प्रस्तावना: ओशो के विचारों का परिचय

ओशो, जिन्हें भगव़ान रजनीश के नाम से भी जाना जाता है, 20वीं शताब्दी के एक प्रमुख और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनके विचार और दृष्टिकोण ने जीवन, प्रेम, धर्म, और अस्तित्व के गहरे रहस्यों को समझने में लाखों लोगों की सहायता की है। ओशो के विचार समय के पार जाते हैं, और वे मनुष्य की चेतना, आत्मा और अस्तित्व की गहराई तक पहुंचते हैं। उनके अनुसार, जीवन में आकर्षण और अनाकर्षण के खेल का एक गहरा अर्थ है, जो व्यक्ति के विकास और उसकी समझ के लिए आवश्यक है।

ओशो का विचार: 

"प्रकृति की बड़ी गहन रचना है, जो मिल जाए उसमें आकर्षण समाप्त हो जाता है, जो न मिले तो आकर्षण बना रहता है" 

ओशो के इस कथन में जीवन की एक बुनियादी सच्चाई को उजागर किया गया है। उन्होंने इस विचार के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की है कि मनुष्य का मन हमेशा उस चीज़ की ओर आकर्षित होता है जो उसे प्राप्त नहीं हो पाती। यह मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण है कि हमारे भीतर की चाहतें और इच्छाएं तब तक प्रबल रहती हैं, जब तक वे पूरी नहीं होतीं। लेकिन जैसे ही वे पूरी हो जाती हैं, आकर्षण समाप्त हो जाता है और मन कुछ नया तलाशने लगता है।

आकर्षण और अनाकर्षण का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

मनुष्य का मन एक विचित्र और जटिल रचना है। यह हमेशा कुछ नया चाहता है, कुछ अनजाना, कुछ ऐसा जो उसके पास नहीं है। इस खोज और चाहत का परिणाम यह होता है कि मनुष्य हमेशा अपने वर्तमान से असंतुष्ट रहता है और भविष्य के किसी अप्राप्त सुख की कल्पना करता रहता है। यह स्थिति जीवन के हर पहलू में दिखाई देती है, चाहे वह भौतिक सुख हो, प्रेम हो, या आत्मिक शांति।

उदाहरण:

एक व्यक्ति जब एक नया घर खरीदने का सपना देखता है, तो वह उस घर की हर छोटी-बड़ी बात के बारे में सोचता रहता है। वह उस घर में रहने की कल्पना करता है, उसकी सजावट, वहां की शांति, और उस स्थान पर बिताए जाने वाले समय के बारे में सोचता है। लेकिन जब वह वास्तव में उस घर को खरीद लेता है, तो धीरे-धीरे उसका आकर्षण कम होने लगता है। अब वह फिर से किसी और चीज़ की तलाश में लग जाता है। यह चक्र अनवरत चलता रहता है।

ओशो ने इस मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति को गहराई से समझाया है। उनका कहना है कि आकर्षण का यह खेल केवल बाहरी वस्तुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे आंतरिक जीवन में भी लागू होता है। जब तक कोई चीज़ हमें प्राप्त नहीं होती, हम उसे पाने के लिए बेचैन रहते हैं। लेकिन जैसे ही वह चीज़ हमारे पास आ जाती है, उसकी चमक फीकी पड़ने लगती है। यह प्रक्रिया हमें बार-बार नई चीज़ों की तलाश में लगाती है, जिससे हम कभी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाते।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण और ओशो की शिक्षाएं

ओशो के इस विचार में गहरे आध्यात्मिक अर्थ छिपे हैं। उन्होंने कहा है कि जब तक हम बाहरी वस्तुओं और इच्छाओं के पीछे भागते रहेंगे, तब तक हम कभी भी सच्ची शांति और संतोष प्राप्त नहीं कर पाएंगे। क्योंकि हर बार जब हम कुछ प्राप्त करते हैं, तो उसका आकर्षण समाप्त हो जाता है और हम कुछ नया पाने की इच्छा में जुट जाते हैं। यह हमें बाहरी संसार में उलझाए रखता है और हमारी आत्मा को कभी शांति नहीं मिल पाती।

ओशो के अनुसार, यह आवश्यक है कि हम अपनी इच्छाओं और आकर्षणों को समझें और यह जानें कि सच्चा संतोष और शांति केवल भीतर से ही प्राप्त हो सकती है। बाहरी वस्तुओं में केवल अस्थायी सुख और आकर्षण होता है, जबकि आंतरिक शांति और संतोष स्थायी होते हैं। इसके लिए हमें अपनी चेतना को उच्च स्तर पर उठाने की आवश्यकता है, जहां हम बाहरी वस्तुओं और इच्छाओं के परे जाकर अपने भीतर की सच्चाई को समझ सकें।

उदाहरण:

उदाहरण के रूप में, प्रेम को लें। जब कोई व्यक्ति प्रेम में होता है, तो वह उस व्यक्ति के साथ हर क्षण बिताने की इच्छा करता है। लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति उसे पूरी तरह से मिल जाता है, प्रेम का आकर्षण धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसके पीछे का कारण यह है कि प्रेम केवल एक भावनात्मक स्थिति नहीं है, बल्कि यह आत्मा की गहराई से जुड़ा होता है। जब हम केवल बाहरी प्रेम में उलझ जाते हैं, तो वह आकर्षण समाप्त हो जाता है। लेकिन जब हम प्रेम को एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में समझते हैं, तो वह प्रेम कभी खत्म नहीं होता।

ओशो ने इस विचार को गहराई से समझाने के लिए अनेक उदाहरण दिए हैं। उन्होंने कहा है कि जब तक हम किसी चीज़ के पीछे भागते रहेंगे, हम उससे कभी भी सच्चा सुख प्राप्त नहीं कर पाएंगे। हमें अपने भीतर की यात्रा करनी होगी, जहां सच्चा आकर्षण और सच्चा संतोष पाया जा सकता है।

ओशो के विचारों का सार और जीवन में उनकी प्रासंगिकता

ओशो के इस विचार का सार यह है कि मनुष्य का मन हमेशा बाहरी वस्तुओं और इच्छाओं की ओर आकर्षित होता है, लेकिन वे उसे कभी भी स्थायी संतोष नहीं दे पातीं। इसके पीछे का कारण यह है कि आकर्षण केवल तब तक बना रहता है, जब तक वह वस्तु अप्राप्त होती है। जैसे ही वह वस्तु प्राप्त हो जाती है, उसका आकर्षण समाप्त हो जाता है और मनुष्य किसी और चीज़ की ओर आकर्षित होने लगता है।

जीवन में इस विचार की प्रासंगिकता बहुत महत्वपूर्ण है। हम सभी किसी न किसी रूप में इस आकर्षण और अनाकर्षण के खेल में उलझे हुए हैं। हम हमेशा कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ अधिक पाने की इच्छा में लगे रहते हैं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि सच्चा संतोष और शांति केवल भीतर से ही प्राप्त हो सकते हैं। बाहरी वस्तुएं और इच्छाएं हमें अस्थायी सुख दे सकती हैं, लेकिन वे हमें स्थायी शांति और संतोष नहीं दे सकतीं।

ओशो के विचार हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपनी इच्छाओं और आकर्षणों को समझना चाहिए और यह जानना चाहिए कि वे हमें कहां ले जा रहे हैं। हमें यह भी समझना चाहिए कि सच्चा संतोष केवल आत्म-ज्ञान और आत्म-निरीक्षण से ही प्राप्त हो सकता है। इसके लिए हमें अपने भीतर की यात्रा करनी होगी और अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना होगा।

उदाहरण:

एक सफल व्यक्ति जो अपने करियर में बहुत कुछ हासिल कर चुका है, फिर भी वह अंदर से संतुष्ट नहीं होता। वह हमेशा कुछ और पाने की इच्छा में लगा रहता है। लेकिन जब वह आत्म-निरीक्षण करता है और अपने भीतर की गहराई को समझता है, तो उसे यह महसूस होता है कि सच्चा संतोष और शांति केवल उसकी आत्मा से जुड़ने में ही संभव है। बाहरी सफलता और उपलब्धियां केवल अस्थायी हैं, जबकि आंतरिक शांति और संतोष स्थायी होते हैं।

निष्कर्ष

ओशो के इस विचार में जीवन की एक गहरी सच्चाई छिपी है। उन्होंने हमें यह सिखाया है कि बाहरी वस्तुएं और इच्छाएं हमें केवल अस्थायी सुख और संतोष दे सकती हैं। सच्चा संतोष और शांति केवल भीतर से ही प्राप्त हो सकते हैं। हमें अपनी इच्छाओं और आकर्षणों को समझना चाहिए और यह जानना चाहिए कि वे हमें कहां ले जा रहे हैं। इसके लिए हमें आत्म-ज्ञान और आत्म-निरीक्षण की यात्रा करनी होगी, जहां सच्चा सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है।

ओशो के विचार हमें यह सिखाते हैं कि हमें बाहरी संसार की ओर कम और अपने भीतर की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि सच्चा आकर्षण और संतोष केवल आत्मा से जुड़ने में ही संभव है। इसके लिए हमें अपने मन को शांत करना होगा, अपनी इच्छाओं को समझना होगा और अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना होगा। केवल तभी हम सच्चे सुख और शांति का अनुभव कर पाएंगे। 

ओशो की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं, और वे हमें जीवन के गहरे अर्थों को समझने और आत्मिक शांति पाने की दिशा में मार्गदर्शन करती हैं।

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