"औरत मोम सिर्फ अपने मनपसंद इंसान के लिए हो सकती है, वरना उस जैसा पत्थर कोई नहीं!" - ओशो

स्त्री रहस्य है। उसे समझने की कोशिश करना सूर्य को हथेलियों में पकड़ने जैसा है—जितना करीब जाओगे, उतनी ही उसकी गहराई का अहसास होगा। ओशो स्त्री को न केवल प्रेम की प्रतीक मानते हैं, बल्कि उसकी स्वतंत्रता और आंतरिक शक्ति के भी गहरे पक्ष को उजागर करते हैं।

यह कहना कि "स्त्री मोम है" सच है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। स्त्री मोम बनती है, लेकिन केवल वहाँ जहाँ प्रेम है, जहाँ वह आत्मा से जुड़ती है, जहाँ उसे अपनी संपूर्णता का अनुभव होता है। लेकिन यदि प्रेम झूठा हो, जबरदस्ती हो, स्वार्थ से भरा हो—तो वही स्त्री पत्थर बन जाती है। ऐसा पत्थर, जो अडिग होता है, जो अपने भीतर गहरी चुप्पी और शक्ति को समेटे रहता है।

आइए, इस पर गहराई से विचार करें।

1. स्त्री: प्रेम की नदी

ओशो कहते हैं, "स्त्री प्रेम में जीती है, प्रेम ही उसका स्वभाव है।" लेकिन यह प्रेम हर किसी के लिए नहीं होता। प्रेम उसके लिए एक सहज प्रवाह है, लेकिन वह तब तक नहीं बहती जब तक उसे उसकी आत्मा का स्पर्श न मिले।

स्त्री की आत्मा प्रेम में ही पिघलती है। जब उसे प्रेम में स्वीकृति मिलती है, जब उसे महसूस होता है कि वह किसी के लिए अनमोल है, तो वह मोम की तरह बहती जाती है। वह अपना अस्तित्व तक भुला सकती है, क्योंकि प्रेम में मिट जाना ही उसका स्वभाव है।

लेकिन यदि प्रेम में स्वार्थ आ जाए, यदि उसे किसी की लालसा मात्र का साधन बना दिया जाए, तो वही स्त्री जिसे प्रेम में दुनिया की सबसे कोमल चीज़ कहा जाता है, पत्थर की तरह कठोर हो जाती है।

2. स्त्री और समाज: झूठी मान्यताओं का जाल

समाज ने स्त्री को यह सिखाया है कि उसे हमेशा मोम बनकर रहना चाहिए—झुकना चाहिए, त्याग करना चाहिए, सहन करना चाहिए। लेकिन ओशो इस झूठे विचार को तोड़ते हैं। वे कहते हैं कि स्त्री को केवल तब झुकना चाहिए जब वह प्रेम से भर जाए, जब उसका हृदय स्वयं ऐसा करने को कहे।

लेकिन यदि समाज उसे गुलाम बनाने की कोशिश करे, उसे दबाने की कोशिश करे, तो वही स्त्री पत्थर बन जाएगी। औरत केवल प्रेम की गुलाम नहीं है। वह आत्मनिर्भर है, अपनी शर्तों पर जी सकती है, और जब वह आत्मा से स्वतंत्र होती है, तो उसकी शक्ति अपार हो जाती है।

3. जब स्त्री पत्थर बन जाती है

ओशो कहते हैं, "स्त्री को जब ठुकराया जाता है, जब उसे वस्तु समझा जाता है, जब उसे स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तब वह पत्थर बन जाती है।"

स्त्री पत्थर कब बनती है?

1. जब प्रेम में छलावा होता है 

– स्त्री प्रेम के लिए जीती है, लेकिन अगर प्रेम में केवल स्वार्थ और वासना हो, तो उसका हृदय बंद हो जाता है। वह फिर से प्रेम करने से डरने लगती है।  

2. जब उसे स्वतंत्रता नहीं दी जाती 

– स्त्री हवा की तरह होती है, खुली जगह चाहती है। यदि उसे कैद कर दिया जाए, तो उसकी आत्मा ठंडी पड़ जाती है।  

3. जब उसकी भावनाओं को तुच्छ समझा जाता है

– स्त्री गहराई से महसूस करती है। लेकिन अगर उसकी भावनाओं का सम्मान नहीं किया जाता, तो वह धीरे-धीरे भावनाहीन बन जाती है।  

4. जब उसे बस एक भूमिका तक सीमित कर दिया जाए 

– माँ, पत्नी, बेटी—समाज स्त्री को एक पहचान में बाँधना चाहता है, लेकिन जब वह देखती है कि उसे सिर्फ एक "भूमिका" के रूप में देखा जा रहा है, तो वह इन बंधनों से मुक्त हो जाती है।

और जब स्त्री पत्थर बनती है, तो फिर उसे मोम बनने में बहुत समय लग सकता है। क्योंकि पत्थर बनने के बाद, वह किसी पर आसानी से भरोसा नहीं करती।

4. स्त्री को मोम बनने के लिए क्या चाहिए?

ओशो कहते हैं, "स्त्री तब तक नहीं खिलती जब तक उसे सुरक्षा, सम्मान और प्रेम न मिले।"

स्त्री को मोम बनाने के लिए किसी बाहरी चीज़ की जरूरत नहीं होती, बस उसे सच्चे प्रेम की जरूरत होती है। प्रेम ही उसकी असली प्रकृति है।

- उसे किसी के दया या सहानुभूति की जरूरत नहीं है 

– उसे बस यह चाहिए कि जब वह प्रेम करे, तो उसे उतनी ही गहराई से प्रेम मिले।  

- उसे गुलामी नहीं, स्वतंत्रता चाहिए 

– यदि स्त्री को स्वतंत्र छोड़ दिया जाए, तो वह सबसे सुंदर बन जाती है। लेकिन यदि उसे कैद किया जाए, तो वह पत्थर बन जाएगी।  

- उसे स्वीकृति चाहिए

– उसे ऐसा महसूस होना चाहिए कि वह जैसी है, वैसी ही स्वीकार्य है।

5. स्त्री और पुरुष: प्रेम का संतुलन

ओशो यह भी कहते हैं कि स्त्री और पुरुष का संबंध तब तक अधूरा रहेगा जब तक वे एक-दूसरे को वस्तु की तरह देखेंगे।

- पुरुष अक्सर स्त्री को केवल शरीर के रूप में देखता है।

- स्त्री पुरुष से भावनात्मक संबंध चाहती है, लेकिन अगर उसे केवल भोग की वस्तु बना दिया जाए, तो वह प्रेम से पीछे हट जाती है।

- यदि पुरुष स्त्री को समझे, उसे महसूस करे, तो स्त्री उसके साथ मोम की तरह पिघल जाती है। लेकिन अगर वह केवल अधिकार जताए, तो स्त्री धीरे-धीरे कठोर हो जाती है।

ओशो कहते हैं, "यदि पुरुष स्त्री को सम्मान और प्रेम दे, तो वह स्वर्ग बन सकती है। लेकिन यदि पुरुष उसे सिर्फ एक वस्तु समझे, तो वही स्त्री नरक बना सकती है।"

6. स्त्री को पत्थर मत बनने दो

यह पुरुष पर निर्भर करता है कि वह स्त्री को क्या बनाता है? मोम या पत्थर।

 समाज स्त्री को हमेशा झुकाने की कोशिश करता है, लेकिन जब वह आत्मा से जागती है, तो वह झुकना बंद कर देती है।

स्त्री को मोम ही बने रहने के लिए, उसे प्रेम की स्वतंत्रता देनी होगी, उसे सम्मान देना होगा, उसे यह अहसास कराना होगा कि वह केवल किसी की संपत्ति नहीं है।

अगर समाज यह नहीं समझेगा, तो धीरे-धीरे स्त्रियाँ पत्थर बनती जाएँगी। फिर न उनके पास प्रेम रहेगा, न समर्पण, न कोमलता। और जब स्त्री प्रेम देना बंद कर देगी, तो दुनिया ठंडी और बेरंग हो जाएगी।

7. निष्कर्ष: स्त्री को प्रेम दो, वह खुद मोम बन जाएगी

ओशो कहते हैं, "स्त्री को मोम बनाने के लिए उसे बाध्य मत करो। उसे बस प्रेम दो, सम्मान दो, और वह अपने आप खिल उठेगी।"

स्त्री को मोम बनने के लिए मजबूर मत करो, उसे स्वयं निर्णय लेने दो। जब वह प्रेम से भरेगी, तो वह मोम की तरह पिघल जाएगी। लेकिन अगर तुम उसे मजबूर करोगे, उसे दबाओगे, उसे बस एक वस्तु समझोगे—तो याद रखो, वह पत्थर बन जाएगी, और तब उसे मोम बनाना असंभव हो जाएगा।

अंतिम संदेश:

"स्त्री न तो पूरी तरह से मोम है, न पूरी तरह से पत्थर। वह वही बनती है, जैसा उसे महसूस कराया जाता है।"

तो तुम उसे क्या बनाना चाहते हो—मोम या पत्थर?

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