नमस्कार, प्रिय मित्रों!

आज हम एक ऐसी गहन सच्चाई की ओर देखेंगे, जो प्रेम के रहस्यमय आयामों से जुड़ी है। ओशो कहते हैं, 

"जब कोई एक पुरुष एक स्त्री को गहरा प्रेम करता है तो वह छोटे शिशु जैसा हो जाता है। और प्रेम के गहरे क्षण में स्त्री मां जैसी हो जाती है।"

इस कथन में छुपा हुआ संदेश, उस परिवर्तन का संदेश है जो प्रेम के आगोश में आते-आते हमारी आत्मा को निखार देता है। आइए, इस प्रवचन में हम प्रेम के उस दिव्य अनुभव की चर्चा करें, जिसके द्वारा पुरुष अपनी बेनम्रता और मासूमियत को पुनः प्राप्त करता है और स्त्री अपने भीतर की पोषणकारी, देखभाल करने वाली शक्ति को उजागर करती है।

1. प्रेम की वास्तविकता: एक गहन अनुभव

प्रेम केवल एक भावनात्मक उन्माद नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक गूढ़ अनुभव है, जो हमें उस अस्तित्व से जोड़ता है जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। जब हम प्रेम करते हैं, तब हम अपने भीतर के बच्चे को पुनः जीवंत कर लेते हैं—एक ऐसा शिशु जो बेफिक्र, भोला और सच्चे भावनाओं से परिपूर्ण होता है। पुरुष के लिए प्रेम का अर्थ है कि वह अपने आत्म-सम्मान, अपने बचपन की मासूमियत को फिर से महसूस करता है। यह वह अवस्था है जहाँ वह बिना किसी झिझक के, खुलकर अपने आप को व्यक्त करता है। 

इसी प्रकार, स्त्री के लिए प्रेम का अर्थ होता है माँ की ममता की अनुभूति करना—एक ऐसी ऊर्जा, जो जीवन को पालने, पोषित करने और अपने में समेटने वाली होती है। प्रेम के उस गहन क्षण में, स्त्री अपने भीतर छुपे अनगिनत गुणों को प्रकट करती है—उसकी सहानुभूति, करुणा और जीवन को धैर्यपूर्वक संवारने की क्षमता।

2. पुरुष का शिशुपन: आत्म-स्वीकारोक्ति की ओर एक कदम

जब एक पुरुष प्रेम में डूबता है, तो उसे एक अद्भुत बदलाव का अनुभव होता है। उस समय वह अपने अंदर के उस नन्हें, मासूम बच्चे को पहचानने लगता है, जिसे समाज के दबावों और परंपरागत ढांचे ने कहीं खो दिया था। यह शिशुता उसकी आत्मा की मौलिकता का प्रतीक है—एक अवस्था, जहाँ वह बिना किसी भय के, पूरी तरह से संवेदनशील हो जाता है।

यह शिशुता उस सरलता और स्वच्छंदता का प्रतीक है, जिसमें किसी भी समय आप अपने आप को संपूर्ण रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। जब आप प्रेम में होते हैं, तो आप अपने उस आंतरिक बच्चे को जगाते हैं, जो हर बात को एक नए नजरिए से देखता है, हर अनुभव को एक नई उम्मीद के साथ अपनाता है। यह शिशुपन आपके अस्तित्व का एक अनमोल हिस्सा है, जिसे आपने कहीं छुपा रखा था, लेकिन प्रेम की ज्योति उसे फिर से जगमगा देती है।

सोचिए, उस समय जब आप किसी को अपने दिल से अपनाते हैं, तो आपके मन में किसी भी भय या अभिमान का कोई स्थान नहीं रहता। आपकी आत्मा अपने आप में पूरी होती है, और आप अपने अंदर के बच्चे की तरह खुशमिजाज, सरल और सच्चे भावनाओं से भर जाते हैं। यह वह अवस्था है जहाँ आप बिना किसी रोक-टोक के, पूरी ईमानदारी से जीवन का अनुभव करते हैं।

3. स्त्री की माँ जैसी प्रकृति: एक अनंत ममता का संचार

जब प्रेम का अनुभव स्त्री के लिए आता है, तो वह अपने भीतर की उस अपार ममता को प्रकट करती है, जो एक माँ के रूप में होती है। यह ममता केवल शारीरिक या पारिवारिक संबंधों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह एक ऐसी ऊर्जा है, जो सम्पूर्ण सृष्टि को अपनाने और पोषण देने वाली होती है।

स्त्री के दिल में वह गहराई होती है, जो जीवन के हर दर्द को समझती है और उसे अपने प्यार से भर देती है। प्रेम के उन पलों में, जब वह अपने प्रियतम के साथ होती है, तब वह अपने अंदर की उस सजीव ममता को जगाती है, जो उसे एक पोषक, एक पालनहार के रूप में प्रकट करती है। यह ममता उस करुणा और सहानुभूति का संयोग है, जो हर प्राणी के लिए अवश्य आवश्यक है।

सोचिए, उस समय जब कोई स्त्री अपने साथी के दर्द को महसूस करती है, तो वह न केवल उसे शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी अपना आशीर्वाद देती है। यह वह ऊर्जा है, जो जीवन को पुनः जीवंत कर देती है, और उस ऊर्जा का मूल स्रोत है—असीम प्रेम।

4. प्रेम: एक आध्यात्मिक यात्रा

प्रेम केवल दो व्यक्तियों के बीच का संबंध नहीं है, बल्कि यह एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है, जो हमें हमारे असली अस्तित्व से जोड़ती है। प्रेम का यह स्वरूप हमें उस ऊर्जा से जोड़ता है, जो हमें इस ब्रह्मांड का हिस्सा बनाती है। जब हम प्रेम करते हैं, तब हम एक-दूसरे के अन्दर छिपे अनंत रूपों और गूढ़ भावों को पहचानते हैं।

इस यात्रा में, पुरुष अपने अंदर की उस मासूमियत को पुनः प्राप्त करता है, जो उसे जीवन के सरलतम सत्य की ओर ले जाती है। वही स्त्री अपने अंदर की ममता और सहानुभूति की शक्ति को प्रकट करती है, जो उसे एक पूर्ण, समग्र मानव रूप में परिलक्षित करती है।

इस आध्यात्मिक यात्रा का प्रत्येक कदम हमें न केवल अपने आप से, बल्कि उस सम्पूर्ण सृष्टि से जोड़ता है, जो अनंत है। प्रेम हमें अपने भीतर के उस अनंत शांति, उस अनंत आनंद के अनुभव से रूबरू कराता है, जो केवल तब ही महसूस किया जा सकता है जब हम बिना किसी भय या झिझक के, पूरी तरह से अपने आप को स्वीकार कर लेते हैं।

5. प्रेम और सामाजिक ढांचे: एक अंतर्विरोध

हमारे समाज में अक्सर पुरुष और स्त्री के बीच की भूमिकाओं को बहुत कड़ाई से निर्धारित किया जाता है। पुरुष को मजबूत, अहंकार से परे और आत्मनिर्भर माना जाता है, जबकि स्त्री को नाजुक, देखभाल करने वाली और मां जैसी भूमिका में रखा जाता है। लेकिन प्रेम का असली सार इन कठोर सीमाओं से परे है।

जब एक पुरुष प्रेम में पड़ता है, तो वह उस भीतरी बच्चे को जगाता है जो उसे न केवल भावनात्मक रूप से संवेदनशील बनाता है, बल्कि उसे एक नया दृष्टिकोण भी प्रदान करता है—एक ऐसा दृष्टिकोण जो जीवन के प्रति पूरी तरह से खुला होता है। इसी प्रकार, स्त्री का प्रेम उसे उस माँ के गुणों से परिपूर्ण कर देता है, जो उसे जीवन के हर पहलू में पोषण देने वाली बनाता है।

यहां एक अंतर्विरोध सा प्रतीत हो सकता है—क्योंकि समाज में पुरुषों को अकसर यह सिखाया जाता है कि उन्हें कठोर और अभेद्य बनना चाहिए। लेकिन प्रेम हमें सिखाता है कि सच्ची ताकत उसी समय आती है जब हम अपनी कमजोरियों को स्वीकार करते हैं। प्रेम हमें यह अनुभव कराता है कि अपने भीतरी बच्चे को जगाना कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक अनमोल गुण है, जो हमें मानवता का असली स्वरूप दिखाता है।

6. प्रेम में खो जाना: अनंत अनुभूति का मार्ग

प्रेम का अनुभव करने का अर्थ है, स्वयं को उस अनंत अनुभूति में खो देना, जहाँ हम अपने अस्तित्व की सीमाओं को भूल जाते हैं। जब हम प्रेम करते हैं, तब हम अपने अंदर के उस छोटे शिशु को पुनः जीवंत कर लेते हैं, जो हमें उस क्षण की शुद्धता और मासूमियत का एहसास कराता है।

यह अनुभव हमें एक ऐसी स्थिति में ले जाता है जहाँ सभी सामाजिक और मानसिक बंधन टूट जाते हैं। हम अपने आप को पूरी तरह से उस क्षण के साथ जोड़ लेते हैं, जहाँ प्रेम ही सम्पूर्णता है। उस क्षण में पुरुष अपने बचपन की सरलता को पुनः पाता है, और स्त्री अपने अंदर की ममता को उजागर करती है। यह अनुभव, इस जीवन की सबसे गहन और शुद्ध अनुभूति है—जहाँ हम अपने आप को पूरी तरह से खो देते हैं, और फिर से पा लेते हैं।

7. प्रेम की शिक्षाएँ: जीवन को पुनः परिभाषित करना

प्रेम हमें सिखाता है कि जीवन केवल बाहरी उपलब्धियों, सामाजिक मान्यताओं या भौतिक सुख-सुविधाओं का नाम नहीं है। असली जीवन का सार उस गहन प्रेम में निहित है, जो हमें अपने आप से, अपने साथी से, और सम्पूर्ण सृष्टि से जोड़ता है।

जब हम प्रेम को अपनाते हैं, तब हम अपने अंदर के उस मासूम बच्चे को जगाते हैं, जो हमें सरलता, भक्ति और पूर्णता का अनुभव कराता है। यही वह क्षण है जब हम अपने अस्तित्व की सच्चाई को समझते हैं—कि हम सभी एक ही ऊर्जा के विभिन्न रूप हैं। यह समझ हमें एक अनंत शांति और आनंद का अनुभव कराती है, जो जीवन को नए अर्थों से भर देती है।

इस प्रकार, प्रेम हमें सिखाता है कि असली खुशी और पूर्णता किसी बाहरी तत्व में नहीं, बल्कि हमारे अपने अंदर ही विद्यमान है। प्रेम हमें उस दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है, जो हमारे अस्तित्व की आत्मा में निहित है। जब हम उस ऊर्जा को स्वीकार करते हैं, तब हम जीवन की उन सच्चाइयों को समझने लगते हैं, जिन्हें शब्दों में बांध पाना संभव नहीं है।

8. आधुनिक जीवन में प्रेम की प्रासंगिकता

आज के इस आधुनिक, तेज़-तर्रार जीवन में, जहाँ हम तकनीक, आर्थिक दबाव और सामाजिक अपेक्षाओं के बोझ तले दबे हुए हैं, वहाँ प्रेम का अनुभव हमें अपनी जड़ें याद दिलाता है। यह हमें उस सरलता, उस मासूमियत और उस दयालुता की ओर ले जाता है, जो हम भूल चुके हैं।

जब हम अपने अंदर के उस बच्चे को जगाते हैं, तो हम न केवल अपने आप को पुनर्जीवित करते हैं, बल्कि हम अपने साथी के प्रति भी एक नई समझ और सहानुभूति का अनुभव करते हैं। स्त्री की माँ जैसी ममता हमें याद दिलाती है कि जीवन का हर पहलू, चाहे वह कितना भी जटिल क्यों न हो, अंततः प्रेम और देखभाल के माध्यम से ही संतुलित होता है।

यह प्रेम का संदेश हमें सिखाता है कि जीवन में असली सुख वही है, जो दिल की गहराइयों से आता है। यह हमें अपने अंदर के उन अनदेखे पहलुओं से जोड़ता है, जिन्हें हमने कभी महसूस नहीं किया। आधुनिक जीवन की जटिलताओं के बीच, यह प्रेम हमें एक शांत, स्थिर और संतुलित जीवन की ओर ले जाता है—एक ऐसा जीवन, जहाँ हम अपनी आत्मा के हर पहलू को बिना किसी भय के स्वीकार करते हैं।

9. प्रेम: रचनात्मकता और आत्म-प्रकाशन का स्रोत

प्रेम के उस अनुभव में निहित है वह असीम रचनात्मक शक्ति, जो हमें हमारी सीमाओं से परे ले जाती है। जब पुरुष अपने अंदर के बच्चे को जगाता है, तो वह न केवल अपनी भावनाओं को मुक्त करता है, बल्कि उसकी रचनात्मकता भी प्रकट होती है। वह कलाकार की तरह अपने विचारों, अपने सपनों और अपनी आकांक्षाओं को नए रंगों से रंग देता है।

इसी प्रकार, स्त्री अपने भीतर की माँ जैसी ममता के माध्यम से अपने साथी को और समाज को पोषण देने का कार्य करती है। यह ऊर्जा, यह रचनात्मकता ही हमें जीवन के उन नए पहलुओं से परिचित कराती है, जो हमारी आत्मा को नवजीवन प्रदान करते हैं। प्रेम हमें उस असीम शक्ति से जोड़ता है, जो न केवल हमें रचनात्मक बनाती है, बल्कि हमें हमारे वास्तविक स्वरूप की भी याद दिलाती है।

10. आंतरिक परिवर्तन और प्रेम की अनंत यात्रा

प्रेम का अनुभव केवल बाहरी संबंधों तक सीमित नहीं है; यह हमारे आंतरिक परिवर्तन की भी कहानी है। जब हम प्रेम करते हैं, तब हम अपने भीतर के उस शिशु को जगाते हैं, जो हमें हमारे भीतरी संसार की सरलता, मासूमियत और शुद्धता से परिचित कराता है।

यह आंतरिक परिवर्तन हमें एक नई दृष्टि प्रदान करता है—एक ऐसी दृष्टि, जहाँ हम अपने जीवन के हर पहलू को एक नई ऊर्जा के साथ देखते हैं। यह ऊर्जा हमें बताती है कि प्रेम केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं है, बल्कि यह एक गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से जोड़ती है।

यह यात्रा हमें उस सत्य से रूबरू कराती है, जहाँ हर व्यक्ति अपने आप में सम्पूर्ण है, और हर संबंध एक गहन आध्यात्मिक मिलन है। जब हम प्रेम में डूब जाते हैं, तब हम अपने आप को एक नई पहचान देते हैं—एक ऐसी पहचान, जो समाज की बनावट से परे होती है, और केवल हमारी आत्मा की सच्चाई को प्रकट करती है।

11. प्रेम के द्वंद्व और उनके समाधान

प्रेम में अक्सर हम यह देखते हैं कि पुरुष अपनी ताकत और स्त्री अपनी कोमलता को एक साथ लेकर चलते हैं। लेकिन असली बात यह है कि दोनों ही गुण—मजबूती और कोमलता—हमारे अंदर एक ही ऊर्जा के दो पहलू हैं।

जब एक पुरुष प्रेम में अपने अंदर के बच्चे को जगाता है, तो वह अपनी आंतरिक ताकत का भी अनुभव करता है, जो उसे अपने भय, अपने अहंकार से पार पाने में मदद करती है। इसी तरह, स्त्री की माँ जैसी ममता उसके भीतर के उन अनगिनत गुणों को उजागर करती है, जो उसे जीवन के हर संघर्ष में एक स्थिरता प्रदान करते हैं।

यह द्वंद्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। प्रेम हमें यह संदेश देता है कि हमें अपनी कमजोरियों को छुपाने की बजाय, उन्हें अपनाकर अपनी ताकत में बदलना चाहिए। यही वह सत्य है, जो हमें बताता है कि असली शक्ति वही है, जब हम अपने अंदर की कोमलता और मासूमियत को पूरी तरह से अपन लेते हैं।

12. प्रेम के माध्यम से स्वयं की खोज

प्रेम का अनुभव एक आत्मिक खोज की यात्रा भी है। जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हम न केवल उसके साथ अपने संबंधों को गहराते हैं, बल्कि अपने आप से भी एक नया रिश्ता जोड़ते हैं। यह वह यात्रा है, जहाँ हम अपने अंदर के उस अनदेखे हिस्से को पहचानते हैं, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।

पुरुष का वह शिशु जैसा भाव उसे उसकी आत्मा की गहराई से जोड़ता है, और स्त्री की माँ जैसी ममता उसे उसके अस्तित्व की उस संपूर्णता से परिचित कराती है, जो केवल प्रेम के माध्यम से ही संभव है। इस यात्रा में हम सीखते हैं कि हम कौन हैं, हम कहाँ से आए हैं, और हमें अपने अस्तित्व की उस अद्भुतता को किस प्रकार अपनाना चाहिए।

यह आत्म-खोज हमें उस गहन शांति और आनंद की ओर ले जाती है, जो केवल प्रेम में ही निहित है। जब हम स्वयं को प्रेम में पूरी तरह से खो देते हैं, तब हम उस अनंत सत्य से मिलते हैं, जो हमारे जीवन को एक नई दिशा, एक नई ऊर्जा प्रदान करता है।

13. प्रेम: एक निरंतर प्रवाह

प्रेम एक स्थायी धारा है, जो जीवन के प्रत्येक क्षण में बहती रहती है। यह कोई थमने वाली भावना नहीं है, बल्कि एक ऐसा प्रवाह है जो निरंतर बदलता रहता है, हमें नयी ऊँचाइयों की ओर ले जाता है। पुरुष का वह शिशु जैसा भाव और स्त्री की माँ जैसी ममता—दोनों ही उस प्रवाह के दो अभिन्न अंग हैं।

इस प्रवाह में हमें सीखने को मिलता है कि जीवन में स्थिरता और परिवर्तन दोनों ही आवश्यक हैं। प्रेम हमें यह समझाता है कि किसी भी परिवर्तन से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे स्वीकार कर, उसके साथ मिलकर चलना चाहिए। यह परिवर्तन ही हमें जीवन के असली मायने की ओर ले जाता है, जहाँ हर क्षण एक नए अनुभव, एक नई सीख का स्रोत बन जाता है।

14. निष्कर्ष: प्रेम की महत्ता

प्रिय साथियों, इस प्रवचन में हमने प्रेम के उन दो अनोखे पहलुओं पर विचार किया—पुरुष का शिशु जैसा भाव और स्त्री की माँ जैसी ममता। यह दो गुण हमें बतलाते हैं कि प्रेम एक ऐसी शक्ति है, जो हमारे अंदर की गहराइयों से जुड़ती है, हमारे अन्दर के छुपे हुए गुणों को प्रकट करती है, और हमें एक पूर्ण, समग्र मानव के रूप में उभरने में मदद करती है।

ओशो की इस गहन शिक्षण में निहित है कि प्रेम केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह एक जीवन दर्शन है—एक ऐसा दर्शन, जो हमें सिखाता है कि असली खुशी और पूर्णता हमारे भीतर ही छुपी हुई है। जब हम अपने अंदर के उस शिशु को जगाते हैं, तो हम अपनी आत्मा की मासूमियत और सहजता को पुनः प्राप्त करते हैं। और जब हम स्त्री के भीतर की माँ जैसी ममता को महसूस करते हैं, तो हम उस अपार करुणा और सहानुभूति का अनुभव करते हैं, जो जीवन को सचमुच सुंदर बनाती है।

इसलिए, प्रेम के इस अद्भुत अनुभव को केवल भावनाओं के स्तर पर न समझें, बल्कि इसे एक गहन आध्यात्मिक यात्रा के रूप में अपनाएँ। अपने अंदर के उस शिशु को पहचानें, अपनी आत्मा की उस मासूमियत को स्वीकार करें। साथ ही, स्त्री में विद्यमान उस माँ जैसी शक्ति को महसूस करें, जो न केवल एक साथी, बल्कि जीवन का सम्पूर्ण पोषण करती है।

प्रेम हमें सिखाता है कि हम जो भी हैं, हमें अपने आप से प्रेम करना चाहिए। जब हम अपने आप से प्रेम करते हैं, तभी हम किसी और से सच्चे अर्थों में प्रेम कर पाते हैं। यह प्रेम ही है, जो हमारे अस्तित्व को अर्थपूर्ण बनाता है, जो हमें उन ऊँचाइयों पर ले जाता है जहाँ हम अपने असली स्वरूप से मिलते हैं।

आज के इस समय में, जब हम अपने जीवन की तेज़ रफ्तार, बाहरी अपेक्षाओं और सामाजिक दबावों में उलझे हुए हैं, तब यह ज़रूरी है कि हम अपने अंदर की उस गहरी शांति और मासूमियत को पुनः खोजें, जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं। प्रेम के उस अनुभव को फिर से अपनाएँ, अपने अंदर के उस बच्चे को जगाएँ, और उस माँ जैसी ममता से अपने जीवन को संवारें।

यही वह संदेश है जो हमें ओशो के इन शब्दों में मिलता है—एक संदेश जो हमें बताता है कि प्रेम का असली सौंदर्य उस परिवर्तन में है, जो यह हमारे अंदर लाता है। पुरुष के अंदर के उस शिशु को पुनः जीवंत करना, और स्त्री में विद्यमान माँ जैसी शक्ति को प्रकट करना, यही प्रेम का असली अर्थ है।

आइए, हम सभी इस प्रेम की यात्रा को अपनाएँ, अपने अंदर के उन अनदेखे पहलुओं को पहचानें, और उस शुद्ध, निस्वार्थ प्रेम को अनुभव करें, जो हमारे अस्तित्व को सम्पूर्ण बनाता है। क्योंकि जब हम प्रेम करते हैं, तब हम वास्तव में स्वयं को खोजते हैं, अपने आप को निखारते हैं, और उस अनंत आनंद को प्राप्त करते हैं, जो जीवन का असली सार है।

15. एक व्यक्तिगत निमंत्रण

मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आज, इस क्षण में, अपने दिल की गहराइयों में झांकें। उस गहरे, शुद्ध प्रेम को महसूस करें, जो आपके भीतर निहित है। याद करें कि कैसे एक बार जब आपने किसी को अपने दिल से अपनाया, तो आप अपने अंदर के उस मासूम बच्चे की याद ताजा कर गए थे। उस समय आपने जीवन की उस सरलता, उस उस अनुग्रह और उस अनंत आनंद का अनुभव किया था, जो केवल सच्चे प्रेम में ही निहित होता है।

अपने साथी के साथ बैठें, एक-दूसरे की आँखों में देखें और महसूस करें कि कैसे आपका प्रेम न केवल आपको एक-दूसरे से जोड़ता है, बल्कि आपको उस गहरे आध्यात्मिक सत्य से भी जोड़ता है, जो जीवन को सुंदर बनाता है। अपने रिश्तों में उस शुद्धता को पुनः लाएँ, उस बच्चे की मासूमियत को स्वीकार करें, और उस माँ जैसी ममता को महसूस करें, जो आपको एक पूर्णता की ओर ले जाती है।

16. प्रेम के प्रति जागरूकता का आह्वान

इस प्रवचन के माध्यम से मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि प्रेम केवल बाहरी दुनिया का मेल नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर की गहराइयों से उठने वाली एक शक्ति है, जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से मिलाती है। जब हम अपने अंदर के उस शिशु को जगाते हैं, तब हम अपने आप में नयी ऊर्जा का संचार करते हैं, और जब हम स्त्री की माँ जैसी ममता को अपनाते हैं, तब हम जीवन के हर दर्द और हर सुख को उसी समर्पण के साथ अनुभव करते हैं।

आज के इस युग में, जहाँ तकनीक, प्रतिस्पर्धा और बाहरी अपेक्षाएँ हम पर हावी हो जाती हैं, वहाँ यह आवश्यक है कि हम अपने दिल की आवाज़ सुनें। प्रेम की वह आंतरिक शक्ति, जो हमें हमारे अस्तित्व से जोड़ती है, हमें यह याद दिलाती है कि असली शक्ति वही है, जब हम अपने आप को, अपने साथी को और सम्पूर्ण सृष्टि को बिना किसी शर्त के अपनाते हैं।

इसलिए, मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि अपने जीवन में प्रेम को एक बार फिर से अपनाएँ। अपने अंदर के उस बच्चे को जगाएँ, और अपने दिल में माँ जैसी ममता का संचार करें। यही वह संदेश है जो हमें ओशो के इन शब्दों में मिलता है—एक संदेश, जो हमें बताता है कि प्रेम ही वह सच्चा अनंत है, जो जीवन को वास्तव में जीने योग्य बनाता है।

17. अंत में: प्रेम—एक अमूल्य उपहार

प्रेम वह अमूल्य उपहार है, जिसे हमने अपने जीवन में प्राप्त किया है। यह उपहार हमें हर दिन नयी ऊर्जा, नयी उम्मीद और नयी दिशा प्रदान करता है। जब हम प्रेम में अपने अंदर के उस शिशु को जगाते हैं, तो हम न केवल अपने आप को पुनर्जीवित करते हैं, बल्कि हम उस ऊर्जा को भी महसूस करते हैं, जो हमें एक नई, उज्जवल दिशा की ओर ले जाती है।

स्त्री में विद्यमान माँ जैसी ममता हमें यह याद दिलाती है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है—देखभाल, करुणा और प्रेम। यह हमें सिखाती है कि हमारे रिश्ते, चाहे वे कितने भी जटिल क्यों न हों, अंततः एक ही उद्देश्य की ओर अग्रसर हैं—एक ऐसा उद्देश्य जो जीवन को पूर्णता, संतोष और शांति प्रदान करता है।

इसलिए, अपने दिल की गहराइयों में झांकें, उस अनंत प्रेम को खोजें, जो आपके भीतर निहित है, और उसे अपने जीवन में फैलाएँ। याद रखें, कि जब एक पुरुष अपने भीतर के उस शिशु को जगाता है, तो वह अपने आप में एक नई शक्ति का अनुभव करता है। और जब एक स्त्री अपने भीतर की माँ जैसी ममता को प्रकट करती है, तो वह जीवन के उस अनंत सत्य को उजागर करती है, जो केवल प्रेम के माध्यम से ही संभव है।

18. समापन विचार

आज के इस प्रवचन के माध्यम से हमने यह जाना कि प्रेम केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण जीवन दर्शन है। यह हमें हमारे भीतरी शिशु को जगाने, हमारी आत्मा की मासूमियत को पुनर्जीवित करने और उस माँ जैसी ममता को प्रकट करने में सहायक होता है।

इस अनंत प्रेम की यात्रा में, हम सीखते हैं कि सच्ची शक्ति वही है, जब हम अपने भीतर की कमजोरियों को स्वीकार कर उन्हें अपनी ताकत में बदलते हैं। प्रेम हमें यह संदेश देता है कि हम जो भी हैं, हमें अपने आप से प्रेम करना चाहिए, क्योंकि यही सच्चा अनंत प्रेम है, जो हमें सम्पूर्णता की ओर ले जाता है।

मैं आप सभी से यह आग्रह करता हूँ कि अपने जीवन में इस प्रेम के अमूल्य उपहार को अपनाएँ। अपने अंदर के उस बच्चे को जगाएँ, अपने दिल की शुद्धता को महसूस करें, और उस माँ जैसी ममता को अपने जीवन में एक नई दिशा दें। यही वह अनंत सत्य है, जो हमें बताता है कि प्रेम ही जीवन है—एक ऐसा जीवन, जो हर पल, हर सांस में नयी ऊर्जा और नयी उमंग से भर जाता है।

19. अंतिम संदेश

प्रेम के इस प्रवचन में, हमने जिस प्रकार पुरुष के भीतर के शिशु को और स्त्री के भीतर की माँ जैसी ममता को समझने की कोशिश की, वह एक आमंत्रण है—एक निमंत्रण उस गहन, निस्वार्थ प्रेम को अपनाने का, जो हमारे अस्तित्व को पुनर्जीवित कर देता है। यह प्रेम, चाहे वह किसी भी रूप में प्रकट हो, हमें उस अनंत शांति और आनंद से जोड़ता है, जो केवल सच्चे प्रेम में ही अनुभव किया जा सकता है।

तो चलिए, अपने आप को इस अनंत प्रेम की शक्ति में डुबो दें। अपने अंदर के उस मासूम बच्चे को फिर से जीवंत करें, और अपने जीवन में उस माँ जैसी ममता को जगाएं। यही वह रास्ता है, जो आपको आपके असली स्वरूप, आपकी अनंत ऊर्जा और आपके जीवन के उस उच्चतम सत्य से जोड़ देगा। 

इसलिए, आज से, हर दिन अपने आप से यह सवाल पूछें—क्या मैं अपने अंदर के उस शिशु को पहचान पा रहा हूँ? क्या मैं अपनी आत्मा की उस माँ जैसी ममता को महसूस कर पा रहा हूँ? जब इन प्रश्नों का उत्तर आपके हृदय से निकलने लगेगा, तभी आप समझ पाएंगे कि प्रेम वास्तव में क्या है।

20. प्रेम—जीवन का अमर अनुभव

प्रिय मित्रों, प्रेम केवल एक संबंध नहीं है, बल्कि यह एक अमर अनुभव है, जो हमारे जीवन के हर पहलू को उजागर करता है। यह वह अनुभव है जो पुरुष को अपने अंदर की निस्वार्थता, मासूमियत और सच्चाई से जोड़ता है, और स्त्री को उसके अंदर की अनंत ममता, करुणा और पोषण देने वाली शक्ति से जोड़ता है। 

इस प्रेम के अनुभव में, हम अपने आप को एक नई पहचान देते हैं—एक ऐसी पहचान, जो समाज की सीमाओं से परे होती है, और केवल हमारे भीतर की आत्मा की गहराईयों को दर्शाती है। जब हम इस प्रेम को अपनाते हैं, तब हम अपने अस्तित्व के उन उन पहलुओं को जगाते हैं, जिन्हें हमने कभी महसूस नहीं किया। यह प्रेम हमें उस अनंत ऊर्जा से जोड़ता है, जो हमारे जीवन को एक नई दिशा, एक नई चेतना प्रदान करती है।

इसलिए, मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि अपने जीवन में इस प्रेम को स्थान दें। उस प्रेम को, जो आपके भीतर के उस शिशु को जगाता है, और उस प्रेम को, जो स्त्री के भीतर की माँ जैसी ममता को प्रकट करता है। यही वह अनंत सत्य है, जो हमें बताता है कि असली खुशी, असली शक्ति, और असली जीवन—सब कुछ प्रेम में ही निहित है।

समापन

प्रेम की यह यात्रा—जिसमें पुरुष अपने अंदर के शिशु को जगाता है और स्त्री अपने भीतर की माँ जैसी ममता को प्रकट करती है—हमें याद दिलाती है कि जीवन का असली सार हमारे अंदर ही छुपा हुआ है। यह जीवन, इस अनंत प्रेम के माध्यम से ही पूर्ण होता है, और जब हम इस प्रेम को अपनाते हैं, तब हम स्वयं ही अपनी आत्मा की उस गहराई से जुड़ जाते हैं, जो हमें सम्पूर्णता का एहसास कराती है।

इस प्रवचन के साथ मैं आप सभी को यही संदेश देना चाहता हूँ कि अपने जीवन में प्रेम को अमल में लाएँ, अपने अंदर के उस मासूम बच्चे और अनंत ममता को पुनः जागृत करें। यही वह सत्य है, जो आपको जीवन के उस असली आनंद, उस अनंत शांति और उस परम सत्य से जोड़ देगा, जिसे हम सबने अपने भीतर ही संजोया हुआ है।

धन्यवाद।

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