समझौता करना कायरता है। सत्य कभी समझौता नहीं करता। - ओशो
यह कथन एक गहरी और विचारशील परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करता है, जो ओशो की दार्शनिक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण अंश है। इसे समझने के लिए, हमें सबसे पहले 'समझौता' और 'सत्य' के अर्थ और उनके बीच के संबंध को समझना होगा।
1. समझौता: एक विश्लेषण
समझौता आमतौर पर तब किया जाता है जब दो या अधिक पक्ष एक दूसरे के विचारों या आवश्यकताओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करते हैं। यह अक्सर सामाजिक, राजनीतिक, या व्यक्तिगत स्तर पर होता है। समझौता एक ऐसी प्रक्रिया है जहां कोई व्यक्ति अपने सिद्धांतों, मान्यताओं या मूल्यों को किसी अन्य के साथ तालमेल बैठाने के लिए त्यागता है।
उदाहरण:
यदि एक व्यक्ति को सत्य का ज्ञान हो और वह अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए उसे छुपा ले या बदल दे, तो यह समझौता है। मान लीजिए कि एक व्यापारी जानता है कि उसका उत्पाद दोषपूर्ण है, फिर भी वह उसे बेचता है, तो यह समझौता है। ऐसा करके वह न केवल अपने सिद्धांतों से समझौता करता है, बल्कि अपने ग्राहकों के विश्वास से भी समझौता करता है।
2. कायरता का अर्थ और उससे जुड़ा भय
कायरता का तात्पर्य भय या कमजोरी से होता है, जिसमें व्यक्ति अपने सिद्धांतों या मान्यताओं को दूसरों के दबाव में आकर त्याग देता है। कायरता में व्यक्ति सत्य को जानने के बावजूद, समाज के दबाव, लालच या भय के कारण उसे स्वीकार नहीं करता।
उदाहरण:
जब एक व्यक्ति अपने कार्यस्थल पर किसी अनैतिक गतिविधि को देखता है और अपने व्यक्तिगत लाभ के कारण उसे अनदेखा कर देता है, तो वह कायरता का परिचय देता है। ऐसा व्यक्ति सत्य से समझौता करता है क्योंकि वह किसी संभावित नुकसान से डरता है। यह समझौता उसी की कमजोरी और कायरता को दर्शाता है।
3. सत्य: एक अनमोल मूल्य
सत्य, वह शाश्वत और अपरिवर्तनीय तत्व है जो किसी भी परिस्थिति में बदलता नहीं है। सत्य एक ऐसा मूल्य है जो किसी भी प्रकार के समझौते से मुक्त होता है। सत्य को परिभाषित करना कठिन है, लेकिन इसे अनुभव किया जा सकता है। सत्य के प्रति ईमानदारी, साहस और स्पष्टता की आवश्यकता होती है।
उदाहरण:
महात्मा गांधी के जीवन को देखिए। उन्होंने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, चाहे उन्हें कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो। गांधीजी ने सत्य को अपने जीवन का मूल मंत्र बनाया और दुनिया को यह सिखाया कि सत्य से कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
4. सत्य और समझौता: एक संघर्ष
ओशो का यह कथन बताता है कि सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को कभी समझौता नहीं करना चाहिए, क्योंकि सत्य अपने आप में पूर्ण होता है। जब हम सत्य को समझते हैं, तो हम जानते हैं कि उसमें कोई समझौता नहीं हो सकता। सत्य केवल वही है जो है; उसमें कोई बदलाव, सुधार या संशोधन की आवश्यकता नहीं होती।
उदाहरण:
भगवान बुद्ध के जीवन को देखें। उन्हें ज्ञान प्राप्त होने के बाद, उन्होंने सत्य को जान लिया और उसके प्रति अडिग रहे। उन्होंने किसी भी प्रकार के समाजिक या धार्मिक दबाव के सामने झुककर समझौता नहीं किया।
5. समझौता और कायरता के बीच का संबंध
ओशो यह स्पष्ट करते हैं कि समझौता करना कायरता है क्योंकि यह उस व्यक्ति की आंतरिक कमजोरी को दर्शाता है जो सत्य का सामना करने में असमर्थ होता है। जब व्यक्ति अपने भय, लालच या दबाव के कारण समझौता करता है, तो वह न केवल सत्य से दूर हो जाता है बल्कि वह अपनी आंतरिक शक्ति को भी खो देता है।
उदाहरण:
मान लीजिए कि एक न्यायाधीश जो सच्चाई को जानता है, लेकिन सामाजिक या राजनीतिक दबाव के कारण न्याय से समझौता करता है, तो यह उसकी कायरता का प्रतीक है। वह सत्य को जानने के बावजूद उसे अनदेखा करता है और एक गलत निर्णय लेता है। यह समझौता न केवल उसके पेशे की गरिमा को कम करता है, बल्कि समाज में भी अन्याय को बढ़ावा देता है।
6. सत्य का साहस
सत्य का सामना करना और उसके साथ खड़ा रहना साहस का कार्य है। यह साहस केवल उन लोगों में होता है जो अपने अंदर की गहराई को समझते हैं और बाहरी दबावों से नहीं डरते। सत्य के मार्ग पर चलने के लिए व्यक्ति को अपने अंदर की शक्ति और आत्मविश्वास को विकसित करना होता है।
उदाहरण:
स्वामी विवेकानंद के जीवन में भी सत्य के प्रति एक दृढ़ता दिखाई देती है। उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया और समाज में धार्मिक अंधविश्वास और कुरीतियों के खिलाफ हमेशा आवाज उठाई।
7. निष्कर्ष: समझौता करना और सत्य का अपमान
ओशो के इस कथन का सार यह है कि जब हम समझौता करते हैं, तो हम अपने सत्य और आत्मा से समझौता करते हैं। यह समझौता हमें कमजोर बनाता है और हमें कायरता की ओर धकेलता है। सत्य को अपनाने और उसके साथ खड़ा रहने में ही वास्तविक शक्ति और स्वतंत्रता है।
समझौता और कायरता को त्यागकर सत्य को अपनाना ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य होना चाहिए। सत्य कभी समझौता नहीं करता, और इसलिए हमें भी सत्य के साथ अडिग रहना चाहिए।
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