“विचार ही वास्तविकता है” —
मनुष्य का मन एक बीज है, और विचार उस बीज की ऊर्जा है। जिस प्रकार बीज में वृक्ष बनने की संभावना छिपी होती है, उसी प्रकार मनुष्य के विचारों में उसके भविष्य की छवि छिपी होती है। लेकिन यह बात मात्र दर्शन नहीं है, यह जीवन का विज्ञान है।
तुम्हारे सोचने का ढंग ही तुम्हारे अस्तित्व का निर्माण करता है। यदि तुम स्वयं को दुर्बल समझते हो, तो तुम्हारी पूरी चेतना दुर्बलता का ढांचा बना लेती है। यदि तुम यह मान बैठते हो कि तुम कुछ नहीं कर सकते, तो तुम सचमुच कुछ नहीं कर पाते। और यह कोई जादू नहीं है, यह मनोविज्ञान की सबसे सूक्ष्म परत है — मन का सम्मोहन स्वयं पर ही गहराता चला जाता है।
हम जो सोचते हैं, वो केवल मन में नहीं रुकता। विचार ऊर्जा है, और ऊर्जा कभी भी निष्क्रिय नहीं रहती। वह अपना रूप बदलती है, वह आकार लेती है। जब तुम गहन क्रोध से भर जाते हो, तो तुम्हारा शरीर भी उस क्रोध को दिखाने लगता है। चेहरा तमतमा जाता है, आँखें लाल हो जाती हैं, साँसें तीव्र हो जाती हैं। क्या ये केवल विचार था? नहीं, वह विचार अब शरीर बन गया है। यह प्रमाण है कि तुम्हारा सोच तुम्हारे अस्तित्व में उतर जाता है।
मनुष्य जितना सोचता है, उससे कहीं अधिक बन जाता है — यदि वह सच में सोचता है। लेकिन हमारी समस्या यह है कि हम सोचते हैं, पर सच नहीं सोचते। हम भय में सोचते हैं, हम संकोच में सोचते हैं, हम समाज की स्वीकृति के खाँचों में सोचते हैं। और जब सोच स्वतंत्र नहीं होती, तो वह तुम्हारे विकास का नहीं, तुम्हारी गिरावट का कारण बन जाती है।
ध्यान से देखो — जो व्यक्ति प्रतिदिन स्वयं को दोषी महसूस करता है, जो हर पल अपने भीतर अपराधबोध ढोता है, वह धीरे-धीरे खुद से नफ़रत करने लगता है। और जो खुद से प्रेम नहीं कर सकता, वह किसी और से क्या प्रेम करेगा? आत्मस्वीकृति के बिना कोई भी प्रेम, कोई भी आनंद, कोई भी स्वतंत्रता संभव नहीं।
ओशो कहते हैं — विचार ही बीज है। तुम जैसे बीज बोओगे, वैसा ही वृक्ष उगेगा। इसलिए यदि तुम प्रेम चाहते हो, तो प्रेमपूर्ण विचार सोचो। यदि आनंद चाहते हो, तो अपने भीतर उस तरंग को आमंत्रित करो जो मुक्त हो, निर्भय हो।
लेकिन यहां एक और सत्य है — विचारों की दुनिया में तुम तब तक बंदी हो जब तक तुम विचारों को अपने ऊपर राज करने देते हो। तुम सोचो, लेकिन सोच के स्वामी बनो। विचारों के गुलाम मत बनो। तुम जैसे-जैसे विचारों को देख पाते हो, वैसे-वैसे उन पर अधिकार आता है। ध्यान इसका मार्ग है।
ध्यान का अर्थ यह नहीं कि विचारों को रोक दो। नहीं। ओशो कभी नहीं कहते कि विचार को मार दो। वे कहते हैं — विचार को देखो, केवल साक्षी बनो। जब तुम विचारों को बिना उलझे देख पाते हो, तो एक दिन अचानक एक अंतराल आता है — जहाँ कोई विचार नहीं होता। वही अंतराल है आत्मा का द्वार।
विचार तुम्हारे होने की छाया है। यदि छाया विकृत है, तो असल स्वरूप भी विकृत प्रतीत होगा। परंतु जब छाया स्वच्छ होती है, तो उसमें सूर्य का प्रतिबिंब झलकने लगता है। यही कारण है कि ओशो बार-बार चेतना की बात करते हैं — एक सजग जीवन, एक जागरूक दृष्टिकोण।
विचार से बाहर जाने का भी एक मार्ग है — और वह है विचार को पूरी तरह जीना। यदि तुम प्रेम के विचार में हो, तो प्रेम को जीओ; यदि करुणा के भाव में हो, तो करुणा बन जाओ। परंतु जो भी सोचो, पूरे होश में सोचो। क्योंकि होश ही तुम्हारे सोच को सोने में बदल सकता है।
ओशो कहते हैं, मनुष्य भगवान का प्रतिबिंब बन सकता है — यदि वह अपने मन की सत्ता को जान ले। भगवान कोई बाहरी सत्ता नहीं है, वह तुम्हारे भीतर की परम संभावना है। जब तुम सोचते हो कि तुम दिव्यता के योग्य नहीं, तब तुम स्वयं को एक अंधे कुएँ में धकेलते हो। और जब तुम सोचते हो कि तुम असीम हो, तब ब्रह्मांड तुम्हारे भीतर गूंजने लगता है।
ध्यान देना — विचार शक्तिशाली है, लेकिन उससे भी शक्तिशाली है तुम्हारी जागरूकता। विचार दिशाहीन ऊर्जा है, जागरूकता उसका स्रोत है। जब तुम विचार को चेतना से भरते हो, तो वह जीवन को रूपांतरित कर देता है।
इसलिए यदि तुम बदलना चाहते हो, तो सोचने के तरीके को बदलो। पर उससे पहले खुद को देखना शुरू करो — तुम क्या सोचते हो, क्यों सोचते हो, और वो सोच तुम्हारे भीतर क्या कर रही है। यही आत्मचिंतन की शुरुआत है।
जीवन कोई दुर्घटना नहीं है। यह एक प्रतिबिंब है — तुम्हारे ही भीतर चल रही विचार-धारा का। यदि तुम भयभीत हो, तो दुनिया भी तुम्हारे लिए भय से भरी दिखेगी। यदि तुम प्रेम से भरे हो, तो वही दुनिया स्वर्ग बन जाएगी।
तुम्हारे सोचने का ढंग ही तुम्हारी नियति है। और यह तुम्हारे ही हाथ में है। जागो, सोचो, देखो — और फिर उस दिशा में चलो जहाँ तुम होना चाहते हो। जीवन एक अवसर है, एक प्रयोगशाला है — तुम चाहे तो मूर्खता का बुत बन सकते हो, चाहे तो बुद्ध का प्रकाश।
और अंत में, ओशो कहते हैं —
"विचार एक बीज है। यदि तुम बीज में वृक्ष देख सको, तो तुम सृष्टा बन जाओगे।"
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