ओशो के इस उद्धरण में, वे नग्नता को मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं और कहते हैं कि परमात्मा ने मनुष्य को नग्न ही बनाया है। वस्त्रों की उत्पत्ति मानव की अपनी ईजाद है, जो सुविधा और प्रकृति से बचाव के लिए तो उचित है, लेकिन नग्नता को अस्वीकार करना परमात्मा को अस्वीकार करने के समान है। वे कहते हैं कि वस्त्रों का उपयोग मुख्यतः अपने को छिपाने के लिए किया जाता है, जो पाखंड का प्रतीक है।
ओशो उदाहरण देते हुए बताते हैं कि महावीर और लल्ला, कश्मीर की एक फकीर स्त्री, नग्न हुए और उन्हें समाज के विरोध का सामना करना पड़ा। यह विरोध समाज के पाखंड के कारण था, क्योंकि नग्नता इन पाखंडों को चुनौती देती है।
ओशो का मानना है कि नग्नता सहज और स्वाभाविक होनी चाहिए, और जब भी सुविधा हो, व्यक्तियों को नग्न होने का नैसर्गिक अधिकार होना चाहिए। उनके अनुसार, वस्त्रों के पीछे छिपाव है और इसी छिपाव में सारी पोर्नोग्राफी की जड़ है। इस प्रकार, ओशो नग्नता को स्वाभाविक और सहज मानते हैं, और वस्त्रों को पाखंड का प्रतीक।
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