ओशो के इस कथन का गहन अर्थ हमें जीवन के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए प्रेरित करता है। यह विचार सरल प्रतीत हो सकता है, लेकिन इसका प्रभाव अत्यधिक गहरा और दूरगामी है। ओशो ने हमेशा वर्तमान में जीने की बात की है और उनकी शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है कि हमें अपने जीवन में चिंता और भय से मुक्त रहकर वर्तमान क्षण का स्वागत करना चाहिए।
चिंता और भय की वास्तविकता
ओशो के अनुसार, चिंता और भय मनुष्य के मस्तिष्क द्वारा उत्पन्न किए गए विचार हैं जो हमें भविष्य के बारे में अनिश्चितताओं से डराते हैं। जब व्यक्ति चिंता में डूब जाता है, तो वह वर्तमान को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देता है और एक असत्य, खयाली भविष्य में जीने लगता है।
वह यह बताते हैं कि हम मनुष्य अपने भविष्य को लेकर इतनी चिंता में डूब जाते हैं, जैसे कि हम हजारों साल जिएंगे। परंतु सच्चाई यह है कि हमारे पास अगला पल भी सुनिश्चित नहीं है। जीवन अनिश्चित और अप्रत्याशित है। हम जीवन की अनिश्चितताओं को स्वीकार करने की बजाय, अपने विचारों और चिंताओं में फंस जाते हैं।
90% चिंताएं वास्तविक नहीं होती
ओशो का यह कहना कि जिन चिंताओं में हम डूबे रहते हैं, उनमें से 90% कभी सच नहीं होती, यह हमारे विचारों की वास्तविकता को दर्शाता है। वैज्ञानिक अध्ययन भी बताते हैं कि अधिकतर चिंताएं महज हमारी कल्पनाओं का परिणाम होती हैं। हम उन समस्याओं के बारे में सोचते हैं जो अभी तक आई ही नहीं हैं और शायद कभी आएंगी भी नहीं।
मानव मस्तिष्क अक्सर खतरे या नकारात्मक परिणामों की ओर अधिक झुकाव रखता है। इस प्रवृत्ति को 'निगेटिविटी बायस' कहा जाता है। इस कारण हम अक्सर अज्ञात खतरों की कल्पना करने लगते हैं और उन्हें वास्तविकता मानकर चिंता करने लगते हैं। लेकिन यह चिंता हमें केवल मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से कमजोर करती है, जिससे हमारा जीवन असंतुलित हो जाता है।
आधुनिक संदर्भ में ओशो के विचार
आज की आधुनिक दुनिया में चिंता का स्तर अत्यधिक बढ़ गया है। एक ओर तकनीकी प्रगति ने जीवन को सरल बनाया है, वहीं दूसरी ओर इसने हमारी चिंताओं को भी कई गुना बढ़ा दिया है। लोग अपने भविष्य के बारे में अधिक चिंता करने लगे हैं—चाहे वह करियर हो, वित्तीय स्थिति हो, या व्यक्तिगत संबंध।
सोशल मीडिया, आर्थिक अनिश्चितता, और करियर के प्रति दबाव ने हमें इस हद तक प्रभावित किया है कि हम वर्तमान को नजरअंदाज कर भविष्य की अस्थिरताओं में डूब जाते हैं।
सोशल मीडिया का प्रभाव
आजकल, सोशल मीडिया पर लोग अपने जीवन की एक खूबसूरत तस्वीर दिखाते हैं। लेकिन वास्तविकता में, इसके पीछे बहुत सी चिंताएं और असंतोष छिपा होता है। हम अन्य लोगों के जीवन से अपने जीवन की तुलना करने लगते हैं और यह सोचते हैं कि हमें भी उसी तरह का जीवन जीना चाहिए। यह तुलना और प्रतिस्पर्धा हमें भविष्य के प्रति चिंतित और असुरक्षित बनाती है।
ओशो का यह कथन हमें इस मानसिकता से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करता है। वह यह बताते हैं कि हमें अपने वर्तमान जीवन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और भविष्य की फालतू चिंताओं से खुद को मुक्त करना चाहिए।
वर्तमान में जीने की कला
ओशो का संदेश केवल चिंता से मुक्त होने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हमें "वर्तमान में जीने" की शिक्षा भी देते हैं। वह बताते हैं कि जीवन का वास्तविक आनंद केवल वर्तमान क्षण में ही है। भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है, और जब हम भविष्य की चिंता में डूब जाते हैं, तो हम अपने वर्तमान को खो देते हैं।
माइंडफुलनेस और ध्यान
माइंडफुलनेस और ध्यान जैसी तकनीकें ओशो के विचारों का प्रतीक हैं। माइंडफुलनेस का सिद्धांत यही है कि हम अपने मन को वर्तमान क्षण में केंद्रित रखें और उस क्षण के हर अनुभव का पूरी तरह से अनुभव करें। ध्यान भी इसी बात पर केंद्रित है—विचारों की भीड़ से मुक्त होकर केवल वर्तमान में जीने की कला।
वर्तमान समय में माइंडफुलनेस और ध्यान की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि यह तकनीकें लोगों को मानसिक शांति, चिंता से मुक्ति और बेहतर जीवन जीने की ओर अग्रसर करती हैं। ओशो के विचार भी इन्हीं प्रथाओं पर आधारित थे—वह मानते थे कि अगर हम ध्यान द्वारा अपने मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकें, तो चिंता और भय का अंत हो जाएगा।
जीवन की अनिश्चितता को गले लगाना
ओशो के विचार में जीवन की अनिश्चितता को गले लगाना बेहद महत्वपूर्ण है। हम इस भ्रम में जीते हैं कि हमारा भविष्य सुरक्षित और निश्चित होगा। लेकिन सच्चाई यह है कि कुछ भी निश्चित नहीं है। ओशो का संदेश हमें यह सिखाता है कि अनिश्चितता ही जीवन का मूल तत्व है।
अनिश्चितता को अपनाने का मतलब है कि हम अपने जीवन के हर क्षण को बिना किसी चिंता या भय के जी सकते हैं। यह हमें सिखाता है कि जीवन का हर पल महत्वपूर्ण है और हमें उसे पूरी तरह से अनुभव करना चाहिए।
निस्सारता को स्वीकार करना
ओशो हमें यह भी समझाते हैं कि हमारे द्वारा अनुभव की गई 90% चिंताएं न केवल निराधार होती हैं, बल्कि वे निस्सार भी होती हैं। वे जीवन के लिए कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं देतीं। इसलिए, हमें इन चिंताओं से मुक्त होकर जीवन के सरल और सच्चे पक्ष की ओर ध्यान देना चाहिए।
वह यह कहते हैं कि जीवन केवल इस क्षण में ही होता है, और अगर हम उस क्षण में पूरी तरह से उपस्थित नहीं होते, तो हम जीवन से चूक जाते हैं।
निष्कर्ष
ओशो का यह कथन हमें जीवन के वास्तविक स्वरूप को समझने की दिशा में एक गहरा संदेश देता है। चिंता, भय और भविष्य की अस्थिरताओं में डूबे रहना केवल हमें वर्तमान से दूर ले जाता है।
हमारा जीवन केवल उस क्षण में होता है जब हम उसे पूरी तरह से जीते हैं, न कि उन चिंताओं में जो अभी तक अस्तित्व में नहीं आई हैं। ओशो के अनुसार, अगर हम वर्तमान को पूरी तरह से स्वीकार करें और जीवन की अनिश्चितताओं को गले लगाएं, तो हम एक संतुलित, शांतिपूर्ण और आनंदपूर्ण जीवन जी सकते हैं।
इसलिए, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम अपने मन को चिंताओं और भय से मुक्त रखें और वर्तमान में पूरी तरह से उपस्थित रहें। यही ओशो का सच्चा संदेश है, और यह संदेश आज की दुनिया में भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि उनके समय में था।
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