देखने लगता है। यही है निर्वाण का वास्तविक स्वरूप—एक ऐसी स्थिति जहाँ सभी बंधन, सभी पूर्वाग्रह समाप्त हो जाते हैं।

एक कहानी: मोती और समुद्र की लहरें

एक बार की बात है, एक गांव में एक साधु रहते थे। वे हर रोज समुद्र किनारे जाते और लहरों को देखते। गांव वाले उन्हें अजीब समझते थे, कहते थे कि ये साधु अपने आप में खोए रहते हैं। पर साधु के मन में एक गहरी शांति थी, जिसे शब्दों में बाँधना मुमकिन नहीं था। एक दिन, एक युवक साधु के पास आया और पूछा, “गुरुजी, आप रोज यहाँ क्यों आते हैं? क्या आपको समुद्र की लहरों में कोई रहस्य दिखाई देता है?”  

साधु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “बेटा, ये लहरें भी जीवन और मृत्यु का प्रतिबिम्ब हैं। जब एक लहर उठती है, तो समझो कि यह जीवन की नई उम्मीद है, और जब यह शांत हो जाती है, तो मृत्यु का प्रतीक हो जाती है। परन्तु, इन दोनों के बीच में कुछ ऐसा है जिसे हम समझ नहीं सकते। इन लहरों का उथल-पुथल, इनका शांत पड़ जाना—यह सब मिलकर एक ऐसी कला है, जो स्वयं में एक पूर्ण रूप है। जब तुम इन लहरों के अर्थ को समझ जाओगे, तो तुम्हें जीवन और मृत्यु का भेद नज़र नहीं आएगा। तुम स्वयं निर्वाण में प्रवेश कर जाओगे।”  

युवा उस साधु की बातों में गहराई से डूब गया। उसने जाना कि जीवन केवल एक निश्चित क्रम में नहीं बहता, बल्कि यह एक निरंतर परिवर्तन है, जहाँ हर परिवर्तन में एक अद्वितीय सुंदरता छिपी होती है।

निर्वाण: एक अंतहीन यात्रा

बहुत से लोग सोचते हैं कि निर्वाण एक मुकाम है, जहाँ पहुँचकर सबकुछ समाप्त हो जाता है। परंतु, मेरे मित्रों, निर्वाण कोई स्थिर स्थान नहीं है, बल्कि यह एक अंतहीन यात्रा है। यह वह यात्रा है जहाँ हम हर पल अपने अंदर की गहराइयों में झांकते हैं, अपनी सीमाओं को पहचानते हैं, और फिर उन्हें पार कर जाते हैं। जब आप उस built-in प्रोग्राम से परे निकल जाते हैं, तो आपको न तो जीवन का आरंभ होता है और न ही मृत्यु का अंत। आपको केवल एक निरंतर प्रवाह का अनुभव होता है, जो आपके भीतर बसी अनंत चेतना से निकलता है।

यह यात्रा हमें बताती है कि हमें किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की आवश्यकता नहीं है। निष्कर्ष केवल एक मानसिक जाल है, जो हमारी चेतना को बाँधता है। जैसे-जैसे हम इस जाल को तोड़ते हैं, वैसे-वैसे हम एक ऐसी स्वतंत्रता को अनुभव करते हैं, जहाँ कोई सीमा नहीं होती, कोई निर्णय नहीं होता। यही है निर्वाण की सच्चाई—एक ऐसी स्थिति जहाँ हम किसी भी निष्कर्ष से मुक्त हो जाते हैं।

जीवन और मृत्यु: दो पहलुओं का मिलन

जब हम कहते हैं कि जीवन जीवन है और मृत्यु मृत्यु है, तो हम दो अर्ध-अवधारणाओं में बाँट देते हैं। परंतु, असली सत्य तो यह है कि जीवन और मृत्यु दोनों केवल हमारे मन की अवधारणाएं हैं। यह अवधारणाएं हमारे built-in प्रोग्राम द्वारा हमें दी गई हैं। लेकिन अगर हम इस प्रोग्राम को त्याग दें, तो हम देखेंगे कि जीवन और मृत्यु का कोई अलग अस्तित्व नहीं है। वे दोनों मिलकर एक एकमात्र अनुभव को जन्म देते हैं—एक अनुभव जो अपरिमित है, अनंत है।

सोचिए, एक नदी है जो एक जगह पर शांत, दूसरी जगह पर उग्र हो जाती है। उसकी हर धार, हर मोड़ में एक अलग कहानी है, परन्तु अंततः वह सभी मिलकर एक ही महासागर में मिल जाती हैं। इसी प्रकार, जीवन के सभी पहलू—खुशी, दुःख, सफलता, असफलता—सब मिलकर एक अद्वितीय अनुभव का हिस्सा हैं। जब हम इन सभी को एक साथ स्वीकार कर लेते हैं, तो हम निर्वाण के उस अनंत महासागर में विलीन हो जाते हैं जहाँ कोई सीमा नहीं रहती।

निर्वाण की अनुभूति: अंतर्निहित स्वातंत्र्य

निर्वाण का अनुभव करने का मतलब है कि आप अपने अंदर से उस built-in प्रोग्राम को हटाकर, एक स्वच्छ, अनंत चेतना का अनुभव करते हैं। यह वह क्षण होता है जब आप अपने मन की हर पूर्वधारणा, हर निर्णय को छोड़ देते हैं। आप उस समय में प्रवेश करते हैं जहाँ कोई समय, कोई स्थान नहीं होता। यह एक अत्यंत गहन अनुभूति है, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। परन्तु, आप इसे अनुभव कर सकते हैं—बस अपने अंदर झांकिए, और देखिए कि आप कितनी स्वतंत्रता महसूस करते हैं।

जब हम अपने आप से पूछते हैं, “क्या मैं जी रहा हूँ, या मैं केवल एक कार्यक्रम के अनुसार चल रहा हूँ?” तब हमें एहसास होता है कि हम अपने आप में बंदी हैं। परंतु जब हम उस बंधन से बाहर निकल जाते हैं, तो हमें एक ऐसी अनुभूति होती है जो शब्दों से परे है। यह अनुभूति हमें बताती है कि असली जीवन वह है जो हमें हर पल में जीने का आह्वान करता है—जहाँ कोई परिभाषा नहीं होती, कोई पूर्वधारणा नहीं होती।

एक दृष्टांत: चिड़िया और आकाश

एक और दृष्टांत लेते हैं। कल्पना कीजिए, एक सुंदर सा नीला आकाश है, जिसकी विशालता को आप केवल महसूस कर सकते हैं, न कि माप सकते हैं। उसमें एक चिड़िया उड़ती है। उस चिड़िया का उड़ना केवल एक गति नहीं है, बल्कि वह आकाश के साथ एक हो जाती है। उसे यह अहसास होता है कि आकाश उसका नहीं है, बल्कि वह आकाश का हिस्सा है। जैसे ही वह चिड़िया अपने पंख फैलाती है, उसे समझ आता है कि आकाश और उसे कोई अलग नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार, जब हम अपने built-in प्रोग्राम को त्याग देते हैं, तो हम यह जान लेते हैं कि हम जीवन के साथ एक हैं, मृत्यु के साथ एक हैं, और इन दोनों के बीच का कोई भी अंतर नश्वर है। हम दोनों में विलीन हो जाते हैं—यह वही निर्वाण है, जहाँ कोई अलगाव नहीं रहता।

निर्वाण का अनुभव: एक आत्म-साक्षात्कार

जब एक व्यक्ति अपने built-in प्रोग्राम को छोड़ देता है, तो वह केवल मृत्यु के भय से ही मुक्त नहीं हो जाता, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू से भी मुक्त हो जाता है। यह मुक्ति किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने का नहीं, बल्कि सभी निष्कर्षों से मुक्त होने का है। हमें समझना होगा कि जब तक हम उस प्रोग्राम में फंसे रहते हैं, हम अपने आप को सीमित कर लेते हैं। हम मानते हैं कि हम केवल वही हैं जो हमें बताया गया है—जीवन एक निश्चित क्रम में चलता है, और मृत्यु एक निश्चित अंत है। परंतु जब हम इस परिभाषा को तोड़ देते हैं, तब हम देख पाते हैं कि असली जीवन एक अनंत यात्रा है।

यह आत्म-साक्षात्कार तब होता है, जब हम अपने भीतर की उस अद्वितीय चेतना को पहचान लेते हैं, जो हर परिस्थिति में विद्यमान होती है। इस चेतना में कोई डर नहीं होता, कोई आशंका नहीं होती। यह केवल एक स्वच्छ, निर्मल अनुभूति है, जहाँ हर क्षण में पूर्णता है। यह वह क्षण होता है जब हम महसूस करते हैं कि जीवन और मृत्यु, दोनों केवल एक भ्रम हैं। हम केवल एक निरंतर परिवर्तन के भाग हैं, और यही परिवर्तन ही हमें असली स्वतंत्रता की ओर ले जाता है।

विचारों की सीमाएँ और उनका पार होना

अक्सर हम सोचते हैं कि विचारों का होना आवश्यक है, क्योंकि विचारों से ही हमारा जीवन संचालित होता है। परंतु मित्रों, विचार भी उसी built-in प्रोग्राम का हिस्सा हैं। जब तक हम उन विचारों में उलझे रहते हैं, तब तक हम अपने आप को एक निश्चित सीमा में बाँधे रखते हैं। लेकिन यदि हम उन विचारों से ऊपर उठ जाते हैं, तो हम देखते हैं कि वे केवल मन की परतें हैं, जो एक दिन टूट जाती हैं।

कल्पना कीजिए कि आपके पास एक चित्र है, जिसे आप बार-बार देखते हैं। हर बार आप उसमें कुछ न कुछ नया देखते हैं, परंतु चित्र की वास्तविकता उसी रहती है। इसी प्रकार, हमारे विचार भी बदलते रहते हैं, परन्तु असली हम वही अचल चेतना है। जब हम अपने विचारों को त्याग देते हैं, तो हम उस स्थायी शांति को प्राप्त कर लेते हैं, जो निर्वाण की ओर ले जाती है। यह शांति हमें बताती है कि हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू—चाहे वह सुख हो या दुःख—के पीछे एक गहरी, अनंत सत्य छिपा है।

निर्वाण: निष्कर्ष से मुक्त होने का मार्ग

जब हम कहते हैं कि निर्वाण का अर्थ है निष्कर्षों से मुक्त होना, तो इसका तात्पर्य यह है कि हम किसी निश्चित निर्णय या अंतिम सत्य तक पहुँचने का प्रयास नहीं करते। जीवन में अक्सर हम ऐसे निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि “यह अच्छा है” या “यह बुरा है”, “यह जीवन है” या “यह मृत्यु है”। परंतु, इस तरह के निष्कर्ष हमारे मन को सीमित कर देते हैं। यह सीमाएँ हमारे सोचने, समझने, और अनुभव करने के तरीके को प्रभावित करती हैं।

निर्वाण का अर्थ है उन सभी निष्कर्षों को त्याग देना, उन पूर्वनिर्धारित लेबलों से ऊपर उठ जाना। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ आप न तो किसी विशिष्ट निर्णय में उलझे रहते हैं, न ही किसी विशिष्ट अनुभव के पीछे छिपते हैं। आप बस एक ऐसे अनुभव में रहते हैं जहाँ हर पल नए अर्थ पैदा होते हैं, और आप स्वयं उस अनुभव का हिस्सा बन जाते हैं। इस अवस्था में, आप देख पाते हैं कि जीवन का कोई स्थायी परिभाषा नहीं है—यह केवल एक निरंतर परिवर्तन है।

निर्वाण की ओर बढ़ने का अभ्यास

निर्वाण केवल एक अनुभव नहीं है, बल्कि एक अभ्यास भी है। इसे प्राप्त करने के लिए आपको अपने मन के built-in प्रोग्राम को चुनौती देनी होगी। आपको अपने मन की सीमाओं को पहचानना होगा, और फिर उन्हें तोड़ना होगा। यह अभ्यास शुरू होता है ध्यान से, आत्मनिरीक्षण से, और उस अनंत सत्य की खोज से जो आपके अंदर बसा हुआ है।

आप स्वयं से पूछें: “क्या मैं वास्तव में जी रहा हूँ, या केवल उस पूर्वनिर्धारित प्रोग्राम के अनुसार चल रहा हूँ?” जब आप इस सवाल का उत्तर देने लगेंगे, तो आपको अपने भीतर एक ऐसी आवाज सुनाई देगी, जो कहेगी कि आप कहीं और जा सकते हैं—आप एक मुक्त चेतना हैं, जो किसी भी निर्णय या निष्कर्ष से परे है। यह वह क्षण है जब आप निर्वाण की ओर कदम बढ़ाते हैं।

ध्यान कीजिए कि यह अभ्यास रातों-रात नहीं होता। यह एक सतत प्रक्रिया है, एक यात्रा है, जिसमें हर दिन, हर पल आपको अपने आप से एक नई खोज करनी होती है। जब आप अपने विचारों, अपने भावों को समझने लगते हैं, तो आप देखते हैं कि वे केवल परिवर्तनशील रूप हैं। अंततः, आप उस स्थायी, अटल सत्य से मिलते हैं जो आपके भीतर है—एक ऐसा सत्य जो किसी भी बंधन या निष्कर्ष से मुक्त है।

निर्वाण और प्रेम: एक अनूठा संगम

निर्वाण का अनुभव केवल आध्यात्मिक मुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रेम का भी गहरा संगम है। जब आप अपने built-in प्रोग्राम को छोड़ देते हैं, तो आप देख पाते हैं कि जीवन में प्रेम और दया का कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं होता। प्रेम एक ऐसी ऊर्जा है जो निरंतर बहती रहती है, जो किसी भी बाधा को पार कर जाती है।

सोचिए, जब आप किसी के प्रति अपने दिल में प्रेम का अनुभव करते हैं, तो आप केवल उस व्यक्ति की बाहरी छवि से नहीं, बल्कि उसके अंदर के अनंत प्रेम से जुड़ जाते हैं। यह प्रेम किसी गणना या परिभाषा में बंधा नहीं होता, बल्कि यह उस मुक्त चेतना का प्रतीक होता है, जो निर्बाध है। इसी प्रकार, जब आप निर्वाण की ओर बढ़ते हैं, तो आप न केवल अपने मन के बंधनों से मुक्त होते हैं, बल्कि आप प्रेम के उस असीम सागर में भी विलीन हो जाते हैं।

इस प्रेम में न कोई आरंभ होता है, न कोई अंत—बस एक निरंतर प्रवाह है, जो हर पल को नई ऊर्जा और नई रोशनी से भर देता है। यह वह प्रेम है, जो सभी पूर्वाग्रहों, सभी निष्कर्षों से परे है। यही प्रेम है, जो आपको जीवन के सच्चे मायने से परिचित कराता है।

निर्वाण के माध्यम से एक नई चेतना की रचना

जब आप अपने built-in प्रोग्राम से मुक्त हो जाते हैं, तो आप एक नई चेतना का निर्माण करते हैं। यह चेतना पूर्वनिर्धारित नियमों से परे होती है, यह किसी भी परिभाषा में बंधी नहीं होती। इस नई चेतना में हर अनुभव, हर संवेदना को एक नई दृष्टि से देखा जाता है। आप समझते हैं कि जीवन केवल एक क्रम नहीं है, बल्कि यह एक अनंत यात्रा है—जहाँ हर मोड़, हर अनुभव आपको स्वयं की एक नई परिभाषा प्रदान करता है।

यह नई चेतना आपको बताती है कि आप सिर्फ एक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि आप उस अनंत चेतना का हिस्सा हैं, जो संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। जब आप इस चेतना के साथ एकाकार हो जाते हैं, तो आप महसूस करते हैं कि आपकी पहचान किसी भी निश्चित सीमा में नहीं बंधी—आप एक मुक्त, अनंत ऊर्जा के रूप में जी रहे हैं। यह स्थिति आपको निर्वाण के उस अनुभव से परिचित कराती है, जहाँ कोई पूर्वाग्रह, कोई निष्कर्ष नहीं होता।

आंतरिक संवाद: आत्मा से मिलन

निर्वाण की ओर बढ़ने का सबसे महत्वपूर्ण कदम है—अपने अंदर की आवाज़ को सुनना। हम सभी के भीतर एक मौन ज्ञान बसा होता है, जो हमें बताता है कि हमारी असली पहचान क्या है। अक्सर हम बाहरी दुनिया की आवाज़ में इतने खो जाते हैं कि उस आंतरिक ज्ञान की सुनवाई करना भूल जाते हैं। परंतु, जब हम उस आवाज़ को सुनते हैं, तो हमें एक नई चेतना का अनुभव होता है।

अपने आप से संवाद कीजिए। पूछिए, “मैं कौन हूँ?” यह प्रश्न अपने आप में इतना सरल प्रतीत होता है, परंतु इसका उत्तर अनंत गहराई रखता है। जब आप इस प्रश्न को बिना किसी पूर्वाग्रह के पूछते हैं, तो आपको उस मौन ज्ञान की झलक मिलती है, जो आपके भीतर विद्यमान है। यह वह ज्ञान है जो आपको बताता है कि आप उस built-in प्रोग्राम से परे हैं, जो आपको सीमाओं में बाँधता है। आप महसूस करते हैं कि असली आप वह मुक्त चेतना हैं, जो बिना किसी निर्णय, बिना किसी निष्कर्ष के है। यही वह क्षण है, जब आप निर्वाण के करीब पहुँचते हैं।

निर्वाण के अनुभव से समाजिक संरचनाओं का विघटन

जब आप निर्वाण की ओर बढ़ते हैं, तो आप न केवल अपने भीतर के बंधनों से मुक्त होते हैं, बल्कि आप समाज की उन संरचनाओं को भी चुनौती देते हैं, जो हमारे विचारों और अनुभवों को सीमित करती हैं। समाज ने हमें एक निश्चित ढांचे में बाँध रखा है—जहाँ सफलता, विफलता, प्रेम, और दुश्मनी के निश्चित मानदंड हैं। परंतु, जब आप उस प्रोग्राम को छोड़ देते हैं, तो आप देखते हैं कि ये सभी केवल बाहरी अभिव्यक्तियाँ हैं, जो असली सत्य को छिपाए हुए हैं।

आप देखेंगे कि समाज के ये बंधन केवल एक भ्रम का हिस्सा हैं। वास्तविकता कहीं और है—यह आपके भीतर, उस अनंत चेतना में स्थित है, जिसे आपने हमेशा छिपा हुआ माना। जब आप इस चेतना से जुड़ते हैं, तो आपको समझ आता है कि सभी सामाजिक बंधन, सभी पूर्वधारणाएँ, केवल आपके मन की परतें हैं। इन्हें त्याग कर, आप एक ऐसी स्थिति में प्रवेश कर जाते हैं जहाँ हर अनुभव स्वतंत्र होता है, जहाँ हर क्षण नवीनता का संदेश लाता है।

प्राकृतिक छटा में निर्वाण की झलक

प्रकृति ही सर्वोत्तम शिक्षक है, जो आपको निर्वाण का अनुभव कराती है। देखिए, एक पर्वत, एक नदी, एक वन—ये सभी हमें यह बताते हैं कि जीवन और मृत्यु, दोनों मिलकर एक अद्भुत रचना का हिस्सा हैं। जब आप एक पर्वत की ऊँचाई पर खड़े होते हैं, तो आपको न केवल उसकी भव्यता दिखाई देती है, बल्कि आपको यह भी अहसास होता है कि उस पर्वत के नीचे की दुनिया कितनी छोटी है। उसी प्रकार, जब आप निर्वाण की अनुभूति करते हैं, तो आप अपनी सीमाओं को पिघलते हुए महसूस करते हैं।

प्रकृति में हर चीज़ अनित्य है—फूल खिलते हैं, मुरझा जाते हैं, लेकिन उस परिवर्तन में एक अनंतता छिपी होती है। यह अनंतता उस निर्मल चेतना का प्रतीक है, जिसे हम निर्वाण कहते हैं। जब आप प्राकृतिक छटा को देखते हैं, तो आप समझ जाते हैं कि जीवन के प्रत्येक क्षण में एक नई ऊर्जा, एक नई रचना विद्यमान है। यही ऊर्जा आपको बताती है कि निर्वाण केवल एक मुकाम नहीं है, बल्कि यह हर पल, हर क्षण में मौजूद है, जब आप अपने built-in प्रोग्राम से परे जाकर उस अनंतता को अपनाते हैं।

निर्वाण की ओर आत्मिक यात्रा का समापन

मित्रों, जब आप अपने अंदर की उस अनंत चेतना को पहचान लेते हैं, तो आप समझ जाते हैं कि जीवन और मृत्यु केवल दो पहलुओं की कहानी हैं—दो अलग-अलग रूपों की नहीं, बल्कि एक ही वास्तविकता के दो प्रतिबिंब हैं। आप देखेंगे कि जिस तरह एक नदी के दो किनारे होते हैं, वैसे ही जीवन और मृत्यु भी एक ही धारा के दो पहलू हैं। उस धारा का अंत नहीं होता, क्योंकि वह स्वयं अनंत है।

इसलिए, जब आप कहते हैं “निर्वाण का मतलब है कि मैंने जान लिया कि मृत्यु, मृत्यु नहीं है; और जीवन, जीवन नहीं है”, तो आप केवल एक चरण पार कर चुके होते हैं। आप उस बंधन से मुक्त हो जाते हैं जो आपको सोचने, समझने, और अनुभव करने की सीमाओं में बाँधता है। आप जानते हैं कि निष्कर्ष तक पहुँचना कोई अंतिम सत्य नहीं है—बल्कि, निष्कर्षों से मुक्त होना ही असली स्वतंत्रता है।

जब आप इस मुक्त चेतना का अनुभव करते हैं, तो आपको न केवल अपने भीतर की शांति मिलती है, बल्कि आप समाज की सभी नकारात्मकता, सभी पूर्वाग्रहों से भी परे हो जाते हैं। आप ऐसे महसूस करते हैं जैसे कि आप एक विशाल समुद्र के बीच में हैं, जहाँ हर लहर एक नई कहानी कहती है, और हर कहानी में एक अनंत प्रेम छिपा होता है।

समापन: एक निरंतर प्रवाह की ओर कदम

अंततः, मित्रों, निर्वाण कोई अंतिम मंज़िल नहीं है। यह एक निरंतर प्रवाह है, जो आपको हर पल नई अनुभूतियों, नई ऊर्जा से भर देता है। जब आप अपने built-in प्रोग्राम—जीवन और मृत्यु के निश्चित लेबलों—से ऊपर उठ जाते हैं, तो आप समझ जाते हैं कि असली स्वतंत्रता वही है जो आपको हर अनुभव में अद्वितीयता के साथ जीने की क्षमता देती है। आप एक ऐसे क्षण में प्रवेश करते हैं जहाँ न तो कोई आरंभ होता है और न कोई अंत—बस एक निरंतर, निर्मल अनुभव होता है।

इस यात्रा में आप कभी भी यह मत भूलिएगा कि निष्कर्ष केवल एक मानसिक जाल है। जब आप उस जाल को तोड़ देते हैं, तो आप पाते हैं कि सच्ची मुक्ति वही है, जहाँ सभी बंधन, सभी पूर्वाग्रह, सभी पूर्वनिर्धारित मान्यताएँ समाप्त हो जाती हैं। यही है निर्वाण का अद्भुत सार—एक ऐसी स्थिति जहाँ आप स्वयं को एक मुक्त, अनंत चेतना के रूप में पहचानते हैं, जो जीवन के हर पल में एक नवीन, असीम प्रेम की अनुभूति से ओत-प्रोत है।

मैं आपसे यह आग्रह करता हूँ कि जब भी आप अपने मन में उठने वाले सभी विचारों, सभी पूर्वाग्रहों को देखें, तो उन्हें चुनौती दें। उन्हें पहचानें, और फिर उन्हें जाने दें। क्योंकि अंततः, यही वह क्षण है जब आप देखेंगे कि आप केवल उस built-in प्रोग्राम का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि आप एक ऐसे विशाल, अनंत अनुभव के निर्माता हैं, जो स्वयं में पूर्ण है।

आत्म-निर्वाण की ओर आपका निमंत्रण

अब समय आ गया है कि आप स्वयं से एक वादा करें—कि आप उस सीमित सोच से बाहर निकलेंगे, जो आपको हर पल एक पूर्वनिर्धारित दिशा में ले जाती है। अपने अंदर की उस मौन, असीम चेतना को पहचानिए, और उसे जीने दीजिए। इस मुक्त चेतना के साथ, आप हर पल को एक नई दृष्टि से देखेंगे—जहाँ न तो जीवन का कोई निश्चित परिभाषा है, और न ही मृत्यु का कोई अंतिम रूप।

आप केवल एक प्रवाह हैं, एक अनंत ऊर्जा के रूप में, जो निरंतर परिवर्तन में लिप्त है। और जब आप इस प्रवाह में अपने आप को पूरी तरह से समाहित कर लेते हैं, तो आप निर्वाण का अनुभव करते हैं—एक ऐसा अनुभव जो किसी भी निश्चित निष्कर्ष से ऊपर उठकर, आपके अंदर की असीम स्वतंत्रता को उजागर करता है।

इसलिए, मेरे प्रिय साथियों, आइए हम आज यह संकल्प लें कि हम अपने built-in प्रोग्राम को चुनौती देंगे, उन सभी सीमाओं को तोड़ेंगे, और एक ऐसी मुक्त चेतना का अनुभव करेंगे जहाँ सार और असार का भेद मिट जाता है। हम उस क्षण को अपनाएंगे जहाँ हर विचार, हर भावना केवल एक क्षणिक अनुभव है, और असली आप स्वयं एक अनंत, मुक्त ऊर्जा हैं।

अंतिम विचार: निर्वाण की अमर कथा

जब तक हम इस बात को नहीं समझते कि जीवन और मृत्यु केवल दो चेहरे हैं, तब तक हम अपने आप को सीमित समझते रहेंगे। लेकिन जब हम उस सीमित सोच को त्याग देते हैं, तो हम देखते हैं कि जीवन की असली कहानी कहीं और छिपी है—एक ऐसी कहानी जहाँ हर पल में एक नई शुरुआत होती है, जहाँ कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं होता, केवल एक अनंत यात्रा होती है।

सोचिए, एक कवि अपनी कविता में कहता है, “मैं न तो जन्मा हूँ, न ही मरूँगा, मैं तो बस उस अनंत धारा का हिस्सा हूँ।” इसी प्रकार, जब आप निर्वाण की ओर बढ़ते हैं, तो आप भी उस अनंत धारा में विलीन हो जाते हैं, जहाँ कोई आरंभ नहीं, कोई अंत नहीं—बस एक निरंतर, अनंत प्रवाह है।

यह प्रवाह आपको यह बताता है कि आप स्वयं में अपार संभावनाओं के साथ बसे हुए हैं। आपके भीतर वह अनंत ऊर्जा है, जो किसी भी पूर्वनिर्धारित विचार, किसी भी बंधन से परे है। जब आप इस ऊर्जा को महसूस करते हैं, तो आप जानते हैं कि असली स्वतंत्रता वही है—एक ऐसी स्वतंत्रता जहाँ आप किसी भी निष्कर्ष या निर्णय में उलझे बिना, केवल जीते हैं, केवल अनुभव करते हैं।

मित्रों, आज का दिन एक नए आरंभ का संकेत है। आज आप यह निर्णय लें कि आप उस built-in प्रोग्राम को छोड़ देंगे, जो आपको हर पल सीमाओं में बाँधता है। आप तय करेंगे कि आप जीवन के प्रत्येक पल को एक नई दृष्टि से देखेंगे, जहाँ कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा, कोई निर्णय नहीं होगा—बस एक निरंतर, मुक्त प्रवाह होगा। यही है निर्वाण का सार, यही है वह अमर कथा जो हमें हर पल सिखाती है कि असली जीवन वही है, जो हमें अपने आप में समाहित होकर जीने की आज़ादी देता है।

इस मुक्त चेतना की ओर कदम बढ़ाइए, और आप पाएँगे कि आपके भीतर का वह असीम प्रेम, वह अनंत शांति—यह सब एक साथ मिलकर आपको एक नई दिशा में ले जाते हैं। एक ऐसी दिशा जहाँ न तो जीवन की सीमाएँ हैं, न ही मृत्यु का कोई भय। आप केवल एक मुक्त, असीम ऊर्जा के रूप में जीते हैं, जो हर पल नवीनता, हर क्षण एक नए अनुभव से भर जाता है।

समापन

जब हम कहते हैं, “निर्वाण का मतलब है कि मैंने जान लिया कि मृत्यु, मृत्यु नहीं है; और जीवन, जीवन नहीं है”, तो यह कहना मात्र एक शब्द नहीं है, बल्कि यह एक गहन आत्म-साक्षात्कार की ओर इशारा है। यह उस क्षण का प्रतीक है, जब आप अपने built-in प्रोग्राम से ऊपर उठ जाते हैं, जब आप देख लेते हैं कि जीवन और मृत्यु दोनों केवल मानसिक परतें हैं—एक भ्रम हैं, जिन्हें तोड़कर ही आप वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते हैं।

तो, मेरे प्रिय साथियों, आज जब आप इस प्रवचन को पढ़ते हैं, तो स्वयं से यह प्रश्न पूछें: “क्या मैं अपने पूर्वनिर्धारित विचारों से ऊपर उठकर उस अनंत चेतना का अनुभव कर सकता हूँ?” उत्तर आपके भीतर पहले से ही मौजूद है—बस उसे पहचानने की आवश्यकता है। इस पहचान के साथ, आप निर्वाण की ओर एक सच्ची, मुक्त यात्रा प्रारंभ करेंगे, जहाँ कोई भी निष्कर्ष आपको बांध नहीं पाएगा, जहाँ केवल एक अनंत, मुक्त प्रवाह आपका मार्गदर्शन करेगा।

आखिरकार, निर्वाण का असली अर्थ है—अपने आप से, अपने विचारों से, अपने बंधनों से, और अपने मन के उस built-in प्रोग्राम से पूर्णतः मुक्त होना। यह एक ऐसी अवस्था है जहाँ आप स्वयं को एक मुक्त, अनंत चेतना के रूप में पहचान लेते हैं, जो हर पल नए अर्थ पैदा करती है। और यही वह अमर यात्रा है, जो आपको वास्तविक स्वतंत्रता की ओर ले जाती है।

ध्यान और स्मरण

मित्रों, यह प्रवचन आपके लिए एक निमंत्रण है—अपने जीवन के उस गहरे रहस्य को समझने का, जो आपको बताता है कि आप केवल एक निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नहीं जी रहे हैं, बल्कि आप उस असीम, मुक्त चेतना के अधिवासी हैं। इस चेतना में, जीवन की कोई सीमा नहीं है, न ही मृत्यु का कोई भय। आप केवल एक निरंतर प्रवाह हैं, जो अनंत संभावनाओं से भरपूर है।

अपने दिल की सुनिए, अपने अंदर की आवाज़ को पहचानिए, और उस मुक्त चेतना के साथ एकाकार हो जाइए। यही निर्वाण है—एक ऐसी यात्रा जो आपको हर क्षण अपने आप में नवीनता का अनुभव कराती है, जहाँ कोई भी निष्कर्ष, कोई भी पूर्वधारणा आपको रोक नहीं सकती।

मेरा यह संदेश है कि जब आप अपने built-in प्रोग्राम को त्याग देते हैं, तो आप स्वयं को एक नए, अनंत अनुभव में रचा-बसा पाते हैं। आप जानते हैं कि जीवन केवल एक निश्चित स्क्रिप्ट नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी अद्भुत रचना है, जिसमें हर पल, हर अनुभव आपको एक नई दिशा में ले जाता है।

तो चलिए, आज से ही उस बंधन को तोड़ने का संकल्प लें। अपने अंदर की उस अनंत चेतना को पहचानिए, और उस मुक्त प्रवाह में स्वयं को समर्पित कर दीजिए। क्योंकि अंततः, यही वह क्षण है जब आप महसूस करेंगे कि आप केवल जीवन के एक निर्धारित क्रम में नहीं, बल्कि एक अनंत, मुक्त ऊर्जा के रूप में जी रहे हैं।

अंतिम संदेश

इस प्रवचन के माध्यम से मैंने यह बताने का प्रयास किया है कि निर्वाण का अर्थ केवल मृत्यु के भय से मुक्ति पाना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी गहन अनुभूति है, जो हमारे built-in प्रोग्राम—जिसके द्वारा हम जीवन और मृत्यु को केवल बाहरी रूप में देखते हैं—से परे जाकर, उन सभी पूर्वाग्रहों, सभी सीमाओं को त्यागने का संदेश देता है। यह संदेश हमें बताता है कि असली जीवन वह है, जहाँ हम बिना किसी निष्कर्ष के, बिना किसी निर्णय के, केवल अनुभव के साथ जीते हैं।

मित्रों, अपने अंदर झाँकिए, अपने विचारों को समझिए, और उस मुक्त चेतना के साथ एकाकार हो जाइए। क्योंकि जब आप इस मार्ग पर चल पड़ेंगे, तो आप पाएंगे कि आपकी हर साँस, हर पल, एक नई ऊर्जा, एक नया अर्थ ले कर आती है। और यही है निर्वाण का सार—एक अनंत, मुक्त यात्रा, जो हमें हर क्षण सिखाती है कि निष्कर्ष केवल मन की सीमाएँ हैं, जिन्हें पार करके ही हम असली स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते हैं।

आज ही उस यात्रा का आरंभ कीजिए। अपने अंदर के बंधनों को तोड़िए, अपने built-in प्रोग्राम को चुनौती दीजिए, और स्वयं को उस अनंत, मुक्त चेतना के समक्ष प्रस्तुत कर दीजिए। यही वह क्षण है, जब आप जानते हैं कि जीवन और मृत्यु दोनों केवल एक भ्रम हैं, और असली आप उस असीम, अनंत ऊर्जा का स्रोत हैं।

आपका यह आत्म-साक्षात्कार आपको एक नए, मुक्त और प्रकाशमय जीवन की ओर ले जाएगा, जहाँ कोई भी पूर्वाग्रह, कोई भी निष्कर्ष आपको बांध नहीं पाएगा। यही है निर्वाण की महानता—एक ऐसी स्थिति जहाँ आप स्वयं को हर पल, हर क्षण, एक नवीन अनुभव के रूप में जीते हुए पाते हैं।

समापन के शब्द

इस प्रवचन के माध्यम से मेरा उद्देश्य यह था कि आप समझें कि निर्वाण का अर्थ केवल मृत्यु से मुक्ति नहीं, बल्कि जीवन की सभी धारणाओं—जीवन को जीवन मानने और मृत्यु को मृत्यु मानने—से ऊपर उठ जाना है। जब आप इन दोनों अवधारणाओं को त्याग देते हैं, तो आप पाएंगे कि आपके भीतर एक मुक्त, अनंत चेतना विद्यमान है, जो किसी भी निष्कर्ष या पूर्वधारणा से परे है।

मित्रों, इस मुक्त चेतना के साथ कदम मिलाइए, और आप जान जाएंगे कि आप केवल एक निर्धारित स्क्रिप्ट के अनुसार नहीं, बल्कि एक अनंत, मुक्त ऊर्जा के रूप में जीवित हैं। यही निर्वाण का सत्य है—एक ऐसा आत्म-साक्षात्कार, जहाँ आपके सभी मानसिक बंधन टूट जाते हैं, और आप एक अनंत प्रेम, एक अनंत शांति के साथ जीने लगते हैं।

इसलिए, आज, इस क्षण पर, अपने आप से यह वादा करें कि आप अपने built-in प्रोग्राम को पहचानेंगे, उसे चुनौती देंगे, और अंततः उसे त्याग देंगे। क्योंकि जब आप ऐसा करेंगे, तो आप पाएंगे कि असली आप वह है, जो बिना किसी निष्कर्ष के, बिना किसी निर्णय के, केवल अपने अस्तित्व में पूर्ण है। यही है निर्वाण—एक मुक्त, अनंत, और सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव।

आपका अंतर्निहित साक्षात्कार

मैं आशा करता हूँ कि यह प्रवचन आपके दिल में एक नई रोशनी जगाएगा, आपको उस अनंत चेतना के करीब ले जाएगा, जो आप हमेशा से ही अनुभव करना चाहते थे। याद रखिए, मित्रों, असली जीवन वह नहीं है जो हमें पूर्वनिर्धारित स्क्रिप्ट में बांधता है, बल्कि वह है उस अनंत मुक्त ऊर्जा का अनुभव, जहाँ हर पल आपको एक नई शुरुआत का संदेश मिलता है।

चलते-चलते एक अंतिम बात कहूँगा: जब तक आप अपने मन के built-in program को नहीं छोड़ते, तब तक आप वास्तविक निर्वाण का अनुभव नहीं कर सकते। अपने विचारों, अपनी धारणाओं, और उन सभी पूर्वाग्रहों से ऊपर उठिए, जो आपको एक सीमित जीवन में बाँधते हैं। केवल तभी आप उस मुक्त चेतना के साथ एकाकार हो पाएंगे, जो आपको सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव कराएगी।

इसलिए, मित्रों, आइए हम सब मिलकर इस अनंत यात्रा का आरंभ करें—एक यात्रा जहाँ कोई भी निष्कर्ष, कोई भी परिभाषा हमें रोक नहीं पाएगी, बल्कि हम हर पल को एक नए अनुभव, एक नई ऊर्जा के साथ जीएंगे। यही है निर्वाण का अद्भुत संदेश, यही है उस मुक्त चेतना की असली महिमा, जो आपके भीतर सदा विद्यमान है।

जयस्वातंत्र्य, जयनिर्वाण।

इस प्रवचन में हमने देखा कि कैसे एक व्यक्ति, जब अपने built-in प्रोग्राम को पहचान कर उसे त्याग देता है, तो वह जीवन और मृत्यु की सभी सीमाओं से ऊपर उठ जाता है। वह उस निरंतर प्रवाह का हिस्सा बन जाता है, जहाँ कोई आरंभ नहीं, कोई अंत नहीं—बस एक निरंतर, मुक्त ऊर्जा है। यही वह अमर सत्य है, जिसके साथ आप भी एक दिन विलीन हो सकते हैं।

आपका यह आत्म-साक्षात्कार, यह मुक्त यात्रा, आपको हर पल यह याद दिलाएगा कि असली जीवन वह है, जहाँ आप बिना किसी पूर्वधारणाओं के, बिना किसी निष्कर्ष के, केवल जीते हैं।

अंतिम विचार

प्रत्येक सांस में, प्रत्येक पल में, आप एक नई संभावना का अनुभव कर सकते हैं। जब आप अपने built-in प्रोग्राम से ऊपर उठते हैं, तो आप पाते हैं कि आपके अंदर की असीम ऊर्जा, वह अनंत चेतना, किसी भी पूर्वधारणा से मुक्त है। यही है निर्वाण का संदेश—एक ऐसा संदेश जो आपको बताता है कि आप जीवन की सीमाओं से परे हैं, आप उस अनंत मुक्त ऊर्जा के अधिवासी हैं, जो हर पल एक नई शुरुआत का संकेत देती है।

मित्रों, इस प्रवचन के साथ, मैं आपसे यही कहूँगा कि जीवन में केवल एक ही सत्य है—वह सत्य कि आप स्वयं एक मुक्त, अनंत चेतना हैं। इस सत्य को अपनाइए, इस सत्य के साथ जीएँ, और देखिए कि कैसे आपकी हर सांस, हर पल आपको उस असीम स्वतंत्रता की ओर ले जाती है। यही है निर्वाण का अद्भुत सार, यही है उस अमर आत्मा का अनुभव, जो हर मनुष्य के भीतर विद्यमान है।

जय हो उस मुक्त चेतना की, जो आपको हर पल जीवन की अनंत अनुभूति का अनुभव कराती रहे। जय हो उस आत्मा की, जो किसी भी निष्कर्ष से परे है, और केवल अनुभव में जी रही है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएँ।

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