नमस्कार, मेरे प्रिय साथियो। आज हम एक अति गूढ़ और विचारोत्तेजक विषय पर विचार करेंगे – “कितनी अजीब बात है, हम सब खुश रहने के लिए परेशान रहते हैं।” यह वाक्यांश केवल शब्दों का मेल नहीं है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व के उस रहस्य को उजागर करता है, जिस पर हम जीवन भर अचेतनता में चलते रहते हैं।
१. खुशियों की खोज – एक अंतहीन दौड़
कभी आपने गौर किया है कि हम जीवन में खुशियों की तलाश में किस कदर व्यस्त रहते हैं? हम ऐसे दौड़ते हैं जैसे किसी अज्ञात मंज़िल के पीछे भाग रहे हों। सुबह की पहली किरण से लेकर रात के अंधेरे तक, हमारे मन में एक निरंतर प्रश्न गूंजता रहता है – “क्या मैं खुश हूँ?” लेकिन अक्सर हम इस प्रश्न का उत्तर पाने के बजाय, अपनी चिंता में उलझ जाते हैं।
कल्पना कीजिए एक नदी के किनारे खड़े दो व्यक्ति को। पहला व्यक्ति कहता है, “मैंने सुना है कि इस नदी के पार सच्ची खुशी है, इसलिए मैं हमेशा उस ओर जाने का विचार करता हूँ।” दूसरा व्यक्ति अपने भीतर संतोष में डूबा रहता है, यह जानते हुए कि खुशी वास्तव में उस यात्रा में छिपी हुई है, न कि मंज़िल में। हमारे अधिकांश लोग भी पहले व्यक्ति की तरह हैं, जो हमेशा किसी बाहरी उपलब्धि, धन, या मान-सम्मान में अपनी खुशी ढूंढ़ते हैं। परंतु, जब भी हम इन्हें प्राप्त करते हैं, तो हमें एक नई चिंता सताती है – “क्या अब मैं खुश रहूँगा?” और फिर यह सिलसिला चलता रहता है।
२. खुशी और चिंता – दो विपरीत ध्रुव
इस संसार में दो विपरीत ध्रुव हैं – खुशी और चिंता। जब भी हम खुशी की तलाश में निकलते हैं, तो चिंता अपने आप हमारे कदम चूमने आती है। चिंता का यह चक्र हमें निरंतर परेशान करता रहता है, जैसे कि मन में एक अनचाहा, अदृश्य दानव मंडरा रहा हो। ओशो कहते हैं, “खुशी वह नहीं जो बाहरी परिस्थितियों में निहित हो, बल्कि वह है, जब मन में शांति और संतोष का उदय होता है।”
एक बार एक साधु अपने शिष्य से बोले, “जब तुम अपने भीतर शांति खोजते हो, तो दुनिया की हर आपदा भी एक मधुर संगीत सी लगती है।” यहाँ पर साधु की बात गहरी है – असली खुशी किसी बाहरी वस्तु में नहीं, बल्कि हमारे भीतर के जागरूकता, ध्यान और स्वीकृति में है। परंतु हम अपने मन को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि इस आंतरिक शांति का अनुभव ही खो देते हैं।
३. कहानी – दो मित्रों की अनोखी यात्रा
एक समय की बात है, दो मित्र थे – अमर और विश्णु। अमर जीवन में हमेशा कुछ नया पाने के लिए उत्सुक रहता था, वह मानता था कि खुशी बाहरी उपलब्धियों में ही निहित है। उसने बड़े-बड़े सपने देखे, महंगे घर, कार और दुनिया भर की यात्राओं की योजना बनाई। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसे लगता रहा कि वह कभी भी संतोष और शांति से भर नहीं पा रहा। हर उपलब्धि के बाद भी उसके मन में एक खालीपन सा रह जाता था।
दूसरी ओर, विश्णु ने अपने जीवन को एक अलग दिशा दी। उसने अपने भीतर झांकना शुरू किया, ध्यान करना सीखा, और प्रकृति के साथ एक गहरा संबंध बनाया। कभी-कभी वह अपने आस-पास की छोटी-छोटी खुशियों में खुद को खो देता – एक मुस्कान, एक फूल की खुशबू, एक पक्षी का चहचहाना। उसे समझ में आया कि असली खुशी बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मा के गहरे स्त्रोत में है।
एक दिन अमर ने विश्णु से पूछा, “तुम इतना संतुष्ट कैसे रहते हो? क्या तुम्हें कभी कोई चिंता नहीं होती?” विश्णु ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं चिंता नहीं करता क्योंकि मैंने यह समझ लिया है कि चिंता उस धागे की तरह है, जो हमारी आत्मा को बाँध लेती है। जब हम उसे छोड़ देते हैं, तो हम स्वच्छ हवा की तरह आज़ाद हो जाते हैं।” उस दिन अमर ने पहली बार महसूस किया कि वह जिस दौड़ में लगा हुआ था, उसमें कहीं से भी वो शांतिपूर्ण अस्तित्व नहीं मिला।
४. अंदर की दुनिया – बाहरी दौड़ का समापन
हमारी बाहरी दुनिया हमेशा हमें यह सिखाती है कि खुश रहने के लिए हमें कुछ हासिल करना होगा – एक नौकरी, एक घर, समाज में मान-सम्मान। परंतु इस दौड़ में हम अपनी आंतरिक दुनिया की उपेक्षा कर देते हैं। ओशो कहते हैं, “जब तक तुम अपने भीतर के संसार से जुड़ नहीं जाते, तब तक तुम बाहरी उपलब्धियों में भी शांति नहीं पा सकते।”
एक ध्यान साधना की विधि है – जब हम अपनी आँखें बंद करके अपने अंदर झांकते हैं, तब हमें अपने सच्चे स्वरूप का अनुभव होता है। ध्यान की स्थिति में मन न तो चिंता करता है और न ही इच्छा करता है; वह केवल वर्तमान में होता है। यही वह क्षण है जब हम असली खुशी को महसूस करते हैं।
कल्पना कीजिए एक कलाकार को, जो निरंतर अपनी कला में नई ऊँचाइयों को छूने की चाह में लगा रहता है। वह दिन-रात अभ्यास करता है, नई तकनीकें सीखता है, परंतु कभी भी संतुष्टि महसूस नहीं कर पाता। आखिरकार, एक दिन उसे एहसास होता है कि असली कला वही है, जब वह अपने दिल से, बिना किसी अपेक्षा के, बनाता है। उसी क्षण उसकी कला में एक नई चमक आ जाती है। इसी प्रकार, हमारी जिंदगी में भी जब हम अपने भीतर की खामोशी और शांति को अपनाते हैं, तभी हम असली खुशी का अनुभव कर पाते हैं।
५. ध्यान – जीवन का अनमोल उपहार
ओशो ने अक्सर ध्यान की महत्ता पर जोर दिया है। ध्यान एक ऐसी कला है, जो हमें अपने भीतर के शांति के स्त्रोत तक पहुँचाती है। ध्यान में हम अपने विचारों और भावनाओं को बिना किसी निर्णय के देख सकते हैं। यह हमें उस स्थिति में ले जाता है, जहाँ हमारे मन में कोई दौड़, कोई चिंता नहीं रहती।
ध्यान के माध्यम से हम समझते हैं कि खुशी कोई लक्ष्य नहीं है जिसे प्राप्त किया जाए, बल्कि वह एक अवस्था है, जो हमारे अस्तित्व में प्राकृतिक रूप से विद्यमान है। ध्यान से जुड़ते ही हम पाते हैं कि हमारे भीतर का वह अनंत सागर हमेशा हमारे लिए उपलब्ध है – चाहे हम कितनी भी बाहरी उपलब्धियाँ हासिल कर लें।
एक साधु अपने शिष्यों से कहते थे, “जब तुम अपने भीतर की शांति से जुड़े रहते हो, तो हर पल तुम्हारा त्योहार बन जाता है।” यह बात उतनी ही सच्ची है जितनी हवा में घुली हुई खुशबू। ध्यान से जुड़ने पर हम न केवल खुश रहते हैं, बल्कि हर अनुभव में आनंद प्राप्त करते हैं। यही वह रहस्य है, जो बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आंतरिक जागरूकता में है।
६. इच्छाओं का जाल – असली खुशी का मार्गरोधक
हमारे जीवन में इच्छाएँ और अपेक्षाएँ एक ऐसे जाल की तरह हैं, जो हमें बाँध लेती हैं। जब हम किसी चीज़ की लालसा में लग जाते हैं, तो हम उस चीज़ के प्राप्त होने के बाद भी संतुष्टि महसूस नहीं करते। क्योंकि खुशी की खोज में हम अपेक्षाओं के पीछे भागते हैं, और जैसे-जैसे हम उन अपेक्षाओं को पूरा करते हैं, नई अपेक्षाएँ जन्म लेती हैं। यह एक अनंत चक्र है, जहाँ हम खुशी की असली अनुभूति से दूर हो जाते हैं।
एक कहानी है एक व्यापारी की, जो अपने व्यापार में सफलता पाने के लिए दिन-रात मेहनत करता रहा। उसने अपनी सम्पत्ति बढ़ाई, महंगे महल बनवाए, और समाज में उच्च स्थान प्राप्त किया। परंतु उसे कभी भी एक स्थायी संतोष का अनुभव नहीं हुआ। एक दिन उसने एक बुजुर्ग संत से पूछा, “महाराज, मैं सारी दुनिया की दौड़ में भागता हूं, परंतु मेरी आत्मा हमेशा अशांत रहती है।” संत ने उसे मुस्कुराते हुए कहा, “जब तक तुम अपनी इच्छाओं का बोझ नहीं उतारोगे, तब तक तुम्हें वह खुशी नहीं मिलेगी जो वास्तव में है।” उस दिन व्यापारी को एहसास हुआ कि असली खुशी अपनी इच्छाओं से परे जाकर, बस वर्तमान क्षण में जीने में है।
इसी तरह, हमारी इच्छाएँ और अपेक्षाएँ हमें बाहरी दुनिया में व्यस्त रखती हैं। हम सोचते हैं कि अगर मुझे वह, यह, या वह मिलेगा तो मैं खुश रहूँगा। परंतु हर उपलब्धि के बाद, हमें नए सपने और नए लक्ष्य प्राप्त होते हैं, और हमारी खुशी एक क्षणिक झलक बनकर रह जाती है। असली खुशी तब आती है, जब हम उन इच्छाओं को पहचान लेते हैं और उन्हें छोड़ देते हैं।
७. स्वीकृति – जीवन की अनंत मुस्कान
खुशी का दूसरा मूलमंत्र है – स्वीकृति। जब हम अपने जीवन के हर पहलू को, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, स्वीकार करते हैं, तभी हम अंदर से शांतिपूर्ण महसूस करते हैं। स्वीकृति का मतलब है, “हाँ, यह है, और मैं इसे अपने साथ पूर्ण रूप से स्वीकार करता हूँ।” जब हम इस स्वीकृति की अवस्था में पहुँचते हैं, तो हमें बाहरी घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता।
एक बार एक किसान था, जो हर वर्ष अपनी फसल की अच्छी बुआई के लिए चिंतित रहता था। एक दिन उसने अपने दादा से पूछा, “दादा जी, अगर मेरी फसल अच्छी नहीं हुई तो मैं कैसे खुश रहूँगा?” दादा जी ने उत्तर दिया, “बेटा, जब तुम अपनी मेहनत और प्रकृति की लीला को स्वीकार कर लोगे, तो तुम्हारा मन शांत हो जाएगा। हर साल की फसल में उतार-चढ़ाव आते हैं, परंतु जीवन की असली खुशी उन fluctuations से परे है।” किसान ने समझा कि स्वीकृति का अर्थ है – जीवन की प्राकृतिक प्रक्रिया को गले लगाना, बिना किसी अपेक्षा के। इस स्वीकृति से ही उसने असली संतोष पाया।
स्वीकृति हमें यह सीखाती है कि जीवन में जितनी भी बाहरी परिस्थितियाँ हों, हम अपनी आंतरिक शांति को बनाए रख सकते हैं। जब हम वर्तमान को बिना किसी विरोध या चाहत के स्वीकार करते हैं, तभी हम असली खुशी का अनुभव करते हैं। यह स्वीकृति हमें मुक्त करती है, और हमारी आत्मा में एक अनंत मुस्कान उभर आती है।
८. समय – क्षणिकता और अनंतता का संगम
हमारी यह अजीब प्रवृत्ति कि हम खुश रहने के लिए परेशान रहते हैं, अक्सर समय के प्रति हमारी सोच से भी जुड़ी होती है। हम भविष्य के सपनों में खो जाते हैं, और अतीत की यादों में उलझ जाते हैं। लेकिन ओशो कहते हैं, “खुशी केवल वर्तमान में मिलती है।” जब हम वर्तमान क्षण को जीते हैं, तभी हम सच्चे आनंद का अनुभव कर पाते हैं।
एक बार एक गुरु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो व्यक्ति हमेशा भविष्य के लिए चिंतित रहता है, वह कभी वर्तमान की खुशबू नहीं सूंघ पाता।” इसी तरह, एक युवक अपने भविष्य की योजनाओं में इतना व्यस्त था कि उसने यह भुला दिया कि वर्तमान में भी कितनी खुशियाँ छिपी हुई हैं। उसने देखा कि आसपास के लोग अपने छोटे-छोटे पलों में खुश रहते हैं – बच्चों की मासूम हँसी, पंछियों का चहचहाना, और प्रकृति की मधुर संगीत। तब उसने अपने जीवन में बदलाव किया और वर्तमान में जीना सीख लिया।
समय एक ऐसी धारा है, जो निरंतर बहती रहती है। जब हम इस धारा में खुद को बहने देते हैं, तो हम हर पल की अनमोलता को महसूस करते हैं। वर्तमान क्षण में ही वह अनंतता है, जहां हमारी आत्मा को असली शांति और खुशी मिलती है। इसलिए, अपनी चिंताओं को त्याग कर, वर्तमान में जीना ही हमारी सच्ची मुक्ति है।
९. जीवन का खेल – माया और सत्य
इस संसार को ओशो ने ‘माया’ कहा है – एक ऐसी अदृश्य चादर जो हमें वास्तविकता से दूर ले जाती है। हम अपनी इच्छाओं, अपेक्षाओं और दौड़ों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम असली सत्य से अनजान हो जाते हैं। माया हमें भ्रमित करती है कि बाहरी उपलब्धियाँ ही हमारी खुशी का स्रोत हैं। परंतु, जब हम माया के जाल से बाहर निकलते हैं, तो हमें पता चलता है कि असली खुशी हमारे भीतर ही निहित है।
एक बार एक युवा साधक अपने गुरु से पूछने आया, “गुरुजी, मुझे असली खुशी कहाँ मिलेगी?” गुरु ने उसे एक छोटी सी डिबिया दिखाई और कहा, “इस डिबिया में रखी हर वस्तु का अपना एक रंग, स्वरूप और महत्त्व है, परंतु जब तक तुम इसे अपने भीतर समझ नहीं पाते, तब तक तुम्हें असली खुशी नहीं मिलेगी।” साधक ने सोचा कि शायद यह डिबिया कोई अनमोल खजाना है, लेकिन गुरु ने बताया, “असली खजाना तो तुम हो, तुम अपने भीतर के अनंत सागर हो।”
इस कहानी से हमें यह समझ में आता है कि जीवन एक खेल है, जहाँ माया और सत्य दोनों ही मौजूद हैं। हम अक्सर माया के झूठे सुखों में उलझकर असली खुशी से दूर हो जाते हैं। जब हम माया के इस भ्रम को तोड़ देते हैं, तब हम अपनी आत्मा की गहराई में उतरते हैं, जहाँ असली आनंद, शांति और खुशी निहित होती है।
१०. प्रेम – असीम शक्ति का स्रोत
खुशी का अंतिम सूत्र है – प्रेम। प्रेम वह ऊर्जा है, जो हमें जीवन के हर पहलू में जोड़ती है। जब हम प्रेम में रहते हैं, तो हमें बाहरी चीज़ों की चिंता नहीं रहती, क्योंकि हमारा मन प्रेम से भर जाता है। प्रेम हमारे भीतर एक ऐसी चिंगारी है, जो अंधेरे को भी रोशन कर देती है।
एक बार एक वृद्ध साधु ने अपने शिष्य से कहा, “जब तुम प्रेम से भर जाते हो, तो तुम हर पल में आनंद देख लेते हो। खुशी सिर्फ तभी मिलती है, जब तुम प्रेम के उस जादू को अपनाते हो।” शिष्य ने पूछा, “पर गुरुजी, क्या प्रेम पाने के लिए हमें कुछ त्याग करना नहीं पड़ता?” साधु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “प्रेम में त्याग नहीं, बल्कि समर्पण होता है। जब तुम अपने स्वार्थ को त्याग कर, दूसरों के सुख में अपने आप को शामिल कर लेते हो, तब तुम महसूस करते हो कि असली खुशी क्या है।”
यह प्रेम का संदेश हमें बताता है कि खुश रहने के लिए हमें अपने भीतर के द्वंद्व, स्वार्थ और अहंकार को दूर करना होगा। प्रेम हमें यह सिखाता है कि जब हम दूसरों में अपना अंश देखते हैं, तब हमारी खुशी भी दोगुनी हो जाती है। यही वह गूढ़ सत्य है, जिसे अपनाकर हम जीवन के हर क्षण में आनंद महसूस कर सकते हैं।
११. अज्ञान का पर्दा – ज्ञान की ज्योति से मुक्ति
हमारे जीवन में सबसे बड़ा बाधा अक्सर अज्ञानता का पर्दा होती है। हम अनजाने में अपने मन को भ्रमित कर लेते हैं, और सही ज्ञान से दूर हो जाते हैं। ओशो कहते हैं, “अज्ञानता ही वह जड़ है, जिससे सारी परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं।” जब हम ज्ञान की ज्योति से अपने मन को प्रकाशित करते हैं, तभी हम समझ पाते हैं कि असली खुशी हमारी अंतरतम अवस्था में ही छिपी हुई है।
एक बार एक छात्र ने अपने गुरु से पूछा, “गुरुजी, मेरे जीवन में इतनी परेशानियाँ क्यों हैं?” गुरु ने कहा, “जब तक तुम अपने मन को अज्ञानता के उस अंधकार में रखोगे, तब तक तुम्हें सच्ची खुशी का अनुभव नहीं होगा। ज्ञान की ज्योति ही तुम्हें उस अंधकार से बाहर निकाल सकती है।” छात्र ने ध्यान में बैठकर ज्ञान की तलाश शुरू की, और धीरे-धीरे उसने देखा कि उसकी चिंताओं का स्रोत ही अज्ञानता थी। ज्ञान के प्रकाश से उसने अपने जीवन में परिवर्तन महसूस किया – अब वह हर पल में सच्चे आनंद और संतोष का अनुभव करने लगा।
ज्ञान हमें बताता है कि जीवन में हर अनुभव, चाहे वह सुख हो या दुःख, एक शिक्षण है। जब हम इस शिक्षण को स्वीकार कर लेते हैं, तभी हम अपने भीतर की खुशी को खोज पाते हैं। ज्ञान हमें उस सच्चाई से अवगत कराता है कि खुशी एक आंतरिक अवस्था है, न कि बाहरी उपलब्धियों में निहित।
१२. अंत में – एक सच्ची यात्रा की ओर आमंत्रण
मेरे प्रिय साथियो, आज के इस प्रवचन का सार यही है कि हम अपनी बाहरी दुनिया की दौड़ में इतने उलझकर अपनी आंतरिक शांति और खुशियों को भूल जाते हैं। हम निरंतर यह सोचते रहते हैं कि अगर मुझे कुछ बाहरी उपलब्धियाँ मिल जाएँगी, तो मैं खुशी महसूस कर पाऊँगा। परंतु असली खुशी कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है – हमारे ध्यान, स्वीकृति, प्रेम और ज्ञान में।
जैसे एक नर्तकी अपने भीतर के संगीत को महसूस करके ही अपनी अद्भुत नृत्य रचती है, वैसे ही हमें अपने भीतर की ऊर्जा को महसूस करना होगा। हमें अपने मन के उस कोने तक जाना होगा जहाँ कोई चिंता, कोई अपेक्षा नहीं रहती। वहाँ पर केवल शांति होती है, केवल संतोष होता है।
इस जीवन यात्रा में हमें समझना होगा कि खुशी कोई अंतिम लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक प्रवाह है, एक सतत् अवस्था है। जैसे नदी कभी रुकती नहीं, वैसे ही हमारी आत्मा भी निरंतर प्रवाहित होनी चाहिए – बिना किसी रोक-टोक, बिना किसी चिंता के। हमें अपने जीवन के हर पल को उसी प्रेम, ध्यान और स्वीकृति के साथ जीना होगा, तभी हम उस अनंत शांति का अनुभव कर पाएंगे जिसे ओशो ने ‘असली खुशी’ कहा है।
१३. अंतर्मुखी होने की कला
अक्सर हम अपने चारों ओर की हलचल में इतने खो जाते हैं कि भूल जाते हैं कि असली यात्रा हमारे अंदर ही होती है। ध्यान कीजिए – जब हम अपने भीतर झांकते हैं, तो हमें पता चलता है कि हमारा असली स्वभाव क्या है। यह स्वभाव हमें सिखाता है कि जीवन में बाहरी उपलब्धियाँ कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हों, असली खुशी तो उस आत्मा की अनुभूति में ही निहित है जो हमें अनंत, अपरिवर्तनीय और अचल बनाती है।
एक समय एक साधु ने अपने शिष्य से कहा, “अपने भीतर के उस दीपक को जलाओ, जो सदैव प्रकाशित रहता है। बाहरी दुनिया की अंधेरी रातें चाहे कितनी भी घनी क्यों न हों, उस दीपक की रोशनी में सब कुछ उजागर हो जाता है।” इस ज्ञान के साथ जब शिष्य ने अपने भीतर झांकना प्रारंभ किया, तो उसने पाया कि वास्तव में उसकी आत्मा में एक अनंत शांति का सागर बहता है – वह सागर, जिसे पाकर वह कभी भी चिंता में नहीं पड़ता।
१४. एक नई शुरुआत – वर्तमान में जीना
आज, इस प्रवचन के अंत में, मैं आप सभी से यही कहना चाहता हूँ कि आप अपनी जिंदगी में एक नई शुरुआत करें। अपने मन की उस भीड़-भाड़ से बाहर निकलें, जहाँ आप हमेशा बाहरी सुखों की तलाश में रहते हैं। अपने भीतर के उस शांत सागर की ओर रुख करें, जो अनंत है और जिसमें आपकी आत्मा का वास्तविक स्वरूप निहित है।
आपके जीवन के हर क्षण में, चाहे वह सुख हो या दुःख, एक अद्वितीय सीख छिपी हुई है। जब आप वर्तमान में जीते हैं, तो आप न केवल अपने अनुभवों को पूरी तरह से महसूस करते हैं, बल्कि उस अनंत खुशी को भी खोज लेते हैं जो हमेशा आपके साथ रहती है। वर्तमान में जीने का मतलब है – हर पल को वैसे ही अपनाना, जैसे वह आपके लिए एक अनमोल उपहार हो।
१५. निष्कर्ष – खुश रहने की सच्ची कला
तो मेरे प्रिय साथियो, आखिरकार, “कितनी अजीब बात है हम सब खुश रहने के लिए परेशान रहते हैं।” यह वाक्य हमें यह याद दिलाता है कि हम अपनी खुशी के लिए जितना भी बाहरी प्रयास करते हैं, असली समाधान हमारे भीतर छिपा होता है। हम अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा, प्रेम, ध्यान और ज्ञान को पहचानें, तभी हम सचमुच मुक्त हो सकते हैं।
जीवन एक अद्भुत यात्रा है, जहाँ हर अनुभव हमें कुछ नया सिखाता है। जब आप अपने भीतर की गहराई में उतरेंगे, तो आपको एहसास होगा कि आपके भीतर वह अनंत शांति और संतोष पहले से ही विद्यमान है। उसे खोजने के लिए आपको बाहरी दौड़ों में उलझने की आवश्यकता नहीं है। बस, अपने आप से मिलिए, अपने अंदर के उस दिव्य स्वरूप को पहचानिए, और आप देखेंगे कि खुश रहना कोई संघर्ष नहीं, बल्कि एक सहज स्वभाव है।
इस प्रवचन में मैंने आप सभी के साथ उन कई पहलुओं पर चर्चा की है, जिनके माध्यम से हम समझ सकते हैं कि खुश रहने के लिए हम जो बाहरी परेशानियाँ झेलते हैं, वे वास्तव में हमारे भीतर के अज्ञान, इच्छाओं के जाल, और बाहरी भ्रम का परिणाम हैं। जब हम अपने ध्यान, स्वीकृति, प्रेम और ज्ञान के साथ अपने आप को फिर से जोड़ते हैं, तो हमें एक नई दुनिया का अनुभव होता है – एक ऐसी दुनिया जहाँ शांति, संतोष और अनंत खुशी हर क्षण हमारे साथ होती है।
आख़िर में, मैं यही कहना चाहता हूँ कि अपने जीवन के हर क्षण को एक उपहार मानकर जिएं। अपने भीतर की उस अनंत ऊर्जा को महसूस करें, जो कभी समाप्त नहीं होती। याद रखिए, असली खुशी बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि उस आंतरिक शांति में है जो हर व्यक्ति के भीतर विद्यमान है।
जैसे-जैसे आप अपने भीतर झांकेंगे, आप पाएंगे कि खुश रहने की कला वास्तव में बहुत सरल है – बस अपने आप को स्वीकार करें, वर्तमान में जीएं, और उस प्रेम की अनुभूति करें जो आपकी आत्मा में सदैव विद्यमान है। यह प्रेम ही वह अद्भुत शक्ति है, जो आपके जीवन के सभी झगड़ों और परेशानियों को पिघला कर, आपको एक सच्ची, स्थायी खुशी प्रदान कर देता है।
१६. आह्वान – अपने आप को जानने का मार्ग
मेरे प्रिय साथियो, अब समय है कि हम इस प्रवचन के माध्यम से एक नए आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ें। अपने भीतर के उस अनंत सागर को महसूस करें, जो बिना किसी बाहरी प्रयास के, अपने आप में शांत और संतोषप्रद है। हर दिन कुछ पल निकालें – बस अपने आप से मिलने के लिए, अपने विचारों को शांत करने के लिए, और अपने भीतर की आवाज़ को सुनने के लिए।
जब आप यह करेंगे, तो आपको एहसास होगा कि खुश रहने की सबसे बड़ी कला यही है – अपने आप को जानना, अपने आप से प्रेम करना, और अपने आप को बिना किसी शर्त के स्वीकार करना। यही वह रहस्य है, जो बाहरी दुनिया की हर दौड़-भाग, चिंता और अपेक्षाओं से परे है।
समय के साथ, जब आप इस आंतरिक यात्रा पर अग्रसर होंगे, तो आप पाएंगे कि आपके जीवन के हर पहलू में – चाहे वह सफलता हो या विफलता, खुशी हो या दुःख – एक गहरी, स्थायी शांति निहित है। यही वह अनमोल उपहार है, जिसे खोजने के लिए हमें बाहरी संसार की भीड़ में खुद को खोने की जरूरत नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकने की आवश्यकता है।
१७. समापन – जीवन में सरलता और संतोष की ओर
अंत में, आइए हम यह समझें कि जीवन की असली खुशी उस सरलता में है, जो हमारे मन के भीतर विद्यमान है। जब हम अपने दिल की सुनते हैं, अपने आत्मा के उस अनंत स्रोत को पहचानते हैं, तो हमें पता चलता है कि खुश रहने के लिए कोई बाहरी संघर्ष नहीं, बल्कि एक सहज स्वभाव है।
इस प्रवचन के माध्यम से मैंने आपको यह समझाने की कोशिश की है कि हमारी चिंता, हमारी दौड़, और हमारी निरंतर अनसुलझी अपेक्षाएँ ही हमें असली खुशी से दूर रखती हैं। असली खुशी, हमारे भीतर की शांति, प्रेम और ध्यान की स्थिति में होती है। जब हम इन गूढ़ रहस्यों को समझते हैं, तो हम जीवन के हर क्षण को उसी सरलता से जीना सीख जाते हैं, जैसे कि प्रकृति का हर फूल बिना किसी अपेक्षा के खिलता है।
मेरे प्रिय साथियो, मैं आप सभी से यही आग्रह करता हूँ कि अपने जीवन में इस आंतरिक शांति और संतोष की खोज करें। अपने भीतर के उस दिव्य स्रोत को पहचानें, जो हमेशा आपके साथ है। याद रखिए – खुश रहने के लिए आपको किसी बाहरी उपलब्धि की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सच्ची खुशी तो आपके अंदर ही छिपी हुई है।
अंतिम विचार
हमारी इस यात्रा में, हमने सीखा कि खुश रहने की वास्तविक राह बाहरी दौड़ों, इच्छाओं और अपेक्षाओं से नहीं, बल्कि हमारे अंदर की गहराई में, ध्यान, स्वीकृति, प्रेम और ज्ञान से होकर गुजरती है। ओशो की शिक्षाएं हमें यही सिखाती हैं कि जब हम अपने भीतर की उस अनंत शांति और संतोष को पहचानते हैं, तभी हम अपने जीवन में सच्चे आनंद का अनुभव कर सकते हैं।
तो चलिए, इस अजीब संसार में, जहाँ हम सब खुश रहने के लिए परेशान रहते हैं, हम स्वयं को वह अवसर दें कि हम अपनी आंतरिक दुनिया में उतरें, उस शांत सागर को महसूस करें, और उस अनंत प्रेम और ज्ञान की अनुभूति करें, जो हमारे अस्तित्व का सच्चा सार है।
मेरे प्रिय मित्रों, इस प्रवचन के साथ मैं आपसे विदाई लेता हूँ, परंतु यह याद रखिए कि यह अंत नहीं, बल्कि आपके स्वयं के आत्म-अन्वेषण की एक नई शुरुआत है। आप अपने भीतर की उस दिव्यता को खोजिए, और देखिए कि खुश रहने की असली कला कितनी सरल, कितनी सहज है।
आपकी इस आंतरिक यात्रा में हर कदम पर, आपके मन की शांति, प्रेम की ऊर्जा और ज्ञान की ज्योति आपके साथ हो। यही जीवन का असली सार है – वह संतोष, वह शांति, वह अनंत खुशी, जो हमेशा आपके अंदर मौजूद है।
सहर्ष निवेदन:
अपने जीवन के हर पल को एक उपहार मानकर जिएं, वर्तमान में जीना सीखें, और अपने भीतर की उस अनंत शक्ति को पहचानें जो आपको सच्चे आनंद का अनुभव कराती है। यही ओशो की शिक्षाओं का सार है – अपने आप को जानना, अपने आप से प्रेम करना, और अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनना।
खुश रहें, शांत रहें, और याद रखें – सच्ची खुशी हमेशा आपके अंदर है, बस उसे महसूस करने की आवश्यकता है। जय जीवन, जय प्रेम, जय शांति!
यह प्रवचन अब आपके सामने एक निमंत्रण है – एक निमंत्रण अपनी आत्मा से मिलने का, अपनी भीतरी दुनिया को समझने का, और उस अनंत आनंद को अपनाने का, जो हमेशा आपके भीतर विद्यमान है। चलिए, इस नई यात्रा की ओर पहला कदम बढ़ाएं, और उस सच्चे सुख को प्राप्त करें, जिसे पाने के लिए हम सब हमेशा परेशान रहते हैं, परंतु वास्तव में वह तो हमारे भीतर ही है।
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