परिचय: ओशो के विचारों का दर्शन

ओशो के विचार सदैव जीवन के गहरे रहस्यों और मानवीय चेतना पर आधारित होते हैं। वे हमें उन सत्यों को देखने और समझने के लिए प्रेरित करते हैं जो अक्सर हमारी आँखों के सामने होते हैं, लेकिन हम उन्हें देखने में असमर्थ होते हैं। उनके शब्द हमें जीवन के उन पहलुओं पर ध्यान देने के लिए कहते हैं, जिनके बारे में हम सामान्य रूप से ध्यान नहीं देते। ओशो का यह विचार "जो शेष बची है, उसे ही विशेष बनाइये अन्यथा अवशेष तो होना ही है!!" हमें जीवन के उन बचे हुए समय और संसाधनों को विशेष बनाने के लिए प्रेरित करता है। इस कथन के माध्यम से ओशो हमें याद दिलाते हैं कि यदि हम अपने शेष बचे जीवन या अवसरों का सही उपयोग नहीं करेंगे, तो वे अंततः अवशेष मात्र बनकर रह जाएंगे।

इस लेख में, हम इस विचार के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझेंगे। हम जानेंगे कि शेष बचे हुए को विशेष कैसे बनाया जा सकता है, और यदि हम ऐसा नहीं कर पाते तो अवशेष बनने की क्या प्रक्रिया हो सकती है। साथ ही, हम इस विचार को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे व्यक्तिगत विकास, संबंध, और समाज के संदर्भ में समझने का प्रयास करेंगे।

1. वर्तमान की महत्ता: शेष समय का विशेष होना

ओशो का यह कथन हमें जीवन के उस अनमोल उपहार की याद दिलाता है, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं—वर्तमान समय। जीवन में जो समय बचा है, वह अमूल्य है, और हमें उसे विशेष बनाने के लिए काम करना चाहिए। यदि हम अपने शेष बचे समय को विशेष नहीं बनाते, तो हम केवल उस समय के अवशेषों को पीछे छोड़ जाते हैं।

1.1 वर्तमान को स्वीकारना

वर्तमान को स्वीकारने का अर्थ है कि हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पास जो समय शेष है, वह अब तक के समय से अधिक महत्वपूर्ण है। अक्सर लोग अपने अतीत में खोए रहते हैं या भविष्य के सपनों में लिप्त रहते हैं, लेकिन ओशो हमें सिखाते हैं कि जीवन वास्तव में वर्तमान में जीया जाता है। जो समय अभी हमारे पास है, वही वास्तविक है। इसलिए, यदि हम वर्तमान को विशेष नहीं बनाते, तो यह समय भी बीत जाएगा और केवल यादों का अवशेष बनकर रह जाएगा।

उदाहरण:

मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की उम्र बढ़ रही है और उसे लगता है कि उसके जीवन का सर्वोत्तम समय बीत चुका है। अगर वह इस सोच में उलझा रहता है कि उसका अतीत ही सबसे अच्छा समय था, तो वह अपने शेष बचे जीवन को भी साधारण बना देगा। लेकिन अगर वह यह सोचे कि उसका शेष जीवन भी उतना ही विशेष हो सकता है, तो वह अपने वर्तमान को अर्थपूर्ण और विशेष बना सकता है। यह दृष्टिकोण उसे नए अनुभवों और आनंद की दिशा में ले जा सकता है।

1.2 वर्तमान को विशेष बनाने के तरीके

वर्तमान को विशेष बनाने के कई तरीके हो सकते हैं। सबसे पहले, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि विशेष होने का अर्थ केवल बड़े-बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करना नहीं है। जीवन में छोटी-छोटी चीज़ों का आनंद लेना, रोजमर्रा के कार्यों में ख़ुशी ढूंढना, और अपने अनुभवों से सीखते हुए आगे बढ़ना भी एक विशेष जीवन का हिस्सा है। 

उदाहरण:

मान लीजिए कि कोई व्यक्ति अपने काम से थक चुका है और उसे अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में कोई उत्साह नहीं दिखता। लेकिन अगर वह अपने काम के हर छोटे-छोटे पहलुओं को महत्वपूर्ण मानने लगे, तो उसका दृष्टिकोण बदल सकता है। वह हर दिन अपने काम में कुछ नया खोजने की कोशिश करेगा, और इसी प्रक्रिया में वह अपने जीवन को विशेष बना सकेगा।

2. अवशेष का अर्थ: जो शेष नहीं हुआ, वह अवशेष बनता है

ओशो का यह कथन हमें यह भी बताता है कि अगर हम अपने शेष जीवन को विशेष नहीं बनाते, तो अंततः यह अवशेष बन जाता है। अवशेष का अर्थ है कि जो बचा हुआ है, वह अब उपयोगी नहीं है। यह केवल अतीत की एक छाया है, जो वर्तमान में कोई मायने नहीं रखती। 

2.1 अवशेष बनने की प्रक्रिया

जब हम अपने जीवन में शेष बचे हुए अवसरों को नजरअंदाज कर देते हैं, तो वे धीरे-धीरे अवशेष बन जाते हैं। इसका अर्थ है कि हम उन अवसरों को खो देते हैं, जो हमें जीवन को विशेष बनाने का मौका देते हैं। यदि हम समय रहते यह नहीं समझते कि जो बचा हुआ है, उसे हमें किस प्रकार से विशेष बनाना है, तो यह समय भी बर्बाद हो जाएगा और केवल पछतावे के रूप में पीछे छूट जाएगा।

उदाहरण:

किसी व्यक्ति को यह सोचते हुए सालों बीत जाते हैं कि वह एक दिन अपने सपनों का पीछा करेगा। लेकिन जब वह अंततः समझता है कि वह समय अब बीत चुका है, तो वह केवल पछतावा और हताशा के साथ रहता है। उसके पास अब शेष कुछ नहीं है, क्योंकि उसने अपने बचे हुए समय को विशेष बनाने का अवसर खो दिया। इस प्रकार, वह समय उसके लिए केवल अवशेष बनकर रह जाता है।

2.2 अवशेष का प्रभाव

अवशेष केवल भौतिक चीज़ों तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह हमारी मानसिक स्थिति और भावनात्मक दुनिया पर भी गहरा प्रभाव डालता है। जब हम अपने जीवन में बचे हुए अवसरों को विशेष नहीं बनाते, तो यह मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी हमें कमजोर कर देता है। हम खुद को अधूरा और असंतुष्ट महसूस करते हैं, क्योंकि हमने अपने जीवन को विशेष बनाने के अवसरों को खो दिया होता है। 

उदाहरण:

किसी व्यक्ति ने जीवनभर यह सोचते हुए समय बिताया कि वह अपने रिश्तों में सुधार करेगा, लेकिन उसने कभी कोई प्रयास नहीं किया। जब वह अंततः अपने जीवन के अंतिम चरण में पहुंचता है, तो उसे यह अहसास होता है कि उसके पास अब अपने रिश्तों को सुधारने का समय नहीं बचा है। यह अहसास उसे भावनात्मक रूप से कमजोर कर देता है, और उसके रिश्ते भी केवल अवशेष बनकर रह जाते हैं।

3. जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ओशो का यह विचार

ओशो का यह विचार केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है। चाहे वह हमारे संबंध हों, करियर हो, या समाज में हमारी भूमिका, हर क्षेत्र में यह विचार लागू होता है कि हमें जो बचा है, उसे विशेष बनाना चाहिए।

3.1 संबंधों में शेष बचे को विशेष बनाना

संबंधों में भी अक्सर ऐसा होता है कि हम अपने प्रियजनों के साथ बिताए समय को साधारण मानते हैं। हम यह मान लेते हैं कि हमारे पास हमेशा समय रहेगा और इसलिए हम अपने रिश्तों को उतना महत्व नहीं देते जितना देना चाहिए। लेकिन ओशो का यह विचार हमें यह सिखाता है कि जो समय हमारे पास बचा है, उसे विशेष बनाना जरूरी है। 

उदाहरण:

किसी माता-पिता को यह समझना चाहिए कि उनके बच्चों के साथ बिताया गया हर पल अमूल्य है। यदि वे इस समय को विशेष नहीं बनाते, तो एक दिन यह समय अवशेष बनकर रह जाएगा, और तब वे केवल पछतावा करेंगे कि उन्होंने अपने बच्चों के साथ बेहतर समय नहीं बिताया।

3.2 करियर में शेष बचे को विशेष बनाना

करियर में भी यह विचार लागू होता है। अक्सर लोग अपने करियर के अंत में यह महसूस करते हैं कि उन्होंने अपने काम को केवल एक दिनचर्या के रूप में लिया और उसमें कोई विशेषता नहीं खोजी। लेकिन ओशो का यह विचार हमें यह सिखाता है कि करियर में भी हमें जो शेष बचा है, उसे विशेष बनाने का प्रयास करना चाहिए।

उदाहरण:

किसी व्यक्ति को अपने करियर के आखिरी सालों में यह सोचने के बजाय कि अब कुछ नया नहीं हो सकता, उसे यह सोचकर काम करना चाहिए कि वह अब भी कुछ खास कर सकता है। यह दृष्टिकोण उसे अपने काम में नई प्रेरणा देगा और उसे अपने करियर के अंतिम वर्षों को विशेष बनाने में मदद करेगा।

3.3 समाज में हमारी भूमिका

ओशो का यह विचार समाज में हमारी भूमिका पर भी लागू होता है। हम समाज में अपनी जिम्मेदारियों को अक्सर हल्के में लेते हैं, यह सोचते हुए कि दूसरों को इसकी चिंता करनी चाहिए। लेकिन यदि हम यह समझें कि समाज में हमारी भूमिका भी विशेष हो सकती है, तो हम अपने योगदान को और अधिक महत्वपूर्ण बना सकते हैं।

उदाहरण:

एक व्यक्ति जो सामाजिक कार्य में शामिल है, उसे यह समझना चाहिए कि उसका हर योगदान महत्वपूर्ण है। यदि वह अपने काम को साधारण समझकर उसे हल्के में लेता है, तो वह समाज में अपनी भूमिका को विशेष नहीं बना पाएगा। लेकिन यदि वह अपने काम को विशेष महत्व देकर उसे पूरी ऊर्जा और ध्यान के साथ करता है, तो उसका योगदान समाज के लिए भी विशेष हो सकता है।

4. ओशो का संदेश: जीवन को पूर्णता की ओर ले जाना

ओशो का यह कथन हमें जीवन के उन पहलुओं की ओर ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। उनका यह संदेश है कि हमें जो शेष बचा है, उसे विशेष बनाना चाहिए, अन्यथा वह केवल अवशेष बनकर रह जाएगा। यह संदेश हमें जीवन के हर क्षेत्र में जागरूकता और प्रयास की आवश्यकता को समझने की प्रेरणा देता है।

4.1 जीवन की पूर्णता का अर्थ

जीवन की पूर्णता का अर्थ है कि हम अपने जीवन के हर पहलू को पूरी तरह से जीएं और उसे विशेष बनाएं। यह केवल बाहरी उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी आंतरिक संतुष्टि और मानसिक शांति से भी जुड़ा है। 

उदाहरण:

किसी व्यक्ति ने जीवनभर सफलता की दौड़ में भाग लिया, लेकिन अंत में उसे यह अहसास होता है कि उसकी असली संतुष्टि उसके परिवार, दोस्तों, और व्यक्तिगत संबंधों में थी। इस अहसास के बाद, वह अपने बचे हुए समय को विशेष बनाने का प्रयास करता है और अपने संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है। यह उसकी जीवन की पूर्णता की ओर यात्रा है।

4.2 जागरूकता और प्रयास की आवश्यकता

ओशो का यह विचार हमें यह भी सिखाता है कि जीवन को विशेष बनाने के लिए जागरूकता और प्रयास की आवश्यकता होती है। यदि हम अपने जीवन के हर पहलू में जागरूक रहते हैं और उसे विशेष बनाने के लिए प्रयास करते हैं, तो हम अपने जीवन को अर्थपूर्ण और संतुष्टिपूर्ण बना सकते हैं।

उदाहरण:

किसी व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि उसका हर कार्य महत्वपूर्ण है, और यदि वह उसे पूरी ऊर्जा और जागरूकता के साथ करता है, तो वह उसे विशेष बना सकता है। चाहे वह अपने परिवार के साथ समय बिताना हो, अपने काम में योगदान देना हो, या समाज के लिए कुछ करना हो, हर कार्य को विशेष बनाने के लिए जागरूकता और प्रयास की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

ओशो का यह कथन, "जो शेष बची है, उसे ही विशेष बनाइये अन्यथा अवशेष तो होना ही है!!" जीवन के प्रति एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने शेष बचे समय, अवसरों, और संसाधनों को विशेष बनाने के लिए काम करना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते, तो वे केवल अवशेष बनकर रह जाएंगे। 

यह संदेश हमें जीवन के हर पहलू में जागरूकता, प्रयास, और संतुलन की आवश्यकता को समझने के लिए प्रेरित करता है। चाहे वह व्यक्तिगत विकास हो, संबंधों में सुधार हो, या समाज में हमारी भूमिका हो, हमें हर क्षेत्र में जो शेष बचा है, उसे विशेष बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। यही जीवन की पूर्णता की ओर यात्रा है, जो हमें आत्मिक शांति, संतोष, और सच्ची खुशी की ओर ले जाती है।

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