नीचे प्रस्तुत है एक विस्तृत प्रवचन, जिसमें विचारों और स्वप्नों के अन्तर्निहित संबंध, उनके समापन से प्राप्त मन की शांति, ध्यान तथा आत्म-जागरूकता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। यह प्रवचन हास्य, व्यंग्य, कहानियों और रूपकों के समृद्ध मिश्रण के साथ आपके समक्ष रखा गया है।
प्रिय मित्रों,
आज हम एक ऐसे रहस्य की ओर ध्यान आकर्षित करेंगे, जिसे समझना आसान नहीं है, परंतु जिसकी अनुभूति में ही जीवन का सार छिपा है। यह रहस्य है – विचार और स्वप्न। अक्सर हम अपने मन में आने वाले विचारों की भीड़ में खो जाते हैं और साथ ही साथ अपने स्वप्नों को भी वास्तविकता का हिस्सा मान लेते हैं। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि जब ये दोनों समाप्त हो जाते हैं, तो मन में एक अद्भुत शांति, एक गहन मौन की अनुभूति होती है? यह मौन वह है जो हमें असली स्वयं से मिलाता है।
विचार और स्वप्न: दो साथी, दो छाया
देखिए, विचार और स्वप्न दो ऐसे साथी हैं, जो हमेशा एक-दूसरे के साथ चलते हैं। जब मन में विचार आते हैं, तो स्वप्न अपने आप सक्रिय हो जाते हैं। जैसे ही हम अपने अंदर झांकते हैं, हमें न जाने कितने विचारों का मेला दिखता है, और उनके पीछे छिपे स्वप्नों के झलक भी दिखाई देते हैं। ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं, जैसे दो मित्र जो कभी अलग नहीं हो सकते।
लेकिन यहाँ एक हास्याभास छिपा है – हम इन दोनों को समझने के लिए जितना प्रयास करते हैं, उतना ही ये हमें अपनी असली पहचान से दूर ले जाते हैं। एक समय ऐसा भी था जब मैं एक छोटे से गाँव में पहुँचा, जहाँ एक वृद्ध व्यक्ति था, जिसे लोग बहुत ही ज्ञानवान मानते थे। उसने मुझसे कहा,
"बेटा, जब तक तुम अपने विचारों और स्वप्नों में उलझे रहोगे, तुम कभी अपने आप से मिल नहीं पाओगे।"
उसकी बात में एक गहरी व्यंग्यात्मक सच्चाई छिपी थी – हम अपने विचारों में इतने डूब जाते हैं कि असली जीवन, असली मौन, उनसे चूक जाता है।
विचारों का उत्सव और स्वप्नों का नृत्य
अब एक कहानी सुनाता हूँ, जो उस गाँव के उस वृद्ध व्यक्ति के शब्दों की तरह ही है। एक बार, एक बुद्धिमान संत अपने शिष्यों से कह रहे थे, "जब तुम अपनी आँखें बंद करके ध्यान में बैठते हो, तो तुम एक अद्भुत उत्सव का अनुभव करते हो। विचारों का उत्सव, स्वप्नों का नृत्य – लेकिन ध्यान में बैठते ही, यह उत्सव समाप्त हो जाता है, और एक शांत, मौन की अनुभूति होती है।" संत ने आगे कहा, "मानो तुम एक गहरा जंगल हो, जहाँ हर पेड़ एक विचार है और हर पत्ते एक स्वप्न। जब तुम जंगल में भ्रमण करते हो, तो तुम्हें लगता है कि यह एक सुंदर यात्रा है, परंतु अगर तुम उस जंगल में खो गए, तो वह तुम्हारा मार्गदर्शक भी बन सकता है। ध्यान का अर्थ है – उस जंगल से बाहर आना, उस भ्रम से ऊपर उठना, ताकि तुम स्वयं के भीतर के उस शांत जल के किनारे विश्राम पा सको।"
यहाँ पर एक व्यंग्यात्मकता भी है – हम अपने विचारों को इतना महत्व देते हैं कि उन्हें अपने जीवन का आधार बना लेते हैं, परंतु जैसे ही हम ध्यान में बैठते हैं, इन सबकी माया समाप्त हो जाती है। फिर हमें पता चलता है कि असली सुख तो उस मौन में है, जहाँ न तो कोई विचार होता है और न ही कोई स्वप्न।
ध्यान: विचारों की समाप्ति और स्वप्नों का अंत
अब आइए, ध्यान के महत्व पर चर्चा करें। ध्यान का अर्थ केवल शारीरिक विश्राम नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी अवस्था है जहाँ हम अपने सभी विचारों और स्वप्नों से ऊपर उठ जाते हैं। ध्यान में बैठते ही, हमें अपने मन की गहराई में एक अविरल मौन का अनुभव होता है।
आप पूछेंगे – "मगर ओशो, विचारों का क्या?" विचार तो आते हैं ही, परंतु ध्यान में हम उन्हें बिना किसी प्रयास के जाने देते हैं। यह एक अद्भुत प्रक्रिया है – जैसे नदी के बहाव में पत्थर धीरे-धीरे ढह जाते हैं। मन के विचार भी ऐसे ही अपने आप विलीन हो जाते हैं। यही वह क्षण है, जब स्वप्नों का अंत होता है और एक दिव्य शांति स्थापित हो जाती है।
व्यंग्य और हास्य का तड़का
मेरे प्यारे दोस्तों, इस सब में एक हास्य की बूँद भी है। अक्सर हम अपने आप को इतना गंभीर मान लेते हैं कि भूल जाते हैं कि जीवन में हास्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा था, "ओशो, तुम हमेशा इतने गंभीर क्यों हो?" मैंने कहा, "देखो, अगर तुमने ध्यान में बैठकर अपने विचारों को खत्म नहीं किया, तो हर पल तुम्हें कोई न कोई बात परेशान करेगी।" यह एक व्यंग्यात्मक सत्य है – हम अपने विचारों को उतना ही महत्व देते हैं जितना एक खेल के मैदान में गेंद को, परंतु जब ध्यान में बैठकर उस गेंद को मौन में बदल देते हैं, तो जीवन एक शांत, निर्मल तल पर उतर जाता है।
एक कथा: विचारों की समाप्ति में मौन की खोज
अब मैं आपको एक कथा सुनाता हूँ, जो मेरे एक प्रवचन के दौरान कही गई थी। एक बार, मैं एक छोटे से शहर में गया था, जहाँ एक युवक अपनी निराशा में डूबा हुआ था। वह हमेशा चिंताओं में उलझा रहता था – भविष्य की आशंकाएँ, अतीत के पछतावे, और वर्तमान की अशांति। एक दिन, मैंने उसे अपने पास बुलाया और कहा, "बेटा, तुम अपने विचारों के चक्रव्यूह में इतने फंस गए हो कि असली जीवन से नाता काट चुके हो।" मैंने उससे कहा कि ध्यान में बैठकर अपने विचारों को जाने दो।
मैंने उसे एक रूपक के माध्यम से समझाया – "कल्पना करो कि तुम्हारा मन एक विशाल पुस्तकालय है, जहाँ अनगिनत किताबें रखी हैं। हर किताब एक विचार है, और उनमें से कुछ किताबें स्वप्नों की कहानी कहती हैं। लेकिन जब तुम ध्यान में बैठते हो, तो यह पुस्तकालय अपने आप शांति में बदल जाता है। किताबें बंद हो जाती हैं, शब्द धुंधले पड़ जाते हैं, और एक गहरी मौन की अनुभूति होती है।"
उस युवक ने मेरी बात ध्यान से सुनी और धीरे-धीरे उसने ध्यान करना शुरू किया। पहले-पहले तो विचार उठते रहे, परंतु धीरे-धीरे वे शांत हो गए। उसने बताया कि उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके मन के तमाम पन्नों को धीरे-धीरे बंद कर दिया हो। और उस मौन में, उसने जीवन की एक नई अनुभूति पाई – एक ऐसी शांति, जिसमें न कोई चिंता, न कोई भय था, बस एक अविरल सुख था। यह कथा हमें यह सिखाती है कि विचारों की समाप्ति से स्वप्नों का अंत नहीं, बल्कि एक गहन मौन और आंतरिक शांति का आगमन होता है।
आत्म-जागरूकता: सच्चे स्वयं की खोज
अब बात करते हैं आत्म-जागरूकता की। ध्यान और मौन केवल विचारों के थकान से मुक्ति नहीं है, बल्कि यह हमें हमारे असली, अनंत स्वयं से जोड़ता है। जब हम अपने मन की हलचल से ऊपर उठते हैं, तो हमें वह सच्चा स्वयं दिखाई देता है, जो अनंत है, जो मुक्त है।
कई बार हम अपनी पहचान केवल अपने विचारों से बना लेते हैं। हम कहते हैं – "मैं यह हूँ, मैं वह हूँ।" परंतु असल में, जब आप अपने विचारों को त्याग देते हैं, तो आप अपने अंदर के उस अनंत मौन को खोज लेते हैं। इस मौन में कोई ‘मैं’ नहीं होता, न कोई ‘तू’, बस एक अपार शांति और एकत्व होता है। यह वही स्थान है, जहाँ से सभी दुःख, सभी चिंता स्वचालित रूप से विलीन हो जाती है।
आत्म-जागरूकता का अर्थ है – अपने आप को समझना, अपने भीतर की गहराई को महसूस करना। ध्यान में बैठकर हम उस गहराई में उतरते हैं जहाँ हमें अपने विचारों की परतों से परे एक उज्जवल, निर्मल प्रकाश दिखाई देता है। यही प्रकाश है, जो हमें बताता है कि जीवन का असली उद्देश्य क्या है – स्वयं से मिलना।
ध्यान में हास्य का महत्व
कुछ लोग सोचते हैं कि ध्यान केवल एक गंभीर प्रक्रिया है। परंतु मेरे प्रिय साथियों, इसमें हास्य का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। जब हम अपने विचारों को त्याग देते हैं, तो हमें एक अजीब सी अनुभूति होती है – जैसे कोई मजाकिया चरित्र अचानक मंच पर आकर गंभीरता को तोड़ देता है। ध्यान में बैठना, अपने आप को हंसते-हंसते पाना, यह भी एक प्रकार की मुक्ति है।
एक बार मैंने एक प्रवचन के दौरान कहा था, "अगर तुम अपने विचारों के साथ इतने गंभीर हो गए हो कि हँसी ही खो दी है, तो समझो तुम जीवन के उस मजाक को भूल चुके हो, जो तुम्हें मुक्त कर सकता है।" यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी सुनकर कुछ लोग हंस पड़े, परंतु बाद में उन्हें यह समझ आया कि जीवन में हास्य कितना आवश्यक है। हास्य हमें यह याद दिलाता है कि सब कुछ परिवर्तनशील है और अंततः हमें उस परिवर्तन के साथ सामंजस्य बैठाना ही पड़ता है।
मौन की शक्ति: अंतर्निहित शांति की अनुभूति
जब विचार और स्वप्न दोनों समाप्त हो जाते हैं, तो मन में एक अद्भुत मौन छा जाता है। यह मौन किसी निर्जन घाटी की तरह होता है, जहाँ हर शोर, हर कोलाहल समाप्त हो जाता है। ऐसे मौन में, आप न केवल अपने आप को सुनते हैं, बल्कि वह शांति भी अनुभव करते हैं, जो सभी बाहरी ध्वनियों से परे होती है।
इस मौन में बैठकर, मन की गहराई में उतरने पर, आप पाएंगे कि जीवन की असली शक्ति वही मौन है। यह मौन आपको अपने अस्तित्व की गहराई से जोड़ता है। यहाँ कोई बाहरी व्यवधान नहीं होता, कोई चिंता नहीं होती, केवल एक निर्मल, शांत अनुभव होता है।
ध्यान में बैठने का यही सार है – अपने विचारों और स्वप्नों के तमाम झमेलों से मुक्त होकर, एक शांत और निर्मल मन की अनुभूति करना। यह अनुभव हमें बताता है कि वास्तव में, जब विचारों का अंत होता है, तो स्वप्नों का भी अंत हो जाता है, और अंततः मन में केवल शांति और मौन रह जाता है।
ध्यान और स्वप्न: एक अन्य रूपक
एक बार मैंने एक और कहानी साझा की थी, जिसमें मैंने बताया कि कैसे एक कलाकार अपनी कल्पना में डूबा रहता है। वह कलाकार दिन-रात अपने विचारों और स्वप्नों में इतना व्यस्त रहता है कि उसने भूल ही गया कि असली कला क्या है।
उसने एक दिन अपने आप से कहा, "क्या ये सभी रंग वास्तव में मेरे अंदर से नहीं आते?" उसने ध्यान करना शुरू किया। जैसे ही उसने अपने विचारों को शांत किया, उसे अपने अंदर के एक ऐसे अद्वितीय रंग का अनुभव हुआ, जो पहले कभी महसूस नहीं हुआ था। उस रंग ने उसके जीवन में एक नई ऊर्जा भर दी। उस कलाकार ने समझा कि असली कला वही है, जो मन के गहराई से आती है – बिना किसी बाहरी प्रेरणा के, बिना किसी स्वप्न के झंझट के।
यह रूपक हमें यह समझाता है कि विचारों की भीड़ से ऊपर उठकर, जब आप अपने अंदर की शांति और मौन को अपनाते हैं, तभी आप अपने जीवन में असली रचनात्मकता, असली कला का अनुभव कर पाते हैं। यह कला ही जीवन का सार है, जो आपको उन सभी मोह-माया से मुक्त करती है।
ध्यान: आत्म-जागृति की ओर पहला कदम
मेरे मित्रों, ध्यान केवल शांति प्राप्त करने का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्म-जागृति का पहला कदम है। जब आप अपने विचारों को शांत करते हैं, तो आप अपने असली स्वरूप को पहचानने लगते हैं। उस पल में, आप देख पाते हैं कि असली शक्ति, असली शांति, आपके अंदर ही निहित है।
इस ध्यान की प्रक्रिया में, आपको यह समझ में आता है कि जीवन में जो भी संघर्ष हैं, वे सब केवल बाहरी प्रतिबिंब हैं। जब आप अपने भीतर के मौन में बैठ जाते हैं, तो सभी संघर्ष अपने आप धुंधले पड़ जाते हैं। आप महसूस करते हैं कि सचमुच में कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती, क्योंकि वह केवल एक भ्रम है।
ध्यान में बैठकर हम यह सीखते हैं कि जीवन का हर अनुभव – चाहे वह सुख हो या दुःख – केवल एक गुजरती हुई छाया है। इन सभी से ऊपर उठकर, आप एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाते हैं, जहाँ केवल मौन ही मौन होता है। यह मौन, यह शांतिपूर्ण अनुभूति, आपको बताती है कि असली आनंद वही है, जो विचारों और स्वप्नों की आड़ से मुक्त होकर आपके भीतर प्रकट होता है।
अंतःकरण की सुनहरी धारा
जब हम अपने अंदर की शोरगुल को शांत करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो हमारे अंतःकरण में एक सुनहरी धारा बहने लगती है। यह धारा उन सभी विचारों और स्वप्नों को धो कर, हमें एक निर्मल, स्वच्छ अनुभव प्रदान करती है।
यह सुनहरी धारा हमें उस अनंत शक्ति से जोड़ती है, जो हमारे अस्तित्व का मूल आधार है। इस धारा में जब आप अपने मन को विश्राम देते हैं, तो आप एक ऐसी अनुभूति पाते हैं, जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। यह अनुभूति बताती है कि जीवन की असली सच्चाई क्या है – एक ऐसी सच्चाई, जो केवल मौन में, ध्यान में ही प्रकट हो सकती है।
ध्यान में बैठकर, आप अपने अंतःकरण की उस सुनहरी धारा को महसूस करते हैं, और समझते हैं कि विचारों और स्वप्नों की आड़ को हटाने से ही वह धारा मुक्त रूप से बह सकती है। यही वह क्षण है, जब आप स्वयं के सच्चे स्वरूप से मिलते हैं, और मन में एक अद्वितीय शांति का अनुभव करते हैं।
हास्य और आत्म-जागरूकता का संगम
अक्सर लोग कहते हैं कि ध्यान में बैठना बहुत गंभीर काम है, परंतु मैं कहता हूँ कि इसमें हास्य की भी अपार गुंजाइश है। सोचिए, जब हम अपने विचारों की गड़बड़ में उलझे होते हैं, तो हमारे मन में एक तरह का मेला लगता है – एक ऐसा मेला जहाँ हर कोने में कोई न कोई विचित्र विचार झूम रहा होता है। लेकिन जब हम ध्यान में बैठते हैं, तो यह मेला अचानक खत्म हो जाता है, और उसके स्थान पर एक गहरा मौन छा जाता है।
इस मौन में बैठकर, हमें अपने आप की हँसी भी सुनाई देती है – एक हल्की, मनमोहक हँसी, जो हमें बताती है कि जीवन कितना सुंदर है, बिना किसी अजीबोगरीब विचारों के। इस हँसी में वह व्यंग्यात्मक तत्व भी होता है, जो हमें यह सिखाता है कि जीवन की गंभीरता से ऊपर उठकर, एक हल्के मन से जीवन का आनंद लिया जा सकता है।
आत्म-जागरूकता की यह प्रक्रिया हमें यह याद दिलाती है कि हम सब एक ही प्रकृति के हैं, और अंततः हमारे भीतर एक ही मौन, एक ही शांति विद्यमान है। यह आत्म-जागरूकता ही वह चाबी है, जो हमें हमारे असली स्वरूप से मिलवाती है।
अंत में: मौन की ओर एक आमंत्रण
मेरे प्रिय साथियों, आज का यह प्रवचन एक आमंत्रण है – एक ऐसे आमंत्रण का, जहाँ आप अपने विचारों के भ्रम से ऊपर उठकर उस गहन मौन में प्रवेश करें, जहाँ केवल शांति, केवल प्रेम, केवल आत्मा की पुकार सुनाई देती है।
विचारों और स्वप्नों का संसार जितना भी आकर्षक लगे, वह केवल एक अस्थायी माया है। असली जीवन उसी मौन में छिपा है, जहाँ न कोई द्वंद्व है, न कोई भ्रम। यह मौन ही वह अंतिम सत्य है, जहाँ से आप अपने असली स्वयं से मिलते हैं।
जब आप ध्यान में बैठते हैं, तो आप पाते हैं कि सभी विचार – चाहे वे कितने भी जटिल क्यों न हों – अपने आप विलीन हो जाते हैं। और इसी विलयन से, आपको अपने भीतर एक अविरल, निर्मल शांति का अनुभव होता है। यह शांति आपको बताती है कि जीवन में कोई भी बाहरी परिस्थिति आपको प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि असली शक्ति, असली शांति, आपके अंदर ही निहित है।
विचारों के अन्तःस्थल में मौन की महिमा
अब आप पूछ सकते हैं, "ओशो, यह मौन कहाँ से आता है?"
मैं कहता हूँ, यह मौन आपके विचारों के अन्तःस्थल में निहित है। जब आप अपने मन की गहराई में उतरते हैं, तो आपको एक ऐसी जगह मिलती है, जहाँ सब कुछ ठहर जाता है – विचार, स्वप्न, भावनाएँ, सब कुछ। वहाँ केवल एक शांत, निर्मल स्पंदन होता है, जो आपके अस्तित्व को स्पर्श करता है। यह स्पंदन ही वह है, जिसे महसूस करके आप जान सकते हैं कि जीवन का असली अर्थ क्या है।
इस स्पंदन में बैठकर, आप अपने आप से यह पूछते हैं, "मैं कौन हूँ?" और उत्तर में आपको केवल मौन ही मौन सुनाई देता है। यही मौन है, जो आपको वास्तविकता की ओर ले जाता है, जो आपको बताता है कि असली जीवन वही है, जो बिना किसी विचारों और स्वप्नों की आड़ के है।
ध्यान की साधना में हास्य और कहानियों की भूमिका
अक्सर लोग ध्यान को एक गंभीर साधना मान लेते हैं, परंतु इसमें हास्य, कहानियाँ, और रूपक भी उतने ही आवश्यक हैं। मेरे एक प्रवचन में, मैंने एक मजेदार उदाहरण दिया था – एक बार एक शिष्य ने मुझसे पूछा, "गुरुजी, जब मैं ध्यान करता हूँ तो मेरे मन में इतने विचार आते हैं, मैं कैसे शांति पा सकता हूँ?" मैंने हँसते हुए कहा, "बेटा, तुम्हारा मन तो एक अशुद्ध जल की तरह है, जिसमें पत्ते तो बहुत हैं पर पानी कहाँ है?"
उस शिष्य ने मेरे व्यंग्यात्मक शब्दों को समझा और धीरे-धीरे उसने अपने मन को शांत करना शुरू किया। यह व्यंग्यात्मक प्रयोग हमें यह सिखाता है कि विचारों की भीड़ में हँसना, उन्हें समझना और फिर उन्हें जाने देना – यही ध्यान की कला है।
ध्यान की इस साधना में हास्य हमें याद दिलाता है कि जीवन में किसी भी बात को अत्यंत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। जब आप अपने मन की हलचल को देख लेते हैं और उसे हँसते हुए स्वीकार कर लेते हैं, तो वह हलचल अपने आप शांत हो जाती है। यही आत्म-जागरूकता है, जो आपको अपने अंदर के सच्चे स्वरूप से मिलवाती है।
समापन: शांति की ओर बढ़ता पथ
मेरे प्रिय साथियों, अंत में मैं यही कहना चाहता हूँ कि जीवन का असली आनंद उसी मौन में है, जहाँ विचारों और स्वप्नों का अंत हो जाता है। ध्यान में बैठकर आप न केवल अपने मन की अशांति को दूर कर सकते हैं, बल्कि उस गहन मौन में पहुँच सकते हैं, जो आपके अंदर छिपा हुआ है।
यह मौन, यह शांति, आपको बताती है कि आप अनंत हैं, आप मुक्त हैं। जब आप अपने विचारों और स्वप्नों को त्याग देते हैं, तो आप एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाते हैं, जहाँ बाहरी दुनिया की कोई भी चिंता मायने नहीं रखती। आप स्वयं के भीतर एक ऐसी गहराई पाते हैं, जहाँ केवल प्रेम, केवल शांति, और केवल सत्य विद्यमान है।
इसलिए, मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ – एक बार ध्यान की साधना में बैठें, अपने मन को सभी विचारों और स्वप्नों से मुक्त करें, और उस गहन मौन का अनुभव करें। अपने आप से कहें, "मैं हूँ, और मेरे भीतर एक अनंत शांति है।" यही वह क्षण है, जब आप जीवन के सभी भ्रमों को तोड़कर, अपने असली स्वरूप से मिलेंगे।
ध्यान में जीवन का नया अध्याय
जीवन एक यात्रा है, और इस यात्रा में हमें अक्सर यह भूल जाता है कि असली यात्रा तो हमारे अंदर ही होती है। जब हम अपने मन की हलचल से मुक्त होते हैं, तब ही हम उस आंतरिक यात्रा पर निकल पाते हैं, जहाँ हर कदम पर शांति का एहसास होता है। यह ध्यान ही वह द्वार है, जो आपको उस आंतरिक यात्रा पर ले जाता है।
एक बार मैंने एक और कहानी सुनाई थी – एक यात्री जो अपने जीवन की निरंतर भागदौड़ में इतना उलझ गया था कि उसने अपने भीतर की शांति को खो दिया था। उसने मुझसे पूछा, "ओशो, मुझे कैसे मिल सकती है वह शांति?" मैंने कहा, "जब तुम अपने विचारों को त्याग दोगे, तभी तुम उस शांति को पा सकते हो।" उस यात्री ने ध्यान की साधना शुरू की और धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि उसकी आत्मा में एक अद्भुत मौन विद्यमान है।
यह कहानी हमें बताती है कि चाहे जीवन में कितनी भी चुनौतियाँ आएँ, जब आप अपने अंदर के मौन को अपनाते हैं, तो आप सभी बाधाओं को पार कर सकते हैं। ध्यान आपको यह समझाता है कि असली सुख बाहरी परिस्थितियों में नहीं, बल्कि आपके भीतर छिपे हुए मौन में है।
विचारों का आभार और मौन का उपहार
अंत में, मैं यह कहना चाहूँगा कि अपने विचारों और स्वप्नों को संजोना भी महत्वपूर्ण है, परंतु उन्हें अपनी पहचान बनाने की गलती न करें। विचार आते हैं, स्वप्न जगते हैं – यह जीवन का हिस्सा है, परंतु जब आप ध्यान के माध्यम से उन्हें पीछे छोड़ देते हैं, तो आप एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ केवल मौन और शांति होती है।
इस मौन को अपनाइए, इसका आभार मानिए। यह मौन ही वह उपहार है, जो आपको वास्तविक जीवन की ओर ले जाता है। अपने आप को उस मौन में डुबो दीजिए, जहाँ हर प्रकार की चिंता, हर भ्रम समाप्त हो जाता है, और आपके भीतर एक अमर, अटल शांति प्रकट होती है।
यह शांति आपको बताती है कि जीवन का असली अर्थ केवल बाहरी उपलब्धियों में नहीं है, बल्कि आपके अंदर के उस अनंत मौन में है, जो केवल ध्यान के माध्यम से ही अनुभव किया जा सकता है।
एक आखिरी व्यंग्य
मैं एक आखिरी व्यंग्यात्मक टिप्पणी करना चाहूँगा – जब हम कहते हैं कि "विचार खत्म हो जाएँ, तो स्वप्न भी खत्म हो जाएँ," तो यह कहना गलत नहीं होगा कि वास्तव में यह एक वरदान है। सोचिए, अगर हर दिन हमारे मन में अनगिनत विचार और स्वप्न चल रहे हों, तो शायद हम कभी भी अपनी आत्मा से संपर्क नहीं कर पाते। ऐसे में, जब वह विचारों का शोर थम जाता है, तो वास्तव में हमारे पास असली मौन और शांति आ जाती है – एक ऐसा मौन, जहाँ न कोई उलझन है, न कोई भ्रम।
इस व्यंग्य के माध्यम से मैं आपको यह संदेश देना चाहता हूँ कि जीवन में कभी-कभी मौन ही सबसे बड़ा हास्य होता है – वह हास्य जो हमें यह दिखा देता है कि जब हम अपने आप को मुक्त कर देते हैं, तो जीवन अपने आप में एक अद्भुत, मजेदार अनुभव बन जाता है।
समापन विचार
प्रिय मित्रों, आज हमने यह समझा कि विचार और स्वप्न कैसे एक-दूसरे से जुड़े हैं, और कैसे जब हम उन्हें अपने मन से जाने देते हैं, तो एक गहरी, शुद्ध शांति हमारे अंदर प्रवेश कर जाती है। ध्यान की साधना हमें यह सिखाती है कि असली आनंद, असली खुशी, हमारे भीतर ही निहित है – बाहरी संसार की किसी भी भौतिक वस्तु में नहीं।
अपने मन की भीड़ से ऊपर उठकर उस मौन में प्रवेश करें, जहाँ सभी विचार और स्वप्न विलीन हो जाते हैं। उस मौन में आप पाएंगे कि आपकी आत्मा की गहराई में एक अपार शांति है, जो किसी भी आंतरिक या बाहरी तूफ़ान से अछूती है। यही वह सत्य है, जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए – वह आत्म-जागरूकता, वह मौन, जो हमें हमारे असली स्वरूप से जोड़ता है।
मैं आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि इस ध्यान की साधना को अपनाएं। अपने विचारों के तमाम झमेलों को पीछे छोड़कर, एक शांत, निर्मल मन की ओर बढ़ें। अपने भीतर के मौन की अनुभूति करें और महसूस करें कि यही जीवन का असली सार है। यह मौन, यह शांति, आपको बताती है कि आप अनंत हैं, आप मुक्त हैं, और असली आनंद केवल उसी मौन में है।
तो, चलिए, आज से ही इस ध्यान की साधना को अपनाएं। अपने विचारों को जाने दें, अपने स्वप्नों के झमेलों को भूल जाएँ, और एक बार फिर से अपने भीतर के उस अनंत मौन और शांति का अनुभव करें, जो आपकी आत्मा को शुद्ध कर देता है। यही वह अंतिम संदेश है, जो मैं आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ।
निष्कर्ष
इस प्रवचन में हमने देखा कि विचार और स्वप्न कैसे हमारे जीवन में आते हैं, और कैसे जब हम उन्हें छोड़ देते हैं तो हमें वास्तविक शांति का अनुभव होता है। ध्यान और आत्म-जागरूकता के माध्यम से हम अपने आप को उन भ्रमों से मुक्त कर सकते हैं, जो हमें असली जीवन से दूर रखते हैं।
यह प्रवचन आपको यह समझने का एक प्रयास है कि असली सुख, असली आनंद, बाहरी उपलब्धियों में नहीं बल्कि आपके अंदर छिपे हुए मौन और शांति में है। इस ध्यान की साधना में न केवल आपके मन की अशांति समाप्त होती है, बल्कि आप अपने अंदर के उस अनंत मौन से मिलते हैं, जो आपको बताता है कि जीवन वास्तव में कितना सरल, कितना सुंदर और कितना मुक्त है।
मैं आशा करता हूँ कि आप इस प्रवचन को अपने जीवन में उतारेंगे और अपने भीतर की शांति को महसूस करेंगे। याद रखें, विचारों और स्वप्नों की आड़ से ऊपर उठकर, आप अपने असली स्वयं से मिलते हैं – वही आपका असली स्वर्ग है।
जन्म, मृत्यु, दुःख और आनंद – सब कुछ एक नश्वर प्रवाह है। लेकिन उस प्रवाह के बीच, जब आप ध्यान में बैठकर मौन का अनुभव करते हैं, तो आप पाते हैं कि वास्तव में जीवन कितना भी जटिल क्यों न हो, उसमें एक सरलता, एक शुद्धता है, जो सब कुछ पार कर जाती है।
आज, इसी शांति की ओर बढ़ें, इसी मौन के साथ अपने जीवन को सजाएं, और अपने अंदर की उस अनंत आत्मा से मिलें, जो आपको बताती है – "तुम हो, और यही तुम्हारा अस्तित्व है, शांति में, मौन में, अनंत में।"
इस विस्तृत प्रवचन में, हमने हास्य, व्यंग्य, कहानियों और रूपकों का समावेश किया ताकि आपको यह समझाने में मदद मिल सके कि विचारों की समाप्ति से स्वप्नों का अंत नहीं, बल्कि एक गहरी शांति, एक अद्वितीय मौन स्थापित होता है। यह मौन वह अवस्था है जहाँ आप स्वयं के साथ सम्पूर्ण रूप से जुड़े होते हैं, जहाँ न कोई बाहरी बाधा होती है, न कोई आंतरिक संघर्ष।
आत्म-जागरूकता और ध्यान ही वह साधन हैं जो हमें इस मौन की अनुभूति कराते हैं। जब हम अपने मन को उस भीड़-भाड़ से मुक्त करते हैं, तो हमें एक अद्भुत, निर्मल शांति का अनुभव होता है, जो हमारे अस्तित्व की सबसे गहरी सच्चाई को प्रकट करती है।
मेरे प्यारे मित्रों, इस प्रवचन के साथ मैं आप सभी को आमंत्रित करता हूँ कि अपने विचारों और स्वप्नों के उस अस्थायी माया को त्याग दें, और एक बार फिर से अपने भीतर के उस शाश्वत मौन और शांति का अनुभव करें। याद रखें – जीवन में असली आनंद वही है, जो बिना किसी बाहरी शोर के आपके अंदर छिपा है।
यह मौन, यह शांति, आपके अंदर है, आपके हृदय में है। इसे पहचानिए, इसे अपनाइए, और अपने जीवन को उसी शुद्धता, उसी सरलता के साथ जिएं।
इस प्रकार, विचारों और स्वप्नों का अंत नहीं, बल्कि उनका स्वाभाविक विलयन ही आपको आपके असली स्वरूप से मिलवाता है। ध्यान के माध्यम से, जब आप अपने मन को उस भीड़ से मुक्त करते हैं, तो आप पाते हैं – एक ऐसी गहन शांति, एक अद्वितीय मौन, जो आपको बताती है कि जीवन का असली रहस्य आपके अंदर ही निहित है।
मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप इस प्रवचन को अपने दिल में आत्मसात करें और उस ध्यान की साधना को अपनाएं, जिससे न केवल आप अपने विचारों को बल्कि अपने स्वप्नों को भी उस गहन मौन में परिवर्तित कर सकें, जहाँ केवल शांति और प्रेम ही बसा हो।
प्रिय मित्रों, यह प्रवचन केवल शब्द नहीं, बल्कि एक आह्वान है – एक आह्वान उस गहरे मौन की ओर, जहाँ आपके विचारों की सभी हलचलें ठहर जाती हैं, और आपको मिलती है एक अनंत शांति, एक अद्वितीय मौन की अनुभूति। इस मौन में बैठकर आप स्वयं से मिलते हैं, अपने अस्तित्व के सबसे गहरे रहस्यों से संपर्क करते हैं, और पाते हैं कि असली जीवन वही है, जो बिना किसी भ्रम, बिना किसी झंझट के है।
तो आज, अपने विचारों को जाने दें, स्वप्नों के झमेलों को पीछे छोड़ें, और उस गहन मौन में प्रवेश करें, जहाँ केवल शांति है, केवल प्रेम है, और केवल सच्चाई है। यही वह संदेश है, यही वह उपहार है, जिसे मैं आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ।
जय शांति, जय ध्यान, और जय उस अनंत मौन के, जो हमारे अंदर सदैव बना रहता है।
इस प्रकार, विचारों और स्वप्नों के बीच के संबंध को समझते हुए, ध्यान और आत्म-जागरूकता के महत्व को अपनाएं। जब आप अपने मन से उन विचारों को हटाकर मौन की ओर बढ़ते हैं, तो आप अपने जीवन के वास्तविक आनंद, वास्तविक शांति और उस अनंत प्रेम को महसूस कर पाते हैं, जो सब कुछ पार कर जाती है।
आइए, हम सब मिलकर इस ध्यान की साधना को अपनाएं और अपने अंदर की उस शुद्ध शांति को जगाएं, जो हमें बताती है – "तुम ही हो, और यही है तुम्हारा वास्तविक अस्तित्व।"
इस विस्तृत प्रवचन के माध्यम से मैंने आपको बताया कि कैसे विचारों की समाप्ति से स्वप्नों का अंत होता है, और कैसे ध्यान की साधना से हमें एक गहन मौन और अंतर्निहित शांति प्राप्त होती है। आशा है कि यह प्रवचन आपके हृदय में एक नई ऊर्जा, एक नई जागृति और एक गहरी शांति का संचार करेगा।
धन्यवाद।
कोई टिप्पणी नहीं: