"जीवन के स्वर को केवल वे ही सुन सकते हैं, जो बड़ी गहरी 'फुरसत में' हैं!" — ओशो

भूमिका: जीवन का संगीत और फुरसत का रहस्य

जीवन एक सुंदर संगीत है, लेकिन इसे सुनने के लिए 'फुरसत' चाहिए।

और हममें से ज्यादातर लोगों के पास 'फुरसत' नहीं है।  

हम जल्दी में हैं, भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं—

- कोई पैसे के पीछे भाग रहा है,

- कोई प्रतिष्ठा के पीछे भाग रहा है,

- कोई रिश्तों में उलझा है,

- कोई भविष्य की चिंता में खोया है।

हर कोई व्यस्त है, लेकिन किसी को नहीं पता कि क्यों।

हर कोई भाग रहा है, लेकिन किसी को यह एहसास नहीं कि जिस सुख की तलाश में भाग रहे हैं, वह तो इसी क्षण में उपलब्ध है।

"जीवन के स्वर को केवल वे ही सुन सकते हैं, जो बड़ी गहरी 'फुरसत में' हैं!"

ओशो का यह वचन साधारण नहीं है।

यह हमें जीवन के सबसे गहरे रहस्य तक ले जाता है।  

तो चलो, इसे समझते हैं।

1. क्या हमने खुद को व्यस्तता में खो दिया है?

तुम देखोगे—आज के समय में हर कोई कहता है,  

"मैं बहुत व्यस्त हूँ!"

यह व्यस्तता कहाँ से आई?

किसने हमें यह सिखाया कि हर समय कुछ करते रहना ही जरूरी है?

किसने हमें यह सिखाया कि जो "खाली" है, वह आलसी है?

लेकिन ओशो कहते हैं, "जो खाली है, वही असली में भरा हुआ है!"

"जो रुक सकता है, वही देख सकता है।

जो शांत हो सकता है, वही सुन सकता है।"

तुमने देखा होगा—

- जब झील का पानी स्थिर होता है, तभी उसमें चाँद साफ दिखता है।

- जब मन स्थिर होता है, तभी जीवन का संगीत सुनाई देता है।

लेकिन हमारा जीवन ऐसा नहीं है।

हमारे भीतर हमेशा कोई न कोई हलचल चल रही है।

हमारे भीतर लगातार शोरगुल मचा रहता है।

कोई कह रहा है,

"तुमने अब तक क्या पाया?"

"तुम आगे क्या करोगे?"

"तुम्हारा भविष्य सुरक्षित है या नहीं?"

यह लगातार चलने वाला विचारों का शोर हमें असली जीवन सुनने ही नहीं देता।

यही कारण है कि हम हमेशा व्यस्त रहते हैं, लेकिन अंदर से कभी संतुष्ट नहीं होते।

2. असली फुरसत क्या है?

ओशो जिस "फुरसत" की बात कर रहे हैं, वह 'आलस्य' नहीं है।

वह अक्रियता नहीं है।

वह समय बर्बाद करना नहीं है।

"फुरसत" का मतलब है—जीवन के प्रवाह में होना, हर क्षण को पूरी गहराई से जीना।

लेकिन हममें से कितने लोग सच में जी रहे हैं?

हममें से कितने लोग सिर्फ साँस नहीं ले रहे, बल्कि हर साँस को महसूस कर रहे हैं?

हममें से कितने लोग

- भोजन करते समय सिर्फ भोजन कर रहे हैं?

- चलने के समय सिर्फ चल रहे हैं?

- किसी को प्रेम करते समय पूरी तरह प्रेम में डूबे हुए हैं?

हम कुछ भी पूरी तरह नहीं करते।

हम भोजन करते हैं, लेकिन मन कहीं और है।

हम प्रेम करते हैं, लेकिन दिमाग में कोई और योजना चल रही होती है।

हम चलते हैं, लेकिन अंदर कोई तनाव बना रहता है।

यही असली समस्या है—हम कभी "फुरसत में" नहीं होते।  

हम हर समय किसी न किसी चीज के पीछे भाग रहे होते हैं।

लेकिन जो वास्तव में जीना जानते हैं, वे कुछ भी करने से पहले फुरसत में होते हैं।

वे जीवन को पहले महसूस करते हैं, फिर कुछ करते हैं।

3. समाज ने हमें व्यस्त रहना क्यों सिखाया?

क्योंकि समाज को तुम्हारी शांति से डर लगता है।

समाज चाहता है कि तुम भागते रहो, क्योंकि तभी तुम एक "उपयोगी नागरिक" बन सकते हो।

अगर तुम ध्यान करने लगो, अगर तुम रुकने लगो,

अगर तुम फुरसत में बैठ जाओ, तो तुम चीजों पर सवाल उठाने लगोगे।

- तुम पूछोगे, "क्या दौड़ना जरूरी है?"

- तुम पूछोगे, "क्या पैसा ही सब कुछ है?"

- तुम पूछोगे, "क्या मैं इस भागमभाग में कुछ असली खो तो नहीं रहा?"

और यही तो समाज नहीं चाहता।

इसलिए बचपन से हमें सिखाया जाता है—  

"कुछ मत छोड़ो, कुछ मत गंवाओ, हर समय कुछ न कुछ करते रहो!"

लेकिन यह सब करके हमने जीवन को ही खो दिया।

हम पैसे कमाते-कमाते 'खुशी' खो बैठे।  

हम भविष्य की तैयारी करते-करते 'वर्तमान' खो बैठे।  

हम दूसरों को खुश करने में 'अपना असली स्वरूप' खो बैठे।

4. क्या होता है जब तुम फुरसत में आ जाते हो?

ओशो कहते हैं, "जो फुरसत में आ गया, उसने जीवन के स्वर सुन लिए।"

तुमने कभी पक्षियों की चहचहाहट ध्यान से सुनी है?

तुमने कभी बारिश की बूंदों का संगीत महसूस किया है?

तुमने कभी पेड़ों को हिलते हुए देखा है?

ये सब जीवन के स्वर हैं।

लेकिन इन्हें सुनने के लिए तुम्हें खाली होना पड़ेगा।

जब तुम पूरी तरह फुरसत में होते हो, तब तुम देखते हो कि जीवन हर क्षण एक चमत्कार है।

हर चीज सुंदर है, हर चीज दिव्य है।

- तब तुम भोजन सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि आनंद लेने के लिए करने लगते हो।

- तब तुम बातें सिर्फ दूसरों को प्रभावित करने के लिए नहीं, बल्कि सहजता से करने लगते हो।

- तब तुम प्रेम सिर्फ पाने के लिए नहीं, बल्कि देने के लिए करने लगते हो।

फुरसत में आना यानी 'समर्पण करना।'

फुरसत में आना यानी 'साक्षी बन जाना।

और जिसने यह कर लिया, वह जी उठा।

5. ध्यान और फुरसत: जीवन के संगीत को सुनने की कुंजी

ओशो का पूरा ध्यान हमें फुरसत में लाना है।

और इसका एकमात्र तरीका है—ध्यान।

ध्यान का मतलब है, रुक जाना, देखना, महसूस करना।

जब तुम ध्यान में बैठते हो, तो धीरे-धीरे

- विचार शांत होने लगते हैं,

- मन हल्का होने लगता है,

- जीवन का संगीत स्पष्ट होने लगता है।

यही कारण है कि ओशो कहते हैं,  

"ध्यान ही असली फुरसत है!"

जो व्यक्ति ध्यान में गहरा उतर जाता है, उसके लिए हर चीज संगीतमय हो जाती है।

उसके लिए हर क्षण एक उत्सव बन जाता है।

6. निष्कर्ष: फुरसत में आओ, जीवन के स्वर को सुनो!

इस पूरी चर्चा का सार क्या है?

1. व्यस्तता एक भ्रम है—वास्तव में कुछ भी करना जरूरी नहीं है।

2. असली "फुरसत" का मतलब आलस्य नहीं, बल्कि जागरूकता है।

3. समाज ने तुम्हें व्यस्त रहने के लिए प्रोग्राम किया है—इससे मुक्त हो जाओ।

4. जो फुरसत में आ जाता है, वह पहली बार जीना शुरू करता है।

5. ध्यान ही वह तरीका है जिससे तुम फुरसत में आ सकते हो।

तो अब सवाल है—क्या तुम फुरसत में आने के लिए तैयार हो?

क्या तुम जीवन के स्वर को सुनने के लिए तैयार हो?

अगर हाँ, तो अभी से शुरुआत करो।

रुको, सांस लो, महसूस करो।

देखो, सुनो, स्पर्श करो।

क्योंकि यही जीवन है, और यही ध्यान है!

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