🌌 “ईश्वर की बनाई यह सृष्टि, बेशकीमती ख़ज़ानों से भरी हुई है… और एक भी चौकीदार नहीं है।”

कभी आकाश की तरफ सिर उठाकर, बादलों को गुजरते हुए देखो। उनसे पूछो—“तुम किसके हो?”
वे हँसेंगे और आगे बढ़ जाएंगे। कभी पर्वत से पूछो, “तुम्हें किसने बनाया? किसने तुम्हें अपनी संपत्ति घोषित किया?” पर्वत शांति से बैठा रहेगा—जैसे सदियों से बैठा है। उसे न मालिक होने का अहंकार है, न मजदूर होने की थकान। यह पूरी सृष्टि—फूल, वृक्ष, तारे, नदियाँ—किसी की नहीं है। और इसी कारण सभी की है। ईश्वर ने एक अपूर्व खेल रचा है—इतना विराट, इतना मौन, इतना कीमती—कि मनुष्य उसे समझ ही नहीं पाता। मनुष्य की दिक्कत यही है कि जिसे समझ नहीं पाता, उसे कब्ज़े में करने की कोशिश करता है। लेकिन इस अस्तित्व का नियम बड़ा सरल है: “यहाँ सब कुछ उपलब्ध है, लेकिन कुछ भी तुम्हारे ले जाने के लिए नहीं है।”

🌿 1. सृष्टि—एक खुले खज़ाने का दरबार

Osho कहते —सृष्‍टि खज़ानों से भरी है। इतनी सुंदरता, इतनी शांति, इतना आनंद… कि आदमी यदि थोड़ी देर भी आँखें खोलकर देख ले, तो देवताओं जैसी संपत्ति उसके सामने बिखर जाए। लेकिन समस्या यह है कि मनुष्य अंधा है। अंधा इस अर्थ में नहीं कि उसकी आँखें नहीं, अंधा इसलिए कि उसका मन हमेशा भविष्य में भाग रहा है। वह इस क्षण में नहीं है। इस क्षण में रहना ही — चाबी है, द्वार है, राज़ है। ईश्वर ने खज़ानों को कभी बंद नहीं किया। न ताला लगाया, न सहजता पर पहरा। तुम कभी किसी पेड़ के नीचे जाओ—पेड़ पूछता है क्या?

“तुम कौन हो?”
“क्यों आए हो?”
“क्या पहचान पत्र लाए?”

नहीं। पेड़ बस छाया दे देता है। यह अस्तित्व किसी से कुछ नहीं माँगता। यहाँ कोई पूछताछ नहीं है। कोई चेकिंग नहीं है। कोई चौकीदार नहीं है। कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं है। क्योंकि चोरी की कोई संभावना ही नहीं है।

🌑 2. चोरी कैसे होगी — जब कुछ भी तुम्हारा नहीं?

Osho कहते:
तुम चुरा ही क्या सकते हो? जो चीज़ तुम ले नहीं जा सकते, वह चोरी नहीं हो सकती। मृत्यु तुम्हारी जेबें पलट देती है। तुम्हारी अलमारियाँ खोल देती है। तुम्हारा बैंक बैलेंस मिट्टी में मिला देती है। तुम्हारे घर का दरवाज़ा एक दिन किसी और के लिए खुल जाता है। मृत्यु कहती है—“जो तुम अपना कह रहे थे, वह सब मैं वापस ले रही हूँ। यह तुम्हारा था ही कब?” तुम आए खाली हाथ, जाओगे भी खाली हाथ। बीच का थोड़ा-सा समय—बस रंगमंच है, नाटक है, खेल है। लेकिन इंसान इतना बड़ा मज़ाक बनाता है कि जिस चीज़ को एक मिनट के लिए भी नहीं पकड़ सकता, उसी पर अपनी पूरी ऊर्जा लगा देता है।

🌄 3. राजा और कफ़न का रहस्य

Osho अक्सर कहानी सुनाते थे:

एक राजा मरने वाला था। उसने सैनिकों से कहा—“मेरे साथ सोने की ईंटें, हीरे, जवाहरात कफ़न में रख देना। मैं मरने के बाद भी राजा ही रहूँगा।” उसके मंत्री ने कहा “राजन, कफ़न की जेबें नहीं होतीं।” राजा हँसा, बोला—“नयी बनवा दो!” राजा मर गया। उसे सजाकर ले जाया गया। दो गाँव के गरीब लोग अंतिम संस्कार के बाद उसके कपड़े उतार रहे थे। एक बोला—“देख, दुनिया का सबसे बड़ा राजा भी कफ़न में जेबें नहीं ले जा सका।” दूसरा हँस पड़ा—“जेबें होती भी, तो क्या रखता? यहाँ से कुछ जाता ही नहीं।” यह वही झटका था जो Osho अपने शिष्यों को देते—हँसी के माध्यम से सत्य का दर्पण दिखाने वाला झटका।

🌟 4. “लोग यहाँ चौकीदार बन जाते हैं”

Osho कहते थे:

“दुनिया चौकीदारों से भरी है। जिसके पास कुछ भी नहीं है, वह भी चौकीदारी कर रहा है।” तुम छोटी-सी चीज़ को भी पकड़कर रखते हो—मोबाइल, घर, रिश्ते, सम्मान, प्रसिद्धि… मानो मृत्यु आएगी तो कहेगी—“ठीक है, यह छोटा मोबाइल तुम अपने साथ ले जाना।” नहीं। मृत्यु बड़ी कठोर अध्यापिका है। तुम्हारे समस्त भंडार, तुम्हारे तमाम संग्रह, तुम्हारे सारे गर्व—सब एक झटके में छीन लेती है। इसीलिए Osho का गूढ़ संदेश था:

“जब लेने का कोई अर्थ नहीं, तो चौकीदारी किस बात की?”

🌙 5. सृष्टि मुफ्त क्यों है? क्योंकि यह अनुभव करने की चीज़ है, रखने की नहीं

Osho कहते —अस्तित्व अनुभव का है, मालिकियत का नहीं। आनंद को रख नहीं सकते, सांस को जमा नहीं कर सकते, प्यार को ताले में नहीं बंद कर सकते, ध्यान को दो दिन बाद के लिए स्टोर नहीं कर सकते। जीवन नदी है—बहती है। उसकी प्रकृति है बहना। तुम पकड़ लोगे तो गंदा पानी बन जाएगा। तुम बहने दोगे तो गंगा बन जाएगी। इसीलिए ईश्वर ने एक भी चौकीदार नहीं रखा—क्योंकि यह दुनिया भंडारण के लिए बनी ही नहीं।

🕊️ 6. सन्यासी और भूमि विवाद

एक सन्यासी था। उसे लोग पवित्र मानते थे, उसके शब्दों को महत्व देते थे। एक बार गाँव में दो आदमी ज़मीन पर झगड़ रहे थे। दोनों सन्यासी के पास आए। पहला बोला—“यह ज़मीन मेरी है।” दूसरा चिल्लाया—“नहीं, यह मेरी है!” सन्यासी ने कहा—“ठहरो। मैं खुद ज़मीन से पूछता हूँ।” दोनों आश्चर्यचकित। सन्यासी ने ज़मीन पर बैठकर कान लगाया और बोला—“ज़मीन कहती है —‘मुझे नहीं पता तुम दोनों कौन हो। मैं तो लाखों वर्षों से यहाँ हूँ। मैं तो देखती हूँ कि लोग आते हैं, थोड़ा-सा हल्ला मचाते हैं, और फिर मिट्टी में बदल जाते हैं।’ ”दोनों व्यक्ति चुप हो गए।जिनकी लड़ाई थी, वह ज़मीन मुस्कुरा रही थी।

🔥 7. मनुष्यता की मूर्खता — जो ले जाने योग्य नहीं, उसी को सबसे कसे पकड़कर रखना

कभी सोचा है? मनुष्य जिस चीज़ को सबसे ज्यादा चाहता है, वह मृत्यु के सामने बेकार है।

पैसा — खत्म।
यश — खत्म।
रिश्ते — खत्म।
शरीर — खत्म।
विचार — खत्म।

बस एक चीज़ बचती है — चेतना। साक्षीभाव। जागरण। जो तुम वास्तव में हो।

इसलिए Osho कहते:
“जीवन का सार यह नहीं कि क्या पकड़कर रख सकते हो।
जीवन का सार यह है कि क्या अनुभव करके छोड़ सकते हो।”

🌬️ 8. यही चौकीदार-रहित सृष्टि तुम्हें ध्यान में धकेलती है

ध्यान क्या है? यही समझ कि सब कुछ अस्थायी है। सब कुछ उधार है। सब कुछ क्षणिक है। लेकिन क्षणिक होना सौंदर्य है।क्षणिक होने में ही तरलता है। क्षणिक होने में ही नृत्य है। यदि फूल सदाबहार हो जाए, तो वह सुंदर नहीं रहेगा। उसकी नश्वरता ही उसकी महक है। इसीलिए ईश्वर ने चौकीदार नहीं रखे—क्योंकि चौकीदार होते, तो फूल पर ताला लग जाता। हवा पर दीवार बन जाती। नदी की धारा रोक दी जाती। उषा बाँध दी जाती। अस्तित्व स्वतंत्र है, सौंदर्य स्वतंत्र है। इसलिए Osho कहते— “ईश्वर स्वतंत्रता है।”

🌈 9. मृत्यु — अंतिम सत्य का चौकीदार

यहाँ चौकीदार नहीं है, लेकिन एक अंतिम दरवाज़ा है—और उस दरवाज़े पर एक मौन प्रहरी बैठा है: मृत्यु। वह तुम्हें रोककर पूछती नहीं: “तुम क्या लेकर जा रहे हो?” वह बस ले लेती है। तुम्हारे पास रखने को कुछ भी नहीं छोड़ती। तुम्हारी पूरी ज़िंदगी इसी भ्रम में निकल जाती है कि

“मैं कुछ जमा कर रहा हूँ।”

और मृत्यु एक झटके में प्रोग्राम रिस्टार्ट कर देती है।

इसलिए Osho कहते —
“मृत्यु तुम्हें खाली करती है
ताकि तुम फिर से भर सको।”

🌺 10. इस सत्य को समझना — जीवन को उत्सव बना देता है

अगर तुम समझ लो कि यहाँ कुछ भी ले जाने को नहीं है, तो तुम सहसा हल्के हो जाते हो। तुम भार खिसका देते हो। संग्रह की आदत छूट जाती है। तुम हँसने लगते हो। तुम खुल जाते हो। तुम प्रेमपूर्ण हो जाते हो। तुम उस पक्षी की तरह बन जाते हो जो उगते सूरज के साथ बिना टिकट, बिना पासपोर्ट, पूरी दुनिया में उड़ता है। इस उड़ान का सौंदर्य तभी आता है जब तुम पकड़ना छोड़ दो।

🕯️ 11. अंतिम सार: सृष्टि एक विशाल मंदिर है — यहाँ कोई चौकीदार नहीं, क्योंकि सब तुम्हारा है, और कुछ भी तुम्हारा नहीं है

Osho कहते:

“तुम इस सृष्टि के मेहमान हो। मेहमान कमरे से तकिया नहीं ले जाता। वह कमरे का आनंद लेता है, और फिर लौट जाता है।”

यही होश में जीने का मार्ग है। यही ध्यान का सार है। यही अस्तित्व का आशीर्वाद है। तुम इस सृष्टि को पकड़ों मत—बस उसके समर्पण को महसूस करो। वह तुम्हारी है, जब तक तुम उसे अपनी नहीं कहते। इसका यही सौंदर्य है: यहाँ सब कुछ है, बस मालिक होने का अहंकार नहीं होना चाहिए।

और जहाँ मालिक नहीं, वहाँ चौकीदार की जरूरत नहीं।

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.