नीचे प्रस्तुत है एक विस्तृत आध्यात्मिक प्रवचन, जिसमें यह समझाया गया है कि कैसे सम्पूर्णता को बिना किसी भेदभाव के अपनाने से हम उस सत्य के निकट पहुँचते हैं जिसे हम खोजते हैं।
सम्पूर्णता का निमंत्रण: एक अनंत यात्रा
आप सोचते हैं – क्या जीवन में पूर्णता का कोई अस्तित्व है? क्या हम वास्तव में उस सत्य से अवगत हो सकते हैं जो हमारे भीतर ही विद्यमान है? ओशो कहते हैं, "सभी चीजो को पूरा स्वीकार करना ही सत्य तक ले जाता है।" जब हम अपने जीवन के हर पहलू को, चाहे वह सुख हो या दुःख, सफलताएँ हो या विफलताएँ, बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकारते हैं, तभी हम उस अनंत सत्य के करीब पहुँचते हैं। यह सत्य हमारे भीतर ही निहित है, और यह केवल तभी उजागर होता है जब हम अपने भीतर के प्रत्येक अनुभव को उसी पूर्णता के साथ ग्रहण करते हैं जैसा कि वह है।
इस प्रवचन की शुरुआत एक निमंत्रण से होती है – अपने जीवन को एक खुली किताब की तरह पढ़ने का निमंत्रण। इसमें कोई पन्ना ऐसा नहीं जिसे छोड़ दिया जाए या कोई अध्याय जिसे न पढ़ा जाए। हर अनुभव, हर घटना, हर भावना को उसी रूप में अपनाइए, क्योंकि यही सम्पूर्णता है। यही वह सत्य है जो हम खोजते हैं, वह अनंत ऊर्जा जो हमें जीवन से जोड़ती है।
भेदभाव का जाल और उसका प्रभाव
समझिए, जब हम भेदभाव करते हैं, तब हम अपने मन में एक दीवार खड़ी कर लेते हैं। यह दीवार हमारे बीच की दूरी को बढ़ाती है, हमें एक-दूसरे से अलग करती है और अंततः सत्य से दूर ले जाती है। ओशो की इस बात में एक गहरी सच्चाई निहित है – "भेद करने से ही तुम उस से दूर हो।" जब हम अपने मन को अलग-थलग करने लगते हैं, तो हम उस दिव्य एकता को भूल जाते हैं जो सबमें विद्यमान है।
आज के आधुनिक जीवन में हम निरंतर तुलना, जजमेंट और प्रतिस्पर्धा में उलझे रहते हैं। ऑफिस के कार्यस्थल से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह हमें एक-दूसरे को आंकने की प्रवृत्ति होती है। यह तुलना हमारे अंदर के प्रेम, करुणा और शांति को धीरे-धीरे समाप्त कर देती है। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी मित्र के जीवन की सफलता, उसकी आर्थिक स्थिति या उसके व्यक्तित्व की तुलना अपने से करेंगे, तो अंततः आप स्वयं में असंतोष का अनुभव करेंगे। इसी प्रकार, समाज में भी हम विभिन्न वर्गों, जातियों और धर्मों के बीच एक दीवार खींच लेते हैं। यह दीवारें न केवल बाहरी दुनिया में बल्कि हमारे अंदर भी बन जाती हैं, जिससे हम उस असीम प्रेम और शांति से दूर हो जाते हैं जो सत्य का मूल है।
जब हम भेदभाव की इस दीवार को गिरा देते हैं और हर व्यक्ति, हर अनुभव को उसी प्रेम और स्वीकृति से देखते हैं, तो एक अद्भुत परिवर्तन घटित होता है। यह परिवर्तन न केवल हमारे अंदर होता है, बल्कि हमारे सम्पर्क में आए लोगों और घटनाओं में भी परिलक्षित होता है। तभी हम कह सकते हैं कि “तुम, मैं और यही पूर्ण” – एक ऐसी अनंत एकता जिसमें सभी भेद गायब हो जाते हैं।
व्यक्तिगत अनुभव और आंतरिक बदलाव
अपने जीवन के अनुभवों में हमने अक्सर देखा है कि जब भी हमने किसी अनुभव को पूरी तरह से, बिना किसी जजमेंट के स्वीकार किया, तब हमारे अंदर की ऊर्जा स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होने लगी। यह अनुभव ध्यान, योग और साधना के माध्यम से और भी स्पष्ट हो जाता है। जब हम ध्यान में बैठते हैं, तो हमारे मन की हर अशांति, हर उलझन धीरे-धीरे गायब हो जाती है। उस पल, जब हम अपने विचारों और भावनाओं को बिना किसी रोक-टोक के देखने लगते हैं, तो हमें महसूस होता है कि सभी अनुभव – चाहे वे कितने भी विपरीत क्यों न हों – एक ही स्रोत से निकलते हैं।
मेरा स्वयं का अनुभव भी इसी सत्य का प्रमाण है। कई वर्षों तक मैं अपने मन में उठते विचारों, भावनाओं और अनुभवों से लड़ता रहा। मैं हर छोटी से छोटी चीज़ को सही-गलत के मापदंड पर आंकने लगा था। परन्तु एक दिन मैंने यह समझा कि यदि मैं हर अनुभव को उसी रूप में स्वीकार करूँ जैसा वह है, बिना किसी तुलना या भेदभाव के, तो मेरे भीतर एक नई ऊर्जा का संचार होगा। धीरे-धीरे मैंने देखा कि मेरे जीवन में जो तनाव, चिंता और भ्रम था, वे समाप्त होने लगे और बदले में शांति, प्रेम और एक असीम ऊर्जा का अनुभव हुआ। यही वह सत्य है जो ओशो हमें बताते हैं – सम्पूर्णता को अपनाने से हम स्वयं में छिपे उस दिव्य सत्य से जुड़ जाते हैं।
ध्यान, योग और साधना: सम्पूर्णता का मार्ग
ध्यान, योग और साधना ऐसे साधन हैं जो हमें हमारे भीतर के गहरे सत्य तक पहुँचाते हैं। ओशो अक्सर कहते थे कि ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम अपने मन की सभी परतों को खोलते हैं। ध्यान के माध्यम से हम अपने आप को उस अनंतता से जोड़ लेते हैं, जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं। जब हम ध्यान में बैठते हैं, तो हमारे मन की हर अशांति, हर उलझन शांत हो जाती है और हम उस अनंत शांति का अनुभव करते हैं जो हमारे भीतर छिपी हुई है।
योग भी इसी प्रकार का एक माध्यम है। योग का अभ्यास न केवल शरीर को लचीला और स्वस्थ बनाता है, बल्कि यह हमें हमारे अंदर के अनुभवों से जोड़ता है। जब हम योग करते हैं, तो हम न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी एक संतुलन प्राप्त करते हैं। योग की प्रत्येक आसन हमें यह सिखाती है कि कैसे शरीर, मन और आत्मा के बीच के भेद को मिटाकर एकता का अनुभव किया जाए।
साधना के माध्यम से हम उस अनंत ऊर्जा से संपर्क में आते हैं जो हमारे भीतर ही विद्यमान है। यह साधना हमें यह सिखाती है कि किसी भी अनुभव को, चाहे वह कितना भी दुखद या सुखद क्यों न हो, बिना किसी जजमेंट के स्वीकार करना ही सत्य की ओर ले जाता है। जब हम अपने जीवन के प्रत्येक अनुभव को उसी प्रेम, करुणा और समझदारी के साथ अपनाते हैं, तो हम उस दिव्य सत्य का अनुभव करते हैं जो हमें अनंत शांति, प्रेम और संतोष प्रदान करता है।
आधुनिक जीवन में सम्पूर्णता की आवश्यकता
आज के युग में, जहाँ तकनीकी प्रगति और निरंतर प्रतिस्पर्धा ने हमें एक-दूसरे से दूर कर दिया है, वहाँ सम्पूर्णता का अनुभव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हम अपने जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि अक्सर अपने अंदर छुपे उस अनंत सत्य को भूल जाते हैं। लेकिन सच यह है कि जिस क्षण हम अपने जीवन के हर अनुभव को बिना किसी भेदभाव के स्वीकारना सीख लेते हैं, तभी हम उस सत्य से संपर्क में आते हैं जिसे हम अक्सर तलाशते रहते हैं।
सोचिए, आज के आधुनिक समाज में हमें कितनी बार अपने आप से सवाल करना पड़ता है – मैं कौन हूँ? मेरी असली पहचान क्या है? क्या मैं वही हूँ जो समाज ने मुझसे उम्मीद की है? जब हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने में लगे रहते हैं, तो हम अक्सर बाहरी विभाजनों, सामाजिक अपेक्षाओं और मान्यताओं में उलझ जाते हैं। यही भेदभाव हमें उस सत्य से दूर ले जाता है जो हमारे भीतर ही निहित है।
लेकिन यदि हम अपने जीवन के हर अनुभव को उसी सरलता से अपनाएं जैसे वह है – बिना किसी चयन या जजमेंट के – तो हम उस सत्य की ओर अग्रसर हो जाते हैं। यह सत्य हमें बताता है कि असली पहचान, असली अनुभव वही है – "तुम, मैं और यही पूर्ण।" यह अनंत एकता, जहाँ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता, वही वह स्थान है जहाँ से प्रेम, शांति और ज्ञान का प्रवाह होता है।
सामाजिक संबंधों में सम्पूर्णता का अनुभव
जब हम समाज में कदम रखते हैं, तो अक्सर हमें लोगों के बीच के विभेद दिखते हैं – जाति, धर्म, भाषा, आर्थिक स्थिति आदि के आधार पर। परन्तु यदि हम इन विभेदों को त्याग कर हर व्यक्ति को उसी दिव्य प्रकाश से देखने लगें, तो हम पाते हैं कि हर व्यक्ति के अंदर एक ही अनंत ऊर्जा निहित है। यह ऊर्जा, जो प्रेम, करुणा और शांति का स्रोत है, हमें जोड़ती है।
समाज में यदि हम एक-दूसरे के प्रति पूर्ण स्वीकृति अपनाने लगें, तो वह समाज भी एक नई दिशा में अग्रसर हो जाएगा। ओशो कहते हैं कि जीवन में केवल उसी क्षण का महत्व है, जो वर्तमान में जीया जाता है। जब हम वर्तमान क्षण में पूरी तरह से जीते हैं, तो हम उस दिव्य ऊर्जा से जुड़ जाते हैं जो सभी भेदभावों को पार कर जाती है। यही वह सत्य है जो हमें बताता है कि हम सभी में वही अनंत शक्ति है, वह एकता है जो हमें एक-दूसरे से जोड़ती है।
इस सोच के साथ, हमें समाज में यह प्रयास करना चाहिए कि हम हर व्यक्ति को उसी दिव्यता से देखें जैसा वह है। न कि उसके भेदभाव, सामाजिक स्थिति या किसी भी अन्य बाहरी मानदंड के आधार पर। यही वह मार्ग है जो हमें एक ऐसे समाज की ओर ले जाता है जहाँ प्रेम, सहयोग और शांति का वास हो।
आंतरिक संवाद: स्वयं से मिलने का अनुभव
अक्सर हम बाहरी दुनिया की हलचल में इतने खो जाते हैं कि अपने अंदर के संवाद को भूल जाते हैं। लेकिन सत्य यह है कि आत्मा से होने वाला संवाद ही हमें उस अनंत सत्य से जोड़ता है जो हमारे भीतर है। ओशो ने भी कहा था कि स्वयं से मिलने का अनुभव सबसे बड़ा उपहार है जो हमें मिलता है। जब हम अपने अंदर झांकते हैं, तो हमें महसूस होता है कि हमारे अंदर की हर अनुभूति, हर सोच, और हर भावना एक अनंत स्रोत से जुड़ी हुई है।
इस आंतरिक संवाद में हमें अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को बिना किसी भेदभाव के स्वीकार करना होता है। यह एक प्रक्रिया है जिसमें हम अपने आप को, अपने अस्तित्व को पूरी तरह से जान पाते हैं। जब हम स्वयं से इस प्रकार का संवाद स्थापित करते हैं, तो हम उस सत्य का अनुभव करते हैं जो सभी बाहरी भेदभावों से परे है। यही सत्य है – "तुम, मैं और यही पूर्ण।" इस सत्य को अपनाने से हम न केवल अपने अंदर के अंधेरे को दूर कर पाते हैं, बल्कि हमारे जीवन में एक नई ऊर्जा और प्रकाश का संचार भी होता है।
प्रेम और करुणा: सम्पूर्णता के दो अटूट पहलू
प्रेम और करुणा दो ऐसे पहलू हैं जो सम्पूर्णता के अनुभव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब हम प्रेम से किसी भी व्यक्ति या अनुभव का स्वागत करते हैं, तब हम अपने आप में वह दिव्यता महसूस करते हैं जो हमें जोड़ती है। ओशो के दृष्टिकोण से प्रेम केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें हम स्वयं को और अन्य को उसी अनंत ऊर्जा से जोड़ लेते हैं।
करुणा का अर्थ है – दूसरों के प्रति सहानुभूति, समझ और स्वीकार्यता। जब हम दूसरों की गलतियों, कमजोरियों और असफलताओं को भी उसी प्रेम से अपनाते हैं, तो हम एक ऐसी ऊर्जा का अनुभव करते हैं जो सभी भेदभावों को दूर कर देती है। यह ऊर्जा हमें बताती है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसके बाहरी गुणों या कमियों के आधार पर आंकना गलत है, बल्कि हमें उस अंतर्निहित दिव्यता को देखना चाहिए जो प्रत्येक जीव में विद्यमान है।
प्रेम और करुणा के इस अनुभव से हम यह समझते हैं कि असली शक्ति वह नहीं है जो भेदभाव और जजमेंट से उत्पन्न होती है, बल्कि वह शक्ति है जो सम्पूर्णता के अनुभव में निहित है। यही वह सत्य है जो हमें बताता है कि हम सभी में वह अनंत ऊर्जा है, वह दिव्यता है जो हमें जोड़ती है। जब हम इस ऊर्जा को अपनाते हैं, तो हम स्वयं में और समाज में भी एक नई रचनात्मकता, सहयोग और शांति का संचार करते हैं।
साधना के अभ्यास में सम्पूर्णता का संगम
साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम अपने अस्तित्व के प्रत्येक पहलू को, चाहे वह कितनी भी जटिल क्यों न हो, बिना किसी जजमेंट के स्वीकार करते हैं। यह प्रक्रिया हमें उस अनंत सत्य के करीब ले जाती है जो हमारे भीतर विद्यमान है। साधना के दौरान हम अपने मन की अशांतियों, भावनाओं की उथल-पुथल और विचारों की अव्यवस्था को शांत करते हैं। इस शांति के क्षण में हमें पता चलता है कि हमारे भीतर की सारी ऊर्जा एक ही स्रोत से निकलती है।
जब साधना के माध्यम से हम सम्पूर्णता को अपनाते हैं, तो हमें एहसास होता है कि प्रत्येक अनुभव – चाहे वह कितना भी विपरीत क्यों न हो – एक सीख लेकर आता है। यह सीख हमें बताती है कि जीवन में हर घटना, हर अनुभव एक अनंत श्रृंखला का हिस्सा है, जिसमें कोई भी हिस्सा अनावश्यक नहीं है। इस स्वीकृति से हमारे मन में एक गहरी शांति और संतोष उत्पन्न होता है, जो हमें उस सत्य से जोड़ता है जिसे हम खोजते हैं।
ओशो ने भी बार-बार यही संदेश दिया है कि साधना का असली उद्देश्य बाहरी उपलब्धियों या सफलता का मापन नहीं है, बल्कि अपने भीतर की अनंत ऊर्जा को पहचानना है। यह ऊर्जा हमें बताती है कि हम सभी में वही दिव्यता है, वही अनंत शक्ति है जो हमें एक दूसरे से जोड़ती है। जब हम साधना में खो जाते हैं, तो हम उस सत्य का अनुभव करते हैं जो सभी बाहरी भेदभावों से परे है। यही वह सत्य है – "तुम, मैं और यही पूर्ण।"
अनुभवों की अनंत यात्रा: जीवन की रचनात्मकता और जटिलता
जीवन एक अनंत यात्रा है जिसमें अनुभवों का एक विशाल समुंदर है। हर अनुभव, चाहे वह कितना भी क्षणिक या स्थायी क्यों न हो, हमारे अस्तित्व का एक अभिन्न अंग है। जब हम इन अनुभवों को केवल बाहरी सफलताओं या असफलताओं के दृष्टिकोण से आंकने लगते हैं, तो हम उस गहरे अर्थ और अनंत सत्य से दूर हो जाते हैं जो प्रत्येक अनुभव में निहित है।
इसलिए, हमें चाहिए कि हम अपने जीवन के हर क्षण को उसी प्रेम, स्वीकृति और खुलापन से देखें जैसा कि वह है। जब हम ऐसा करते हैं, तो हमें महसूस होता है कि हर अनुभव, हर चुनौती हमें उस सत्य के करीब ले जाती है जिसे हम जानना चाहते हैं। जीवन में कभी-कभी हमें कठिनाइयाँ, परेशानियाँ और विफलताएँ भी झेलनी पड़ती हैं, परंतु यही अनुभव हमें सिखाते हैं कि कैसे बिना किसी भेदभाव के सम्पूर्णता को अपनाया जाए।
कल्पना कीजिए – जब एक नदी अपने प्रवाह में बाधाओं से टकराती है, तो वह बाधाओं को नष्ट नहीं करती, बल्कि उनके साथ बहती हुई, उनका हिस्सा बन जाती है। इसी प्रकार, जब हम अपने जीवन के अनुभवों को बिना किसी रोक-टोक स्वीकार करते हैं, तो हम उस अनंत प्रवाह का हिस्सा बन जाते हैं जो हमें उस सत्य से जोड़ता है जिसे हम खोजते हैं। यह प्रवाह हमें सिखाता है कि प्रत्येक अनुभव एक अनमोल सीख है, एक ऐसा मोड़ है जो हमें आगे बढ़ने का मार्ग दिखाता है।
भेदभाव को पार करना: एक नया दृष्टिकोण
जब हम भेदभाव को पार करने का प्रयास करते हैं, तो हमें समझना होगा कि भेदभाव केवल बाहरी ही नहीं, बल्कि आंतरिक भी होता है। हमारे मन में बनी हुई वह दीवार, वह जजमेंट की दृष्टि, हमें अपने आप से भी दूर कर जाती है। ओशो की शिक्षाओं में यही संदेश बार-बार दोहराया जाता है कि हमें अपने भीतर के उस जजमेंटल स्वभाव को त्याग देना चाहिए।
यह त्याग इतना कठिन हो सकता है, क्योंकि हम सभी अपने अनुभवों, अपने परिवार, समाज और संस्कृति से प्रभावित होते हैं। परंतु जब हम इस भेदभाव को त्याग कर, केवल प्रेम और स्वीकृति की दृष्टि से देखने लगते हैं, तो हमें पता चलता है कि हर व्यक्ति, हर अनुभव में एक अनंत शक्ति निहित है। यह शक्ति हमें बताती है कि हम सभी में वही दिव्यता है, वही सत्य है जिसे हम अनंत प्रयासों से ढूँढते रहते हैं।
इसलिए, अपने भीतर की उस दीवार को गिराइए जो आपको अपने आप से, अपने अनुभवों से और समाज से दूर कर रही है। अपनी आत्मा को खोलिए, अपने मन को उस दिव्य प्रेम से भर दीजिए जो प्रत्येक जीव में विद्यमान है। यही वह रास्ता है जो आपको उस सत्य तक ले जाएगा जिसे आप तलाशते हैं – एक ऐसा सत्य जो सभी भेदभावों, सभी जजमेंट्स से परे है।
ओशो की भाषा में: जीवन का एक नया अध्याय
ओशो की भाषा में बात करने का मतलब है – सरलता, स्पष्टता और एक गहरी अंतर्दृष्टि। वह कहते थे कि जीवन में केवल एक ही नियम है – स्वयं को पूर्ण रूप से जीना। "तुम, मैं और यही पूर्ण" – यह न केवल एक कथन है, बल्कि एक जीवन शैली है। यह हमें बताता है कि असली अनुभव वही है जब हम अपने जीवन के हर पहलू को उसी पूर्णता के साथ अपनाते हैं जैसा कि वह है।
ओशो के शब्दों में, जब हम अपने भीतर के उस अनंत सत्य को पहचान लेते हैं, तो हम उस अनंत प्रेम, शांति और ऊर्जा से भर जाते हैं जो हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। वह कहते थे कि हमें अपने आप को सीमाओं में बांधने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें उस अनंतता को अपनाना चाहिए जो हमारे अंदर छिपी हुई है। यह अनंतता हमें बताती है कि हम सभी में एक ही दिव्यता है, एक ही अनंत शक्ति है, जो हमें जोड़ती है।
इस सोच के साथ, आइए हम अपने जीवन के हर क्षण को एक नए दृष्टिकोण से देखें। आइए हम अपने अनुभवों को उसी प्रेम, करुणा और स्वीकृति के साथ अपनाएं, ताकि हम उस सत्य का अनुभव कर सकें जो हमारे भीतर निहित है। यह सत्य हमें बताता है कि कोई भी अनुभव छोटा या बड़ा नहीं होता – हर अनुभव हमें एक नई सीख देता है, हमें और भी अधिक जागरूक बनाता है।
निष्कर्ष: सम्पूर्णता में सत्य का आह्वान
जीवन की इस अनंत यात्रा में, हमें समझना होगा कि सम्पूर्णता को अपनाना ही वह मार्ग है जो हमें सत्य के निकट ले जाता है। ओशो के शब्दों में, "सभी चीजो को पूरा स्वीकार करना ही सत्य तक ले जाता है।" जब हम अपने जीवन के हर अनुभव को बिना किसी भेदभाव के अपनाते हैं, तभी हम उस दिव्य ऊर्जा से जुड़ पाते हैं जो हमें भीतर से मजबूत, प्रेमपूर्ण और शांत बनाती है।
समय-समय पर जीवन हमें चुनौतियों, विफलताओं और संघर्षों से रूबरू कराता है। परंतु इन अनुभवों को केवल बाहरी घटनाओं के रूप में देखने की बजाय, हमें इन्हें अपने अंदर के अनुभव के रूप में अपनाना चाहिए। यही वह सत्य है जो हमें बताता है कि "तुम, मैं और यही पूर्ण।" यह सत्य हमें याद दिलाता है कि असली अनुभव वही है जब हम अपने अंदर के प्रेम, करुणा और शांति को पहचानते हैं।
आइए, हम सभी मिलकर इस सत्य को अपनाएं। अपने मन की दीवारों को गिराएं, अपने दिल को खोलें और उस अनंत ऊर्जा को महसूस करें जो आपको, मुझको और हम सबको जोड़ती है। यह अनंत ऊर्जा ही है जो हमें सच्चाई का अनुभव कराती है, हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है और अंततः हमें उस अनंत शांति और प्रेम से भर देती है जिसे हम सभी की तलाश रहती है।
इस प्रवचन का यही अंतिम संदेश है – सम्पूर्णता में सत्य का आह्वान है। जब आप अपने जीवन के प्रत्येक क्षण, प्रत्येक अनुभव को बिना किसी भेदभाव के अपनाएंगे, तो आप पाएंगे कि आपके अंदर की वह अनंत ऊर्जा, वह दिव्यता, आपको उस सत्य से जोड़ देती है जिसे आप नित नूतन प्रेम और ध्यान के साथ खोजते रहेंगे। यही है जीवन का असली सार, यही है वह मार्ग जो आपको आत्मज्ञान, शांति और प्रेम के उस अनंत समुद्र में ले जाएगा जहाँ कोई भी भेदभाव नहीं रहता, जहाँ केवल तुम, मैं और यही पूर्ण रहते हैं।
अंतर्निहित संदेश: आत्म-अन्वेषण की महिमा
इस प्रवचन के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि आत्म-अन्वेषण, ध्यान, योग और साधना के माध्यम से जब हम अपने भीतर के अनुभवों को बिना किसी रोक-टोक स्वीकार करते हैं, तो हम उस दिव्य सत्य का अनुभव करते हैं जो सभी बाहरी विभाजनों से परे है। यह सत्य हमें बताता है कि हमारे भीतर वही अनंत शक्ति है जो हमें जीवन में आगे बढ़ने, प्रेम करने और वास्तव में जीने की प्रेरणा देती है। जब हम इस अनंत शक्ति को पहचानते हैं, तब हम समझते हैं कि हमारे जीवन में कोई भी घटना असंगत या निरर्थक नहीं है – हर अनुभव का अपना एक अनूठा महत्व है।
यहाँ पर यह कहना भी आवश्यक है कि आधुनिक जीवन में जब हम निरंतर व्यस्तता, प्रतिस्पर्धा और बाहरी मानदंडों में उलझ जाते हैं, तो हम अक्सर उस गहरी शांति और सत्य से दूर हो जाते हैं जो हमारे भीतर है। लेकिन यदि हम खुद को उस असीम प्रेम और स्वीकृति से भरने का प्रयास करें, तो हम पाएंगे कि जीवन में हर चुनौती, हर अनुभव हमें उस सत्य के करीब ले जाता है जिसे हम वास्तव में अनुभव करना चाहते हैं।
यह सत्य हमें याद दिलाता है कि हमारे अंदर की वह दिव्यता, वह अनंत शक्ति, किसी भी बाहरी विभाजन से परे है। यही वह सत्य है जिसे अपनाने से हम अपने जीवन में वास्तविक परिवर्तन देख सकते हैं – एक ऐसा परिवर्तन जो बाहरी संसार की सीमाओं से परे, हमारे भीतर की अनंत ऊर्जा से प्रेरित होता है।
अंतिम विचार: सम्पूर्णता की ओर एक आमंत्रण
अंत में, मैं यही कहना चाहूंगा कि हमारे जीवन में प्रत्येक क्षण, प्रत्येक अनुभव एक अनमोल उपहार है। यह उपहार हमें याद दिलाता है कि जब हम अपने जीवन के हर पहलू को, चाहे वह कितना भी असामान्य या कठिन क्यों न हो, बिना किसी भेदभाव के अपनाते हैं, तभी हम उस अनंत सत्य से मिलते हैं जो हमारे भीतर निहित है। ओशो की शिक्षाएँ हमें यही सिखाती हैं कि जीवन को केवल बाहरी सफलताओं या विफलताओं के आधार पर आंकने की बजाय, हमें हर अनुभव को उसी प्रेम, स्वीकृति और समझदारी से देखना चाहिए।
इस प्रवचन का मुख्य संदेश यही है – "तुम, मैं और यही पूर्ण।" यह संदेश हमें बताता है कि असली अनुभव वही है जब हम अपने भीतर के प्रेम, करुणा और अनंत शक्ति को पहचानते हैं। जब हम यह सत्य समझते हैं कि हर जीव में वही दिव्यता निहित है, तब हम एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकते हैं जहाँ कोई भी भेदभाव नहीं रहेगा, जहाँ हर व्यक्ति अपने आप में पूर्ण होगा, और जहाँ प्रेम, शांति और आनंद का अनुभव निरंतर बना रहेगा।
आज के इस युग में, जब हम निरंतर बाहरी दुनिया के आकर्षणों में खोए रहते हैं, तो यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा, उस दिव्यता को फिर से खोजें। ध्यान, योग और साधना के माध्यम से जब हम इस अनंतता को अपनाते हैं, तो हम स्वयं में वह परिवर्तन देख सकते हैं जो हमारे जीवन को एक नई दिशा में अग्रसर करता है। यह परिवर्तन हमें न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी एक नई चेतना की ओर ले जाता है।
इसलिए, मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप अपने जीवन के हर अनुभव को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकारें। अपने भीतर के उस अनंत प्रेम और करुणा को पहचानें, और उसे अपनी जिंदगी में उतारें। यही वह मार्ग है जो आपको उस दिव्य सत्य से जोड़ देगा जिसे आप हमेशा से खोजते आए हैं – वह सत्य कि "तुम, मैं और यही पूर्ण।"
समापन
इस विस्तृत प्रवचन में हमने देखा कि कैसे सम्पूर्णता को अपनाने से, बिना किसी भेदभाव के, हम उस अनंत सत्य का अनुभव कर सकते हैं जो हमारे भीतर विद्यमान है। ओशो की शिक्षाओं और उनके शब्दों में छिपी गहराई हमें यह बताती है कि जीवन में प्रत्येक अनुभव, चाहे वह सुख हो या दुःख, एक अनमोल सीख है। जब हम इस सीख को अपने दिल में समाहित कर लेते हैं, तो हम पाएंगे कि हमारे भीतर वही अनंत शक्ति है, वही दिव्यता है जो हमें जीवन के हर मोड़ पर प्रेरित करती है।
यह प्रवचन एक निमंत्रण है – एक निमंत्रण कि आप अपने जीवन के हर पहलू को उसी प्रेम, स्वीकृति और करुणा से अपनाएं जैसा कि वह है। अपने आप को सीमाओं में बांधने वाले उन सभी भेदभावों और जजमेंट्स को छोड़ दें, और अपने भीतर की उस अनंत ऊर्जा को महसूस करें। यही वह सत्य है जो हमें बताता है कि हम सभी में वही दिव्यता है, वही अनंत शक्ति है जो हमें जोड़ती है। यही सत्य है – "तुम, मैं और यही पूर्ण।"
जब आप इस सत्य को गहराई से अपनाएंगे, तो न केवल आपके व्यक्तिगत जीवन में बल्कि आपके आस-पास के समाज में भी एक नई चेतना का संचार होगा। यह चेतना हमें याद दिलाएगी कि प्रत्येक व्यक्ति में अनंत प्रेम, शांति और शक्ति निहित है, जिसे बस पहचानने की जरूरत है। आइए, हम सब मिलकर इस अनंत ऊर्जा को जागृत करें, और उस सत्य के मार्ग पर चलें जो हमें अंततः उस परम शांति और आनंद तक ले जाएगा जिसे हम सभी चाहतें हैं।
इस प्रवचन की समाप्ति में, मैं यह कहूँगा कि सम्पूर्णता में सत्य का अनुभव एक निरंतर यात्रा है – एक ऐसी यात्रा जिसमें हर कदम पर, हर क्षण पर आप स्वयं को फिर से खोजते हैं, फिर से जागृत होते हैं, और फिर से उस अनंत प्रेम से भर जाते हैं जो आपके अस्तित्व का मूल है। यही वह सत्य है जो हमें बताता है कि असली अनुभव वही है, जब हम अपने भीतर की उस दिव्यता को अपनाते हैं और अपने जीवन के हर अनुभव को उसी पूर्णता के साथ स्वीकारते हैं।
अपने जीवन के इस अद्भुत सफर में, अपने आप से यह वादा कीजिए कि आप हर अनुभव को बिना किसी भेदभाव के अपनाएंगे, क्योंकि यही वह मार्ग है जो आपको उस अनंत सत्य तक ले जाएगा जिसे आप हमेशा से ढूँढते आए हैं। यही है ओशो का संदेश – एक संदेश जो प्रेम, शांति, और सम्पूर्णता का है, एक संदेश जो कहता है कि अंततः हम सभी में वही अनंत शक्ति है, वही दिव्यता है, और वही सत्य है – "तुम, मैं और यही पूर्ण।"
इस प्रकार, इस प्रवचन के माध्यम से हमने जाना कि कैसे सम्पूर्णता को अपनाना, बिना किसी भेदभाव के हर अनुभव को स्वीकार करना, हमें उस गहरे सत्य के निकट ले जाता है जिसे हम हमेशा से खोजते आए हैं। जीवन के इस अनंत सफर में, जहां हर अनुभव एक नई सीख लेकर आता है, वहीं उस सीख को अपनाने से हमें वह अनंत ऊर्जा और शांति प्राप्त होती है, जो अंततः हमारे अस्तित्व का सार है।
अब, अपने भीतर झांकिए, उन दीवारों को गिराइए, और उस अनंत प्रेम तथा शांति को महसूस कीजिए जो आपको भीतर से भर देती है। यही वह सत्य है जिसे आप हमेशा से चाहते थे – एक ऐसा सत्य जो केवल बाहरी विभाजनों से परे, आपके दिल में विद्यमान है। इस सत्य को अपनाइए, जीवन को उसी पूर्णता और प्रेम से जिएं, और याद रखिए – "तुम, मैं और यही पूर्ण।"
यह प्रवचन आपके जीवन में एक नई प्रेरणा, एक नई चेतना का संचार करे, और आपको उस अनंत ऊर्जा से जोड़ दे जो आपके भीतर छिपी हुई है। अपने आप को पूर्णता में स्वीकारें, भेदभाव को त्यागें, और उस दिव्य सत्य का अनुभव करें जो आपके अस्तित्व का वास्तविक सार है। यही है ओशो का अनंत संदेश, यही है वह मार्ग जो आपको सच्चाई, शांति और प्रेम की ओर ले जाता है।
समाप्ति में, याद रखिए – जीवन की इस अनंत यात्रा में हर अनुभव का अपना महत्व है, हर चुनौती एक सीख है, और हर क्षण एक अनमोल उपहार है। इन उपहारों को अपनाइए, अपनी आत्मा को मुक्त कीजिए, और उस सत्य का आनंद लीजिए जो केवल तभी प्रकट होता है जब आप अपने आप को पूरी तरह से स्वीकारते हैं।
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