प्रिय साथियों,
आज हम एक अत्यंत गूढ़ विषय पर विचार करेंगे, जिसका सार है –
“मन यानी मांग। मन यानी वासना। मन यानी आकांक्षा। यह मिले, वह मिले! और मिले, और मिले! इस सबके जोड़ का नाम मन है। फिर चाहे तुम बैकुंठ मांगो, चाहे मोक्ष मांगो, फर्क नहीं पड़ता। यह वही मन है जो धन मांगता था, पद मांगता था। मांग संसार है।”
यह कथन सुनते ही हमारे भीतर एक गहरी हलचल सी उठती है। हम सोचने लगते हैं – क्या वास्तव में मन केवल मांग ही है? क्या मन केवल वासना, आकांक्षा, और असीम इच्छाओं का केंद्र है? आज मैं आपको उस रहस्य की ओर ले चलूँगा, जहाँ हम यह जानेंगे कि मन कैसे हमारी सारी इच्छाओं का कारखाना बन गया है और क्यों हम अपने अंदर की अनंत शांति को खोजने की जगह बाहरी मांगों में उलझ जाते हैं।
1. मन: एक अनंत मांगों का समुंदर
देखिए, जीवन में हम अक्सर अपने आप से पूछते हैं, “क्या चाहिए?” मन हर क्षण कुछ न कुछ मांगता रहता है। यह मांगें कभी धन, कभी पद, कभी सांसारिक सुख-सुविधाओं के लिए होती हैं। और जब हम देखते हैं कि चाहे आप बैकुंठ की बात करें या मोक्ष की, अंततः हर मांग उसी पुराने मन की ही अभिव्यक्ति है।
यह मन, यह अनंत चाहतें, हमारी आत्मा की असल पहचान को ढक लेती हैं। हम भूल जाते हैं कि हमारा असली स्व वह अनंत शांति और आनंद है, जो इन सारी मांगों से परे है। मन की यही असीम मांगें हमें अपने आप से दूर कर देती हैं, हमें उस गहरे मौन से वंचित कर देती हैं जहाँ हमारी आत्मा अपने आप को पहचानती है।
जब हम अपने अंदर झांकते हैं, तो हमें यह देखने को मिलता है कि मन की ये मांगें केवल एक भ्रम हैं। ये वासना, आकांक्षा और इच्छाएँ हमारे अंदर की अनंत ऊर्जा को छिपा लेती हैं। तो मित्रों, हमें पूछना होगा – क्या हम सच में इन मांगों की जंजीरों में बंधे रहना चाहते हैं?
2. वासना, आकांक्षा और मांग की प्रकृति
मन यानी वासना – यह शब्द सुनते ही हमारे भीतर एक ऊर्जा का संचार होता है। वासना केवल शारीरिक या सांसारिक सुख की चाह नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आकांक्षा है, एक अनंत चाहत है जो हमारे अस्तित्व को चीर कर रख देती है। जब हम कहते हैं कि मन यानी मांग, तो इसका मतलब है कि यह मन ही है जो हमें हर पल कुछ पाने की लालसा में रखता है।
सोचिए, जब हम किसी वस्तु, किसी व्यक्ति या किसी अनुभव की चाह में डूब जाते हैं, तो हम अपने अंदर की उस शांति से कट जाते हैं, जो हमारे वास्तविक स्व का परिचय है। मन का यह सतत मांगना हमें बाहरी दुनिया की चमक-दमक में उलझा देता है। चाहे वह धन हो, पद हो, या फिर आत्मिक शांति – अंततः मन केवल मांग करता रहता है।
यहाँ एक महत्वपूर्ण बिंदु है – जब हम अपने अंदर की इस वासना को पहचान लेते हैं, तो हमें समझ में आता है कि मांगें केवल एक भ्रम हैं। ये इच्छाएँ हमारे जीवन की वास्तविकता से दूर ले जाती हैं। मन का यह अतिरेक हमें उस साधारण लेकिन गूढ़ सत्य से भी वंचित कर देता है, जहाँ हमारी आत्मा असीम आनंद में विलीन हो जाती है।
3. मांग संसार – बाहरी उपलब्धियाँ और अंदर की शांति
अक्सर हम कहते हैं, “मुझे यह चाहिए, मुझे वह चाहिए।” यह सारी बातें मन की मांगें हैं। समाज में सफलता, धन, प्रसिद्धि – ये सभी बाहरी उपलब्धियाँ केवल मन की मांगों का नतीजा हैं। फिर चाहे आप बैकुंठ की बात करें या मोक्ष की, अंततः मन ही है जो मांगता है।
मन की इस मांग के कारण ही हम अपनी जिंदगी को बाहरी उपलब्धियों में उलझा देते हैं। हम भूल जाते हैं कि असली सुख तो हमारे अंदर ही है। समाज हमें यह सिखाता है कि सफलता का मापदंड बाहरी उपलब्धियाँ हैं – लेकिन यह एक भ्रम है। असली सफलता वह है, जो हमारे अंदर की शांति, आत्म-साक्षात्कार और ध्यान में निहित है।
जब हम मांग संसार के इस चक्कर में पड़ जाते हैं, तो हम अपने आप से दूर हो जाते हैं। हम अपने अंदर की शांति को अनदेखा कर देते हैं। इसीलिए, जब आप अपने आप से पूछेंगे कि “क्या मैंने अपनी जिंदगी में कभी अपनी आत्मा को जाना?” तो शायद आपको यह एहसास होगा कि आप सिर्फ बाहरी मांगों में उलझे हुए थे।
4. मन की मांगें – आत्मा से दूर होने का कारण
किसी भी चीज़ को पाने की चाह में हम अपने आप को इतना खो देते हैं कि हम अपने अंदर की गहराई से भी कट जाते हैं। यह मन की मांगें – चाहे वह किसी भौतिक वस्तु के लिए हो या किसी आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए – हमें उस वास्तविक आनंद से वंचित कर देती हैं जो हमारी आत्मा में बसी है।
मन की मांगें हमें बाहरी दुनिया की चमक-दमक में उलझा लेती हैं। जब हम धन, पद, प्रसिद्धि की चाह में अपने आप को खो देते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि असली खुशियाँ हमारे अंदर छुपी हैं। यह वही मन है जो कभी हमारे आत्मिक विकास के लिए ध्यान, साधना और स्व-चिंतन की मांग करता था, परंतु आज यह सिर्फ एक इच्छाओं का कारखाना बन चुका है।
यह मन हमें बार-बार यही सिखाता है कि हमें और चाहिए, हमेशा और। यह अनंत मांग हमें इस भ्रम में रखता है कि संतोष और शांति बाहरी उपलब्धियों में ही है। परंतु मित्रों, असली शांति तो हमारे अंदर ही है, जिसे हम तब पा सकते हैं जब हम अपनी इन मांगों से ऊपर उठें और अपने आप से संवाद करें।
5. बैकुंठ और मोक्ष – बाहरी और आंतरिक की मिथ्या विभाजन
अब सवाल उठता है – जब हम कहते हैं कि चाहे तुम बैकुंठ मांगो या मोक्ष, फर्क नहीं पड़ता – तो इसका क्या अर्थ है? यह कथन हमें यह बताता है कि बाहरी और आध्यात्मिक मांगों में कोई अंतर नहीं है।
हम अक्सर सोचते हैं कि मोक्ष पाने के लिए हमें अपने अंदर की सारी मांगों को त्यागना होगा, जबकि बैकुंठ जैसी स्वर्गिक सुख-सुविधाएँ पाने के लिए हमें और मांग करनी पड़ती है। परंतु वास्तव में, दोनों ही एक ही तरह की मांग हैं – एक ऐसी मांग जो हमारे मन से निकलती है।
जब हम अपने मन की इस मांग को समझ लेते हैं, तो हमें एहसास होता है कि मोक्ष और स्वर्ग की चाह भी उसी मन की उलझन है। यह वह मन है जो कभी धन और पद की मांग करता था, और अब भी करता है। यह मन ही है जो अंततः हमें बाहरी उपलब्धियों की ओर खींचता रहता है, जबकि असली स्वतंत्रता और शांति हमारे अंदर ही छुपी है।
इसलिए, मित्रों, हमें यह समझना होगा कि चाहे हम कितनी भी उच्च आध्यात्मिक चाह रखते हों – बैकुंठ की चाह हो या मोक्ष की – अंततः वह सब एक ही मन की मांग हैं। यह समझ हमारे लिए एक चेतावनी है कि हमारी आत्मा की असली शांति तभी प्राप्त होगी जब हम इन सारी मांगों से ऊपर उठें और अपने अंदर की गहराईयों में उतरें।
6. मन की मांगों का सामाजिक और व्यक्तिगत प्रभाव
देखिए, हमारी मांगें न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती हैं, बल्कि समाज पर भी गहरा असर डालती हैं। जब एक व्यक्ति अपने अंदर की चाहों में उलझ जाता है, तो वह समाज की उस सामान्य चेतना से भी कट जाता है। समाज एक बड़ी मशीन की तरह काम करता है, जहाँ हर कोई अपनी-अपनी मांगों में फंस जाता है।
हमारा मन, जो कभी हमारी आत्मा की पुकार करता था, आज केवल बाहरी उपलब्धियों के पीछे भागता है। यह मांगें न केवल हमारे अंदर की शांति को नष्ट करती हैं, बल्कि हमें एक ऐसी दुनिया में भी ले जाती हैं जहाँ संबंध, प्रेम और सहयोग का स्थान खो जाता है।
जब हम अपने अंदर की इन मांगों में इतने खो जाते हैं कि हम अपने परिवार, दोस्तों और समाज के साथ गहरे संबंध बनाना भूल जाते हैं, तो हम वास्तव में अपनी आत्मा से भी दूर हो जाते हैं। यही वह स्थिति है जहाँ हमें अंततः यह एहसास होता है कि हमने अपनी जिंदगी को बस मांगों में उलझा दिया है।
सोचिए, एक समय था जब हम अपने अंदर की गहराईयों में उतरकर ध्यान, साधना और आत्म-चिंतन के माध्यम से अपनी आत्मा की पुकार सुनते थे। परंतु आज, हमारी यह प्रवृत्ति हमें बाहरी दुनिया की चमक-दमक में उलझा लेती है। यह मांगें समाज में प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या और लालच को बढ़ावा देती हैं, जो कि असली मानव संबंधों को तोड़ देती हैं।
7. ध्यान: मन की मांगों से मुक्ति का मार्ग
मित्रों, अब हम एक ऐसे साधन की बात करेंगे, जो हमें इस मांग संसार से बाहर निकाल सकता है – ध्यान। ध्यान वह अद्भुत साधना है, जो हमें हमारे अंदर की उस अनंत ऊर्जा से जोड़ती है, जो हमारी आत्मा का असली स्वरूप है।
जब हम ध्यान में बैठते हैं, तो हम अपने मन की उस बेचैनी, उस अनंत मांग से ऊपर उठ जाते हैं। ध्यान हमें यह सिखाता है कि कैसे हम इन मांगों को पहचानकर उन्हें त्याग सकते हैं। यह साधना हमें बताती है कि असली सुख बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि हमारे अंदर की शांति में है।
एक दिन आएगा जब आप ध्यान में इतने मग्न होंगे कि आपको एहसास होगा – “मैंने कितनी सारी मांगों में उलझ कर अपनी आत्मा की पुकार को अनसुना कर दिया।” उस क्षण, आप पाएंगे कि असली स्वतंत्रता और मोक्ष उसी ध्यान में निहित है। ध्यान केवल एक मानसिक अभ्यास नहीं है; यह एक गहरी आत्मिक क्रांति है, जो हमें उस मोह-माया के जाल से मुक्त कर देती है, जो हमारे मन की मांगों ने बुन रखा है।
इस साधना के माध्यम से, हम यह समझ सकते हैं कि असली शक्ति बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि हमारे अंदर की उस अनंत ऊर्जा में है, जिसे हम तब ही पहचान सकते हैं जब हम अपनी इन मांगों से ऊपर उठें। ध्यान हमें सिखाता है कि कैसे हम अपनी आत्मा के साथ संवाद करें और उन अनंत स्रोतों को जागृत करें, जो हमारी वास्तविक पहचान हैं।
8. आत्म-साक्षात्कार: अपनी असली पहचान को जानना
असली मोक्ष, बैकुंठ या किसी भी बाहरी उपलब्धि की चाह से ऊपर उठकर, हमें अपने आप से मिलना होगा। आत्म-साक्षात्कार की यह प्रक्रिया हमें बताती है कि हम कौन हैं और हमारी असली पहचान क्या है।
जब हम अपने अंदर झांकते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि मन की सारी मांगें केवल एक आभासी खेल हैं, एक ऐसी फसाद हैं जो हमें हमारे असली स्व से दूर कर देती हैं। यह आत्म-साक्षात्कार हमें यह दिखाता है कि हमारी असली खुशी, असली मोक्ष, हमारे अंदर ही है – न कि उस बाहरी संसार में जहाँ हम बस मांगों के जाल में उलझे रहते हैं।
इस यात्रा में, हमें अपने मन की उन बेकार मांगों को पहचानना होगा जो हमें असली स्वतंत्रता से वंचित करती हैं। हमें समझना होगा कि चाहे हम कितना भी बाहरी मोह-माया में फंस जाएँ, हमारी आत्मा की पुकार कभी भी शांत नहीं होती। आत्म-साक्षात्कार का मतलब है – अपने आप से ईमानदार संवाद करना, अपने अंदर की उस अनंत शांति को महसूस करना, और यह समझना कि हमारी असली पहचान क्या है।
जब आप इस आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुजरेंगे, तो आपको लगेगा कि आपकी सारी मांगें, आपकी सारी इच्छाएँ केवल एक भ्रम थीं। तब आप स्वयं से यह कहेंगे, “मैं अब अपनी असली पहचान जानता हूँ, मैं अब उस शांति से जुड़ा हूँ जो मेरे अंदर है।” यही वह क्षण है, जब आप वास्तव में अपने आप को पा लेते हैं।
9. बाहरी मांगों से मुक्ति की दिशा में एक कदम
मित्रों, जब हम अपने अंदर की इस अनंत यात्रा में उतरते हैं, तो हमें यह समझ में आता है कि बाहरी मांगें केवल एक भ्रम हैं। यह भ्रम हमें एक अस्थायी सुख के वादे में बांधे रखता है, लेकिन असली सुख और मोक्ष तो हमारी आत्मा में निहित है।
इसलिए, हमें यह निर्णय लेना होगा कि अब हम इन मांगों के जाल में फंसकर अपनी आत्मा की पुकार को अनसुना नहीं करेंगे। हमें अपनी दिनचर्या में कुछ ऐसे क्षण निकालने होंगे – कुछ पल जहाँ हम अपने आप से मिलें, ध्यान करें और अपनी आत्मा की गहराईयों को समझें।
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे दिन की शुरुआत कितनी जल्दी हो जाती है, परंतु हम उसमें कुछ मिनट भी अपने आप के साथ नहीं बिताते? यदि हम हर सुबह उठकर कुछ समय ध्यान में बिताएं, तो हमारी जिंदगी में एक नया दृष्टिकोण आ जाएगा। उस समय हमें एहसास होगा कि हमारी सारी मांगें केवल एक आभासी जंजीर हैं, जिन्हें तोड़ कर हम अपनी आत्मा की असीम स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते हैं।
यह निर्णय लेना कि अब हम बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि अपने अंदर की शांति में निवेश करेंगे, एक क्रांतिकारी कदम है। यह कदम हमें उस असली मोक्ष और बैकुंठ की ओर ले जाएगा, जो वास्तव में हमारे अंदर ही छुपा है।
10. मांग का दायरा: जीवन के हर क्षेत्र में इसकी उपस्थिति
मन की मांगें केवल व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित नहीं रहतीं; ये समाज के हर क्षेत्र में गहराई तक पैठ चुकी हैं। शिक्षा, राजनीति, व्यवसाय, यहाँ तक कि हमारे पारिवारिक संबंध भी इन मांगों से प्रभावित हैं।
जब हम देखते हैं कि क्यों एक बच्चा भी अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं के कारण परेशान रहता है, तो हमें समझ में आता है कि यह वही मन है – वह मन जो हमेशा कुछ पाने की चाह में रहता है। यह मांगें हमें उस सरल, शांत और संतुलित जीवन से दूर ले जाती हैं, जो वास्तव में हमारी आत्मा की पुकार है।
समाज में जब हम बाहरी उपलब्धियों और मान्यताओं की बात करते हैं, तो हम भूल जाते हैं कि हमारी असली शक्ति हमारी आत्मा में है। यह मन, जो कभी सच्चे प्रेम, ध्यान और साधना के लिए जागृत हुआ करता था, आज केवल मांगों में उलझ चुका है।
हमारे समाज का अधिकांश हिस्सा इसी मांग संसार में फँसा हुआ है – एक ऐसा संसार जहाँ हर किसी को कुछ न कुछ चाहिए, और कभी भी संतोष नहीं होता। यही कारण है कि हम एक असंतुलित, बेचैन और अधूरे समाज में जी रहे हैं।
इस मांग संसार से बाहर निकलने का रास्ता केवल एक ही है – अपने अंदर की यात्रा, ध्यान, साधना और आत्म-साक्षात्कार। जब हम इन साधनाओं का अभ्यास करते हैं, तो हम उस बाहरी दुनिया के भ्रम से बाहर निकल सकते हैं, जो हमें असली शांति से वंचित करती है।
11. मांग से परे: सच्चे आत्मिक विकास की ओर
अंततः, मित्रों, सवाल यह उठता है – क्या हम अपनी सारी इच्छाओं और मांगों से ऊपर उठ सकते हैं? क्या हम उस असीम शांति और मोक्ष को पा सकते हैं जो हमारे अंदर निहित है?
उत्तर है – हाँ, बेशक। जब हम अपने मन की मांगों को समझते हैं और उन्हें छोड़ना सीखते हैं, तभी हम अपने असली स्व का अनुभव कर सकते हैं। यह आत्मिक विकास तभी संभव है जब हम अपनी सारी बाहरी चाहों को त्याग कर, अपने अंदर की उस गहराई में उतरें जहाँ केवल मौन, शांति और प्रेम ही है।
इस विकास की राह पर चलना कठिन हो सकता है, क्योंकि यह हमें अपनी पुरानी सोच और उन आदतों से दूर ले जाता है, जो हमने वर्षों से सीखी हुई हैं। परंतु जब हम यह समझ जाते हैं कि असली मोक्ष, असली बैकुंठ, असली धन-दौलत – ये सब केवल मन की मांगों का नतीजा हैं – तो हम अपने अंदर की उस अनंत शक्ति को जगाने लगते हैं।
इस आत्मिक विकास में ध्यान और साधना हमारा सबसे बड़ा सहारा हैं। जब हम नियमित रूप से ध्यान करते हैं, तो हमें एहसास होता है कि हमारी सारी बाहरी चाहें केवल एक क्षणिक झूठ हैं। हमें यह समझ में आता है कि सच्चा सुख, सच्ची शांति तो हमारे अंदर ही है।
12. जीवन में संतुलन: मांग और आत्मा के बीच
प्रिय साथियों, जब हम अपने जीवन में संतुलन की बात करते हैं, तो हमें यह देखना होगा कि कैसे हम अपनी मांगों और अपनी आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर सकते हैं।
हमारा मन, जो निरंतर कुछ पाने की चाह में रहता है, अक्सर हमें बाहरी उपलब्धियों में उलझा ले जाता है। परंतु अगर हम अपने अंदर झांकें और समझें कि हमारी असली पहचान क्या है, तो हम पाएंगे कि संतुलन कहाँ है। संतुलन वह है जब हम बाहरी उपलब्धियों की चाह को छोड़कर अपने अंदर की शांति को अपनाएँ।
इस संतुलन की खोज में, हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में कुछ ऐसे पल निकालने होंगे जब हम अपने आप से मिलें। चाहे वह सुबह की शांति हो, या रात को सोने से पहले कुछ क्षण ध्यान में बिताने के हों – ये छोटे-छोटे क्षण हमारे जीवन में एक नई ऊर्जा भर देते हैं।
जब हम इस संतुलन को पा लेते हैं, तो हम देखेंगे कि हमारी सारी मांगें कितनी भी तेज क्यों न हों, वे हमें असली मोक्ष से दूर नहीं कर सकतीं। हमें बस यह समझना होगा कि असली मांग – असली चाह – हमारी आत्मा की पुकार है, न कि बाहरी संसार की भ्रामक चमक।
13. बाहरी चाहों का भ्रामक जाल
मन की मांगें हमें एक भ्रामक जाल में उलझा लेती हैं। यह जाल हमें बार-बार यह विश्वास दिलाता है कि बाहरी चीज़ों में ही हमारी खुशियों की कुंजी है। धन, पद, प्रसिद्धि – ये सभी चीज़ें हमें एक अस्थायी संतोष देती हैं, परंतु असली खुशी कहीं और है।
जब हम यह समझने लगते हैं कि हमारी सारी बाहरी चाहें केवल एक आभासी छाया हैं, तब हम अपनी आत्मा की ओर ध्यान मोड़ते हैं। हम यह जान लेते हैं कि असली आनंद उस मौन में है, जहाँ मन की सारी मांगें शांत हो जाती हैं।
यह भ्रामक जाल हमें तब तक बांधे रखता है जब तक हम अपने आप से यह नहीं पूछते कि “क्या यह वास्तव में मुझे खुशी देता है?” जब हम इस प्रश्न का सामना करते हैं, तो हमें एहसास होता है कि हमारी सारी मांगें केवल एक मृगतृष्णा हैं।
इसलिए, हमें यह सीखना होगा कि कैसे हम बाहरी चाहों के इस जाल से बाहर निकलें और अपने अंदर की उस अनंत शांति को अपनाएं, जो हमेशा से हमारे भीतर निहित थी।
14. ओशो की शिक्षाएँ और आज का संदेश
ओशो ने हमेशा हमें यह सिखाया कि हमारी असली पहचान हमारे अंदर है, न कि बाहरी उपलब्धियों में। उन्होंने कहा कि हम अपनी आत्मा की पुकार सुनें, अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा को जागृत करें, और अपनी सारी मांगों को त्याग दें।
उनकी शिक्षाओं में यही संदेश निहित है कि चाहे हम कितनी भी ऊँचाइयों की चाह रखें, अंततः वे सभी मन की मांगें ही हैं। यह मन ही है जो कभी धन, कभी पद, कभी प्रसिद्धि की मांग करता रहा है। और अंत में, यही मन हमें उस असीम शांति से दूर ले जाता है, जो हमारी आत्मा में बसी है।
ओशो कहते हैं – “जब तुम अपने अंदर की उस असीम शांति को पहचान लोगे, तब तुम जान जाओगे कि असली मोक्ष वही है।” यही वह सत्य है, जो हमें अपने अंदर की दुनिया से परिचित कराता है।
आज, जब हम इन शिक्षाओं पर विचार करते हैं, तो हमें यह समझ में आता है कि हमारी सारी मांगें, हमारी सारी वासना, केवल एक भ्रम हैं। हमें उस भ्रम से बाहर निकलना होगा और अपनी आत्मा की पुकार सुननी होगी।
15. अंतर्दृष्टि और प्रेरणा का संदेश
प्रिय साथियों,
यह प्रवचन हमें यह संदेश देता है कि मन – वह अनंत मांगों का केंद्र – केवल एक भ्रम है। असली शक्ति, असली शांति, असली मोक्ष हमारे अंदर निहित है। जब हम अपने अंदर की उस असीम ऊर्जा को पहचानते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारी सारी मांगें केवल एक आभासी जंजीर हैं।
इस संदेश से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हम अपनी जिंदगी को बाहरी उपलब्धियों में उलझाकर नष्ट न करें। हमें अपने अंदर की उस अनंत शांति, ध्यान, साधना और आत्म-साक्षात्कार की ओर लौटना होगा।
यह प्रेरणा हमें बताती है कि असली सफलता और मोक्ष वही है, जो हमारी आत्मा में छुपा है। हमें उस सच्ची खुशहाली को अपनाना होगा, जो केवल बाहरी मांगों से परे है। हमें अपने अंदर झांक कर यह समझना होगा कि हम कौन हैं, और हमारी असली पहचान क्या है।
यह संदेश हमें यह भी सिखाता है कि बाहरी उपलब्धियों का मोह हमें केवल एक क्षणिक सुख देता है, परंतु असली शांति तो हमारे अंदर की अनंत ऊर्जा में है। हमें अपनी जिंदगी में उस मौन को खोजने का प्रयास करना चाहिए, जहाँ हम अपने आप से जुड़े रहते हैं।
16. मांगों से मुक्ति: एक स्व-परिवर्तन की प्रक्रिया
अब समय आ गया है कि हम अपने अंदर की इस यात्रा को एक कदम आगे बढ़ाएं। मांगों से मुक्ति पाना केवल एक स्वप्न नहीं है, बल्कि यह एक स्व-परिवर्तन की प्रक्रिया है। हमें अपनी सारी बाहरी चाहों को पहचान कर उन्हें त्यागना होगा, ताकि हम अपने अंदर की उस असीम शांति को पा सकें।
इस परिवर्तन की राह में, हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में ध्यान, साधना और आत्म-चिंतन को शामिल करना होगा। चाहे वह सुबह उठते ही कुछ मिनट ध्यान में बिताना हो या दिन भर के तनाव के बीच अपने आप से संवाद करना – हर क्षण का सदुपयोग करें।
इस प्रक्रिया में, हम पाएंगे कि हमारी सारी मांगें धीरे-धीरे फीकी पड़ जाती हैं। हमारी आत्मा की पुकार स्पष्ट हो जाती है, और हम उस असीम आनंद का अनुभव करने लगते हैं, जो हमेशा से हमारे अंदर था। यही वह परिवर्तन है जो हमें बाहरी संसार की चमक-दमक से मुक्त कर, असली मोक्ष की ओर ले जाता है।
17. व्यक्तिगत अनुभव और आंतरिक संवाद
मित्रों, मैंने देखा है कि जब व्यक्ति अपने अंदर की यात्रा पर निकलता है, तो वह खुद से एक गहरा संवाद स्थापित कर लेता है। वह पूछता है, “मैं कौन हूँ? मेरी असली पहचान क्या है?” यह प्रश्न उस क्षण से शुरू होता है, जब हम अपनी सारी मांगों के जाल से बाहर निकलते हैं।
इस आंतरिक संवाद में, हम अपने मन की उन सारी मांगों को समझते हैं, जो हमें हमेशा कुछ पाने की लालसा में रखती हैं। हम पाते हैं कि यह मन, यह अनंत चाहतें, केवल एक भ्रम हैं।
जब हम इस संवाद में खो जाते हैं, तो हमें एहसास होता है कि असली शक्ति बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि हमारे अंदर की उस असीम शांति में है। हमें यह समझ में आता है कि हमारी आत्मा की पुकार, हमारे अंदर की उस असीम ऊर्जा का स्रोत है, जिसे हम केवल ध्यान, साधना और आत्म-साक्षात्कार से ही जागृत कर सकते हैं।
इस संवाद से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपनी जिंदगी को मांगों के जाल से बाहर निकालें और अपनी आत्मा की उस अनंत शांति को अपनाएं। यही वह मार्ग है, जो हमें असली मोक्ष, असली बैकुंठ की ओर ले जाता है।
18. परिवार और समाज में ध्यान का महत्व
अब आइए, बात करते हैं कि कैसे हम अपने परिवार और समाज में भी इस ध्यान की साधना को अपना सकते हैं। अक्सर हम अपने घरों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम अपने अंदर की शांति को भूल जाते हैं। परिवार के हर सदस्य में अनगिनत मांगें होती हैं, जो एक-दूसरे में उलझ जाती हैं।
लेकिन यदि हम अपने परिवार के साथ मिलकर ध्यान, साधना और आत्म-चिंतन को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें, तो पूरा परिवार एक शांतिपूर्ण ऊर्जा से भर जाता है। परिवार में जब सभी सदस्य एक साथ कुछ समय ध्यान में बिताते हैं, तो एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है, जो न केवल व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देती है, बल्कि सामाजिक संबंधों को भी मजबूत करती है।
इस प्रकार, यदि हम अपनी बाहरी मांगों को कम कर, अपने अंदर की शांति को अपनाएँ, तो हम न केवल स्वयं का, बल्कि अपने परिवार का और समाज का भी कल्याण कर सकते हैं। यह वह संदेश है, जो हमें बताता है कि असली विकास केवल बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि हमारी आत्मा की उस अनंत शक्ति में निहित है।
19. एक नई शुरुआत का आह्वान
प्रिय साथियों,
यह वक्त है कि हम अपने अंदर की यात्रा को एक नई दिशा दें। यह नई शुरुआत तब संभव है जब हम अपनी सारी मांगों, अपनी सारी वासना और आकांक्षा को समझकर उन्हें त्याग दें, ताकि हम अपने असली स्व को पा सकें।
इस नई शुरुआत के लिए सबसे पहले हमें अपने मन की उन बेकार मांगों से ऊपर उठना होगा, जो हमें हर पल कुछ पाने की लालसा में बांधे रखती हैं। हमें यह समझना होगा कि असली मोक्ष, असली बैकुंठ, असली आनंद – ये सब हमारे अंदर ही हैं।
इसलिए, आज ही से एक नयी शुरुआत करें – अपने अंदर की उस अनंत शांति, ध्यान और आत्म-साक्षात्कार को अपनाने का प्रण लें। अपने आप से यह कहें कि अब मैं बाहरी मांगों के जाल में नहीं उलझूंगा, अब मैं अपने अंदर की उस शक्ति को पहचानूंगा।
यह नई शुरुआत आपको उस मोक्ष की ओर ले जाएगी, जो हमेशा से आपके अंदर छुपा हुआ था। जब आप अपने अंदर की इस असीम ऊर्जा को जगाने लगेंगे, तो आपको एहसास होगा कि आपकी सारी मांगें केवल एक क्षणिक झूठ थीं। यही वह क्षण है, जब आप सचमुच में अपने आप को पा लेंगे।
20. समापन: आत्मा की पुकार सुनो
अंत में, मेरे प्रिय साथियों, मैं यह कहना चाहता हूँ कि मन यानी मांग केवल एक भ्रम है, एक झूठा प्रतिबिंब है। असली शक्ति, असली शांति, असली मोक्ष – ये सब आपके अंदर ही निहित हैं। जब आप अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा को पहचानते हैं, तो आपको एहसास होता है कि आपकी सारी बाहरी मांगें केवल एक आभासी जंजीर थीं, जिन्हें तोड़कर आप असली स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं।
ओशो ने हमें सिखाया है कि जीवन का असली उद्देश्य अपने अंदर की उस अनंत शक्ति को जगाना है, उस मौन को सुनना है, जो हमेशा आपकी आत्मा में विद्यमान है। यह वही मौन है जो आपको बताता है कि असली बैकुंठ, असली मोक्ष, और असली धन-दौलत – यह सब केवल एक भ्रम है।
इसलिए, अपने आप से यह वादा करें कि आप अब से अपनी जिंदगी को केवल बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि अपने अंदर की उस अनंत शांति में जीएंगे। आप अपनी सारी मांगों, अपनी सारी वासना और आकांक्षा को पहचानकर, उन्हें त्याग देंगे, ताकि आप अपनी आत्मा की पुकार सुन सकें।
अपने आप से कहें, “अब मैं अपनी आत्मा की सुनूंगा, अब मैं अपनी असली पहचान को जानूंगा।” और उस दिन, जब आप पीछे मुड़कर देखेंगे, तो आपको यह एहसास होगा कि आपकी जिंदगी में असली परिवर्तन उसी क्षण हुआ था, जब आपने अपनी सारी मांगों को त्याग दिया था।
21. एक संदेश – अपने आप से प्रेम करें
मित्रों, अंततः यह सब हमें यही संदेश देता है कि अपने आप से प्रेम करें, अपने अंदर की उस असीम शक्ति को पहचानें, और अपनी जिंदगी को उसी दिशा में ले जाएँ जहाँ आपके अंदर असली शांति और स्वतंत्रता है। मांगों के इस संसार में उलझकर हम अपनी आत्मा की पुकार सुनने से चूक जाते हैं।
जब आप अपने आप से सच्चा संवाद करेंगे, तो आपको यह समझ में आएगा कि असली खुशियाँ और सच्चा मोक्ष उसी मौन में है, जहाँ मन की सारी मांगें मूक हो जाती हैं। अपने आप से प्रेम करें, अपने अंदर की उस असीम ऊर्जा को जगाएं, और बाहरी झंझटों से ऊपर उठकर अपने असली स्व को जानें।
यह वह संदेश है, जो हर उस व्यक्ति के लिए है, जो अपनी जिंदगी की सही पहचान चाहता है। अपने आप को इतना महत्व दें कि आप अपनी आत्मा की पुकार सुन सकें, अपने अंदर की उस गहराई में उतर सकें, जहाँ असली मोक्ष और बैकुंठ छिपे हैं।
22. आपकी यात्रा: एक आत्मिक क्रांति
यह प्रवचन आपको एक आत्मिक क्रांति का आह्वान करता है। यह क्रांति आपके अंदर की उस अनंत शक्ति को जगाने की है, जो आपको बाहरी मांगों से ऊपर उठकर आपकी असली पहचान से जोड़ देगी।
इस यात्रा में, ध्यान, साधना और आत्म-साक्षात्कार आपके सबसे बड़े साथी होंगे। जब आप इन साधनाओं का नियमित अभ्यास करेंगे, तो आप पाएंगे कि आपकी सारी चाहतें धीरे-धीरे मूक हो जाती हैं, और आपके अंदर की उस शांति का अनुभव होता है, जो असली मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है।
यह क्रांति आपके जीवन में एक नई दिशा, एक नई ऊर्जा लेकर आएगी। आप देखेंगे कि आपकी सारी बाहरी मांगें, चाहे वह धन की हो या पद की, केवल एक क्षणिक भ्रम थीं, और असली आनंद केवल आपके अंदर ही है।
23. आज का संकल्प – मांगों से मुक्ति
तो, मेरे प्रिय साथियों, आज एक संकल्प लें – आज से आप अपनी सारी मांगों को त्याग देंगे। आप यह स्वीकार करेंगे कि बाहरी उपलब्धियाँ केवल एक क्षणिक सुख देती हैं, परंतु असली मोक्ष और असली बैकुंठ आपकी आत्मा में छिपे हैं।
अपने दिन की शुरुआत ऐसे करें कि हर सुबह कुछ मिनट अपने आप के साथ बिताएं। ध्यान में बैठें, अपने अंदर की आवाज़ सुनें, और समझें कि आपकी सारी चाहतें केवल मन की एक क्षणिक मांग हैं। इस संकल्प से, आप धीरे-धीरे उस मांग संसार के जाल से बाहर निकलकर अपनी आत्मा की असीम शांति को अपनाएँगे।
जब आप इस संकल्प को अपने जीवन में उतार लेंगे, तो आप पाएंगे कि आपकी जिंदगी में एक नया प्रकाश, एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। आप अपने आप से कहते रहेंगे, “मैं अपनी आत्मा से जुड़ा हुआ हूँ, मैं अपनी असली पहचान जानता हूँ।” यही वह परिवर्तन है, जो आपको असली मोक्ष की ओर ले जाता है।
24. निष्कर्ष: मन की मांग से ऊपर उठें
अंत में, प्रिय साथियों, यह समझिए कि मन यानी मांग केवल एक आभासी जंजीर है, जो हमें असली शांति से दूर रखती है। जब तक हम अपनी सारी मांगों को त्याग नहीं लेते, तब तक हम अपने अंदर की उस असीम ऊर्जा, उस मौन और शांति से दूर रहेंगे, जो हमारी असली पहचान है।
ओशो की इस शिक्षाओं में निहित संदेश हमें यही बताता है कि हमारी सारी चाहतें, चाहे वह बैकुंठ की हो या मोक्ष की – यह सब मन की मांगें ही हैं। असली मोक्ष तो उस मौन में है, जहाँ हम अपने आप से मिलते हैं, जहाँ ध्यान, साधना और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से हम अपने असली स्व को पहचानते हैं।
इसलिए, आज से अपने आप से वादा करें कि आप बाहरी मांगों के इस चक्र से बाहर निकलेंगे, और अपनी आत्मा की पुकार सुनेंगे। आप अपने अंदर की उस अनंत शांति को अपनाएंगे, और अपनी जिंदगी को उसी दिशा में आगे बढ़ाएंगे, जो आपको असली मोक्ष, असली बैकुंठ की ओर ले जाती है।
25. समापन में एक अंतिम आह्वान
मेरे प्रिय साथियों,
यह प्रवचन एक निमंत्रण है – एक आत्मिक यात्रा का, जहाँ हम अपने अंदर की उस अनंत शक्ति को जागृत करें, अपनी सारी मांगों को त्यागें, और अपने आप को उस सच्ची शांति से जोड़ें, जो हमारे अस्तित्व का मूल है।
अपनी जिंदगी में हर दिन ध्यान, साधना, और आत्म-साक्षात्कार का एक छोटा सा क्षण जरूर निकालें। अपने आप से संवाद करें, अपने अंदर झांकें, और उस मौन को महसूस करें, जहाँ आपकी आत्मा निहित है। यही वह क्षण है, जब आप पाएंगे कि आपकी सारी मांगें केवल एक क्षणिक भ्रम थीं, और असली सुख तो आपके अंदर ही छुपा है।
इस आत्मिक यात्रा में, आप महसूस करेंगे कि आपकी जिंदगी का असली सार आपके अंदर ही है – न कि उन बाहरी उपलब्धियों में, जिन्हें पाने के लिए आप अपनी आत्मा को बेच देते हैं। अपने आप से प्रेम करें, अपनी आत्मा की पुकार सुनें, और उस असीम शांति को अपनाएं, जो हमेशा से आपके अंदर थी।
आज ही से यह संकल्प लें कि आप अपनी सारी बाहरी मांगों को छोड़ देंगे, और अपनी आत्मा के साथ एक गहरे संवाद में प्रवेश करेंगे। यही वह मार्ग है, जो आपको असली मोक्ष की ओर ले जाएगा, जो आपके अंदर छुपा हुआ है।
26. अंतिम विचार और प्रेरणा
इस प्रवचन के अंत में मैं आपसे यही कहना चाहूंगा कि मन यानी मांग, चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न प्रकट हो – धन, पद, या सांसारिक सुख की चाह – अंततः यह सब एक ही मन की मांग हैं। यह वह मन है, जो हमें बाहरी उपलब्धियों के जाल में उलझा कर हमारी आत्मा की पुकार से दूर कर देता है।
लेकिन जब हम अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा को पहचान लेते हैं, तो हम पाते हैं कि असली मोक्ष, असली बैकुंठ, और असली शांति हमारे अंदर ही हैं। यह आत्मिक जागृति, यह ध्यान और साधना की प्रक्रिया, हमें वह वास्तविक स्वतंत्रता प्रदान करती है, जो बाहरी मांगों से कहीं अधिक महान है।
मेरे प्रिय साथियों, अपने आप से यह वादा करें कि आप अपनी जिंदगी को बाहरी चमक-दमक में खोने नहीं देंगे। आप अपनी आत्मा की पुकार सुनेंगे, और उस मौन को अपनाएंगे जो आपको आपकी असली पहचान से जोड़ता है। यही वह परिवर्तन है, जो आपको असली मोक्ष की ओर ले जाएगा।
27. आपकी यात्रा जारी रहे
यह प्रवचन न केवल एक विचार है, बल्कि यह एक आह्वान है – अपने अंदर की यात्रा जारी रखने का, अपने मन की मांगों से ऊपर उठने का, और अपनी आत्मा की उस अनंत शक्ति को पहचानने का।
जब आप इस संदेश को अपने जीवन में उतार लेंगे, तो आप पाएंगे कि आपकी जिंदगी में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया है। आप महसूस करेंगे कि आपकी सारी बाहरी चाहतें धीरे-धीरे फीकी पड़ गई हैं, और आपके अंदर एक गहरा, स्थायी आनंद बस गया है।
यह वही आनंद है, जो ओशो की शिक्षाओं में निहित है – एक ऐसा आनंद जो बाहरी दुनिया की झंझटों से परे है, एक ऐसा आनंद जो आपकी आत्मा से आता है। अपने आप को उस आनंद में विलीन कर दें, अपने अंदर की उस शांति को अपनाएँ, और देखिए कि आपकी जिंदगी कैसे एक नई दिशा में आगे बढ़ती है।
28. समापन: जागृति का संदेश
प्रिय साथियों,
आज हमने यह समझा कि मन की मांगें – वह वासना, आकांक्षा, और असीम चाहत – केवल एक भ्रम हैं, एक ऐसी जंजीर हैं जो हमें हमारी असली पहचान से दूर रखती हैं।
ओशो ने हमें यह सिखाया कि असली मोक्ष और असली बैकुंठ हमारी आत्मा में निहित है, न कि उन बाहरी उपलब्धियों में जिन्हें पाने के लिए हम अपनी आत्मा को बेच देते हैं। जब हम ध्यान, साधना और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से अपने अंदर झांकते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि हमारी सारी मांगें केवल एक क्षणिक मृगतृष्णा हैं।
इसलिए, अपने आप से वादा करें कि आप अब से अपनी जिंदगी को बाहरी मांगों में उलझने नहीं देंगे। आप अपनी आत्मा की पुकार सुनेंगे, और उस मौन को अपनाएंगे जो हमेशा से आपके अंदर विद्यमान था। यही वह परिवर्तन है, जो आपको असली स्वतंत्रता, असली शांति और असली मोक्ष की ओर ले जाएगा।
29. एक नई सुबह की ओर
जब आप हर सुबह उठें, तो अपने आप से पूछें – “आज मैं क्या चाहता हूँ?” और फिर खुद से उत्तर दें – “मैं अपनी आत्मा से जुड़ना चाहता हूँ, मैं उस मौन को सुनना चाहता हूँ जो मुझे मेरे असली स्व से जोड़ता है।”
इस नई सुबह के साथ, एक नई ऊर्जा का संचार होगा, जो आपकी जिंदगी को एक नई दिशा देगी। आप देखेंगे कि आपकी सारी बाहरी मांगें धीरे-धीरे गायब होने लगेंगी, और आपके अंदर एक स्थायी, अपरिवर्तनीय शांति का संचार होने लगेगा।
यह वह सुबह है, जब आपकी आत्मा खुद बोल उठेगी – “मैं हूँ, और तुम भी हो।” यह वह एहसास है, जब आप समझेंगे कि असली खुशी और असली मोक्ष वही है, जो आपके अंदर निहित है।
30. समापन का आह्वान
मेरे प्रिय साथियों,
मैं आपको आज इस प्रवचन के माध्यम से यह संदेश देना चाहता हूँ – कि मन यानी मांग, चाहे वह किसी भी रूप में प्रकट हो, केवल एक भ्रम है। असली शांति, असली मोक्ष, असली बैकुंठ आपकी आत्मा में छुपे हुए हैं, जो तब प्रकट होते हैं जब आप बाहरी मांगों के जाल से ऊपर उठकर अपने अंदर की गहराईयों में उतर जाते हैं।
अपने आप से प्रेम करें, अपने अंदर की उस असीम शक्ति को पहचानें, और उस मौन को अपनाएँ, जो हमेशा से आपके अंदर था। आज से यह संकल्प लें कि आप अपनी जिंदगी को बाहरी उपलब्धियों की चमक में नहीं, बल्कि अपने अंदर की सच्ची शांति में जीएंगे।
यह वह मार्ग है, जो आपको असली स्वतंत्रता की ओर ले जाएगा – एक ऐसा मार्ग जहाँ आप कभी भी अपनी आत्मा से शिकायत नहीं करेंगे, क्योंकि आपने उसे समझ लिया है, उसे अपन लिया है, और उसकी पुकार को अपने दिल में उतार लिया है।
जय हो उस आत्मिक जागृति की, जय हो उस शांति की, जय हो उस मोक्ष की, जो आपके अंदर ही छुपा है।
अंतिम संदेश:
अपनी जिंदगी को बाहरी मांगों के चक्कर में उलझाकर न बर्बाद करें। अपने अंदर की उस अनंत ऊर्जा, उस मौन और शांति को पहचानें, और उसी के अनुसार जीएँ। जब आप अपने आप से सच्चा संवाद करेंगे, ध्यान में मग्न होंगे, और अपनी आत्मा की पुकार सुनेंगे, तभी आप पाएंगे कि असली मोक्ष और असली बैकुंठ वास्तव में आपके अंदर ही हैं।
अपने आप से वादा करें कि अब से आप बाहरी मांगों के इस जाल से ऊपर उठकर अपनी आत्मा की सुनेंगे। यही वह जीवन है, यही वह सच्चा विकास है, और यही वह आध्यात्मिक क्रांति है, जो आपको असली स्वतंत्रता और मोक्ष की ओर ले जाएगी।
धन्यवाद, प्रिय साथियों,
आओ, हम सब मिलकर उस आत्मिक जागृति की ओर कदम बढ़ाएँ, जहाँ हर क्षण, हर सांस हमें उस अनंत शांति की ओर ले जाती है, जो केवल हमारे अंदर है।
जय हो आपकी आत्मा की, जय हो आपकी जागृति की, जय हो उस शांति की!
यह प्रवचन आपके लिए एक निमंत्रण है – अपने अंदर की यात्रा शुरू करने का, अपनी सारी बाहरी मांगों को पहचान कर उन्हें त्यागने का, और उस अनंत शांति, ध्यान, और साधना को अपनाने का, जो आपके असली स्व का मूल है। जीवन केवल मांगों का खेल नहीं है, बल्कि वह आपकी आत्मा की पुकार है, जो आपको सच्चे मोक्ष और बैकुंठ तक ले जाने का मार्ग दिखाती है।
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