मेरे प्यारे साथियो,

आज मैं आपसे एक ऐसे रहस्य की बात करना चाहता हूँ, जो हमारी ज़िंदगी के गहरे आयामों को छू जाता है—वह रहस्य जो कहता है, "एक बार भी कोई पूर्ण हृदय से कह पाए-जो तेरी मर्जी-उसके जीवन से दुख विदा हो जाता है। 'मेरी मर्जी में चिंता है, भय है।' 'उसकी मर्जी में शांति है, आनंद है।'" यह विचार केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि एक जीवन दर्शन हैं, एक आमंत्रण हैं उस असीम अनंत शांति और आनंद में प्रवेश करने का, जो केवल उस दिव्य प्रवाह में है जिसे हम "तेरी मर्जी" कहते हैं।

१. मेरी मर्जी बनाम तेरी मर्जी

जब हम अपने जीवन की राह पर चलते हैं, तो अक्सर हम स्वयं के निर्णय, अपने छोटे-बड़े उद्देश्यों, अपनी योजनाओं में उलझ जाते हैं। यही हमारी "मेरी मर्जी" है—वह इच्छा, जो हमारे मन की आकांक्षाओं, डर, चिंता और अनिश्चितता से भरी होती है। हम सोचते हैं कि हम सब कुछ नियंत्रित कर सकते हैं, परंतु इस नियंत्रण की कोशिश में हम अनजाने में अपने मन के उस हिस्से को भी नियंत्रित करने लगते हैं, जो हमेशा अस्थिर, बेचैन और भयभीत रहता है।

दूसरी ओर, "तेरी मर्जी" वह दिव्य, अनंत इच्छा है, जो प्रकृति के उस व्यापक प्रवाह में है, जो बिना किसी अहंकार, बिना किसी चिंता के है। जब हम अपने जीवन को उस दिव्य प्रवाह के हवाले कर देते हैं, तो हमें एक अनोखी शांति का अनुभव होता है, एक ऐसा आनंद जो स्वयं में ही पूर्ण है। यह शांति और आनंद तभी आते हैं, जब हम अपने छोटे स्वार्थों, अपनी सीमित इच्छाओं को त्याग कर, उस अनंत चेतना के सामने अपना सिर झुका देते हैं।

२. नियंत्रण की गलती और अनंतता की प्राप्ति

सोचिए, अगर आप एक ऐसे बाग़ में चलें जहाँ हर पेड़, हर फूल अपने आप खिल उठता हो, बिना किसी दबाव के, बिना किसी योजना के। वह बाग़ उस प्रकृति का अंश है, जो बिना किसी बाहरी नियंत्रण के, अपनी पूरी सुंदरता के साथ विकसित होती है। परंतु अगर आप उस बाग़ में प्रवेश करते ही यह सोचने लगें कि आपको हर पत्ती, हर फूल को एक निश्चित रूप में देखना है, तो वह प्राकृतिक सुंदरता खो जाती है।
यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है। जब हम अपनी "मर्जी" से, अपनी योजनाओं और नियंत्रण में जीने लगते हैं, तो हम असल में उस अनंत प्राकृतिक प्रवाह से दूर हो जाते हैं। हमारी चिंता, भय, और अनिश्चितता इसी नियंत्रण के प्रयास में छिप जाती हैं। हमें लगता है कि हम अपने जीवन के हर पहलू को समझ सकते हैं, परंतु उस समझ में हम जीवन की वास्तविकता—उस अपार, अनंत शांति को नहीं पहचान पाते।

३. surrender यानी समर्पण का महत्व

अब आइए उस पथ की ओर देखें, जो "तेरी मर्जी" की ओर ले जाता है। यह पथ है समर्पण का—अपने जीवन को उस महान प्रवाह में सौंप देने का। समर्पण का अर्थ है अपने छोटे स्वार्थ, अपने डर और चिंता को त्याग देना। यह एक साहसिक कदम है, क्योंकि समर्पण करने का अर्थ है, "मैं नहीं जानता, लेकिन मुझे भरोसा है कि जो कुछ भी है, वह मेरे लिए उत्तम है।" जब हम अपने आप को उस दिव्य प्रवाह के सामने समर्पित कर देते हैं, तो हमारे अंदर एक अजीब सी शांति और आनंद का अनुभव होता है। यह अनुभव हमारे अस्तित्व को एक नई दिशा देता है।

समर्पण में कोई हार नहीं होती, कोई विफलता नहीं होती। यह एक प्रकार की पूर्णता है, एक ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति स्वयं को उस अनंत ऊर्जा का एक छोटा सा अंश मान लेता है, जो पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है। इसी शांति में ही वह सभी दुखों, परेशानियों और चिंताओं को त्याग देता है, क्योंकि उसे पता होता है कि जो कुछ भी हो रहा है, वह उसी की मर्जी से हो रहा है।

४. कहानी: दो बाग़ों का अनुभव

एक समय की बात है, दो दोस्त थे—राम और श्याम। दोनों के पास एक-एक बाग़ था। राम ने अपने बाग़ की हर पौधे, हर फूल को नियोजित तरीके से उगाया था। उसने सोचा कि अगर मुझे हर चीज़ पर नियंत्रण होगा, तो मेरा बाग़ सबसे सुंदर बनेगा। परंतु उसके बाग़ में हमेशा एक तरह की बेचैनी और चिंता बनी रहती थी—क्योंकि उसे हर पल यह डर सताता था कि कहीं कोई पौधा सूख न जाए, कहीं फूल न मुरझा जाए। उसकी हर योजना में एक प्रकार की अनिश्चितता और भय था।

वहीं श्याम ने अपने बाग़ को प्राकृतिक रूप से विकसित होने दिया। उसने पौधों को अपनी मर्जी के अनुसार बढ़ने दिया, बिना किसी अत्यधिक नियंत्रण के। उसने अपने बाग़ में आने वाली हर ऋतु का स्वागत किया, चाहे वह गर्मी हो या सर्दी, फूल खिलते हों या मुरझाते हों। श्याम ने महसूस किया कि जैसे-जैसे वह अपने बाग़ को समर्पित करता गया, उसकी चिंता कम होती गई और उसमें एक अनोखा आनंद भर गया। उसे अब अपने बाग़ के हर परिवर्तन में सौंदर्य दिखने लगा।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जब हम अपने जीवन को नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हैं, तो हम चिंता और भय में उलझ जाते हैं। परंतु जब हम अपने जीवन को उस व्यापक प्रवाह—उस दिव्य इच्छा—के हवाले कर देते हैं, तो जीवन में एक अनूठी शांति और आनंद आ जाता है।

५. जीवन में अनिश्चितता का आलम

कई बार हम अपने जीवन में अनिश्चितताओं से घिरे रहते हैं। हमारी योजनाएं टूट जाती हैं, हमारे सपने अधूरे रह जाते हैं, और हमें अपने आप पर संदेह होने लगता है। इस स्थिति में हम अपनी "मर्जी" के जाल में फंस जाते हैं—एक ऐसी मर्जी जो हमें हर पल नियंत्रित करने का प्रयास करती है, परंतु अंततः हमें निराशा और दुख में ही छोड़ देती है।
लेकिन सोचिए, क्या होगा यदि हम इन अनिश्चितताओं को स्वीकार कर लें? क्या होगा यदि हम कह दें, "हां, मेरी मर्जी में डर और चिंता है, परंतु मैं अब उसे स्वीकार करता हूँ, और उसकी जगह उस अनंत शांति को लाने देता हूँ, जो तेरी मर्जी में निहित है?"
यह स्वीकृति ही हमें उस उच्चतर अनुभव की ओर ले जाती है, जहाँ हम अपने जीवन के हर अनुभव को एक नई दृष्टि से देखने लगते हैं—एक ऐसी दृष्टि जो हमारे दिल को भर देती है, जो हमें जीवन के प्रत्येक पल में आनंद और शांति का अनुभव कराती है।

६. प्रकृति से सीखें – नदी का प्रवाह

जब हम प्रकृति की ओर देखते हैं, तो हमें एक अद्भुत शिक्षा मिलती है। एक नदी की कल्पना करें, जो बिना किसी रोक-टोक के, अपने पथ पर बहती रहती है। नदी कभी यह नहीं सोचती कि उसे कहाँ जाना है, उसे कौन रोक रहा है, न ही उसे अपनी गति पर कोई संदेह होता है। वह बस बहती है, और अपने मार्ग में आने वाली हर बाधा को सहजता से पार कर जाती है।
यह नदी हमें यही सिखाती है कि जीवन में भी हमें उसी प्रवाह के साथ बहना चाहिए—बिना किसी अत्यधिक नियंत्रण के, बिना अपनी "मर्जी" के दबाव के। जब हम नदी की तरह बहते हैं, तो हम पाते हैं कि जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में एक अनूठा सौंदर्य और आनंद होता है।
यह प्राकृतिक प्रवाह हमें याद दिलाता है कि जीवन में हर चीज़ का एक समय होता है। जैसे नदी को भी कभी तेज़ी से बहना होता है और कभी धीमे, वैसे ही हमारे जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते हैं। इन सभी का आनंद लेने का तरीका यही है कि हम अपने आप को उस व्यापक प्रवाह के हवाले कर दें।

७. आंतरिक परिवर्तन की आवश्यकता

कई बार हम बाहरी दुनिया में सब कुछ बदलने की कोशिश करते हैं—हम अपने परिवार, समाज, या अपने कार्यक्षेत्र में बदलाव लाने की इच्छा रखते हैं। परंतु सबसे पहले हमें अपने अंदर की दुनिया में परिवर्तन करना होता है।
जब हम कहते हैं "मेरी मर्जी में चिंता है, भय है," तो इसका अर्थ है कि हमारे अंदर एक ऐसी मानसिकता है, जो हमेशा असुरक्षा, डर और संदेह से भरी रहती है। लेकिन जब हम उस आंतरिक स्थिति को पहचानते हैं और उसे बदलने का प्रयास करते हैं, तब हम देखेंगे कि हमारे भीतर एक अनंत शक्ति है—एक ऐसी शक्ति जो हमें हर परिस्थिति में स्थिरता, शांति और आनंद प्रदान कर सकती है।
यह आंतरिक परिवर्तन एक धीमी प्रक्रिया है, जिसे हम ध्यान, साधना और आत्म-चिंतन के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। जब हम अपने अंदर झांकते हैं, तो हमें अपने भय और चिंता के स्रोत का पता चलता है, और हम उन्हें छोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।

८. ध्यान और साधना – आत्मा की खोज

ध्यान और साधना ओशो के शिक्षण के मूल में हैं। ध्यान का अर्थ है—अपने मन को शुद्ध करना, अपने विचारों को स्थिर करना और उस दिव्य चेतना के संपर्क में आना, जो हमारे भीतर वास करती है। जब हम ध्यान करते हैं, तो हम अपने अंदर के उस अशांत, बेचैन हिस्से को पहचान लेते हैं, और उसे शांत करने का प्रयास करते हैं।
ध्यान हमें यह सिखाता है कि हमारे जीवन में बाहरी घटनाएँ कितनी भी अशांत क्यों न हों, हमारे भीतर एक ऐसी गहराई है, जहाँ से हम अनंत शांति और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। साधना की प्रक्रिया में हम धीरे-धीरे उस चेतना के करीब पहुँचते हैं, जो हमें हमारे छोटे स्वार्थों और भय से मुक्त करती है।
जब हम अपने मन को ध्यान में लगाते हैं, तो हमें अनुभव होता है कि हमारे भीतर की उस "तेरी मर्जी" का भाव कितना विशाल है। यही विशालता हमें यह एहसास दिलाती है कि हमारा असली स्वभाव प्रेम, शांति और आनंद है—न कि डर, चिंता और भय।

९. प्रेम की शक्ति – सभी बाधाओं का पार

प्रेम वह अनंत शक्ति है, जो सभी बाधाओं को पार कर जाती है। जब हम अपने जीवन को प्रेम के साथ जीते हैं, तो हम महसूस करते हैं कि कोई भी चिंता, कोई भी भय हमारे जीवन में जगह नहीं बना पाता। प्रेम का यह स्वरूप तब प्रकट होता है, जब हम अपने आप को उस दिव्य प्रवाह के हवाले कर देते हैं, जो "तेरी मर्जी" के रूप में प्रकट होता है।
एक बार मैंने एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात की, जो अपने जीवन में असीम दुःख और निराशा का अनुभव कर रहा था। उसने हमेशा अपने आप को अपने दुखों के बोझ तले दबा हुआ महसूस किया। लेकिन जब उसने अपने जीवन को प्रेम के साथ जीना शुरू किया, अपने आप को उस दिव्य ऊर्जा में समर्पित किया जो उसके चारों ओर थी, तब धीरे-धीरे उसके जीवन में एक अनोखी शांति और आनंद की अनुभूति होने लगी। वह व्यक्ति अब हर छोटी-बड़ी बात में एक नए उत्साह, एक नए जीवन का अनुभव करने लगा। यह प्रेम ही था जिसने उसके जीवन में परिवर्तन की लहर दौड़ा दी।

१०. उदाहरण: जीवन के दो मोड़

कल्पना कीजिए दो व्यक्ति हैं—अर्जुन और विवेक। अर्जुन अपनी मर्जी, अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीता है। वह हर निर्णय में खुद को शामिल करता है, अपनी योजनाओं के अनुसार ही चलता है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, उसे महसूस होता है कि उसकी जिंदगी में अनचाहे दुख, चिंता और भय का संचार हो रहा है। हर बार जब कुछ भी योजना के अनुसार नहीं होता, तो उसके अंदर का भय और बढ़ जाता है।
वहीं, विवेक ने अपने जीवन का एक दिन ऐसा तय किया जब उसने अपने सभी छोटे-छोटे स्वार्थों और अपेक्षाओं को छोड़कर, अपने जीवन को उस अनंत प्रवाह के हवाले कर दिया। उसने अपने निर्णयों को उस व्यापक चेतना के हाथों में सौंप दिया, जिसे वह "तेरी मर्जी" कहता था। पहले तो उसे लगा कि शायद इससे उसे नियंत्रण खोना पड़ेगा, परंतु धीरे-धीरे उसने देखा कि उसके जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन आया। उसकी चिंता कम होने लगी, उसके अंदर का भय धीरे-धीरे खत्म हो गया, और उसकी जिंदगी में एक अनंत शांति तथा आनंद की लहर दौड़ गई।
इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि जब हम अपने जीवन में नियंत्रण की आवश्यकता छोड़ देते हैं और उसे उस दिव्य प्रवाह के हवाले कर देते हैं, तो हम अपने अंदर की अशांति को दूर कर, एक नए जीवन का अनुभव करते हैं।

११. आत्म-स्वीकृति और समर्पण का महत्व

हमारी "मेरी मर्जी" में हमेशा एक ऐसा संघर्ष होता है, जो हमें अपने आप से दूर कर देता है। हम खुद को जितना बदलना चाहते हैं, उतना बदल नहीं पाते, क्योंकि हमारे भीतर एक ऐसी शक्ति है जो केवल बाहरी दुनिया को नियंत्रित करने की कोशिश करती है। परंतु जब हम आत्म-स्वीकृति की ओर बढ़ते हैं, जब हम अपने अंदर के उस छोटे से बच्चे को, जो हमेशा डर और चिंता में रहता है, उसे स्वीकार करते हैं, तभी हम वास्तव में परिवर्तन का अनुभव कर सकते हैं।
आत्म-स्वीकृति का अर्थ है—अपने सभी पहलुओं, चाहे वे कितने भी दोषपूर्ण क्यों न हों, को स्वीकार करना। यही स्वीकृति हमें उस दिव्य प्रवाह की ओर ले जाती है, जहाँ हम अपनी असली पहचान—प्रेम, शांति और आनंद—को महसूस कर पाते हैं। जब हम अपने आप को पूरी तरह स्वीकार लेते हैं, तब हम उस "तेरी मर्जी" में प्रवेश करते हैं, जहाँ हमारे जीवन में कोई भी बाहरी चिंता, कोई भी भय अपनी जगह नहीं बना पाता।

१२. ओशो की शिक्षाओं में समाहित संदेश

मेरे प्यारे साथियो, ओशो ने हमेशा यह संदेश दिया है कि जीवन का वास्तविक आनंद तभी आता है, जब हम अपने आप को उस अनंत चेतना के हवाले कर देते हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि "जो तेरी मर्जी" का अनुसरण करने से हमारे जीवन में सभी दुख-दर्द, चिंता और भय समाप्त हो जाते हैं।
ओशो कहते हैं कि हमारी "मरीज" सिर्फ हमारे छोटे अहंकार का प्रतिबिंब है। जब हम अपने अहंकार को पीछे छोड़ते हैं, तब हम उस अनंत चेतना के करीब पहुँच जाते हैं, जो हर क्षण हमारे साथ रहती है। उस चेतना में न कोई भय है, न कोई चिंता, केवल शांति और आनंद का अनंत स्रोत है। ओशो ने हमें यह भी बताया कि यह परिवर्तन एक रात में संभव नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है, एक निरंतर साधना है—ध्यान, आत्म-चिंतन और प्रेम की साधना।

१३. अंतर्निहित संदेश – जीवन को एक प्रवाह मानें

अगर हम अपने जीवन को एक प्रवाह के रूप में देखें, तो हमें समझ में आता है कि हमारी "मर्जी" केवल एक छोटी सी धारा है, जो कभी-कभी तेज़, कभी-कभी धीमी हो सकती है। परंतु उस प्रवाह के भीतर एक विशाल समुद्र होता है—वह अनंत, अपरिवर्तनीय शांति, वह अनंत आनंद। हमें अपने आप को उस समुद्र के साथ विलीन कर देना चाहिए।
जब हम इस प्रवाह के साथ बहते हैं, तो हमें हर परिस्थिति में एक नई सीख मिलती है, एक नया अनुभव मिलता है। हमें यह समझ में आता है कि जीवन में हर पल का अपना महत्व है, चाहे वह सुख हो या दुख। यह समझ हमें जीवन के हर पहलू में एक नई दृष्टि प्रदान करती है, जो हमारे मन को और भी अधिक व्यापक, और अधिक प्रेमपूर्ण बना देती है।

१४. समापन – एक नया दृष्टिकोण

अंत में, मैं यही कहूँगा कि यदि हम अपने जीवन को उस दिव्य प्रवाह—उस "तेरी मर्जी" के हवाले कर दें, तो हम पाएंगे कि हमारे अंदर छिपा हुआ भय, चिंता और दुख स्वतः ही गायब हो जाते हैं। हम समझते हैं कि हमारी असली शक्ति हमारे अंदर ही निहित है, और वह शक्ति हमें हर परिस्थिति में संतुलन और शांति प्रदान करती है।
यह एक यात्रा है, एक साधना है—जहाँ हम अपने छोटे स्वार्थों को छोड़, अपने भीतर की असीम शक्ति और शांति को महसूस करते हैं। हमें अपने जीवन के हर अनुभव को, चाहे वह कितना भी दर्दनाक क्यों न हो, एक अध्याय के रूप में स्वीकार करना होगा। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम पाते हैं कि जीवन वास्तव में एक सुंदर यात्रा है, जिसमें हर मोड़ पर कुछ नया सीखने को मिलता है, कुछ नया अनुभव करने को मिलता है।

१५. आज का संदेश – समर्पण की ओर

मेरे प्यारे साथियो, आज का संदेश यह है कि जब हम अपने आप को उस दिव्य चेतना के हवाले कर देते हैं, तो हमारी सारी चिंताएँ, सारे भय और दुख अपने आप गायब हो जाते हैं। हमारी "मेरी मर्जी" हमें हमेशा भ्रमित करती है—हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि हम हर चीज़ को नियंत्रित कर सकते हैं। परंतु असल में, जो भी नियंत्रित होता है, वह हमारे अहंकार की माया है, जो हमें वास्तविकता से दूर कर देती है।
जब हम अपने आप को उस अनंत, अपरिवर्तनीय शांति के हवाले कर देते हैं, तो हमें पता चलता है कि जीवन में जो भी हो रहा है, वह सब एक उच्चतर उद्देश्य की पूर्ति है। हमें बस अपने आप को उस प्रवाह में बहने देना है, और देखना है कि कैसे जीवन अपने आप में एक अद्भुत कला बन जाता है। इस कला में न कोई भय है, न कोई चिंता—बस शांति, प्रेम और आनंद का एक अनंत अनुभव है।

१६. एक व्यक्तिगत अनुभव – जब स्वयं से मिला मेल

मैंने स्वयं अनुभव किया है कि जब मैंने अपने जीवन के उन हिस्सों को छोड़ दिया, जहाँ मैं हर चीज़ को नियंत्रित करने की कोशिश करता था, तब मेरे अंदर एक अद्भुत परिवर्तन हुआ। पहले मैं हमेशा उस डर में रहता था कि कहीं मेरे द्वारा किए गए निर्णय गलत साबित न हो जाएँ, कहीं कोई चीज़ अनहोनी न हो। परंतु जब मैंने अपने आप को उस अनंत चेतना के हवाले कर दिया, तो मैंने महसूस किया कि वास्तव में सब कुछ अपनी जगह सही है।
एक बार मैं एक मंदिर में ध्यान में मग्न था। उस शांति के माहौल में, मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे मेरे अंदर का हर भय, हर चिंता, एक-एक करके गायब हो रही है। उस पल में मैंने जाना कि मेरी "मर्जी" में जितनी भी चिंता थी, वह सब एक भ्रम था। उस समय मुझे लगा कि मैं उस विशाल, असीम शांति का हिस्सा हूँ, जो अनंतकाल से मेरे साथ है। उस अनुभव ने मेरी ज़िंदगी को एक नई दिशा दी—एक ऐसी दिशा, जहाँ अब मैं हर पल को प्रेम और समर्पण के साथ जीता हूँ।

१७. आज के संदर्भ में – आधुनिक जीवन और समर्पण

आज के इस आधुनिक युग में, जहाँ हम निरंतर गति में जीते हैं, हमारे पास समय ही नहीं रहता कि हम अपने अंदर झांक सकें। हम अपनी "मर्जी" में इतने उलझ जाते हैं कि हमें अपनी असली प्रकृति की याद ही नहीं रहती। परंतु यही वह समय है जब हमें सबसे अधिक समर्पण की आवश्यकता है।
जब हम अपने जीवन को उस अनंत प्रवाह के हवाले कर देते हैं, तो न केवल हमारी व्यक्तिगत चिंताएँ मिट जाती हैं, बल्कि हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व एक नए अर्थ में समाहित हो जाता है। हमें यह समझना होगा कि हमारी "तेरी मर्जी" में एक गहरा अर्थ है—वह हमें उस उच्चतर सत्य की ओर ले जाती है, जहाँ हर चीज़ का अपना स्थान, अपना समय और अपनी खूबसूरती होती है।
इस आधुनिक जीवन में, जहां हम निरंतर बाहरी दुनिया की भागदौड़ में रहते हैं, हमें अपने भीतर की शांति, अपने दिल की आवाज़ सुननी होगी। यह आवाज़ हमें यह याद दिलाती है कि हमारा असली स्वभाव प्रेम, शांति और आनंद है। हमें बस उस दिव्य प्रवाह के साथ बहने देना है, और देखना है कि कैसे हमारी सारी परेशानियाँ, सारे भय अपने आप गायब हो जाते हैं।

१८. जीवन की कला – नियंत्रण छोड़, प्रेम अपनाओ

अंततः, जीवन एक कला है, एक ऐसा नृत्य है जिसमें हर कदम, हर मोड़ पर हमें अपनी आत्मा के साथ ताल मिलानी होती है। जब हम अपने जीवन को उस दिव्य प्रेम के हवाले कर देते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे भीतर की हर चिंता, हर भय स्वाभाविक रूप से गायब हो जाता है।
हमें यह समझना होगा कि नियंत्रण की यह आवश्यकता, यह "मेरी मर्जी" की चाह, केवल एक भ्रम है। असली शक्ति तब आती है जब हम उस भ्रम को छोड़, उस अनंत प्रेम और शांति को अपनाते हैं, जो "तेरी मर्जी" में निहित है। यह नृत्य, यह कला हमें यह सिखाती है कि जीवन में हर पल का आनंद लेना है, हर परिस्थिति को प्रेम से स्वीकार करना है, और हर अनुभव में अपनी आत्मा के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करना है।

१९. समर्पण का अंतिम संदेश

मेरे प्रिय साथियो, आज मैं आपको यही संदेश देना चाहता हूँ कि जब भी आप अपने जीवन में किसी भी प्रकार की चिंता, भय या दुख का सामना करें, तो एक पल के लिए रुकें, गहरी साँस लें, और स्वयं से पूछें—"क्या मैं अपने आप को उस अनंत प्रवाह के हवाले कर सकता हूँ, जो मुझे असीम शांति और आनंद देता है?"
यदि आपका उत्तर हाँ है, तो समझ जाइए कि आप उसी पथ पर चल रहे हैं, जहाँ हर अनुभव एक नई सीख, एक नया अध्याय है। जब आप अपने आप को उस उच्चतर चेतना के सामने समर्पित कर देते हैं, तो आप पाते हैं कि जीवन में कोई भी परिस्थिति, कोई भी चुनौती आपके लिए डर का कारण नहीं बन सकती।
समर्पण में ही आपकी असली शक्ति निहित है। यह शक्ति आपको हर बाधा को पार करने, हर मुश्किल को सहने, और अंततः अपने आप को उस दिव्य शांति के हवाले करने में समर्थ बनाती है। यही वह संदेश है जो "तेरी मर्जी" में निहित है—वह संदेश जो कहता है कि जीवन में जितनी भी चुनौतियाँ आएँ, उन्हें प्रेम, समर्पण और शांति से स्वीकार करना ही सबसे बड़ा आनंद है।

२०. निष्कर्ष – जीवन का अद्भुत अनुभव

अंत में, मैं आप सभी से यह आग्रह करता हूँ कि अपने जीवन में उस अनंत प्रेम और शांति को अपनाएं, जो "तेरी मर्जी" में निहित है। अपनी "मर्जी" की सीमाओं को पहचानें, और उसे छोड़कर उस व्यापक चेतना के साथ एकाकार हो जाएं।
इस राह पर चलते-चलते आप पाएंगे कि जीवन में हर पल एक नए अनुभव से भरपूर है, हर क्षण एक अनूठा उपहार है। आपके भीतर का डर, चिंता और असुरक्षा—ये सभी भावनाएँ तब धूमिल हो जाएंगी, जब आप स्वयं को उस अनंत, अपरिवर्तनीय शक्ति के हवाले कर देंगे, जो आपके अंदर और बाहरी दुनिया में निरंतर बह रही है।
इस अद्भुत यात्रा में, आप सीखेंगे कि जीवन में असली आनंद, असली शांति, और असली सफलता वह है, जो बाहरी नियंत्रनों से परे है। यह आनंद केवल उस प्रेम में निहित है, जब आप अपने आप को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं, अपने भीतर की उस दिव्य चेतना के साथ जुड़ जाते हैं।
याद रखिये, मेरे साथियो, जीवन एक अनंत कला है, और आप स्वयं उस कला के कलाकार हैं। जब आप अपने आप को उस अनंत प्रवाह में बहने देते हैं, तो आप पाएंगे कि जीवन में हर दर्द, हर चिंता, और हर भय अपने आप धुंधले हो जाते हैं, और उसकी जगह भर जाती है शांति, प्रेम और असीम आनंद।

तो आइए, आज से इस नए दृष्टिकोण को अपनाएं। अपने आप को उस अनंत शांति में समर्पित करें, जो केवल "तेरी मर्जी" में ही निहित है, और अनुभव करें एक ऐसा जीवन, जहाँ हर दिन एक नई सीख, एक नया अनुभव और एक अनंत आनंद का स्रोत बन जाए। यही है उस दिव्य संदेश का सार, जिसे ओशो ने हमें समझाने का प्रयास किया है—कि जब भी हम अपने आप को उस अनंत चेतना के हवाले कर देते हैं, तो हमारे जीवन से सभी दुख, चिंता और भय अपने आप गायब हो जाते हैं, और हमारे अस्तित्व में एक अनंत शांति और आनंद समा जाता है।

मेरे प्यारे मित्रों, इस प्रवचन के माध्यम से मैं आपसे यही कहना चाहता हूँ कि जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश छोड़ दें, और उस व्यापक प्रेम और शांति को अपनाएं जो आपके भीतर हमेशा से विद्यमान है। अपने छोटे स्वार्थों को त्याग कर, अपने अंदर की उस अनंत शक्ति को महसूस करें, और अनुभव करें एक ऐसा जीवन, जो हर पल आपको याद दिलाता है—आप स्वयं में, आप अपने आप में एक अनंत स्रोत हैं, एक दिव्य शक्ति हैं।
आज, इस क्षण में, अपने आप से यह वचन लें कि आप जीवन की इस अनंत यात्रा में अपने दिल को खोल देंगे, समर्पण की राह पर चलेंगे, और उस शांति एवं आनंद को अपनाएंगे जो "तेरी मर्जी" में निहित है।
इस प्रकार, आपकी ज़िंदगी न केवल एक कहानी बनेगी, बल्कि वह एक अद्भुत प्रवाह बन जाएगी, जहाँ हर मोड़ पर आपको मिलेगी शांति, हर अनुभव में आपको मिलेगा आनंद, और हर पल आपको याद दिलाएगा—कि असली शक्ति, असली सफलता, और असली खुशी आपके भीतर ही है, न कि बाहरी नियंत्रित योजनाओं में।
इस प्रवचन का यही सार है—जीवन को उस दिव्य प्रवाह के हवाले करें, जहाँ आपकी आत्मा को मिले अनंत शांति, प्रेम और आनंद। यही वह मार्ग है, यही वह सत्य है, जो हमें बताता है कि "मेरी मर्जी में चिंता है, भय है; परंतु तेरी मर्जी में शांति है, आनंद है।"

आशा है कि इस प्रवचन के माध्यम से आप सभी को अपने जीवन के उन पहलुओं को पहचानने में मदद मिलेगी, जहाँ आप अपनी "मर्जी" को छोड़, उस व्यापक चेतना में विलीन हो सकते हैं। यही वह मार्ग है, जिसके द्वारा हम अपने जीवन को एक नए, असीम आनंद और शांति के साथ जी सकते हैं।
धन्यवाद, और याद रखिए—जीवन का असली आनंद तभी है, जब हम अपने आप को उस अनंत प्रेम और शांति के हवाले कर देते हैं, जो हमारी आत्मा में निहित है।

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